Friday, 29 December 2017

क्या नाम बदलने से धाराओं का खौफ बढ़ जाता है ?


     उत्तर प्रदेश सरकार ने संगठित अपराधियों पर नकेल कसने का ढ़िढ़ोंरा पीटने के  लिए मकोका की दर्ज पर यूपीकोका बना लिया है और उसके द्वारा संदेश दिया है कि प्रदेश का मौजूदा कानूनी ढ़ाँचा अपराधों और अपराधियों को नियन्त्रित करने में अक्षम है। इसके पहले भी राज्य सरकारों ने इस आशय से कई कानून बनाये परन्तु अपराधों पर कभी कोई नियन्त्रण नही हो सका। हाँ, इस प्रकार के कानूनों के द्वारा अपने राजनैतिक विरोधियों की हिम्मत पस्त करने में कई बार सफलता मिल जाती है यद्यपि कहा जाता रहा है कि इन कानूनों का प्रयोग राजनैतिक विरोधियों पर नही किया जायेगा। इन्दिरा गाँधी ने भी मीसा और डीआईआर नाम के दो कानून बनाये थे और संसद में वायदा किया था कि इन कानूनों का प्रयोग किसी राजनीतिक व्यक्ति के विरुद्ध नही किया जायेगा परन्तु मीसा के तहत सबसे पहली गिरफ्तारी बिहार आन्दोलन के शीर्षस्थ नेता श्री राम बहादुर राय की हुई थी।
     वास्तव में अपने देश में नये नये कानूनों की आवश्यकता नही है। सभी प्रकार के अपराधों पर नियन्त्रण के लिए मैकाले की बनायी भारतीय दण्ड संहिता अपने आप में आज भी पर्याप्त है। उसमें सभी अपराधों और उसके लिए दण्ड की व्यवस्था का समावेश है परन्तु पूरी व्यवस्था का राजनीतिकरण हो जाने के कारण वास्तविक अपराधियों को दण्डित कराना हमारी प्राथमिकता में नही रह गया है। मौजूदा कानूनी ढ़ाँचे को ईमानदार और पारदर्शी बनाये बिना अपराधों और अपराधियों पर नकेल नही कसी जा सकती। हम सब जानते है कि अपराधी हाईटेक हो गया है लेकिन अपने विवेचक आज भी बैलगाड़ी युग के हैं। उन्हें किसी को भी मारपीट कर अपराध कबूलवाने में महारथ हासिल है। वैज्ञानिक तरीके से सुसंगत साक्ष्य संकलित करने की कोई संस्थागत व्यवस्था हम आज तक विकसित नही कर सके हैं इसलिए हमारा पूरा आपराधिक न्यायतन्त्र प्रत्यक्षदर्शी साक्षी पर आधारित है और विवेचक द्वारा जबरदस्ती खोजा गया प्रत्यक्षदर्शी साक्षी अदालत के सामने पक्षद्रोही हो जाता है। साक्ष्य संकलन के लिए वैज्ञानिक तरीके अपनाकर इस समस्या से निपटा जा सकता है। यूपीकोका हो या अन्य कोई कानून, उसके तहत किसी अपराधी को सजा कराने में सम्बन्धित न्यायालय के शासकीय अधिवक्ता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है परन्तु राजनैतिक हस्तक्षेप और अपारदर्शी नियुक्ति प्रक्रिया के कारण मेरिट की अनदेखी करके शासकीय अधिवक्ता नियुक्त किये जाते है। कई बार अपराधी से विधायक या सांसद बनें राजनेता की सिफारिश पर उसकी नियुक्ति की जाती है। विधि आयोग ने शासकीय अधिवक्ताओं की भूमिका को कारगर बनाने के लिए कई सुझाव दिये है परन्तु किसी राज्य सरकार ने इन सुझावों को लागू नही किया।   
     दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 309 में पहले से प्रावधान है कि साक्षियों की परीक्षा प्रारम्भ हो जाने के बाद, सभी हाजिर साक्षियों की परीक्षा पूरी होने तक दिन प्रतिदिन जारी रखी जायेगी परन्तु इस नियम का अनुपालन अभी तक सुनिश्चित नही कराया गया है। जब हमारी सरकारों को नये नये कानून बनाने का शौक नही था, उस दौर में सत्र न्यायालय के समक्ष लगातार दो तीन दिन की तारीख नियत होती थी और नियत तिथि पर गवाह को अदालत के समक्ष प्रस्तुत करना विवेचक के लिए आवश्यक हुआ करता था। इस व्यवस्था के तहत विचारण में तेजी बनी रहती थी और साक्षियों की पक्षद्रोहिता पर भी अंकुश रहता था। वास्तव में नये नये कानून बनाने की तुलना में यदि विद्यमान कानूनों को ईमानदारी और पारदर्शिता से लागू करने पर जोर दिया जाये तो अपराधियों पर ज्यादा तेजी से अंकुश लगाया जा सकता है। अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि अपने पूरे आपराधिक न्यायतन्त्र को पेशेवर और पारदर्शी बनाये बिना अपराधों या अपराधियों पर नियन्त्रण नही किया जा सकता।    

