गोडसे
मैं ये चर्चा नहीं करूंगी कि वो देशभक्त थे या आतंकी।।
चलिए मान लेते हैं कि आतंकी या गद्दार नहीं थे.
सच्चे देश प्रेमी थे.
अब देश के बहुत से नागरिक हत्यारे भी हैं
मान लीजिए गोडसे भी उन्ही हत्यारों में से एक थे.
गांधी की हत्या से पहले गोडसे पर कोई आपराधिक आरोप नहीं है.
गाँधी की हत्या के बाद भी न तो उन्होने कोई और अपराध किया और न ही इस अपराध से बचने के लिए कोई बहाने पेश किए. भागने की कोशिश नहीं की. खुद समर्पण कर दिया.
फांसी की सजा के खिलाफ अपील तक नहीं की
साबित है कि गोडसे गांधी से व्यक्तिगत रूप से खिन्न थे.
परंतु
भारत का संविधान खिन्नता के किसी भी स्तर पर कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नहीं देता. इसलिए गोडसे ने जो किया सांवैधानिक तौर पर तो गलत ही था
गोडसे को फांसी दी जा चुकी है.
अगर वो हत्यारे हैं या वो आतंकवादी होते तब भी ज्यादा से ज्यादा फांसी की सजा ही दी जा सकती थी.
जो उनको दी भी गई.
तो अब
गोडसे का नाम लेकर बेवज़ह के विवाद क्यों खड़े किए गए हैं???
संविधान भी कहता है और नैतिकता भी कि अपराध करने के लिए सजा काटने के बाद व्यक्ति दोषमुक्त हो जाता है.
तो फिर
गोडसे का नाम लेने का क्या औचित्य है???
अब समय है कि आज शेष आतंकवादियों और अपराधियों को यथा शीघ्र तय सजा दी जाए.
आज जो आतंक फैला हुआ है वो गोडसे का नाम जपने या गोडसे को कोसने से समाप्त नहीं होगा.
गांधी को गोडसे ने तब न भी मारा होता तो वो आज जिंदा नहीं होते. बल्कि सच कहें तो साल दो साल में अपनी मौत मर गए होते.
अब समय अतीत को कुरेदने का नहीं
वर्तमान का मंथन कर भविष्य के निर्माण का है.
आतंकियों से घिन का प्रमाण दो.
चुन चुन कर आतंकियों को खत्म करो.
जयहिंद
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