कांग्रेस की पराजय कुछ कहती है
गुजरात मे सरकार भाजपा की बनेगी लेकिन संगठित प्रयास के बावजूद भाजपा नेतृत्व खुद की अपराजेय छवि को बनाये रखने मे सफल सिद्ध नहीं हो सका । यह सच है कि वर्तमान भारतीय राजनीति मे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विशालकाय पर्वत की तरह स्थापित है परन्तु गुजरात चुनाव मे राहुल गाँधी ने इस पर्वत को दरका दिया है और यही उनकी उपलब्धि है । लगातार कई चुनाव हारते रहने से किसी दल की विचारधारा नष्ट नहीं हुआ करती । 1974 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव को याद कीजिए , इस चुनाव मे तब की जनसंघ ने अटल बिहारी बाजपेयी को मुख्य मंत्री के रूप मे प्रोजेक्ट करके चुनाव लडा और उसे बुरी तरह हार का सामना करना पडा जबकि पूरे प्रदेश मे कांग्रेस विरोधी माहौल था ।1984 के चुनाव मे खुद अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हार गये थे । भाजपा को तेलुगु देशम से भी कम सीटें मिली थीं। रामाराव बडे नेता बनकर उभरे लेकिन उन सबकी तुलना मे अटल बिहारी बाजपेयी और भाजपा की प्रतिष्ठा मे कोई कमी नहीं आई और न पार्टी के कार्य कर्ता कभी निराश हुये। गुजरात चुनाव के पहले तक राहुल गाँधी को गम्भीरता से नहीं लिया जाता था लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान वे एकदम बदले हुए नजर आये और चुनावी विश्लेषकों को उनहोंने अपने प्रति नजरिया बदलने के लिए बाध्य कर दिया ।कोई कुछ भी कहे , मेरा अपना मानना है कि राहुल गाँधी ने अपने लिए, अपनी पार्टी के लिए सम्भावनाओं के नये द्वार खोल लिए है ।
गुजरात मे सरकार भाजपा की बनेगी लेकिन संगठित प्रयास के बावजूद भाजपा नेतृत्व खुद की अपराजेय छवि को बनाये रखने मे सफल सिद्ध नहीं हो सका । यह सच है कि वर्तमान भारतीय राजनीति मे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी विशालकाय पर्वत की तरह स्थापित है परन्तु गुजरात चुनाव मे राहुल गाँधी ने इस पर्वत को दरका दिया है और यही उनकी उपलब्धि है । लगातार कई चुनाव हारते रहने से किसी दल की विचारधारा नष्ट नहीं हुआ करती । 1974 के उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव को याद कीजिए , इस चुनाव मे तब की जनसंघ ने अटल बिहारी बाजपेयी को मुख्य मंत्री के रूप मे प्रोजेक्ट करके चुनाव लडा और उसे बुरी तरह हार का सामना करना पडा जबकि पूरे प्रदेश मे कांग्रेस विरोधी माहौल था ।1984 के चुनाव मे खुद अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हार गये थे । भाजपा को तेलुगु देशम से भी कम सीटें मिली थीं। रामाराव बडे नेता बनकर उभरे लेकिन उन सबकी तुलना मे अटल बिहारी बाजपेयी और भाजपा की प्रतिष्ठा मे कोई कमी नहीं आई और न पार्टी के कार्य कर्ता कभी निराश हुये। गुजरात चुनाव के पहले तक राहुल गाँधी को गम्भीरता से नहीं लिया जाता था लेकिन चुनाव प्रचार के दौरान वे एकदम बदले हुए नजर आये और चुनावी विश्लेषकों को उनहोंने अपने प्रति नजरिया बदलने के लिए बाध्य कर दिया ।कोई कुछ भी कहे , मेरा अपना मानना है कि राहुल गाँधी ने अपने लिए, अपनी पार्टी के लिए सम्भावनाओं के नये द्वार खोल लिए है ।
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