Wednesday, 20 December 2017

लाल इमली को बन्द करना आत्मघाती

लाल इमली को बन्द करना आत्मघाती
इस आत्मघाती निर्णय की खबर सुनकर अपना पूरा शहर हतप्रभ है। हमारे जैसे कपड़ा मजदूर बरबस अपने आॅसू रोके हुये हैं। गणेश फ्लावर मिल से लेकर लाल इमली तक सभी की एक सी कहानी है । इन सभी मिलों को तत्कालीन केन्द्र सरकार ने श्रमिकों के रोजगार को बरकरार रखने और इन मिलों के उत्पादों की उपलब्धता आम लोगों तक बनाये रखने के आशय से अधिग्रहीत करके सरकारी नियंत्रण मे लिया था। हम सब जानते हैं, लाल इमली के कपडे , कम्बल, शाल , स्वेटर और ऊन की माँग बाजार के किसी अन्य उत्पाद की तुलना मे आज भी ज्यादा है । लक्ष्मी रतन काटन मिल का अधिग्रहण सशस्त्र बलों को कैनवास की समुचित आपूर्ति बनाये रखने के लिए किया गया था । इरविन मिल की चादर , फलेकस के जूते, गणेश फ्लावर मिल का रिफाइंड घी , मयोर मिल के तिरपाल , स्वदेशी काटन मिल के कपडों की मांग आज भी बरकरार है परन्तु न मालुम क्यो? बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह जी ने इन मिलों मे उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय लिया और उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन मिलों को बन्द करके मिल की जमीन को बिल्डर्स को बेच देने का निर्णय लिया था। आज मोदी सरकार ने लाल इमली को बन्द करने का निर्णय लेकर मनमोहन सिंह की नीतियों को ही आगे बढाया है ।नेहरू से राजीव गाँधी तक सभी ने सार्वजनिक क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढाकर आम लोगों की सुख सुविधा का ध्यान रखा है । " बेईमान राजा ईमानदार वित्त मंत्री " के नाम से चर्चित वी पी सिंह के कार्य काल मे आतंकवादियों की रिहाई का एक नया रास्ता खोला गया, चन्द्र शेखर जी ने देश का सोना गिरवी रखा । नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री ने समाजवाद को तिलांजली दी और फिर अटल बिहारी बाजपेयी ने विनिवेश के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रतिष्ठित संस्थानों को बेच दिया और आज की मोदी सरकार ने ङी जी एस एंड डी को बन्द कर दिया और अब आरङनेनस फैक्ट्रियों को बन्द करने की तैयारी मे है ।राजीव गांधी या उनके बाद की किसी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नये कारखाने नहीं लगाये और बन्द कई कर दिये हैं। कांग्रेसी या देशद्रोही बता दिये जाने का खतरा उठाकर मै जानना चाहता हूँ कि नये कारखाने लगाये बिना भी क्या रोजगार के अवसर बढ़ाये जा सकते हैं?
21 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Narendra Kumar Yadav लाल इमली के नाम से शहर कानपुर जाना जाता था।उसको भी बंद करने की बात समझ में नहीं आती है।
शहर के प्रत्येक नागरिक जनप्रतिनिधियों की नैतिक जिम्मेदारी है कि इस लडाई को लडे।
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Tripty Srivasatava Hm. Sabko mandir masjid hindu musalma me wyast rakhkr isi trh ek ek kr janta ke pet pr war krke use tod denge
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Arvind Kumar लाल इमली का बहुत पुराना इनामी वाक्य अचानक यादों में ताज़ा हो गया:
" Why Worry When We Weave Wool Which Wins World Wide Wonders"
वाह रे पूँजीवाद और उसकी गुड़ गोबर गवर्नेंस सरकार को भारत और कानपुर के गौरवशाली इतिहास को दफ़्न करने पर बद् दुआ .....
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Bhupesh Awasthi क्यों न कानपुर के गौरव लाल इमली को चालू करने की आवाज हम सब मिलकर उठाए
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Kaushal Sharma आशीष पाण्डेय इस मुद्दे पर अनवरत् संघर्ष रत है । आप , हम सबको उन्हे ताकत देनी चाहिये।
