आजादी के 68 वर्षो के बाद भी अपने देश में लाॅ की पढाई आज भी विज्ञान की तरह नही कराई जाती। दूर दराज के शहरो, कस्बो के लाॅ स्कूलो मे अप्रशिक्षित अध्यापको द्वारा सदियों पुरानी पद्वित से लाॅ का अध्ययन अध्यापन किया जाता है। कुशल फैकल्टी और लायब्रेरी जैसी मूल भूत सुविधाये उपलब्ध नही है। इन स्कूलो में रिसर्च सेमिनार सामयिक परिचर्चा वर्कशाप मूट कोर्ट के बारे मे सोचना भी बेमानी है जबकि संविधान के नीति निदेशक तत्वो के तहत सुशासन का लाभ आम जन तक पहुॅचाने मे लीगल एजूकेशन की महत्वपूर्ण भूमिका है। इस विषय मे एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत प्राप्त अपने अधिकारो का सम्यक प्रयोग और उसके अनुरूप कर्तव्यो का निर्वहन करने मे बार काउन्सिल आफ इण्डिया बुरी तरह असफल रही है। उसकी अस्पष्ट दशा दिशा के कारण लाॅ स्कूलो की संख्या में अभूतपूर्व बढोत्तरी हुई है परन्तु उसके द्वारा लीगल एजूकेशन की गुणवक्ता मे बढोत्तरी का केाई प्रयास नही किया गया है।
लीगल एजूकेशन मे आधार भूत परिवर्तन के लिये वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्री मनमोहन सिंह द्वारा गठित नेशनल कालेज कमीशन ने एक वर्किग ग्रुप की स्थापना की थी जिसमेे न्यायमूर्ति जगन्नाथ राव, लीला सेठ, सैम पित्रोदा, डा0 माधवन मेनन, डा0 बी.एस.चिमनी, डा0 मोहन गोपाल, पी.पी.राव, निशिथ देसाई शामिल थे। इस वर्किग ग्रुप ने मुख्य रूप से टीचिंग इनफ्रास्ट्रक्चर, एडमिनिस्ट्रेशन की समस्याओ को चिन्हित किया। ग्रुप ने लाॅ स्कूलो के लिये कुशल फैकल्टी की चयन पद्धित परीक्षा पैटर्न, रिसर्च डेवलपमेन्ट, शिक्षा की गुणवत्ता और पढाई के साथ व्यवहारिक प्रशिक्षण जैसी मूल भूत समस्याओ के समाधान पर विचार विमर्श किया। इस ग्रुप ने सभी स्तरो पर सम्बद्ध पक्षो के साथ व्यापक विचार विमर्श और चर्चा परिचर्चा के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत की जो क्रियान्वयन की प्रतीक्षा मे धूल फाॅक रही है।
इस वर्किग ग्रुप ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि सम्पूर्ण देश मे केवल कुछ लाॅ स्कूल समय की माॅग के अनुरूप शिक्षा उपलब्ध करा रहे है। अधिकाश स्कूलो मे आज भी सदियों पुराने परम्परागत तरीको से अध्ययन अध्यापन किया जा रहा है। अधिकांश स्कूलो मे कम वेतन देने के लालच मे कुशल और प्रतिबद्ध अध्यापको का चयन नही किया जाता । रिसर्च प्रशिक्षण केन्द्र लायब्रेरी जैसी मूल भूत जरूरते उनकी चिन्ता मे नही है।
