लाल इमली को बन्द करना आत्मघाती
इस आत्मघाती निर्णय की खबर सुनकर अपना पूरा शहर हतप्रभ है। हमारे जैसे कपड़ा मजदूर बरबस अपने आॅसू रोके हुये हैं। गणेश फ्लावर मिल से लेकर लाल इमली तक सभी की एक सी कहानी है । इन सभी मिलों को तत्कालीन केन्द्र सरकार ने श्रमिकों के रोजगार को बरकरार रखने और इन मिलों के उत्पादों की उपलब्धता आम लोगों तक बनाये रखने के आशय से अधिग्रहीत करके सरकारी नियंत्रण मे लिया था। हम सब जानते हैं, लाल इमली के कपडे , कम्बल, शाल , स्वेटर और ऊन की माँग बाजार के किसी अन्य उत्पाद की तुलना मे आज भी ज्यादा है । लक्ष्मी रतन काटन मिल का अधिग्रहण सशस्त्र बलों को कैनवास की समुचित आपूर्ति बनाये रखने के लिए किया गया था । इरविन मिल की चादर , फलेकस के जूते, गणेश फ्लावर मिल का रिफाइंड घी , मयोर मिल के तिरपाल , स्वदेशी काटन मिल के कपडों की मांग आज भी बरकरार है परन्तु न मालुम क्यो? बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह जी ने इन मिलों मे उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय लिया और उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन मिलों को बन्द करके मिल की जमीन को बिल्डर्स को बेच देने का निर्णय लिया था। आज मोदी सरकार ने लाल इमली को बन्द करने का निर्णय लेकर मनमोहन सिंह की नीतियों को ही आगे बढाया है ।नेहरू से राजीव गाँधी तक सभी ने सार्वजनिक क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढाकर आम लोगों की सुख सुविधा का ध्यान रखा है । " बेईमान राजा ईमानदार वित्त मंत्री " के नाम से चर्चित वी पी सिंह के कार्य काल मे आतंकवादियों की रिहाई का एक नया रास्ता खोला गया, चन्द्र शेखर जी ने देश का सोना गिरवी रखा । नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री ने समाजवाद को तिलांजली दी और फिर अटल बिहारी बाजपेयी ने विनिवेश के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रतिष्ठित संस्थानों को बेच दिया और आज की मोदी सरकार ने ङी जी एस एंड डी को बन्द कर दिया और अब आरङनेनस फैक्ट्रियों को बन्द करने की तैयारी मे है ।राजीव गांधी या उनके बाद की किसी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नये कारखाने नहीं लगाये और बन्द कई कर दिये हैं। कांग्रेसी या देशद्रोही बता दिये जाने का खतरा उठाकर मै जानना चाहता हूँ कि नये कारखाने लगाये बिना भी क्या रोजगार के अवसर बढ़ाये जा सकते हैं?
इस आत्मघाती निर्णय की खबर सुनकर अपना पूरा शहर हतप्रभ है। हमारे जैसे कपड़ा मजदूर बरबस अपने आॅसू रोके हुये हैं। गणेश फ्लावर मिल से लेकर लाल इमली तक सभी की एक सी कहानी है । इन सभी मिलों को तत्कालीन केन्द्र सरकार ने श्रमिकों के रोजगार को बरकरार रखने और इन मिलों के उत्पादों की उपलब्धता आम लोगों तक बनाये रखने के आशय से अधिग्रहीत करके सरकारी नियंत्रण मे लिया था। हम सब जानते हैं, लाल इमली के कपडे , कम्बल, शाल , स्वेटर और ऊन की माँग बाजार के किसी अन्य उत्पाद की तुलना मे आज भी ज्यादा है । लक्ष्मी रतन काटन मिल का अधिग्रहण सशस्त्र बलों को कैनवास की समुचित आपूर्ति बनाये रखने के लिए किया गया था । इरविन मिल की चादर , फलेकस के जूते, गणेश फ्लावर मिल का रिफाइंड घी , मयोर मिल के तिरपाल , स्वदेशी काटन मिल के कपडों की मांग आज भी बरकरार है परन्तु न मालुम क्यो? बतौर वित्त मंत्री मनमोहन सिंह जी ने इन मिलों मे उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय लिया और उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन मिलों को बन्द करके मिल की जमीन को बिल्डर्स को बेच देने का निर्णय लिया था। आज मोदी सरकार ने लाल इमली को बन्द करने का निर्णय लेकर मनमोहन सिंह की नीतियों को ही आगे बढाया है ।नेहरू से राजीव गाँधी तक सभी ने सार्वजनिक क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढाकर आम लोगों की सुख सुविधा का ध्यान रखा है । " बेईमान राजा ईमानदार वित्त मंत्री " के नाम से चर्चित वी पी सिंह के कार्य काल मे आतंकवादियों की रिहाई का एक नया रास्ता खोला गया, चन्द्र शेखर जी ने देश का सोना गिरवी रखा । नरसिंह राव और उनके वित्त मंत्री ने समाजवाद को तिलांजली दी और फिर अटल बिहारी बाजपेयी ने विनिवेश के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रतिष्ठित संस्थानों को बेच दिया और आज की मोदी सरकार ने ङी जी एस एंड डी को बन्द कर दिया और अब आरङनेनस फैक्ट्रियों को बन्द करने की तैयारी मे है ।राजीव गांधी या उनके बाद की किसी सरकार ने सार्वजनिक क्षेत्र मे रोजगार के अवसर बढ़ाने के लिए नये कारखाने नहीं लगाये और बन्द कई कर दिये हैं। कांग्रेसी या देशद्रोही बता दिये जाने का खतरा उठाकर मै जानना चाहता हूँ कि नये कारखाने लगाये बिना भी क्या रोजगार के अवसर बढ़ाये जा सकते हैं?
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