सर्वोच्च न्यायालय ने गोपाल विनायक गोडसे बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र एण्ड अदर्स (ए.आई.आर-1961 पेज 600-एस.सी.) से लेकर दीपक राय बनाम स्टेट आफ बिहार (2014-1-जे.आई.सी. पेज 48-एस.सी.) तक पारित निर्णयों के मध्य विभिन्न अवसरों पर आजीवन कारावास से दण्डित व्यक्ति को उसकी बायोलाजिकल लाइफ की समाप्ति तक जेल में निरूद्ध रखने का सिद्धान्त प्रतिपादित किया है परन्तु तमिलनाडु की जयललिता सरकार ने आजीवन कारावास की इस सुस्पष्ट व्याख्या की अनदेखी करके दण्ड प्रक्रिया संहिता में निर्धारित प्रक्रिया का अनुपालन किये बिना एकदम मनमाने तरीके से राजीव गाँधी के हत्यारो को रिहा करने का फरमान जारी किया है जो अपने देश में प्रचलित लोकनीति और संविधान की मूल भावना के प्रतिकूल है।
हम सभी जानते है कि लिट्टे आतंकवादियो ने राजीव गाँधी हत्या भारत की अस्मिता को चोट पहुँचाने और हम भारत वासियों को सबक सिखाने के दुराशय से की थी। उनके कृत्य को अपनी न्यायिक व्यवस्था ने जघन्य से जघन्यतम अपराध माना और उन्हें मृत्यु दण्ड से दण्डित करने का निर्णय पारित किया था। उनकी हत्या ने सम्पूर्ण देश के जन मानस को झकझोर दिया था और सभी ने इसे राष्ट्रीय क्षति माना है। राजीव गाँधी की हत्या और उनके हत्यारो को उनके किये की सजा दिलाना काँग्रेस या गाँधी परिवार की चिन्ता का विषय हो या न हो परन्तु सम्पूर्ण राष्ट्र के लिए यह चिन्ता का विषय है। प्रियंका गाँधी द्वारा बतौर बेटी उनके हत्यारो को माफ करने या श्रीमती सोनिया गाँधी द्वारा एक महिला अभियुक्त को फाँसी न देने का निवेदन किये जाने से राष्ट्र के नाते उनके हत्यारो पर दया दिखाने का कोई औचित्य नही है।
तमिलनाडु सरकार ने दण्ड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों का अनुचित अर्थान्वयन किया है। सर्वोच्च न्यायालय ने सुनील दामोदर गायकवाड बनाम स्टेट आफ महाराष्ट्र (2014-1-जे.आई.सी. पेज 40-एस.सी.) के द्वारा हत्या के एक अभियुक्त को भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास एवं धारा 307 के तहत सात वर्ष के सश्रम कारावास से दण्डित किया है और निर्णय में ही स्पष्ट किया था कि यदि किसी कारणवश आजीवन कारावास की सजा को समुचित सरकार द्वारा कम कर दिया जाये तो धारा 307 के तहत दी गई सात वर्ष की सजा कम की गई अवधि के बाद प्रारम्भ होगी अर्थात यदि दोषी की बायोलाजिकल लाइफ की समाप्ति के पूर्व दोषी को रिहा करने का कोई निर्णय लिया जाये तो दूसरी धाराओं मे दी गई सजा को आजीवन कारावास की सजा में बिताई गई अवधि में मुजरा नही किया जायेगा। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पारित इस निर्णय के परिप्रेक्ष्य में जयललिता सरकार का निर्णय एकदम मनमाना है और शुरूआत से ही उसमें निष्पक्षता एवं परदर्शिता का अभाव है।
दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 435 में प्रावधान है कि ‘‘यदि किसी अपराध की विवेचना दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम 1946 या अन्य किसी केन्द्रीय अधिनियम के अधीन अपराध की विवेचना करने के लिए सशक्त किसी अन्य अधिकरण द्वारा की गई है, तो दण्डादेश का परिहार या लघुकरण करने के लिए राज्य सरकार अपनी शक्तियों का प्रयोग केन्द्रीय सरकार के परामर्श के बिना नही करेगी। इस की उपधारा (2) में यह भी प्रावधान है कि जिस व्यक्ति को ऐसे अपराधो के लिए दोष सिद्ध किया गया है जिनमे से कुछ उन विषयो से सम्बन्धित है जिनपर संघ की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार है तो उसके सम्बन्ध में दण्डादेश के निलम्बन परिहार या लघुकरण का राज्य सरकार द्वारा पारित कोई आदेश उसी दशा में प्रभावी होगा जब दण्डादेशो का परिहार निलम्बन या लघुकरण का आदेश केन्द्रीय सरकार द्वारा भी कर दिया जाये।
दण्डादेशो के परिहार निलम्बन या लघुकरण के लिए दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 एवं 433 के तहत राज्य सरकार को असीमित शक्तियाँ प्राप्त नही है। इन शक्तियों के प्रयोग के लिए कई प्रकार के विधिक प्रतिबन्धो का भी प्रावधान है और उसका पालन करने की अनिवार्यता है परन्तु राज्य सरकारे अब विशुद्ध राजनैतिक कारणो से स्थानीय लाभ हानि को दृष्टिगत रखकर विधि का मनमाना अर्थान्वयन करती है और अनुचित मनमाने निर्णय लेने लगी है। राजीव गाँधी अपने देश के लोकप्रिय राजनेता और प्रधान मन्त्री रहे है। उनकी हत्या की विवेचना केन्द्रीय अधिनियम के तहत की गई है और उनकी हत्या और हत्या के षड्यन्त्र में शामिल अभियुक्तो ने सम्पूर्ण देश की अस्मिता को चुनौती दी थी ऐसी दशा में उनकी हत्या के जिम्मेदार लोगों की सजा को समाप्त करने का निर्णय किसी भी दशा में केन्द्र सरकार को विश्वास में लिये बिना नही किया जाना चाहिये था।
