कानपुर को उजाड़ने का द्वितीय चरण भी शुरू
मोदी सरकार ने सम्पूर्ण भारत मे सर्वाधिक प्रतिष्ठित ऊलेन मिल " लाल इमली " को बन्द करने का निर्णय ले लिया है और अब श्रमिकों को वी आर एस का झुनझुना पकडाकर बेरोजगार बना दिया जायेगा । इस मिल मे उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय मनमोहन सिंह की सरकार ने लिया था । इसके पूर्व मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रितव काल मे एन टी सी की पाॅचो मिलो लक्ष्मी रतन काटन मिल , अथरटन वेस्ट मिल , स्वदेशी काटन मिल , मयोर मिल और विक्टोरिया मिल मे भी उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय निर्णय लिया गया और माननीय अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रितव काल मे इन मिलों को बन्द किया गया । मनमोहन सिंह ने अपने वित्त मंत्रितव काल मे विश्व व्यापार संगठन की नीतियों को अपनाकर आम लोगों के लिए सबसिडी बन्द करने की शुरूआत की थी । उस समय स्वदेशी जागरण मंच के बैनर तले इन नीतियों का विरोध किया गया था । आशा की गई थी कि अटल जी की सरकार विश्व व्यापार संगठन के दबाव मे काम नहीं करेगी परन्तु ऐसा नही हुआ और मनमोहन सिंह की नीतियों को अपनाकर अटल जी की सरकार ने कानपुर सहित सम्पूर्ण भारत की सभी सरकारी कपडा मिलो को बन्द कर दिया हलाॅकि उस समय कहा गया था कि बन्द की जा रही मिलो की जमीन बेचकर शहर से बाहर नयी मिले स्थापित की जायेंगी परन्तु आज तक एक भी नयी मिल स्थापित नही की गई है । अब लाल इमली बन्द होगी और इसके साथ इलगिन मिल नम्बर एक और दो भी अर्थात तीन मिले मोदी सरकार बन्द करेगी ।
अपने कानपुर मे लोहिया स्कूटर के बाद पिछले 40 वर्षो मे एक भी नया कारखाना स्थापित नही हुआ जबकि इन वर्षो में कम से कम चौदह बडे कारखाने बन्द हुये है । मेरी बात कुछ लोगों को बुरी लगेगी लेकिन सच तो यही है कि कानपुर और उसके निवासियों के साथ मनमोहन सिंह, अटल बिहारी बाजपेयी और अब नरेन्द्र मोदी ने एक जैसा अन्याय किया है । सभी ने औद्योगिक दृष्टि से कानपुर को उजाड़ा है , बनाया कुछ नही ।
मै निजी तौर पर श्रीमती इन्दिरा गाँधी का समर्थक नहीं हूँ लेकिन घटनाये बताती है कि उनहोंने ही श्रमिकों को बेरोजगार होने से बचाने और कानपुर के औद्योगिक स्वरूप को बरकरार बनाये रखने के लिए कपडा मिलो को सरकारी नियंत्रण मे लेकर चलाया ।संसद द्वारा पारित अधिग्रहण अधिनियम मे कहा गया था कि सैन्य बलों के लिए कपडे की आपूर्ति निर्बाध बनाये रखने और आम जनता को पहनने लायक सस्ता कपडा उपलबध कराने के लिए इन मिलों का अधिग्रहण आवश्यक है ।वे विश्व व्यापार संगठन के दबाव मे नही थी इसलिये आम जनता को सस्ता कपड़ा उपलब्ध कराना उनकी प्राथमिकता मे था ।हम सब जानते है कि टेफको का जूता, इलगिन मिल की चादर , मयोर मिल का तिरपाल , लक्ष्मी रतन काटन मिल की कैनवास , स्वदेशी की जनता धोती , लाल इमली की लोई, ऊलेन कपड़े की माॅग आज भी कम नही हुई है। अभी भी अपने देश मे करोडों लोगों के लिए सस्ता कपड़ा बुनियादी जरूरत है और इसकी पूर्ति कल्याणकारी राज्य की संवैधानिक प्रतिबद्धता है परन्तु अब संसद मे सरकार को उसकी इस प्रतिबद्धता की याद दिलाने वाले लोगों का अकाल हो गया है इसीलिए अब संसद मे बुनियादी मुद्दों पर चर्चा नही , बहिष्कार होता है ।याद करें, संसद मे बहिष्कार की शुरूआत भी मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रितव काल की देन है । उस समय के संचार मंत्री चौधरी सुखराम के किसी घोटाले के विरोध मे भाजपा ने कई दिनों तक संसद ठप रखी थी ।दोषी हम सब भी है जिन्होंने अब बुनियादी मुद्दों पर किसी दल की नीति के आधार पर नही केवल जाति धर्म के आधार पर वोट देने आदत बना ली है । हम विश्व व्यापार संगठन की जन विरोधी नीतियों को बदलवा नहीं सकते लेकिन अगर हम जाति धर्म के आधार पर वोट देने की अपनी आदत बदल ले तो फिर कोई भी सरकार मिल बन्द करके उसकी जमीन किसी बिलडर को बेचने का दुससाहस नही कर सकेगी । आप क्या चाहते है ? खुद तय करिये ।