पचास साल पहल लाॅ स्कूलो के सामने फौजदारी राजस्व और सिविल मामलो की पढाई का लक्ष्य हुआ करता था। इस पद्धित मे शिक्षित लाॅ ग्रेजुयेट तहसीलो और अधीनस्थ न्यायालयो के समय वकालत करने मे सक्षम हुआ करते थे। इन्ही मे कुछ स्थानीय लाॅ स्कूलो में पार्टटाइम अध्यापन भी किया करते थे परन्तु 1991 के आर्थिक उदारीकरण के बाद स्थितियाॅ एकदम बदल गई। लीगल एजूकेशन की पूरी अवधारणा मे अभूतपूर्व परिवर्तन हुआ है। अब ट्रेड कामर्स और इण्डस्ट्री को भी लाॅ ग्रेजुयेट की आवश्यकता पडने लगी है। अन्तरराष्ट्ररीय संदर्भाे मे लीगल एजूकेशन का महत्व बढा है। आज श्रम कानूनो का अध्ययन जरूरी हो गया है। पिछले दस, पन्द्रह वर्षो मे नान बैकिग फायनेन्स कम्पनियो और अन्य वित्तीय संस्थानो मे नान प्रैक्टिसिंग एडवोकेट्स को सेवा का अवसर मिला है परन्तु आरबीट्रेशन, बैकिग विधि और ए0डी0आर0 सिस्टम की समुचित शिक्षा दीक्षा न होने के कारण इस संस्थानो मे सेवारत लाॅ ग्रेजुयेट रिकवरी एजेन्ट बन कर रह गये है और विधि एवम विधिक प्रक्रिया से एकदम अनजान प्रबन्धको की डाॅट सुनने को विवश है। उनके सामने पदोन्नति और अच्छे अवसरो का अभाव है जिसके कारण उनमे से अधिकांश फ्रेस्टेट हो रहे है। उनका आत्म विश्वास टूट गया है और अब वे तहसील स्तर पर भी वकालत करने का साहस नही करते।
अस्सी प्रतिशत लाॅ ग्रेजुयेट उन स्कूलो में शिक्षित होता है जो किसी ने किसी राजनेता द्वारा नियन्त्रित एवम संचालित है और वे सबके सब विधि शिक्षा की गुणवत्ता के दुश्मन है। इन स्कूलो मे कोई प्लेसमेन्ट नही होता और अधिकांश ग्रेजुयेट बेरोजगार रह जाते है। बेमन से ऐसे ग्रेजुयेट वकालत के लिये कचहरी मे प्रवेश करते है। कचहरी में बीस प्रतिशत लोगो का एकाधिकार है। नये लोगो के लिये सम्भावनाये सीमित है। अधिवक्ता पुत्रो और कुछ प्रभावशाली परिवारो के बच्चो को छोडकर अधिकांश युवा अधिवक्ता अपने सीनियर एडवोकेेट के मुंशी के जूनियर के नाते काम करने को विवश है। उन्हे जानबूझकर अदालतो के सामने अपनी बात कहने का अवसर नही दिया जाता जिसके कारण अस्सी प्रतिशत अधिवक्ता संधर्ष का जीवन जी रहा है। संधर्षरत अधिवक्ता अपने संख्या बल का महत्व जान गया है। साधारण विवादो मे भी आन्दोलन का सहारा उसकी आदत और जरूरत बन गयी है। अब वे प्रेशर ग्रुप के रूप मे विकसित हो गये है। स्थानीय बार एसोसिऐशन और बार काउन्सिल के सदस्य के चुनाव को नियन्त्रित करने मे सफल हो रहे है और उसके कारण सीखने सिखाने का वातावरण दूषित हो गया है। प्रापटी डीलिंग जैसे काम उन्हे आक्रष्ट करते है। युवा अधिवक्ताओ में अदालतो के सामने उपस्थित होने के लिये निरन्तर कुशलता प्राप्त करने मे बढती अरूचि सम्पूर्ण न्याय प्रशासन के लिये चिन्ता का विषय है।
नौकरी मे आने के बाद न्यायिक अधिकारियो को उनके लिये गठित नेशनल ज्यूडिशियल एकेडमी मे प्रशिक्षण दिया जाता है और रोजमर्रा की जरूरतो की दृष्टि से उन्हे नियमित रूप से अध्ययन मेटेरियल भी उपलब्ध कराया जाता है लेकिन अधिवक्ताओ और प्रासीक्यूटर्स के प्रशिक्षण की केाई संस्थागत व्यवस्था नही है। राज्य बार काउन्सिल एडवोकेट के रूप में सदस्यता देने के बाद उनके प्रशिक्षण की कभी कोई चिन्ता नही करती है।
