सड़क दुर्घटना में अपने एक वरिष्ठ सहयोगी को खो देने के कारण मोदी सरकार के लिए सड़क सुरक्षा और दुर्घटनाओ पर प्रभावी अंकुश पूर्व सरकार की तुलना में कही ज्यादा चिन्ता का विषय है और उसी कारण केन्द्रीय मन्त्री गोपीनाथ मुण्डे के आकस्मिक निधन के तत्काल बाद केन्द्रीय सड़क परिवहन मन्त्री श्री नितिन गडकरी ने अपने मन्त्रालय के अधिकारियों की आपात बैठक बुलाई और विचार विमर्श के बाद सम्पूर्ण देश में यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए सड़क परिवहन से सम्बन्धित कानूनो और उसके प्रभावी अनुपालन के लिए बुनियादी ढाँचे में आमूलचूल परिवर्तन करने की इच्छा जताई है। अपनी इस इच्छापूर्ति के लिए उन्होंने नया मोटर वाहन कानून बनाने, दस लाख से ज्यादा आबादी वाले शहरो में चैराहों पर सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाने व्हेकिल ट्रैकिंग सिस्टम लगाकर यातायात नियमों का उल्लंघन करने वालो का आटोमेटिक चालान करने और वाहन के इन्जिन एवं बाडी की डिजायन में समयानुकूल परिवर्तन करने का एलान किया है। उन्होंने यह भी बताया है कि सरकार अमेरिका जापान जर्मनी आदि कई देशो के सड़क सुरक्षा सम्बन्धी कानूनो का 15 दिन के अन्दर अध्ययन करेगी और एक ऐसा साफ्टवेयर विकसित करेगी जिसके द्वारा कई जगहो से ड्राइविंग लायसेन्स बनवाने की प्रवृत्ति पर नकेल लगाई जा सकेगी।
नितिन गडकरी की इस घोषणा के पूर्व सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक न्यायमूर्ति श्री एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता में सड़क सुरक्षा और मोटर वाहन विधि के प्रभावी क्रियान्वयन के लिए तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गठित इस समिति में न्यायमूर्ति श्री राधाकृष्णन के अलावा भूतपूर्व ट्रान्सपोर्ट सचिव श्री एस. सुन्दर एवं सेन्ट्रल रोड रिसर्च इन्स्टीट्यूट के मुख्य वैज्ञानिक डा0 निशि मित्तल शामिल है। यह समिति इन्फोर्समेन्ट, इन्जिीनियरिग, एजूकेशन और इमरजेन्सी केयर जैसे चार मुद्दो पर विचार करेगी और तीन माह के अन्दर सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपनी प्रथम रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी। समिति सड़को की हालत में सुधार और उन पर बोझ कम करने के उपाय भी सुझायेगी।
यातायात व्यवस्था को सुधारने और सड़क दुर्घटनाओं पर प्रभावी अंकुश के लिए युद्ध स्तर पर केन्द्रीयकृत प्रयास की जरूरत है और उसमें केन्द्र सरकार की तुलना में राज्य सरकारों की भूमिका ज्यादा महत्वपूर्ण है। राज्य सरकारों के रचनात्मक सहयोग के बिना कुछ भी सम्भव नही है। यातायात नियमो का जानबूझकर उल्लंघन आदतन अपनी साइड पर न चलना, मौका मिलते ही तेज गति से वाहन भगाना व्यवसायिक वाहनों पर आदतन ओवर लोडिग करना और यात्री वाहनों पर निर्धारित संख्या से ज्यादा सवारियाँ बैठाना अपने देश में यातायात संस्कृति है। इन आदतो के कारण होने वाले हादसो का ज्ञान सभी को है। सभी इन आदतो से छुटकारा चाहते है, परन्तु कुछ ऐसी परिस्थितियाँ पैदा हो गई है जिसने सभी को इसे व्यवस्था का एक अंग मानकर उसके साथ सामन्जस्य बिठा कर सड़क पर चलने के लिए मजबूर कर रखा है। आम लोगो की इस आदत पर नियमो के तहत अंकुश लगाना पुलिस कर्मियो की पदीय प्रतिबद्धता है परन्तु यही सब उनकी कमाई का जरिया भी है इसलिए उनके स्तर पर यातायात को व्यवस्थित करने के लिए कभी कोई प्रभावी कार्यवाही नही की जाती बल्कि उनके द्वारा मौके पर सौ पचास रूपये की घूस लेकर यातायात नियमों के उल्लंघन की अनुमति दे दी जाती है।
