अर्थ ब्यवस्था, सलाह मनमोहन सिंह
हॅसी मजाक नहीं, अनुकरणीय है
खुला सच है , देश की अर्थव्यवस्था मानव निर्मित कुप्रबनध के कारण भयंकर मंदी की चपेट मे है और शासक दल समर्थक अर्थ शास्त्री इसका कोई तात्कालिक समाधान खोज भी नही पा रहे हैं जबकि देश और आम जनता के हित मे इसका समाधान खोजना आवश्यक है परन्तु शासक दल इस मुद्दे पर अपनी अक्षमता स्वीकार करने के लिए तैयार नही है ।इससे सम्बन्धित एक घटना आज मुझे याद आ गई । मुलायम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे , उसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का प्रदेश की अर्थव्यवस्था को लेकर समाचार पत्रों मे एक बयान छपा । उसी दिन सुबह सुबह मुलायम सिंह अपने वित्त मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और सम्बन्धित अधिकारियों को लेकर उनके आवास पर पहुँचे और उनसे निवेदन किया कि कमियाँ मत बताइये , रास्ता बताइये । मुलायम सिंह के इस आचरण से सभी को कुछ न कुछ सीखने की जरूरत है । हम सब लोकतांत्रिक देश के निवासी है , प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री हमारे देश मे बदलते रहते है लेकिन देश हम सबका है , देश की समस्याओ का समाधान खोजना हम सबका निजी एवं सामूहिक दायित्व है । अपने देश मे मनमोहन सिंह के रूप मे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थ शास्त्री मौजूद है । हम सब जानते है कि भाजपा समर्थित वी पी सिंह की सरकार के दौरान देश की चौपट हो गई अर्थ ब्यवस्था को अपने वित्तमंत्रितव काल मे समृद्धि का मार्ग उन्होंने ही दिखाया था । राजनैतिक कारणों से उन पर आरोप लगाये जा सकते है परन्तु उनकी विद्वता पर संदेह नही किया जा सकता । हम सब याद करे , नोटबन्दी के दौरान संसदीय समिति की एक बैठक के दौरान विपक्षी दल का नेता होने के बावजूद उन्होंने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर रिजर्व बैंक के गवर्नर का सशक्त बचाव किया था । इन्दिरा गाँधी , राजीव गाँधी , नरसिंह राव जी के कार्यकाल मे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर तत्कालीन विपक्षी दलों के नेताओ ने देश का प्रतिनिधित्व किया है । असम आन्दोलन के दौरान और आपरेशन ब्लू स्टार के पहले इन्दिरा गाँधी ने अटल बिहारी बाजपेयी और चनद्रशेखर जी के साथ गम्भीर मंत्रणा की थी ।1971 मे बांग्ला देश के संकट के दौरान इन्दिरा गाँधी और अटल जी के बीच नियमित विचार विमर्श हुआ करता था और आपसी संवाद से बने विश्वास के कारण ही बांग्लादेश की विजय के बाद अटल जी ने संसद के अन्दर उनकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी । अपने देश मे आपसी संवाद की परम्परा रही है ।
निरन्तर गिरावट की ओर अग्रसर अर्थ ब्यवस्था सरकार की नही देश की समस्या है इसलिये दलीय गुणा भाग से ऊपर उठकर सभी के साथ विचार विमर्श करके उसका स्थायी समाधान खोजा जाना चाहिए। खतरा गम्भीर है , मनमोहन सिंह की सलाहों का मजाक बनाने या उनका उपहास उड़ाने का समय नहीं है । उनसे या उनके जैसे लोगों से सलाह लेने से किसी की प्रतिष्ठा नहीं गिरेगी बल्कि एक श्रेष्ठ परम्परा का सृजन होगा और आज देश को उसकी जरूरत है ।
हॅसी मजाक नहीं, अनुकरणीय है
खुला सच है , देश की अर्थव्यवस्था मानव निर्मित कुप्रबनध के कारण भयंकर मंदी की चपेट मे है और शासक दल समर्थक अर्थ शास्त्री इसका कोई तात्कालिक समाधान खोज भी नही पा रहे हैं जबकि देश और आम जनता के हित मे इसका समाधान खोजना आवश्यक है परन्तु शासक दल इस मुद्दे पर अपनी अक्षमता स्वीकार करने के लिए तैयार नही है ।इससे सम्बन्धित एक घटना आज मुझे याद आ गई । मुलायम सिंह पहली बार मुख्यमंत्री बने थे , उसी बीच पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का प्रदेश की अर्थव्यवस्था को लेकर समाचार पत्रों मे एक बयान छपा । उसी दिन सुबह सुबह मुलायम सिंह अपने वित्त मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा और सम्बन्धित अधिकारियों को लेकर उनके आवास पर पहुँचे और उनसे निवेदन किया कि कमियाँ मत बताइये , रास्ता बताइये । मुलायम सिंह के इस आचरण से सभी को कुछ न कुछ सीखने की जरूरत है । हम सब लोकतांत्रिक देश के निवासी है , प्रधानमंत्री , मुख्यमंत्री हमारे देश मे बदलते रहते है लेकिन देश हम सबका है , देश की समस्याओ का समाधान खोजना हम सबका निजी एवं सामूहिक दायित्व है । अपने देश मे मनमोहन सिंह के रूप मे अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त अर्थ शास्त्री मौजूद है । हम सब जानते है कि भाजपा समर्थित वी पी सिंह की सरकार के दौरान देश की चौपट हो गई अर्थ ब्यवस्था को अपने वित्तमंत्रितव काल मे समृद्धि का मार्ग उन्होंने ही दिखाया था । राजनैतिक कारणों से उन पर आरोप लगाये जा सकते है परन्तु उनकी विद्वता पर संदेह नही किया जा सकता । हम सब याद करे , नोटबन्दी के दौरान संसदीय समिति की एक बैठक के दौरान विपक्षी दल का नेता होने के बावजूद उन्होंने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर रिजर्व बैंक के गवर्नर का सशक्त बचाव किया था । इन्दिरा गाँधी , राजीव गाँधी , नरसिंह राव जी के कार्यकाल मे अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर तत्कालीन विपक्षी दलों के नेताओ ने देश का प्रतिनिधित्व किया है । असम आन्दोलन के दौरान और आपरेशन ब्लू स्टार के पहले इन्दिरा गाँधी ने अटल बिहारी बाजपेयी और चनद्रशेखर जी के साथ गम्भीर मंत्रणा की थी ।1971 मे बांग्ला देश के संकट के दौरान इन्दिरा गाँधी और अटल जी के बीच नियमित विचार विमर्श हुआ करता था और आपसी संवाद से बने विश्वास के कारण ही बांग्लादेश की विजय के बाद अटल जी ने संसद के अन्दर उनकी भूरि भूरि प्रशंसा की थी । अपने देश मे आपसी संवाद की परम्परा रही है ।
निरन्तर गिरावट की ओर अग्रसर अर्थ ब्यवस्था सरकार की नही देश की समस्या है इसलिये दलीय गुणा भाग से ऊपर उठकर सभी के साथ विचार विमर्श करके उसका स्थायी समाधान खोजा जाना चाहिए। खतरा गम्भीर है , मनमोहन सिंह की सलाहों का मजाक बनाने या उनका उपहास उड़ाने का समय नहीं है । उनसे या उनके जैसे लोगों से सलाह लेने से किसी की प्रतिष्ठा नहीं गिरेगी बल्कि एक श्रेष्ठ परम्परा का सृजन होगा और आज देश को उसकी जरूरत है ।
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