Sunday, 1 March 2015

आम बजट आशाओ पर तुषारापात का पिटारा


संसद में आम बजट प्रस्तुत होने के बाद स्थानीय “आई नेक्स्ट” अखबार के दफ्तर में आम बजट पर परिचर्चा के दौरान सभी ने उसे निराशाजनक बताया। सीनियर चार्टर्ड एकाउन्टेन्ट श्री धर्मेन्द्र श्रीवास्तव ने उसे विजन डाक्यूमेन्ट बताया। सीनियर सिटीजन श्री बद्री प्रसाद मिश्रा ने बजट में वरिष्ठ नागरिको को भूलने की शिकायत की। सी0एस0ए0 की सहायक प्रोफेसर डा0 विनीता सिंह ने बजट के प्रावधानो से परचेजिंग पावर घटने की आशंका जताई। डा0 विज्ञान सान्याल ने इलाज और जाॅचो के महॅगा हो जाने का खतरा बताया। कर्मचारी श्री अनुग्रह त्रिपाठी ने उसे मजदूर विरोधी बताया और अर्थ शास्त्र के प्राध्यापक डा0 एम.पी. सिंह ने एग्रीकल्चर सेक्टर के लिये समुचित प्रावधान न होने के कारण विकास के दावे के खोखलेपन का दर्द बयाॅ किया।
बजट में सर्विस टैक्स 12.36 प्रतिशत से बढाकर 14 प्रतिशत करने और उसके ऊपर 2 प्रतिशत स्वच्छता टैक्स जुड जाने से टैक्स की वास्तविक  दर 14.28 प्रतिशत हो गई है और इसके कारण रोजमर्रा की जरूरतों टेलीफोन, मोबाइल, सीमेन्ट, बीडी, सिगरेट,गुटखा,होटल में खाना, रहना,ब्यूटी पार्लर,कोरियर सेवायें, इन्श्योरेन्स,फ्लेवर्ड पेय,बोतल बन्द पानी, शेयर दलाली, क्रेडिट डेविट कार्ड की सेवाये,ड्राई क्लिनिंग आदि का महॅगा होना सुनिश्चित हो गया है और इस सबसे अच्छे दिन आने का सपना भी बिखर गया है।
वित्त मन्त्री अरूण जेटली विद्यार्थी नेता रहे है और विद्यार्थी नेता के नाते वे कुल बजट का  10 प्रतिशत शिक्षा और उसका बडा हिस्सा प्राथमिक शिक्षा पर खर्च किये जाने की वकालत किया करते थे परन्तु वित्त मन्त्री के रूप में अवसर मिलने पर उन्होने इस दिशा में कोई उल्लेखनीय प्रयास नही किया है। यह सच है कि उन्होने उच्च शिक्षा और शोध संस्थाओ को बढावा देते हुये अधिकांश राज्यो मे एक केन्द्रीय संस्थान खोलने की घोषणा की है। हर ब्लाक में एक माडल स्कूल खोलने की भी योजना है परन्तु प्राथमिक शिक्षा के ढाॅचे को मजबूत करने के लिये सार्थक प्रयास नही किये गये है। प्राथमिक विद्यालयो का शैक्षिक स्तर बढाये बिना उच्च शिक्षा की सुविधाओ का लाभ गरीब मजदूर किसान के बच्चो को नही मिल सकेगा। सुदूर गाॅवो में आज भी प्राथमिक स्कूलो के पास भवन नही है। बालिका विद्यालयो में शौचालय की व्यवस्था नही है। कक्षा पाॅच के बाद अगली कक्षाओं की पढाई के लिये गाॅव के आसपास कोई स्कूल नही है। इस कमी को दूर करने के लिये बजट में कोई रोड मैप नही है। जो सबका साथ सबका विकास के नारे की सार्थकता पर प्रश्न चिन्ह खडा करता है।
इस बजट मे शिक्षा के बजट मे कटौती भी की गई है। जिसे किसी भी दशा में उचित नही कहा जा सकता। स्कूली शिक्षा और साक्षरता के लिये पिछले बजट मे पचपन हजार करोड रूपये आवंटित किये गये थे परन्तु इस बार केवल 42 हजार करोड दिये गये है। इसी प्रकार उच्च शिक्षा में 28 हजार करोड की  जगह केवल 27 हजार करोड रूपये दिये गये है।
