विभिन्न राज्य सरकारों में पदासीन रहे राजनेता कुछ भी कहे लेकिन सच यह है कि स्वतन्त्र भारत में पुलिस बल संघटित अपराधियों का एक सरकारी गिरोह बन गया है, जो राज्य की शक्तियों का प्रयोग प्रायः आम लोगों को उत्पीडित करके अवैध कमाई करने के लिए करती है। किसी को भी फर्जी मुकदमा बनाकर वर्षो के लिए जेल में निरूद्ध रहने के लिए अभिशप्त बना देने और फर्जी मुडभेड दिखाकर किसी की भी हत्या करने में इन्हें व्यवसायिक विशेषज्ञता हासिल है। आजादी के बाद सभी राजनैतिक दलों ने अलग अलग अवसरों पर पुलिसिया उत्पीडन और उसके द्वारा की गई ज्यादातियों का विरोध करने के लिए उसकी तुलना विदेशी शासन के जालिया वाला बाग काण्ड से की है परन्तु सत्तारूढ रहने के दौरान किसी ने भी पुलिस बल को पब्लिक ओरियेन्टेड सेवा प्रदाता संस्थान बनाने के लिए कोई पहल नही की, उस पर प्रभावी नियन्त्रण के लिए कोई तन्त्र विकसित नही किया बल्कि पुलिस कर्मियों को अपनी तात्कालिक राजनैतिक जरूरतो के लिहाज से आम लोगों के मानवाधिकारों के हनन की खुली छूट दी है। तमिलनाडु में तत्कालीन मुख्य मन्त्री सुश्री जयललिता को खुश करने के लिए स्थानीय पुलिस ने अटल बिहारी बाजपेई सरकार के मन्त्रियों को उनके घर से गिरफ्तार करके थाने के बन्दीगृह में डाल दिया था।
राजनेताओं द्वारा पोषित मनमानी के गरूर में स्थानीय पुलिस ने पिछली 28 फरवरी को जी.एस.वी.एम. मेडिकल कालेज कानपुर के छात्रों और सत्तारूढ दल के स्थानीय विधायक इरफान सोलंकी के मध्य कालेज परिसर के बाहर सड़क पर हुई मारपीट की एक साधारण घटना के बाद ज्येष्ठ पुलिस अधीक्षक के नेतृत्व में एकदम आक्रमण के अन्दाज में जबरन छात्रावास के अन्दर घुसकर छात्रों प्राध्यापको एवं उनके परिजनों को कायरता पूर्वक बेरहमी से पीटकर अपने संघटित अपराधी होने का परिचय दिया है। पुलिस कर्मियों ने कालेज के प्राचार्य डा. नवनीत कुमार प्राध्यापक डा. संजय काला, डा. अम्बरीश, डा. आर.पी. शर्मा के साथ मारपीट की। प्राध्यापक डा. शर्मा को मारते पीटते थाना स्वरूप नगर ले आये और वहाँ पर खुद एस.एस.पी. यशस्वी यादव ने उनके गाल पर चाँटे जड़े। इनमें से कोई भी विधायक के साथ मारपीट के समय घटना स्थल पर उपस्थित नही था और न उसमें उनकी कोई भूमिका थी, परन्तु एस.एस.पी. यशस्वी यादव ने किसी की नही सुनी और सत्तारूढ दल के विधायक की संतुष्टि के लिए छात्रावास में उपस्थित घटना से अन्जान छात्रों पर हमला बोला और उसके कारण घायल हुये छात्रों पर गम्भीर आपराधिक धाराओं में मुकदमें पंजीकृत करके उन्हें जेल में डाल दिया। पुलिस कर्मियों ने इस दौरान छात्रावास के बाहर खड़ी कारों, मोटर साइकिलों को तोड़ा फोड़ा लैपटाप उठा ले गये। किताबों को फाडकर उन पर लघुशंका की। पुलिस के इस अमानवीय आचरण से पूरी व्यवस्था शर्मसार हुई परन्तु निर्लज्ज एस.एस.पी. ने मुख्यमन्त्री अखिलेश यादव के साथ अपनी निकटता के बल पर पुलिसिया व्यवहार का विरोध कर रहे आन्दोलनकारी डाक्टरों के विरूद्ध एस्मा लगाने की धमकी दी।
