अभी पिछले दिनो मुम्बई स्थित एक ट्रेड यूनियन फेडरेशन अॅाफ वेस्टर्न इण्डिया सिने इम्प्लाइज ने महिला कर्मचारो को मेेक-अप आर्टिस्ट के रूप में सेवायोजन के लिये सदस्यता देने से इन्कार कर दिया। फेडरेशन ने महिला कर्मचारो को केवल हेयर डेªसर के रूप में प्रोफेशन के लिये सदस्यता देने अैार पुरूष कर्मकारो को हेयर ड्रेसर के साथ साथ मेक अप आर्टिस्ट के लिये भी प्रोफेशन चुनने की अनुमति प्रदान कर रखी है। लिंग आधारित भेदभाव होने के बावजूद रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन ने फेडरेशन को अपनी नियमावली से इस नियम को प्रथक करने के लिये नही कहा और महिला कर्मकाराो की शिकायत पर फेडरेशन के विरूद्ध कोई कार्यवाही नही की जबकि किसी भी ट्रेड यूनियन की नियमावली से लिंग आधारित भेदभाव के नियमो को प्रथक रखना उनकी पदीय प्रतिबध्ता है।
महिलाओ की शिकायत पर सर्वेच्च न्यायालय ने इस मामले मे हस्तक्षेप किया और अपना निर्णय (चारू खुराना बनाम यूनियन आॅफ इण्डिया-2015-1-सुप्रीम कोर्ट केसेज-पेज 192) के द्वारा नियमावली के इस क्लाज को रद करके रजिस्ट्रार ट्रेड यूनियन को आदेशित किया कि वे चार सप्ताह के अन्दर फेडरेशन में मेक अप आर्टिस्ट के रूप में महिला कर्मकारो की सदस्यता सुनिश्चित कराये और यदि फेडरेशन केाई व्यवधान उत्पन्न करे तो पुलिस अधिकारी अपनी पदीय प्रतिबध्ताओ के तहत महिला कर्मचारियो को उत्पीडन के विरूद्ध सुरक्षा प्रदान करे।
समुचित संवैधानिक प्रावधानो और सर्वोच्च न्यायालय के नियमित हस्तक्षेप के बावजूद महिलाओ को कमतर मानने की मानसिकता आज भी जिन्दा है। नीरा माथुर बनाम एल0आई0सी0( 1992-1-एस0सी0पी0-पेज 286) के द्वारा सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय जीवन बीमा निगम में महिला कर्मचारियो के लिये अपनी माहवारी की अवधि, माहवारी की पिछली तिथि, प्रेगेनेन्सी और गर्भपात जैसी नितांत व्यक्तिगत जानकारियो को प्रबन्धको के समक्ष प्रस्तुत करने की अनिवार्यता केा असंवैधानिक घोषित किया है। इसके पूर्व मायादेवी के मामले (1986-1-एस0सी0आर0 पेज 743) में भी सर्वोच्च न्यायालय ने विवाहित महिलाओ के लिये सार्वजनिक पद पर नौकरी के लिये आवेदन करने के पूर्व अपने पति की सहमति होने की अनिवार्यता को भी असंवैधानिक घोषित किया था और आवेदन पत्र में इस आशय के कालम को हटा देने का आदेश जारी किया । न्यायालय ने महिलाओ के लिये इस प्रकार की सूचनाये उपलब्ध कराने की अनिवार्यता को महिलाओ की गरिमा और उनकी निजता के अधिकार का उल्लधंन माना था। अधिक पढे.....।कअवबंजमवचपदपवदण्इसवहेचवजण्पद
जागरूकता और सर्वाेच्च न्यायालय के सुस्पष्ट आदेशो के बावजूद माना जा सकता था कि कोई नियेाक्ता लिंग के आधार पर अपने कर्मचारियो के साथ विभेद नही करेगा और महिला होने के नाते किसी कर्मचारी को रोजगार के किसी अवसर से वंचित नही करेगा परन्तु आजादी के इतने लम्बे वर्षो के बावजूद ऐसा नही हो सका और महिलाओ के साथ भेदभाव जारी है। मैकिननान मैकेनजी एण्ड कम्पनी लिमिटेड ने अपने प्रतिष्ठान में महिला और पुरूष स्टेनेाग्राफर के बीच लिंग के आधार पर विभेद बन्द नही किया। महिला स्टेनोग्राफर को पुरूष स्टेनोग्राफर की तुलना में कम वेतन दिया जाता था। स्थानीय श्रम अधिकारियो ने इस विभेद को मिटाने के लिये अपने स्तर पर कोई सार्थक पहल नही की। सर्वोच्च न्यायालय को पुनः हस्तक्षेप करना पडा। मैकिननान मैकेनजी एण्ड कम्पनी लि0 बनाम आॅडेª डी0 कोस्टा(1987-2-एस0सी0पी0 पेज 469) के द्वारा पुनः सर्वोच्च न्यायालय ने इस विभेद को समाप्त कराया। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा था कि समान काम का समान वेतन दिया जाना चाहिये। इस संस्थन में वरिष्ठ अधिकारियो के साथ गोपनीय कार्य करने के लिये किसी स्टेनोग्राफर की नियुक्ति नही की जाती और न किसी महिला को किसी वरिष्ठ अधिकारी के साथ गोपनीय काम करने के लिये स्थानान्तरित किया जाता है। पुरूष और महिला दोनो की नियुक्ति प्रक्रिया और शैक्षिणिक योग्यताये एक समान होने के बावजूद महिला स्टेनोग्राफर को पुरूषो की तुलना मे कम वेतन दिया जाना स्पष्ट रूप से डिस्क्रिमिनिनेशन है और संविधान किसी भी दशा में इसकी इजाजत नही देता।
