आदरणीय दिवाकर जी
आप मूलतः शिक्षक है और आपने किसी की कृपा पर नही, संघर्ष के बल पर अपने लिए राजनीति मे स्पेश बनाया है इसलिये आपकी टिप्पणी का जवाब देना आवश्यक है । मित्र कांग्रेस भाजपा का चश्मा उतार कर बताइये कि 2014 से पहले और उसके बाद अपने सरकारी स्कूलों या कालेजों मे छात्रों के ड्राप आउट परसेंटेज मे कोई अन्तर आया है क्या? और यदि अन्तर नहीं आया तो अब उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? आप हम साथ साथ कुल बजट का दस प्रतिशत शिक्षा पर ब्यय करने की बात करते रहे है और यदि हम आज इस पुरानी सदाबहार आवश्यकता की याद दिलाते है तो उसमे आपको मोदी सरकार का विरोध क्यो दिखता है ? आप जानते है कि केन्द्र सरकार ने 67 प्रमुख शैक्षिक संस्थानों को स्वायत्त किये जाने का निर्णय लिया है । मतलब अब इन शैक्षिक संस्थानों के दरवाजे हमारे जैसे कम आय वाले परिवारों के बच्चो के लिए बन्द हो जायेंगे। आप याद कीजिए कि यदि बी एन एस डी जैसे इंटर कालेज नही होते तो क्या हमारे जैसे आम लोग इंटर पास कर पाये होते । समुचित बजटीय सपोर्ट न होने के कारण अधिकांश इंटर कालेजों मे गणित विज्ञान और अंग्रेजी के अध्यापकों के सेवानिवृत्त होने के बाद नई नियुक्तियाॅ नही हो पा रही है इसलिये गरीब छात्र इन कालेजों से मुँह मोड़ने को बाध्य हुआ है । आज हर प्रबन्धक वित्त विहीन कालेज चलाना चाहता है ताकि ज्यादा से ज्यादा कमाई होती रहे । मैने अभी कुछ ही दिन पूर्व अपने नगर के एक इंटर कॉलेज को विज्ञान और बायोलोजी लैब बनाने के लिए पचास लाख रूपये अनुदान देने की पेशकश की थी परन्तु कालेज प्रबन्धक ने रूपये लेने से इंकार कर दिया। इसके पीछे का कारण केवल इतना है कि प्रबन्ध तंत्र कालेज चलाना ही नही चाहता , कालेज की जमीन बेचना चाहता है । दिवाकर जी यदि शिक्षा का बजट बढ़ेगा, तभी भारत पढ सकेगा। आप सब जानते हो लेकिन दलीय अनुशाशन आपको सच कहने से रोकता है।
आप मूलतः शिक्षक है और आपने किसी की कृपा पर नही, संघर्ष के बल पर अपने लिए राजनीति मे स्पेश बनाया है इसलिये आपकी टिप्पणी का जवाब देना आवश्यक है । मित्र कांग्रेस भाजपा का चश्मा उतार कर बताइये कि 2014 से पहले और उसके बाद अपने सरकारी स्कूलों या कालेजों मे छात्रों के ड्राप आउट परसेंटेज मे कोई अन्तर आया है क्या? और यदि अन्तर नहीं आया तो अब उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? आप हम साथ साथ कुल बजट का दस प्रतिशत शिक्षा पर ब्यय करने की बात करते रहे है और यदि हम आज इस पुरानी सदाबहार आवश्यकता की याद दिलाते है तो उसमे आपको मोदी सरकार का विरोध क्यो दिखता है ? आप जानते है कि केन्द्र सरकार ने 67 प्रमुख शैक्षिक संस्थानों को स्वायत्त किये जाने का निर्णय लिया है । मतलब अब इन शैक्षिक संस्थानों के दरवाजे हमारे जैसे कम आय वाले परिवारों के बच्चो के लिए बन्द हो जायेंगे। आप याद कीजिए कि यदि बी एन एस डी जैसे इंटर कालेज नही होते तो क्या हमारे जैसे आम लोग इंटर पास कर पाये होते । समुचित बजटीय सपोर्ट न होने के कारण अधिकांश इंटर कालेजों मे गणित विज्ञान और अंग्रेजी के अध्यापकों के सेवानिवृत्त होने के बाद नई नियुक्तियाॅ नही हो पा रही है इसलिये गरीब छात्र इन कालेजों से मुँह मोड़ने को बाध्य हुआ है । आज हर प्रबन्धक वित्त विहीन कालेज चलाना चाहता है ताकि ज्यादा से ज्यादा कमाई होती रहे । मैने अभी कुछ ही दिन पूर्व अपने नगर के एक इंटर कॉलेज को विज्ञान और बायोलोजी लैब बनाने के लिए पचास लाख रूपये अनुदान देने की पेशकश की थी परन्तु कालेज प्रबन्धक ने रूपये लेने से इंकार कर दिया। इसके पीछे का कारण केवल इतना है कि प्रबन्ध तंत्र कालेज चलाना ही नही चाहता , कालेज की जमीन बेचना चाहता है । दिवाकर जी यदि शिक्षा का बजट बढ़ेगा, तभी भारत पढ सकेगा। आप सब जानते हो लेकिन दलीय अनुशाशन आपको सच कहने से रोकता है।
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