अपने देश में कोई भी कानून से ऊपर नही है। किसी को कानून अपने हाथ में लेने की अनुमति नही है। सभी अधिकारियों प्राधिकारियों को विधि के तहत निर्धारित प्रक्रिया का पालन करना ही पड़ता है परन्तु सभी राज्यों मे पुलिसकर्मी कानून से ऊपर है ओर उन्हें आम नागरिको के मानवाधिकारों का हनन करने की खुली छूट है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने पुलिस बलों की ज्यादती के विरूद्ध प्राप्त शिकायतो पर आपराधिक मुकदमा दर्ज करने का नियम बनाया है परन्तु अदालतो के हस्तक्षेप के बिना पुलिस कर्मियो के विरूद्ध मुकदमा पंजीकृत नही होता कानपुर में ही मेडिकल कालेज की घटना के पूर्व चन्द्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय छात्रावास में पुलिस कर्मियों ने रात्रि में छात्रावास के अपने कमरो मे सो रहे छात्रों पर हमला किया था। उनके कमरो के दरवाजे तोड़कर उन्हें बाहर लाया गया बेरहमी से पीटा गया और फिर तत्कालीन आई.जी. सुनील गुप्ता ने सो रहे भावी कृषि वैज्ञानिको पर फायरिंग करने का आरोप लगाया था जबकि उनमे से कई गोल्ड मेडलिस्ट थे और उनकी शैक्षिक पृष्ठभूमि आई.जी. जोन से ज्यादा बेहतर थी।
पुलिसकर्मी आम नागरिको के विरूद्ध बल प्रयोग करने के लिए कभी किसी नियम का पालन नही करते। सभी राज्यों में इस बाबत नियमावली बनी हुई है। योग गुरू बाबा रामदेव के कैम्प में सो रहे भक्तो पर लाठी चार्च के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने रामलीला मैदान इन्सीडेन्ट इन री (2012-1-सुप्रीम कोर्ट केसेज एल. एण्ड एस.-पेज 810) के द्वारा बल प्रयोग के लिए विस्तृत दिशा निर्देश जारी किये है। आदेशात्मक प्रकृति वाले इस दिशा निर्देश के तहत विधि विरूद्ध जमाव होने और उसके द्वारा लोक प्रशान्ति भंग करने की सम्भावना पर ही बल प्रयोग किया जा सकता है। बल प्रयोग किये जाने के पूर्व भीड़ को विधि विरूद्ध घोषित करके भीड़ को लाउड स्पीकर से उद्घोषणा के द्वारा विखरने का आदेश दिया जायेगा। चेतावनी और समझाबुझाकर भीड़ को तितर बितर करने का प्रयत्न किया जायेगा। इस प्रक्रिया के बाद भी भीड़ के न बिखरने पर न्यूनतम बल प्रयोग किया जा सकता है, परन्तु स्पष्ट किया गया है कि ज्योंही भीड तितर बितर हो जाये त्योंही बल प्रयोग बन्द कर दिया जाये अर्थात किसी को भी दौड़ाकर नही पीटा जायेगा और इस दौरान घायल हो गये व्यक्तियोें को तत्काल प्राथमिक चिकित्सा के लिए अस्पताल भेजा जाना चाहिये। इस स्पष्ट नियम के बावजूद गम्भीर रूप से घायल छात्रों को जेल भेजा गया और उनके इलाज की कोई व्यवस्था नही की गई।
जी.एस.वी.एम. मेडिकल कालेज छात्रावास और इसके पूर्व चन्द्रशेखर कृषि विश्वविद्यालय छात्रावास में पुलिस कर्मियों ने सर्वोच्च न्यायालय के दिशा निर्देशों और खुद अपने पुलिस रेगुलेशन की धारा 70 में निर्धारित प्रक्रिया का जानबूझकर उल्लंघन किया और अपनी पदीय हैसियत और शक्तियों का बेजा इस्तेमाल करके छात्रों के मानवाधिकारो का हनन किया है परन्तु राज्य सरकार ने अपने स्तर पर अपने अधिकारियों की गुण्डागर्दी की निन्दा नही की और न उनके विरूद्ध कार्यवाही करने के लिए कोई पहल की है। सर्वोच्च न्यायालय ने राम लीला मैदान वाली घटना में गम्भीर एवं साधारण रूप से घायल व्यक्तियो को क्रमशः पचास हजार रूपये एवं पच्चीस हजार रूपये बतौर क्षतिपूर्ति दिये जाने और दोषी पुलिस कर्मियों के विरूद्ध अनुशाशनात्मक कार्यवाही किये जाने का आदेश पारित किया था। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश के तहत उत्तर प्रदेश सरकार को अपने उद्दण्ड एस.