मोदी सरकार ने सम्पूर्ण भारत मे सर्वाधिक प्रतिष्ठित ऊलेन मिल " लाल इमली " को बन्द करने का निर्णय ले लिया है और अब श्रमिकों को वी आर एस का झुनझुना पकडाकर बेरोजगार बना दिया जायेगा । इस मिल मे उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय मनमोहन सिंह की सरकार ने लिया था । इसके पूर्व मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रितव काल मे एन टी सी की पाॅचो मिलो लक्ष्मी रतन काटन मिल , अथरटन वेस्ट मिल , स्वदेशी काटन मिल , मयोर मिल और विक्टोरिया मिल मे भी उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय निर्णय लिया गया और माननीय अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्रितव काल मे इन मिलों को बन्द किया गया । मनमोहन सिंह ने अपने वित्त मंत्रितव काल मे विश्व व्यापार संगठन की नीतियों को अपनाकर आम लोगों के लिए सबसिडी बन्द करने की शुरूआत की थी । उस समय स्वदेशी जागरण मंच के बैनर तले इन नीतियों का विरोध किया गया था । आशा की गई थी कि अटल जी की सरकार विश्व व्यापार संगठन के दबाव मे काम नहीं करेगी परन्तु ऐसा नही हुआ और मनमोहन सिंह की नीतियों को अपनाकर अटल जी की सरकार ने कानपुर सहित सम्पूर्ण भारत की सभी सरकारी कपडा मिलो को बन्द कर दिया हलाॅकि उस समय कहा गया था कि बन्द की जा रही मिलो की जमीन बेचकर शहर से बाहर नयी मिले स्थापित की जायेंगी परन्तु आज तक एक भी नयी मिल स्थापित नही की गई है । अब लाल इमली बन्द होगी और इसके साथ इलगिन मिल नम्बर एक और दो भी अर्थात तीन मिले मोदी सरकार बन्द करेगी ।
अपने कानपुर मे लोहिया स्कूटर के बाद पिछले 40 वर्षो मे एक भी नया कारखाना स्थापित नही हुआ जबकि इन वर्षो में कम से कम चौदह बडे कारखाने बन्द हुये है । मेरी बात कुछ लोगों को बुरी लगेगी लेकिन सच तो यही है कि कानपुर और उसके निवासियों के साथ मनमोहन सिंह, अटल बिहारी बाजपेयी और अब नरेन्द्र मोदी ने एक जैसा अन्याय किया है । सभी ने औद्योगिक दृष्टि से कानपुर को उजाड़ा है , बनाया कुछ नही ।
मै निजी तौर पर श्रीमती इन्दिरा गाँधी का समर्थक नहीं हूँ लेकिन घटनाये बताती है कि उनहोंने ही श्रमिकों को बेरोजगार होने से बचाने और कानपुर के औद्योगिक स्वरूप को बरकरार बनाये रखने के लिए कपडा मिलो को सरकारी नियंत्रण मे लेकर चलाया ।संसद द्वारा पारित अधिग्रहण अधिनियम मे कहा गया था कि सैन्य बलों के लिए कपडे की आपूर्ति निर्बाध बनाये रखने और आम जनता को पहनने लायक सस्ता कपडा उपलबध कराने के लिए इन मिलों का अधिग्रहण आवश्यक है ।वे विश्व व्यापार संगठन के दबाव मे नही थी इसलिये आम जनता को सस्ता कपड़ा उपलब्ध कराना उनकी प्राथमिकता मे था ।हम सब जानते है कि टेफको का जूता, इलगिन मिल की चादर , मयोर मिल का तिरपाल , लक्ष्मी रतन काटन मिल की कैनवास , स्वदेशी की जनता धोती , लाल इमली की लोई, ऊलेन कपड़े की माॅग आज भी कम नही हुई है। अभी भी अपने देश मे करोडों लोगों के लिए सस्ता कपड़ा बुनियादी जरूरत है और इसकी पूर्ति कल्याणकारी राज्य की संवैधानिक प्रतिबद्धता है परन्तु अब संसद मे सरकार को उसकी इस प्रतिबद्धता की याद दिलाने वाले लोगों का अकाल हो गया है इसीलिए अब संसद मे बुनियादी मुद्दों पर चर्चा नही , बहिष्कार होता है ।याद करें, संसद मे बहिष्कार की शुरूआत भी मनमोहन सिंह के वित्त मंत्रितव काल की देन है । उस समय के संचार मंत्री चौधरी सुखराम के किसी घोटाले के विरोध मे भाजपा ने कई दिनों तक संसद ठप रखी थी ।दोषी हम सब भी है जिन्होंने अब बुनियादी मुद्दों पर किसी दल की नीति के आधार पर नही केवल जाति धर्म के आधार पर वोट देने आदत बना ली है । हम विश्व व्यापार संगठन की जन विरोधी नीतियों को बदलवा नहीं सकते लेकिन अगर हम जाति धर्म के आधार पर वोट देने की अपनी आदत बदल ले तो फिर कोई भी सरकार मिल बन्द करके उसकी जमीन किसी बिलडर को बेचने का दुससाहस नही कर सकेगी । आप क्या चाहते है ? खुद तय करिये ।
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