Friday, 15 June 2018

शिक्षा का बजट बढ़ेगा, तभी तो भारत पढ़ेगा


आदरणीय दिवाकर जी
आप मूलतः शिक्षक है और आपने किसी की कृपा पर नही, संघर्ष के बल पर अपने लिए राजनीति मे स्पेश बनाया है इसलिये आपकी टिप्पणी का जवाब देना आवश्यक है । मित्र कांग्रेस भाजपा का चश्मा उतार कर बताइये कि 2014 से पहले और उसके बाद अपने सरकारी स्कूलों या कालेजों मे छात्रों के ड्राप आउट परसेंटेज मे कोई अन्तर आया है क्या? और यदि अन्तर नहीं आया तो अब उसकी जिम्मेदारी कौन लेगा ? आप हम साथ साथ कुल बजट का दस प्रतिशत शिक्षा पर ब्यय करने की बात करते रहे है और यदि हम आज इस पुरानी सदाबहार आवश्यकता की याद दिलाते है तो उसमे आपको मोदी सरकार का विरोध क्यो दिखता है ? आप जानते है कि केन्द्र सरकार ने 67 प्रमुख शैक्षिक संस्थानों को स्वायत्त किये जाने का निर्णय लिया है । मतलब अब इन शैक्षिक संस्थानों के दरवाजे हमारे जैसे कम आय वाले परिवारों के बच्चो के लिए बन्द हो जायेंगे। आप याद कीजिए कि यदि बी एन एस डी जैसे इंटर कालेज नही होते तो क्या हमारे जैसे आम लोग इंटर पास कर पाये होते । समुचित बजटीय सपोर्ट न होने के कारण अधिकांश इंटर कालेजों मे गणित विज्ञान और अंग्रेजी के अध्यापकों के सेवानिवृत्त होने के बाद नई नियुक्तियाॅ नही हो पा रही है इसलिये गरीब छात्र इन कालेजों से मुँह मोड़ने को बाध्य हुआ है । आज हर प्रबन्धक वित्त विहीन कालेज चलाना चाहता है ताकि ज्यादा से ज्यादा कमाई होती रहे । मैने अभी कुछ ही दिन पूर्व अपने नगर के एक इंटर कॉलेज को विज्ञान और बायोलोजी लैब बनाने के लिए पचास लाख रूपये अनुदान देने की पेशकश की थी परन्तु कालेज प्रबन्धक ने रूपये लेने से इंकार कर दिया। इसके पीछे का कारण केवल इतना है कि प्रबन्ध तंत्र कालेज चलाना ही नही चाहता , कालेज की जमीन बेचना चाहता है । दिवाकर जी यदि शिक्षा का बजट बढ़ेगा, तभी भारत पढ सकेगा। आप सब जानते हो लेकिन दलीय अनुशाशन आपको सच कहने से रोकता है।
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7 टिप्पणियाँ
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Surendra Pratap Singh पूरी तरह सहमत
यह कटु तो लगेगा लेकिन वास्तविकता यही है |
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DN DwivediAdvocate शिक्षा के लिए दलगत राजनीती नही होनी चाहिए
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जवाब दें1 दिन
Narendra Kumar Yadav मित्रों शिक्षा संविधान प्रदत्त है प्रत्येक शिक्षार्थी को सरकारी खर्च पर शिक्षा मिलनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा शिक्षा का बजट आबादी और विधार्थीयो की संख्या के आधार पर होना चाहिए।
हमारे देश की दूषित शिक्षा प्रणाली में परिर्वतन हो ना चाहिए।
समान शिक्षा नीति बनाना सरकार की जिम्मेदारी है।
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जवाब दें1 दिन
Sanjay Shukla उ प्र की योगी सरकार निजी स्कूलों में 9.28% फीस बढाने का शासनादेश 2018 जारी किया है। यदि किसी भी बच्चे की फीस रूपये 15000 प्रति तिमाही है और वह बच्चा नर्सरी में पढ रहा हैं तो उस बच्चे की इंटर तक की फीस पर उसके अभिभावक को लगभग 18 लाख रुपये खर्च करने पड़ेंगे। कापी किताबे, ड्रेस जूता मोजा स्टेशनरी और उस बच्चे के यातायात के खर्चे अलग से वहन करना पडेगा। अभिभावक फिर भी लूटने के लिए तैयार इस लिये हैं कि सरकारी स्कूलों का स्तर दिन प्रतिदिन गिरता जा रहा है
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जवाब दें1 दिनसंपादित
Bharat Puri यदि देश की सरकार को कुछ करना है देश मे कुछ बड़ा बदलाव लाना है तो एक सी शिक्षा का प्रावधान लाना होगा एक सी किताबे,एक सी ड्रेस,एक से शिक्षक अर्थात न कोई बन्दा रहे न कोई बन्दा नवाज़ तभी समाज और देश का विकास तीब्र गति से हो सकता है।
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जवाब दें1 दिन
Anurag Mishra यह सरकार राजस्व का 10%भी शिक्षा पर नहीं खर्च करना चाहती है,स्वास्थ्य भगवान भरोसे है।क्या राजस्व को केवल पूजीपतियों को लाभ पहुचाने में घुमाया जा रहा है?
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जवाब दें23 घंटे
Ramakant Mishra उत्तम शिक्षा ,बेहतर स्वास्थ्य सेवा हेतु पूर्ण निजीकरण उचित नही है। सरकार को अपना नियंत्रण रखने से देश की आम लोगो को लाभ प्राप्त होगा।
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जवाब दें22 घंटे

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