एस.पी. यशस्वी यादव को हटाकर उनके विरूद्ध तत्काल विभागीय जाँच प्रारम्भ करनी चाहिये थी परन्तु ऐसा कुछ नही किया गया बल्कि एस.एस.पी. को हटाने की माँग कर रहे डाक्टरों पर एस्मा लगाने की धमकी दी गई। हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद एस.एस.पी. को हटा दिया गया है। विधायक के विरूद्ध हत्या का मुकदमा पंजीकृत हो गया है परन्तु उनकी गिरफ्तारी नही हुई और दोषी पुलिस कर्मियों के विरूद्ध अभी तक विभागीय कार्यवाही करने का कोई संकेत नही दिया गया है। इन्डियन मेडिकल एसोसियेशन की अध्यक्षा एवं मेडिसिन विभाग की प्रमुख डा0 आरती लाल चन्दानी को विभागाध्यक्ष पर से हटा दिया गया है।
उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार अपने आपको डा. राम मनोहर लोहिया का अनुयायी बताती है। उन्होंने तो अपने जीवन काल में समाजवादी पार्टी की पहली सरकार द्वारा केरल में छात्रों पर बल प्रयोग करने के कारण पार्टी महासचिव होने के नाते अपनी ही सरकार से इस्तीफा माँगा था। वे मानते थे कि लोकतन्त्र में राज्य को अपने नागरिको पर बल प्रयोग करने की अनुमति नही है। वे आचरण के द्वारा समाजवादी और कांग्रेस सरकार की अन्तर को दिखाने में विश्वास रखते थे। मुलायम सिंह की समाजवादी पार्टी हर दिन डा. लोहिया के विचारो और सिद्धान्तों का गला घोटती रहती है। अपने पहले मुख्य मन्त्रित्वकाल में मुलायम सिंह ने कानपुर में एल.एम.एम. स्कूटर फैक्ट्री के श्रमिको पर गोली चलवाई थी और आज जे.के. जूट मिल के श्रमिको पर उनके पुत्र अखिलेश यादव ने लाठी चार्ज कराया है। वास्तव में जन आन्दोलनों को बेरहमी से कुचलने की निर्लज्ज शुरूआत मुलायम सिंह ने की है। उनके मुख्यमन्त्री बनने के ठीक पहले कानपुर मे श्रमिको ने लखनऊ मुम्बई रेेल मार्ग पर कई दिनों तक धरना देकर रेल आवागमन एकदम बन्द करा दिया था, परन्तु मुख्यमन्त्री नारायण दत्त तिवारी ने श्रमिको पर बल प्रयोग की अनुमति नही दी बल्कि उनकी माँग स्वीकार करके के.के. पाण्डेय एवार्ड निरस्त कर दिया था।
पुलिस का सोच व्यवहार एवं आचरण आज भी अंग्रेजो के शासनकाल की तरह आम नागरिकों को आतंकित रखने का है। स्वतन्त्र भारत में उनकी मानसिकता को बदलने का कोई प्रयास नही किया गया। पुलिसिया व्यवस्था में सुधार के लिए केन्द्र सरकार और अनेक राज्य सरकारों ने कई आयोगों का गठन किया है, परन्तु सभी आयोगों की रिपोर्ट सरकारी फाइलों मंें कैद है। पिछले दिनों सर्वोच्च न्यायालय ने भी उत्तर प्रदेश पुलिस के पूर्व डी.जी.पी. प्रकाश सिंह की याचिका पर पुलिसिया व्यवस्था में सुधार के लिए व्यापक दिशा निर्देश जारी किये है परन्तु किसी राज्य सरकार ने इन दिशा निर्देशो के अनुरूप अपने पुलिस बल में सुधार के लिए कोई प्रयास नही किया है। अपने उत्तर प्रदेश में सम्पूर्ण पुलिसिया तन्त्र जातिवादी हो गया है। अधिकांश थानों में एक ही जाति के थानाध्यक्षो की नियुक्ति इसका प्रमाण है। वोट बैंक को मजबूत बनाये रखने के लिए शासन को जातिवादी बनाये रखने के राजनैतिक लोभ के कारण निकट भविष्य में पुलिसकर्मियों से निष्पक्ष पारदर्शी और आम लोगों के प्रति सहृदय होने की अपेक्षा नही की जा सकती।
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