मेडिकल कालेजो मे फाॅरेन्सिक मेडिसिन पढाई जाती है और कचहरी में नित्यप्रति उसका प्रयोग होता है। आपराधिक विचारणो मे इन्जरी रिपोर्ट, पोस्टमार्टम रिपोर्ट की पुष्टि के लिये सम्बन्धित चिकित्सक बतौर अभियोजन साक्षी परीक्षित किया जाता है और उसके बाद बचाव पक्ष के अधिवक्ता को उससे प्रति परीक्षा करनी होती है। इतनी महत्वपूर्ण शैक्षिक जरूरत के बावजूद स्थानीय लाॅ कालेजो में फारेन्सिक मेडिसिन को पढाने की कोई व्यवस्था नही है। अधिवक्ताओ और प्रासीक्यूटर्स को अपने स्तर पर इसका ज्ञान अर्जित करना होता है जो वास्तव में कठिन है। लम्बे अर्से से वकालत कर रहे अधिकांश लोग इस विधि मे पारंगत नही हो पाते और उनके इस अज्ञान से कई बार किसी न किसी का नुकसान होता है।
सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए0एम0 अहमदी, जगन्नाथ राव एवम बी0एन0 कृपाल की तीन सदस्यीय समिति ने लीगल एजूकेशन मे व्यापक सुधार के लिये कई सुझाव दिये है। लाॅ कमीशन भी अपनी 184 वी रिपोर्ट में कई सामयिक अनुशंसाये की है परन्तु केन्द्र सरकार इन अनुशंसाओ को लागू करने के प्रति गम्भीर नही है। एडवोकेट एक्ट 1961 के तहत लीगल एजूकेशन बार काउन्सिल आफ इण्डिया ने नियन्त्रण में है। उसके सदस्य अपने अपने क्षेत्रो में पारंगत अधिवक्ता है परन्तु उनमे से अधिकांश के पास अध्यापन और शैक्षिक संस्थानो को संचालित करने का कोई प्रत्यक्ष अनुभव नही है। बार काउन्सिल लाॅ स्कूलो मे गुणवत्ता पूर्ण शैक्षिक माहौल बनाने मे असफल सिद्ध हुई हैं।
बार काउन्सिल की असफलता को दृष्टिगत रखकर नेशनल नालेज कमीशन ने लीगल एजूकेशन को बार काउन्सिल के अधिकार क्षेत्र से बाहर करने की सिफारिश की है। आल इण्डिया काउन्सिल आफ टेक्निकल एजूकेशन और मेडिकल काउन्सिल आफ इण्डिया की तरह लीगल एजूकेशन को भी नियन्त्रित एवम संचालित करने के लिये राष्ट्रीय स्तर पर आॅल इण्डिया काउन्सिल फार लीगल एजूकेशन का गठन समय की जरूरत है। संसद को कानून बनाकर इस दिशा मे पहल करनी चाहिये। काउन्सिल को समय की जरूरतो की दृष्टिगत रखकर व्यापक परिप्रेक्ष्य मे फैकल्टी डेवलपमेन्ट, एकेडेमिक क्लालिटी एशश्योरेन्स, रिसर्च एण्ड इन्सटीटयूशनल डेवलपमेन्ट, एडमिनिस्ट्रेशन, फाइनेन्स शैक्षिक सत्रो के नियमन, पाढयक्रम और अध्यापको की नियुक्ति प्रक्रिया मे सुधार के लिये समेकित रोड मैप बनाने और उसे लागू करने का अधिकार दिया जाना चाहिये। काउन्सिल मे केन्द्र सरकार विभिन्न राज्य सरकारो, लाॅ कालेजो, विश्व विद्यालयो, बार काउन्सिल और विद्यार्थिओ के निर्वाचित प्रतिनिधियो को शामिल किया जाना चाहिये। काउन्सिल नियमित रूप से लाॅ स्कूलो का निरीक्षण करे और गुणवत्ता पूर्ण शैक्षिक माहोल सुनिश्चित कराये।
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