Monday, 7 October 2019

महात्मा गाँधी के सन्देश ..........6


महात्मा गाँधी के संदेश_______6
ग्राम स्वराज की मेरी कल्पना यह है कि ग्राम एक ऐसा पूर्ण गणतंत्र हो , जो अपनी मुख्य जरूरतों के लिए अपने पड़ोसियों पर भी निर्भर न हो और फिर भी दूसरी बहुतेरी जरूरतों के लिए एक दूसरे पर निर्भर हो । इस तरह सर एक गाॅव का पहला काम यह होगा कि वह अपनी जरूरत का तमाम अनाज और कपडे के लिए कपास खुद पैदा कर ले । उसके पास पशुओं के लिए चारागाह और गाॅव के वयस्क लोगो और बच्चो के लिए मन बहलाव और खेलकूद के मैदान होने चाहिए । हर एक गाॅव का अपना एक नाटकघर एक पाठशाला और एक सभा भवन होगा । पानी के लिए उसका अपना इंतजाम होगा जिसमे सभी लोगों को पीने का शुद्ध पानी मिलेगा। बुनियादी तालीम के आखिरी दर्जे तक शिक्षा सबके लिए लाजिमी होगी। जहाँ तक सम्भव हो सकेगा , गाॅव के सारे काम सहकारिता के आधार पर किये जाँयेगे, जाति पांत या छुआ-छूत उनमे नही होगी। अहिंसा , जिसके सत्याग्रह और सहयोग , दो शस्त्र है , के आधार पर ग्रामीण समाज का शासन चलेगा। गाॅव की रक्षा के लिए ग्रामीण रक्षक होंगे जिन्हे लाजिमी तौर पर गाॅव की चौकीदारी का काम करना होगा । इसके लिए गाॅव के रजिस्टर से लोगो का बारी बारी से चुनाव किया जायेगा । गाॅव का शासन चलाने के लिए हर साल गाॅव का पाॅच आदमियों की एक पंचायत चुनी जायेगी और सभी बालिग़ स्त्री पुरुषो को इस पंचायत को चुनने का अधिकार होगा । इस पंचायत को सब प्रकार की आवश्यक सत्ता और अधिकार होंगे । इसमे निजी स्वतंत्रता पर आधारित पुर्ण लोकतंत्र होगा।
अनगिनत गाॅवो से बना यह संग़ठन एक के ऊपर एक चढ़ते हुये खंडो मे नही , बल्कि एक के बाद एक बढते हुए घेरों के रूप मे होगा । जिंदगी पिरामिड की शक्ल मे नही होगी , जहाँ ऊपर का शिखर नीचे की नीव पर टिका होता है । वह तो समुद्र मे उठने वाले भॅवर की तरह होगी जिसका केन्द्र बिन्दु बयकति होगा और इस तरह अंत मे सारा समाज ऐसे लोगों का बन जायेगा जो अहंकारी न होकर विनम्र होंगे और समुद्र की तरह गम्भीर होगे इसलिये सबसे बाहर की परिधि अपनी ताकत का उपयोग भीतरी वृत्त को कुचलने मे नही करेगी बल्कि उन सबको ताकत देगी जो उसके अंदर है और यह उसी से अपनी शक्ति प्राप्त करेगी इसमे न तो कोई पहला होगा और न आखिरी ___और इसमे हर स्त्री पुरुष को मालुम होगा कि वह क्या चाहता है और इससे भी बडी बात यह है कि उसे यह भी ज्ञात होगा कि किसी भी बयकति को किसी ऐसी चीज की कामना नहीं करनी है , जिसे दूसरे लोग समान मेहनत करके प्राप्त नही कर सकते ।

Sunday, 6 October 2019

महात्मा गाँधी के सन्देश ..........5


महात्मा गाँधी के संदेश________5
मेरे लिए मुक्ति का मार्ग अपने देश की और उसके द्वारा समस्त मानवता की अनवरत् सेवा ही है । मै सृष्टि के समस्त प्राणियों से एकाकार हो जाना चाहता हूँ । " गीता " के शब्दो मे कहूँ तो मै अपने मित्र और शत्रु दोनो के साथ शान्ति से रहना चाहता हूँ इसलिये भले ही कोई मुसलमान या ईसाई अथवा हिन्दू मुझसे घृणा करें, मै उसे उसी तरह प्यार करना और उसकी सेवा करना चाहता हूँ जिस तरह अपने पुत्र या पत्नी की । मेरी देशभक्ति चिर स्वतंत्रता और शान्ति के साम्राज्य की ओर मेरी यात्रा की एक मंजिल भर है । इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि मेरे लिए धर्म के बिना राजनीति का कोई मतलब ही नहीं है । राजनीति धर्म की चेरी है , धर्म से रहित राजनीति मृत्युपाश के समान है कयोंकि ऐसी राजनीति आत्मा का हनन करती है । मेरी सत्य निष्ठा मुझे राजनीति मे खींच लायी है और मै सर्वथा नि: संकोच भाव से , किन्तु साथ ही पूर्ण विनम्रता के साथ कह सकता हूँ कि जो लोग यह कहते है कि धर्म का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है , वे धर्म के मर्म को बिलकुल नही जानते
मेरे जीवन दर्शन मे साधन और साध्य एक दूसरे के पर्याय हैं । लोग कहते है " साधन तो आखिर साधन ही है " मै कहूँगा " आखिरकार साधन ही तो सब कुछ है " जैसा साधन होगा , वैसा ही साध्य होगा । साधन और साध्य के बीच के भेद की कोई दीवार नही है । सच तो यह है कि हमारे सृष्टा ने हमे साधन पर ही अधिकार दिया है , और वह भी बहुत सीमित । साध्य पर तो हमारा कोई वश है ही नहीं। हम अपने साध्य को वहीं तक साध सकते है , जहाँ तक साधन को साधेंगे । इस नियम मे अपवाद की कोई गुंजाइश नहीं है । साधन को हम बीज और साध्य को वृक्ष कह सकते है । इन दोनो मे वही समबन्ध है जो वृक्ष और बीज के बीच है । मै शुद्ध अहिंसा और खुले साधनों का समर्थक हूँ छिपावट से मुझे घृणा है । अशुद्ध साधन से प्राप्त साध्य भी अशुद्ध होता है । सत्य को असत्य से नही प्राप्त किया जा सकता। सत्याचरण से ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है । सफलता विफलता हमारे हाथ मे नही है । यदि हम अपना कर्तव्य ठीक से करें तो इतना ही काफी है। हमारे वश मे तो केवल कर्म करना ही है , फल तो ईश्वर के हाथ मे है ।भविष्य को मै नही जानता, मुझे वर्तमान की चिंता है । आने वाले क्षण पर ईश्वर ने मुझे कोई अधिकार नहीं दिया है । यह अभेद्य अंधकार जो हमे घेरे हुए है , वह अभिशाप न होकर वरदान है। उसने हमे बस इतनी ही शक्ति दी है कि हम अगला कदम देख सकें । यह अभेद्य अंधकार उतना अभेद्य नही है जितना हम उसे समझते है लेकिन जब हम अपने उतावलेपन मे उस अगले कदम से आगे देखना चाहते है तो हमे वह अंधकार अभेद्य लगने लगता है । मेरा भरोसा केवल ईश्वर पर है । मेरे लिए एक कदम ही काफी है । उससे अगला कदम समय आने पर ईश्वर मुझे दिखा देगा ।