सड़क दुर्घटनाओं के लिए वाहन चालक सबसे ज्यादा जिम्मेदार होते है परन्तु उन पर अंकुश के लिए ड्राइविग लायसेन्स जारी करने की वर्तमान लचर व्यवस्था को सुधारने का कोई प्रयास नही किया जाता। घर पर बैठे बैठे लायसेन्स मिल जाता है। रोड टेस्ट की औपचारिकता कागजो पर पूरी कर ली जाती है। इसीलिए वाहन चालक लापरवाह और गैर जिम्मेदार होते है और सड़क पर वाहन चलाने के बुनियादी अनुशासन का जानबूझकर उल्लंघन करते है। उनमें ट्रैफिक सेन्स की भारी कमी होती है। सड़क सुरक्षा के नियमो का उल्लंघन उनकी आदत में शुमार होता है। शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर दुर्घटनाये अनुभवहीन टेम्पो चालको के कारण घटित होती है परन्तु उन्हें सड़क पर अनुशाशित रहने और परिवहन के नियम सिखाने की कोई कोशिश नही की जाती। टेम्पो व्यावसायिक वाहन की परिधि में आता है, परतु लाइट मोटर व्हेकिल के लायसेन्स पर टेम्पो चलाये जा रहे है। टेम्पो का परमिट जारी करते समय उसके चालक के लायसेन्स की पड़ताल जरूरी है।
यातायात व्यवस्था को सुधाने के नाम पर आये दिन दुपहिया वाहनो के कागजात चेक किये जाते है जबकि न्यूनतम दुर्घटनाये दुपहिया वाहन चालको के कारण घटित होती है। अधिकांश दुर्घटनाये टेम्पो, ट्रक, कार चालको की आपराधिक लापरवाही से घटित होती है, परन्तु उनके लायसेन्स चेक नही किये जाते। अनाधिकृत ड्राइविग लायसेन्स लेकर वे धडल्ले से वाहन चलाते है और दुर्घटनाये करते है। राजमार्गो मे कुछ स्थानो पर आये दिन दुर्घटनाये होती है परन्तु उन्हें चिन्हित करके मौके पर सुरक्षा उपाय करने का कोई तन्त्र विकसित नही हो सका है। प्रस्तावित मोटर वाहन कानून में एक ऐसा साफ्टवेयर विकसित करने की बात कही जा रही है जिसके द्वारा सम्पूर्ण देश में ड्राइविग लायसेन्स जारी करने और उसे नियन्त्रित करने की प्रक्रिया को केन्द्रीयकृत किया जा सकेगा।
सड़क दुर्घटनाओं में पुलिस स्टेशन पर आपराधिक धाराओं मे मुकदमे पंजीकृत किये जाते है परन्तु इन मुकदमो की विवेचना आदेशात्मक विधिक प्रावधानों के कारण मजबूरी में की जाती है। विवेचक मालिक द्वारा बताये गये वाहन चालक के विरूद्ध आरोपपत्र प्रेषित करके अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते है। दुर्घटना के समय वाहन चला रहे व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करने और उसके पास अधिकृत ड्राईविंग लायसेन्स था या नही ? की जानकारी संकलित करना उनकी चिन्ता या उनकी विवेचना का विषय नही होता। मोटर वाहन अधिनियम की धारा 158 (6) में प्रावधान है कि थानाध्यक्ष सड़क दुर्घटना में किसी व्यक्ति की मृत्यु होने या गम्भीर रूप से घायल होने की सूचना प्राप्त होने के तीस दिन के अन्दर जाँच पूरी करके अपनी रिपोर्ट सम्बन्धित मोटर एक्सीडेन्ट क्लेम ट्रिब्यूनल अर्थात जनपद न्यायाधीश के समक्ष भेजेंगे। इस सम्बन्ध मे सर्वोच्च न्यायालय ने भी आदेशात्मक दिशा निर्देश जारी किये है परन्तु किसी थानाध्यक्ष ने आज तक इन दिशा निर्देशों के तहत कोई रिपोर्ट जनपद न्यायाधीश के समक्ष नही भेजी है। थाना नौबस्ता कानपुर नगर में भारतीय दण्ड संहिता की धारा 279 एवं 304 के तहत दिनांक 06.04.2014 को पंजीकृत मुकदमा अपराध संख्या 245 सन् 2014 में विवेचक ने अभी तक कोई रिपोर्ट जनपद न्यायाधीश के समक्ष प्रेषित नही की। जबकि मुकदमा वादी और अन्य प्रत्यक्षदर्शी साक्षियों ने विवेचक के समक्ष बयान दिया है कि वाहन चालक ने टक्कर लगने के तत्काल बाद अपनी गाड़ी को नही रोका और घायल महिला को घसीटते हुये काफी दूर तक ले गया और उसके जीवन के बचाने का कोई प्रयास नही किया बल्कि कुचल जाने से उसकी मृत्यु हो सकती है की जानकारी के बावजूद उस पर अपनी गाड़ी के पहिये चढाकर उसे कुचल दिया और उसी कारण उसकी मृत्यु हुई। मुकदमा वादी ने दुर्घटना के समय सी.