परिचर्चा के दौरान कहा गया कि वित्त मन्त्री ने कर्मचारी राज्य बीमा योजना और भविष्य निधि योजना के अशंदानो की अनिवार्य कटौती को स्वेच्छिक बनाने का निर्णय लेकर सामाजिक सुरक्षा की इन योजनाओ के भविष्य पर सवालिया निशान लगाया है। काफी संघर्ष के बाद तत्कालीन सरकार ने श्रमिको के और उनके परिवार के व्यापक हितों के लिये इन योजनाओ को शुरू किया और अब लगता है कि उसे  बन्द करने की तैयारी की जा रही है जबकि सबको पता है कि ई.एस.आई के अस्पतालो के कारण मजदूरो और उनके परिवारो को अच्छा इलाज मिल जाता है और सेवानिृवत्त के बाद भविष्य निधि से मिलने वाली राशि उनके वृद्धावस्था का मजबूर सहारा होता है। इन स्कीमो में किसी  भी प्रकार की कटौती श्रमिको के हित मे नही है।
कर्मचारी भविष्य निधि स्कीम मे लगभग 19 हजार करोड रूपया अन क्लेम्ड पडा हुआ है। वित्त मन्त्री इस पैसे का उपयोग  अपने तरीके से करना चाहते है जो किसी भी दशा में न्यायसंगत नही है । वास्तव में इस पैसे का उपयोग श्रमिको के कल्याण के लिये किया जाना चाहिये। कर्मचारी भविष्य निधि योजना के तहत सेवा निवृत्त कर्मचारियो को  एक हजार रूपये से कम पेन्शन दी जा रही है जिसे किसी  भी तरह समुचित नही कहा जा सकता। वित्त मन्त्री को  श्रमिको की इस पेन्शन राशि को बढाकर न्यूनतम तीन  हजार रूपये करना  चाहिये था।
भारतीय जनता पार्टी का यह बजट एक विजन डाक्यूमेन्ट है। इस बजट के दूरगामी परिणाम अच्छे हो सकते है परन्तु आम लोगो की तात्कालिक जरूरतो की  दृष्टि से बजट    निराशाजनक है। इस बजट से कारपोरेट धरानो को छोडकर किसी  को कोई लाभ नही दिखता। आयकर में कोई छूट न दिये जाने और सर्विस टैक्स की राशि बढा  देने से वेतन भोगी कर्मचारियो और छोटे कारोबारियों के पास बचत के विकल्प कम हो गये है। उनकी परचेजिंग क्षमता कम होगी और उन्हे अपनी मूलभूत जरूरतो के खर्चाे में कटौती करनी पडेगी। कोई भी व्यक्ति बच्चो के स्कूल की फीस, बिजली का बिल, हाउस टैक्स पानी आदि के बिल मोबाइल,टेलीफोन,पेट्रोल का खर्च कम नही कर सकता, इसलिये उसे अपने खुद की जरूरतो के लिये होने वाले खर्च कम करने पडेगें।
बजट में रोजगार बढाने के लिये नही बल्कि उद्यमशीलता केा बढाने के लिये बडी बडी बाते कही गयी है जो सुनने मे अच्छी लगती है परन्तु जमीन पर इसका लाभ आम युवा को  मिलता नही दिखता। एक सामान्य परिवार के युवा इन्जीनियर के लिये अपना उद्यम स्थापित करना कागजो में आसान हो सकता है परन्तु जमीन पर  हकीकत कुछ और होती  है। एक उद्योग लगाने के लिये जमीन से पॅूजी तक कई तरह के साधन जुटाने होते है। कागजो मे बताया जाता है कि वित्तीय संस्थान युवाओ की हर तरह की मदद करेगेे परन्तु भारी भरकम जमानत लिये बिना कोई भी बैंक एक सामान्य आर्थिक पृष्ठिभूमि के युवा को ऋण नही देते। बजट में इस दिशा में की गयी सभी घोषणाये सदिच्छा से ज्यादा कुछ नही है। रोड मैप का अभाव है। इसलिये बजट में  वित्त मन्त्री ने अपने समर्थको की आशाओं पर भी तुषारापात किया है।

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