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Narendra Kumar Yadav भूपेश जी इस मसले पर गंभीरता से चिंतन मंथन जरूरी है।
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Ashutosh Mishra Hame iske lia kuch karna chahiye Kanpur ki jajjar udog sanrachna ko sucharu roop Mai lane ke lia sarkaar se anurodh aur sangharash dono Karna chahiye
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Vijay Gupta लाल इमली का आधुनिकीकरण करके ही चलाना हितकर होगा।
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Vindhyawasini Kumar कानपुर की औद्योगिक नगरी में विकास होना चाहिए
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Kaushal Sharma लाल इमली को बन्द होने से बचाने के लिए आप अपने स्तर पर कोई पहल करें।
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Anoop Gautam बीजेपी का वादा वादा ही रह गया मिल बन्द
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Pooja Gupta It's very sad news for kanpur
यह कानपुर के लिए बहुत दुखद खबर है
अपने आप अनुवाद किया गया
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Prabhat Shukla कानपुर को बर्बाद करने में तुली है सरकारे सारे उद्योग बंद होते जा रहे हैं
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Asit Kumar Singh जितना सरकार, नेता , भूमाफिया ,जनप्रतिनिधि कारखानों को बंद कर वाने के लिए जिम्मेदार हैं उतना ही शहर की जनता भी जिम्मेदार है।क्योंकि उसे रोजगार,शिक्षा,स्वास्थ्य आदि केलिए कतई चिंता नहीं है उसे जाति, धर्म जैसे मुद्दे उसकी चिंता के मुद्दे प्रमुख लगते हैं।
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Prashant Shukla लाल इमली को बंद करना एक दुखद निर्णय है किसी भी औद्योगिक घराने अथवा कारखाने को चलाने के लिए भूमि श्रम और पूंजी के साथ साथ एक अच्छे प्रबंधन की आवश्यकता होती है एवं आज के इस मशीनीकरण के युग में नई आधुनिकता को अपनाते हुए समय की मांग और पूर्ति को पूरा कर सकते हैं किंतु राजनीतिक इच्छा का अभाव हमारी इस कार्य प्रणाली को कमजोर बनाता है मेरा मानना है कि यदि हम सब मिलकर लाल इमली के विषय में विचार करें एवं कानपुर जो की लाल इमली के नाम से उत्तर भारत का मैनचेस्टर कहा जाता था इस खाते को बचाने में एकजुट हो इसी में हम सभी नगरवासियों का हित विद्यमान है।
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Robby Sharma सारा हरामी पन शुरू से सरकारी अधिकारी और KDA मिल कर करते हैं ।अगर औध्योगिक भूमि का भूप्रयोग बदलने पर 100 % निशेध हो जाये तो शायद ही किसी मिल को मालिक बंद करें अभी तो कौङियों के भाव प्राप्त भूमि को अरबों रूपये में बेच रहे हैं अकेले J K rayonकी भूमि का भूप्रयोग बदल कर 700 करोङ का घोटाला किया गया है ।
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Robby Sharma अगर लाल इमली बंद भी हो तो यहां Flatted factories बना कर वर्तमान से 4 गुना नौकरीयां दी जायें। नगर के रिहायशी इलाकों में चल रही हजारों मे से कुछ अप्रदूशण कारी factories को यहां shift करके रिहायशी इलाकों को बचाया जाये ऐसा ही हर बंद पङी factory में किया जाये ।
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Janardan Dwivedi It would be better to demolish T A J MAHAL than to close L A L I M L I
इसे बंद करने के लिए एक जे महल को ध्वस्त करने के लिए बेहतर होगा l मैं मैं हूँ l
अपने आप अनुवाद किया गया
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Chandra Shekhar Singh सोशल मीडिया पर सोने जैसी बात है
धन्यवाद महाशय को
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Chandra Shekhar Singh हर सरकार ने मजदूरों को काम दिया और छीन लिया