Monday, 12 August 2013

दया नियुक्तियों पर ग्रहण ..........................



केन्द्रीय सरकार ने आफिस मेमोरण्डम दिनांक 14.06.2001 जारी करके दया नियुक्तियों की कल्याणकारी योजना मे पलीता लगा दिया है। सरकारी आँकड़े बताते है कि प्रति वर्ष लगभग तीन प्रतिशत कर्मचारी सेवानिवृत्त होते है परन्तु केन्द्र उनके स्थान पर केवल एक प्रतिशत नई नियुक्तियाँ करती है और दो प्रतिशत पदो को समाप्त कर देती है। एक प्रतिशत पदो से ज्यादा नियुक्तियों पर रोक लगा दी गई है और इसी एक प्रतिशत नई नियुक्तियों में मृतक कर्मचारियों के आश्रितों को भी समायोजित किया जाता है। जबकि मूल स्कीम चालू करते समय कहा गया था कि दया नियुक्तियाँ अपवाद स्वरूप मृतक कर्मचारी के आश्रित को आर्थिक सम्बल प्रदान करने के लिए की जाती है इसलिए डाइरेक्ट रिक्रुटमेन्ट कोटा की नियमित नियुक्तियों में इन्हें शामिल नही किया जाना चाहिये।

सरकार के इस फरमान से दया नियुक्तियाँ सबसे ज्यादा कुप्रभावित हुई है। इस नये फरमान के कारण विभिन्न विभागों में दया आधार पर नियुक्त किये गये कई लोगों को आरक्षित कोटा से ज्यादा बताकर सेवा से पृथक करने की कार्यवाही की गई है जबकि इस स्कीम के तहत नियुक्ति केवल रेगुलर कैडर में ही की जाती है और किसी भी दशा में दया नियुक्ति कैजुवल दैनिक वेतन तदर्थ या संविदा कर्मचारी के रूप मे नही की जा सकती है।
दया नियुक्ति स्कीम केन्द्र सरकार की कल्याणकारी योजना का भाग है। संविधान के नीति निर्देशक तत्वों को दृष्टिगत रखकर दिनांक 09.10.1998 को इस स्कीम का शुभारम्भ किया गया था। आकस्मिक मृत्यु या चिकित्सकीय आधार पर सेवानिवृत्त कर्मचारी के परिवार को आर्थिक कठिनाइयों से बचाने के उद्देश्य से इसे बनाया गया है। इस स्कीम का सम्पूर्ण देश में स्वागत हुआ और उसके कारण कई परिवार अपने मुखिया की आकस्मिक मृत्यु दशा में भुखमरी का शिकार होने से बचे है।
केन्द्र सरकार ने खुद अपनी इस कल्याणकारी योजना के पर कतरने का काम किया है। इस सम्बन्ध में जारी आफिस मेमोरण्डम दिनांक 16.05.2001 एवं दिनांक 14.06.2006 ने आफिस मेमोरण्डम दिनांक 09.10.1998 की मूल भावना एवं उसके उद्देश्यों के प्रतिकूल है। इन दोनों आदेशों के कारण अब कई वास्तविक जरूरतमन्दों के साथ अन्याय हो रहा है और वे नौकरी पाने के अपने इस विधिपूर्ण अधिकार से वंचित हो गये है।
मूल स्कीम के तहत केन्द्र सरकार ने अपनी सेवाओं में ग्रुप सी एवं डी पदों पर डाइरेक्ट रिक्रूटमेन्ट कोटा की कुल रिक्तियों मे केवल पाँच प्रतिशत पदों पर दया के आधार पर नियुक्ति देने का प्रावधान किया था। नियुक्ति के बाद अभ्यर्थी को उसकी जाति आधारित निर्धारित आरक्षित पदों में समायोजित करने की भी व्यवस्था है। मूल स्कीम में कहा गया था कि मृतक या सेवानिवृत्त कर्मचारी के विभाग में यदि कोई पद दया नियुक्ति के लिए उपलब्ध नही है तो आश्रित को अन्य किसी मन्त्रालय या विभाग की उपलब्ध रिक्ति मे समायोचित किया जायेगा। इस आशय का स्पष्ट प्रावधान है परन्तु सम्बन्धित विभाग अन्य किसी विभाग या मन्त्रालय मे दया नियुक्ति की सम्भावनायें तलाशे बिना रिक्ति न होने का आधार बताकर दया नियुक्ति देने से इन्कार कर देते है जो दया नियुक्ति स्कीम की मूल भावना के प्रतिकूल है और किसी की दशा में न्यायसंगत नही है। स्थानीय स्तर पर कर्मचारियों की कम संख्या वाले कार्यालयों में रिक्ति न होने का बहाना आसानी से मिल जाता है।