सी.टी.वी. कैमरे के फुटेज भी विवेचक को उपलब्ध कराये है। यह पूरा मामला वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान मे है और स्थानीय समाचार पत्रों में भी प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है, परन्तु विवेचक महोदय ने इस मुकदमें को अभी तक धारा 304 में तरमीम नही किया है जबकि घटना की प्रकृति और उपलब्ध साक्ष्य गैर इरादतन हत्या का बखान करती है।
सड़क दुर्घटनाओं के मामलो में भारत प्रथम स्थान पर है। ग्रामीण क्षेत्रों में शहरों की तुलना में ज्यादा दुर्घटनाये होती है। सालाना लगभग डेढ लाख लोग सड़क दुर्घटनाओं में अपना जीवन गँवाते है अर्थात चार सौ अस्सी परिवार प्रतिदिन सड़क दुर्घटनाओं के कारण अनाथ होते है। सड़क दुर्घटनाये किसी भयावह महामारी से कम नही है परन्तु वर्तमान कानूनो के तहत इसे जमानती अपराध माना जाता है। इसीलिए दोषी के मन में कोई भय नही होता। भारतीय दण्ड संहिता की धारा 279 के तहत छः माह के लिए सजा या एक हजार रूपये का जुर्माना या दोनों और धारा 304 के तहत दो वर्ष की सजा या एक हजार रूपया जुर्माना या दोनो की सजा का प्रावधान है। अर्थात दोषी वाहन चालक केवल एक हजार रूपये का जुर्माना देकर छूट जाता है। आशा की जानी चाहिये कि प्रस्तावित कानून में इस लचर प्रावधान को बदला जायेगा और नशे की हालत में अनियिन्त्रित गति से वाहन चलाने वालो पर भारतीय दण्ड संहिता की धारा 304 के तहत हत्या की कोटि में न आने वाले मानव वध के अपराध का मुकदमा चलेगा।
अपने देश में वाहनो की तादाद बडी तेजी से बढी है परन्तु उसकी तुलना में सड़को का विकाश नही किया गया। राजमार्गो और ग्रामीण इलाको की सड़को की हालत बहुत ज्यादा खराब है। सड़को पर बनाये गये डिवाइडर भी दुर्घटना का कारण बनते है। इसलिए सड़क डिजायन मे भी परिवर्तन की जरूरत है। डिवाइडर कंक्रीट के और काफी ऊचे बनाये जाते है जो वाहन पर चालक के तनिक से अनियन्त्रण पर हादसे का कारण बनते है। विकसित देशो में डिवाइडर ऊँचे नही होते बल्कि उन पर घनी झाडियाँ लगाई जाती है। जिसके कारण डिवाइडर से वाहन टकराने की स्थिति में कम से कम नुकसान होता है।
केवल कानून और तकनीक के बल पर सड़क परिवहन को सुरक्षित नही किया जा सकता और न दुर्घटनाओं पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सकता है। इसके लिए समाज में अच्छे और सुरक्षित तरीके से वाहन चलाने की भावना पैदा करने की जरूरत है। तेज रफ्तार वाहन चलाना और दूसरो की परवाह न करना बहुतेरे अपनी शान समझते है। कई बाइक चालक कहीं भी मुड जाने और करतबी अंदाज में लहराते हुये चलने को अपना अधिकार मानते है। प्रायः रात दस बजे से सुबह छः सात बजे के बीच चैराहो पर पुलिस कर्मियो की तैनाती नही होती ऐसे में लोग वेपरवाही से नियमो का उल्लंघन करके दुर्घटना कारित करते है। आँकड़े बताते है कि केवल दिल्ली में इस साल पन्द्रह मई तक एक सौ सैतालिस लोग रात के बारह बजे से सुबह आठ बजे के बीच सड़क दुर्घटनाओं में मारे गये है। इसलिए जरूरी है कि कानूनी प्रावधानों को कठोर बनाया जाये। कठोरता से उनका अनुपालन सुनिश्चित किया जाये, ज्यादा दुर्घटना वाली जगहों को चिन्हित करके वहाँ सी.सी.टी.वी. कैमरे लगाकर नियमित सतर्कता बरती जाये और जमीनी हकीकत को दृष्टिगत रखकर ऐसी नीति बनाई जाये जिसमें साईकिल से चलने वालों और पैदल राहगीरो को भी सड़क पार करने की सुरक्षित सुविधा प्रदान की जा सके।
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