इस तरह के भाईचारे की हमे जरूरत है
कल कचहरी मे अपने मित्र नरेश तिवारी ने हमसे साझा मित्र ( नाम लिखना शायद ठीक नही ) के चैंबर मे चलकर उनके साथ चाय पीने के लिए कहा । मै आम तौर पर 11बजे से 03 बजे के बीच किसी के चैंबर मे नही जाता लेकिन नरेश जी के आग्रह पर इंकार नही किया जा सकता था । मै उनके साथ गया । साझा मित्र ने हम दोनो का गर्म जोशी से स्वागत किया और फिर फेसबुक पर मेरी एक पोस्ट को लेकर बातचीत शुरू हो गई । हमने कहा कि विदेशी शासन के खिलाफ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी ने आपस के भेद मिटाकर साझा संघर्ष किया है और जो लोग जिन्ना के आवाह्न पर पाकिस्तान नही गये , उन्हे भारत से उतना ही प्यार था जितना हम हिन्दुओं को है । कल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 163 वी वर्षगाँठ भी थी । मैने याद दिलाया कि 1857 का आन्दोलन बहादुरशाह जफर के नेतृत्व मे लडा गया था । इस देश पर जितना हिन्दुओं का अधिकार है , उतना मुस्लिमों का भी है ।मेरी बातों पर टोका टाकी जारी थी ,मुझे हिन्दू विरोधी बताया जा रहा था। यहाँ तक तो ठीक था परन्तु इसी बीच वहीं बैठे अपने एक युवा साथी ने हम सबका ज्ञानवर्धन किया और बताया कि आजादी की लडाई धोखा थी और उसमे सब चोर उचक्के शामिल थे । किसी मुसलमान ने आजादी के लिए कोई बलिदान नही दिया । नरेश जी ने उन्हें अशफाक उल्ला खान का नाम याद दिलाया परन्तु अपना विद्वान युवा साथी उत्तेजित हो गया । नरेश ने धैर्य का परिचय दिया । मै भी चुप हो गया। लेकिन कल से मै परेशान हूँ । सोच नही पा रहा हूँ कि आजादी की लडाई के महत्व को कमतर सिद्ध करने से देश को क्या लाभ होगा ? रोज रोज मुसलमानों को देशद्रोही बताते रहकर देश की एकता-अखंडता कैसे अक्षुण्ण रहेगी ? मित्रों मै एक कपडा मिल मे मजदूरी करता था , वहाँ बडी संख्या मे मुस्लिम भी मजदूरी करते थे और मुझे याद नही आता कि किसी कारखाने मे कभी हिन्दू मुस्लिम के नाम पर कोई विवाद हुआ हो । मकबूल अहमद खाॅ की हिन्द मजदूर पंचायत मे बहुमत सदस्य हिन्दू थे । जार्ज फर्नांडीज हिन्द मजदूर पंचायत के राष्ट्रीय नेता थे ।कामरेड राम आसरे की सूती मिल मजदूर सभा मे कई महत्व पूर्ण नेता मुस्लिम थे और उनमे साम्प्रदायिक आधार पर कोई विभाजन नही था । कचहरी मे हम सबने संविधान पढा है ।किसी धर्म के आधार पर नही , संविधान के आधार पर देश को नियंत्रित एवं संचालित रखना अन्य किसी की तुलना मे हमारी ज्यादा जिम्मेदारी है । आजादी की लडाई हम वकीलों ने भी लडी है । हमको पता होना चाहिए कि संविधान मे " सेकुलर " शब्द मूल संविधान का भाग नही है। इसे आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के द्वारा जोडा गया था और फिर 1977 मे जनता पार्टी की सरकार के दौरान इस शब्द को हटाने की माँग उठी थी , तब अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने संविधान मे इस शब्द को बनाये रखने की वकालत की । आज किसी को गाली देने के लिए सेकुलर शब्द का प्रयोग किया जाता है । समझ मे नही आता , सामान्य बातचीत मे भी आक्रामक हो जाने का औचित्य क्या है ? अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि किसी के भी प्रति नफरत या हिंसा फैलाकर समाज मे स्थायी सुख शांति स्थापित नही की जा सकती । हम अधिवक्ता है , असहमति का सम्मान करना हमारे पेशे की विशेषता है और यदि हम लोगों ने तेज स्वर मे गाली गलौज करके सामने वाले के सुसंगत तर्को का जवाब देना शुरू कर दिया तो फिर लोकतंत्र नही बचेगा और एक बार फिर जंगल का कानून वापस आयेगा ।