अपने देश की राजनीति में हिंसा का कोई स्थान नही है। अपना सम्पूर्ण तन्त्र अहिंसा पर आधारित है। हम अपने विरोधियों के विचारो से असहमत होने के बावजूद अपने तरीके से सोचने समझने के उनके अधिकार का सम्मान करते है। तमिलनाडु की सरकार ने राजीव गाँधी के हत्यारों की रिहाई के आदेश के द्वारा इस सुस्थापित परम्परा का उल्लंघन किया है और सोच समझकर राजनैतिक उद्देश्यों के लिए हिंसा का रास्ता अपनाने वाले लोगों को महिमामण्डित करने का अपराध किया है। जयललिता ने इसके पूर्व अपने मुख्य मन्त्रित्वकाल में केन्द्र सरकार के तत्कालीन मन्त्रियो को गिरफ्तार कराके संघीय व्यवस्था पर कुठाराघात किया था। वास्तव में जयललिता को राजीव गाँधी के हत्यारो से कोई हमदर्दी नही है। तमिल उग्रवादियों की वे शुरूआत से ही विरोधी रही है परन्तु अब आगामी लोक सभा चुनाव में अपने प्रतिद्वन्दी करूणानिधि पर राजनैतिक बढत बनाकर लोक सभा में अपना संख्या बल बढ़ाने के लिए उन्होंने तमिल भावनाओं के साथ आपराधिक खिलवाड किया है। उन्होंने क्षुद्र राजनैतिक स्वार्थ के कारण अपने इस निर्णय के दूरगामी दुष्परिणामों पर विचार नही किया है।
तमिलनाडु सरकार के इस निर्णय से स्पष्ट हो जाता है कि राजनैतिक दृष्टि से क्षेत्रीय दलो का ज्यादा ताकतवर हो जाना देश की एकता अखण्डता के लिए हितकर नही है। क्षेत्रीय दलो के बीच राष्ट्रीय स्तर पर कोई आन्तरिक अनुशासन न होने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की भूमिका को लेकर उनमे कोई नीतिगत सामन्जस्य नही है। सभी अपने अपने तरीके से स्थानीय लाभ हानि को दृष्टिगत रखकर निर्णय लेते है और राष्ट्रीय स्तर पर उसके दूरगामी प्रभाव की उन्हें कोई चिन्ता नही होती। एक जाति विशेष में अपना वर्चस्व बढ़ाने के लिए मुलायम सिंह यादव ने भी अपने मुख्य मन्त्रित्व काल मे दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 321 का अनुचित अर्थान्यवयन करके कानपुर में एक ही जाति के चैदह लोगों की हत्या की दोषी घोषित डकैत फूलन देवी के विरूद्ध पंजीकृत सभी मुकदमें वापस लेने का फरमान जारी किया था और फिर उन्हें उनकी जाति की बहुसंख्या वाले क्षेत्र से लोक सभा का चुनाव लडवाया था। उनको अपने इस निर्णय से किसी राजनैतिक नुकशान का शिकार नही होना पड़ा इसलिए आज जयललिता ने भी राजीव गाँधी के हत्यारों को महिमामण्डित करके तमिल भावनाओं के साथ खिलवाड करने का दुस्साहस किया है।
दुखद पहलू यह भी है कि राजीव गाँधी के हत्यारों को सजा दिलाने में श्री अटल बिहारी बाजपेई के नेतृत्व वाली एन.डी.ए. की सरकार व श्री मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाही यू.पी.ए. सरकार ने कोई रूचि नही ली। सभी ने दोषियों को सजा दिलाने की तुलना में तमिलनाडु में अपने राजनैतिक नफा नुकशान की ज्यादा चिन्ता की है। अपने देश की सुस्थापित विधि के तहत विवेचक या प्रशासनिक तन्त्र की किसी लापरवाही या उनकी विफलता का कोई लाभ अभियुक्त को नही दिया जाता। अभियुक्त को उसके किये की सजा उपलब्ध साक्ष्य के गुण दोष पर विचार करके दी जाती है। राजीव गाँधी के हत्यारो के कृत्य को सर्वोच्च न्यायालय ने जघन्य से जघन्यतम अपराध माना है ऐसी दशा में दया याचिका के निस्तारण में विलम्ब के लिए दोषी अधिकारियों को चिन्हित करके उनकी पहचान सार्वजनिक की जानी चाहिये और उन्हें उसके लिए दण्डित किया जाये परन्तु उनके अनुचित आचरण का कोई लाभ जघन्यतम अपराध के दोषियो को नही दिया जाना चाहिये।
अपने देश में अफजल गुरू की दया याचिका में विलम्ब राजनैतिक मुद्दा रहा है, परन्तु राजीव गाँधी के हत्यारो की रिहाई के जयललिता फरमान पर राजनेताओं की सार्वजनिक चुप्पी चिन्ता का विषय है। अफजल का मामला बोट बैंक की दृष्टि से मुफीद बैठता था। उसकी प्रतिक्रिया में सारे देश में हलचल होती थी। आज तमिलनाडु में राजीव गाँधी के हत्यारो की माफी वहाँ के स्थानीय राजनैतिक समीकरणो के अनुकूल है। आगामी लोक सभा मे तमिलनाडु के सांसदो की भूमिका निर्णायक हो सकती है। पता नही किसको जयललिता की जरूरत पड़ जाये इसीलिए सब चुप है। केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में तमिलनाडु सरकार के निर्णय के विरूद्ध याचिका दाखिल करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली है।
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