स्वामी विवेकानन्द ने कभी कहा था कि जिस तरह चिडिया अपने एक पंख के सहारे उड नही सकती ठीक उसी तरह महिलाओ को पीछे रखकर कोई समाज आगे नही बढ सकता परन्तु अपना समाज आज भी महिलाओ की मौलिक स्वतन्त्रता का सम्मान नही करता। किसी न किसी बहाने उन्हे कमतर मानकर उनके साथ अन्याय किये जाने की प्रथाये आज भी जारी है । उनकी नैसर्गिक प्रतिभा और सम्भावनाओ को घर की चहार दीवारी में कैद करके जिसको जब जहाॅ अवसर मिलता है, उनका शोषण करने से चूकता नही है। अपनी इस स्थिति के लिये महिलाये भी कम जिम्मेदार नही है। माॅ के नाते बेटी और बेटे के बीच विभेद की शुरूआत वे स्वंय करती है और नित्य प्रति किसी और के अनुचित व्यवहार के कारण अनावश्यक बन्दिशे लगाकर बेटियो के आत्म विश्वास को झकझोर देती है।
महिलाओ के साथ सदियो से चले आ रहे अन्याय को दृष्टिगत रखकर अपने संविधान निर्माताओ ने संविधान में ही स्पष्ट कर दिया था कि भारतीय गणराज्य पुरूष और महिला अपने सभी नागरिको को समान रूप से जीविका के समुचित साधन उपलब्ध कराने के लिये ऐसी सामाजिक व्यवस्था की स्थापना और उसका संरक्षण करके लोक कल्याण को बढावा देगा जिससे सभी के साथ सामाजिक आर्थिक और राजनैतिक न्याय हो सके और राष्ट्रीय जीवन की सभी संस्थाये इन्ही उददेश्यो की प्राप्ति के लिये अनवरत प्रयास रत रहें और किसी नागरिक के साथ धमर््ा मूलवंश जाति लिंग जन्म स्थान के आधार पर कोई विभेद न किया जा सके।
फ्रान्स की प्रख्यात साहित्यकार सिमोन देवोनार ने कहा है कि औरत पैदा होती है परन्तु उसमें दीनता समाज पैदा करता है। कोमलता स्नेह और कमजोरी को अैारत का प्रतिरूप माना जाता है। झाॅसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजो के छक्के छुडाकर पूरे भारत का गौरव बढाया था परन्तु कहा जाता है कि उन्होने भारतीय नारी का गौरव बढाया है। कोई क्यो नही कहता कि गाॅधी नेहरू पटेल सुभाष ने भारतीय पुरूषो का गौरव बढाया है। इस प्रकार की बाते भी महिलाओ को उनके योगदान का पूरा महत्व न देने और उन्हे कमतर बनाये रखने का षडयन्त्र है। मधु किश्वर बनाम स्टेट आॅफ बिहार(1996-5-एस0सी0पी0 पेज 125) मे सर्वोच्च न्यायालय ने माना था कि भारतीय महिलाये अपने साथ हो रहे अन्याय को मौन भाव से बर्दाश्त करती है। आत्म त्याग और अपने अधिकारो को त्यागते रहना उनकी आदत बन गई है और उनकी यही आदत सभी असमानताओ का आधार हैं।
संविधान के अनुच्छेद 51 क में प्रावधान है कि सरकार भारत के सभी लोगो में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो और ऐसी प्रथाओ का त्याग करे जो महिलाओ के सम्मान के विरूद्ध हो। नागरिको के कर्तव्य सरकार के सामूहिक कर्तव्यो की परिधि में आते है। सरकार का दायित्व है कि सभी को अवसरो की समानता सुनिश्चित कराये और किसी भी दशा में अवसरो में कटौती न होने दे। संविधान के अनुच्छेद 14,19(1) जी. और 21 के तहत राज्य किसी भी नागरिक केे साथ धर्म मूलवंश जाति या लिंग के आधार पर कोई विभेद नही किया जा सकता और सभी को भारत के राज्य क्षेत्र केे किसी भाग में निवास करने बस जाने कोई वृत्ति उप जीविका व्यापार या कारोबार करने का अधिकार है। इसलिये सरकार को ऐसी नीतियां बनानी होगी जिसमें पुरूष और महिलाओ में किसी भी प्रकार का भेदभाव न हो और लिंग के आधार पर उन्हे किसी रोजगार या जीविका से वंचित न होना पडे और सरकार को ऐसा माहौल बनाना होगा जिसमें किसी रोजगार के लिये महिलाओ के साथ किसी प्रकार का भेदभाव करने का कोई साहस न कर सके।
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