दि डिपार्टमेन्ट आफ पर्सनल एण्ड टेªनिग मिनिस्ट्री आफ पर्सनल पब्लिक ग्रीवान्स एण्ड पेन्शन ने दया नियुक्तियों के लिए अपने मूल मेमोरण्डम की मूल भावना और उद्देश्य के प्रतिकूल नये आदेश जारी करके अप्रत्यक्ष रूप से दया नियुक्तियों के अवसर सीमित कर दिये है। सरकार ने नई नियुक्तियों के लिए स्क्रीनिग कमेटी बनाकर उसे आदेशित किया है कि वे सुनिश्चित करें कि किसी भी मन्त्रालय या विभाग मे एक प्रतिशत से ज्यादा नई नियुक्तियाँ न होने पायें। इस नियम का अनुचित लाभ उठाकर कई पात्र आश्रितों को नौकरी से वंचित किया गया है और वे दया नियुक्ति के लिए सुपात्र होते हुये भी दर दर की ठोकरे खाने के लिए अभिशप्त है। केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण की सभी पीठो में दया नियुक्तियों से सम्बन्धित ओ.ए. बड़ी संख्या मे लम्बित है। 
सर्वोच्च न्यायालय ने प्रतिपादित किया है कि दया नियुक्ति अधिकार स्वरूप प्राप्त नही की जा सकती परन्तु साथ मे यह भी स्पष्ट किया है कि स्कीम के मूल नियमों एवं शर्तो के तहत अपेक्षित अर्हता वाले अभ्यर्थियों को केवल तकनीकी आधार पर नियुक्ति देने से इन्कार नही किया जाना चाहिये। अधिकांश विभागों ने नौकरी देने की अर्हता के लिए कुछ मापदण्ड बनाये है। विभिन्न स्थितियों के लिए अलग अलग अंक निर्धारित किये है और इस प्रकार ज्यादा अंक पाने वालो को नौकरी दी जाती है। केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय ने कुल प्राप्तांको के आधार मे निष्पक्षता एवं पारदर्शिता की कमी के आरोपों को कई बार सही पाया है।
जे.सी.एम. की स्टैण्डिग कमेटी में कर्मचारियों की तरफ से दया नियुक्तियों की वर्तमान नीति को रिव्यू करने की माँग की गई है। कर्मचारियों की माँग के बाद स्टैण्डिग कमेटी ने सम्पूर्ण परिस्थितियों का बारीकी से अध्ययन किया है। वास्तव में नई नियुक्तियों के लिए रिक्तियों की संख्या निर्धारित करने के नियमों में परिवर्तन की आवश्यकता है। दया नियुक्तियों के लिए पात्र आश्रितों को नौकरी देने के बाद अवशेष रिक्तियों पर डाइरेक्ट रिक्रुटमेन्ट किया जाना चाहिये। मृतक आश्रितों की संख्या को डाइरेक्ट रिक्रुटमेन्ट की संख्या के साथ समायोजित नही किया जाना चाहिये। इस आशय से जारी निर्देश दिनांक 14.06.2006 को आधार बनाकर केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण ने केन्द्रीय सरकार की सेवा से निष्कासित आश्रितों का निष्कासन रद्द कर दिया और सभी आश्रितों को नौकरी में बनाये रखने का आदेश पारित किया है। केन्द्र सरकार की विशेष अनुमति याचिका पर उच्च न्यायालय और सर्वाेच्च न्यायालय ने केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया और केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के निर्णय को यथावत् बनाये रखा है। 
सर्वोच्च न्यायालय ने डाइरेक्टर जनरल आफ पोस्ट बनाम के. चन्द्रशेखर राव (2013 - 1 - सुप्रीम कोर्ट केसेज लेबर एण्ड सर्विसेज-पेज 596) के मामले में दया नियुक्तियों के प्रति सरकारी रवैये के विभिन्न पहलुओं पर विचार किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह सच है किसी भी विषय पर नीति निर्धारित करना सरकार का विशेषाधिकार है परन्तु न्यायालय को उसकी न्यायिक समीक्षा का अधिकार प्राप्त है। अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि प्रश्नगत संदर्भ में दया नियुक्तियों के लिए जारी मेमोरण्डम दिनांक 16.05.2001, दिनांक 14.06.2006 और इसके पहले जारी मेमोरण्डम दिनांक 04.07.2002 में विसंगतियाँ है और उससे अस्पष्टता उत्पन्न हुई है और पात्र आश्रित अपने अधिकारों से वंचित हुये है। सर्वोच्च न्यायालय ने केन्द्र सरकार को आश्रितों के विद्यमान अधिकारों के साथ कोई छेड़छाड़ किये बिना दया नियुक्ति के लिए एक समग्र नीति निर्धारित करने का आदेश दिया है।

1 comment:

  1. If full qualifications are Ok. How can a office debarred a candidate.mercy is mercy not a competitive exam.

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