कल कचहरी मे अपने मित्र नरेश तिवारी ने हमसे साझा मित्र ( नाम लिखना शायद ठीक नही ) के चैंबर मे चलकर उनके साथ चाय पीने के लिए कहा । मै आम तौर पर 11बजे से 03 बजे के बीच किसी के चैंबर मे नही जाता लेकिन नरेश जी के आग्रह पर इंकार नही किया जा सकता था । मै उनके साथ गया । साझा मित्र ने हम दोनो का गर्म जोशी से स्वागत किया और फिर फेसबुक पर मेरी एक पोस्ट को लेकर बातचीत शुरू हो गई । हमने कहा कि विदेशी शासन के खिलाफ हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई सभी ने आपस के भेद मिटाकर साझा संघर्ष किया है और जो लोग जिन्ना के आवाह्न पर पाकिस्तान नही गये , उन्हे भारत से उतना ही प्यार था जितना हम हिन्दुओं को है । कल 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की 163 वी वर्षगाँठ भी थी । मैने याद दिलाया कि 1857 का आन्दोलन बहादुरशाह जफर के नेतृत्व मे लडा गया था । इस देश पर जितना हिन्दुओं का अधिकार है , उतना मुस्लिमों का भी है ।मेरी बातों पर टोका टाकी जारी थी ,मुझे हिन्दू विरोधी बताया जा रहा था। यहाँ तक तो ठीक था परन्तु इसी बीच वहीं बैठे अपने एक युवा साथी ने हम सबका ज्ञानवर्धन किया और बताया कि आजादी की लडाई धोखा थी और उसमे सब चोर उचक्के शामिल थे । किसी मुसलमान ने आजादी के लिए कोई बलिदान नही दिया । नरेश जी ने उन्हें अशफाक उल्ला खान का नाम याद दिलाया परन्तु अपना विद्वान युवा साथी उत्तेजित हो गया । नरेश ने धैर्य का परिचय दिया । मै भी चुप हो गया। लेकिन कल से मै परेशान हूँ । सोच नही पा रहा हूँ कि आजादी की लडाई के महत्व को कमतर सिद्ध करने से देश को क्या लाभ होगा ? रोज रोज मुसलमानों को देशद्रोही बताते रहकर देश की एकता-अखंडता कैसे अक्षुण्ण रहेगी ? मित्रों मै एक कपडा मिल मे मजदूरी करता था , वहाँ बडी संख्या मे मुस्लिम भी मजदूरी करते थे और मुझे याद नही आता कि किसी कारखाने मे कभी हिन्दू मुस्लिम के नाम पर कोई विवाद हुआ हो । मकबूल अहमद खाॅ की हिन्द मजदूर पंचायत मे बहुमत सदस्य हिन्दू थे । जार्ज फर्नांडीज हिन्द मजदूर पंचायत के राष्ट्रीय नेता थे ।कामरेड राम आसरे की सूती मिल मजदूर सभा मे कई महत्व पूर्ण नेता मुस्लिम थे और उनमे साम्प्रदायिक आधार पर कोई विभाजन नही था । कचहरी मे हम सबने संविधान पढा है ।किसी धर्म के आधार पर नही , संविधान के आधार पर देश को नियंत्रित एवं संचालित रखना अन्य किसी की तुलना मे हमारी ज्यादा जिम्मेदारी है । आजादी की लडाई हम वकीलों ने भी लडी है । हमको पता होना चाहिए कि संविधान मे " सेकुलर " शब्द मूल संविधान का भाग नही है। इसे आपातकाल के दौरान 42वें संविधान संशोधन के द्वारा जोडा गया था और फिर 1977 मे जनता पार्टी की सरकार के दौरान इस शब्द को हटाने की माँग उठी थी , तब अटल बिहारी बाजपेयी और लाल कृष्ण आडवाणी ने संविधान मे इस शब्द को बनाये रखने की वकालत की । आज किसी को गाली देने के लिए सेकुलर शब्द का प्रयोग किया जाता है । समझ मे नही आता , सामान्य बातचीत मे भी आक्रामक हो जाने का औचित्य क्या है ? अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि किसी के भी प्रति नफरत या हिंसा फैलाकर समाज मे स्थायी सुख शांति स्थापित नही की जा सकती । हम अधिवक्ता है , असहमति का सम्मान करना हमारे पेशे की विशेषता है और यदि हम लोगों ने तेज स्वर मे गाली गलौज करके सामने वाले के सुसंगत तर्को का जवाब देना शुरू कर दिया तो फिर लोकतंत्र नही बचेगा और एक बार फिर जंगल का कानून वापस आयेगा ।
No comments:
Post a Comment