महात्मा गाँधी के सन्देश ..........4


महात्मा गाँधी के संदेश _______4
आर्थिक समानता हिंसारहित स्वाधीनता की कुंजी है । आर्थिक समानता लाने का प्रयास करने का अर्थ है , पूँजी और श्रम के शाश्वत संघर्ष की समाप्ति करना। इसका मतलब है कि जिन कुछ अमीर लोगों के हाथ मे राष्ट्र की अधिकतर सम्पत्ति केन्द्रित है , उनका प्रभाव घटाना और दूसरी ओर लाखों भूखे लोगों की आर्थिक स्थिति सुधारना । जाहिर है कि जब तक अमीरों और लाखों भूखे लोगों के बीच चौडी खाई मजबूत रहती है तब तक अहिंसा पर आधारित सरकार कायम करना असंभव है । नई दिल्ली की आलीशान इमारतों मे और गरीबों की दयनीय झुग्गियो झोपड़ियों जो भारी विरोधाभास है , वह स्वाधीन भारत मे , जहाँ गरीब को भी उतने ही अधिकार होंगे , जितने कि सबसे अमीर वयकति को, एक भी दिन नही टिक सकेगा । यदि संपत्ति और संपत्तिजन्य सत्ता का त्याग खुद नही किया जायेगा और सार्व जनिक कल्याण के लिये दूसरों को उसमे साझीदार नही बनाया जायेगा तो एक दिन हिंसात्मक और खूनी क्रांति होकर रहेगी ।
मै आपको एक मंत्र देता हूँ। जब भी आपको संदेह हो , या जब आप बहुत आत्मलिप्त हो जाॅये तो आप इसे आजमायें ।किसी ऐसे सबसे गरीब अथवा कमजोर बयकति का चेहरा याद करें जिसे आपने देखा हो और अपने से पूछें कि जो कदम आप उठाने जा रहे है , क्या उसे इससे कोई लाभ होगा? क्या इसकी सहायता से वह अपने जीवन और भाग्य का नियंता बन सकेगा? दूसरे शब्दो मे , क्या वह कदम भूखे पेट और आध्यात्मिक भूख से मारे लोगों के लिए स्वराज स्थापित करने मे सहायक होगा? तब आप देखेंगे कि आपकी शंकायें और आपका स्वार्थ मिटता जा रहा है ।

Friday, 4 October 2019

महात्मा गाँधी के सन्देश ...........3


महात्मा गाँधी के संदेश_____3
भारत मे विभिन्न धर्मो के लोग रहते है इसलिये एक राष्ट्र नही हो सकता, का तर्क एकदम गलत है ।विदेशियों के समावेश से जरूरी नही कि राष्ट्र नष्ट हो जाये , वे तो उनमे घुल मिल जाते है । कोई देश एक राष्ट्र तभी हो सकता है जब उसमे ऐसी स्थिति विद्यमान हो । भारत सदा से ऐसा ही देश रहा है । वास्तव मे जितने बयकति होते है , उतने ही उनके धर्म होते है परन्तु जिनमे राष्ट्रीयता की भावना होती है , वे एक दूसरे के धर्म मे हस्तक्षेप नहीं करते। यदि हिन्दूओ की यह धारणा है कि भारत मे केवल हिन्दुओं को ही रहना चाहिए तो वे स्वप्न लोक मे है । हिन्दू मुस्लिम पारसी तथा ईसाई जिन्होंने भारत को अपना देश बना लिया है , वे सब इस एक ही देश के वासी हैं
हिन्दू और मुसलमान दोनो भारत की संतान है। वे सब लोग जो इस देश मे जन्मे है और जो इसे अपनी मातृभूमि मानते है , वे चाहे हिन्दू हों या मुसलमान या पारसी या ईसाई, जैन या सिख, वे सबके सब समान रूप से भारत की संतान हैं और इसलिए वे भाई भाई है और खून से भी ज्यादा मजबूत बंधन से एक-दूसरे से बॅधे हुये है ।स्वतंत्र भारत हिन्दू राज नही , बल्कि भारतीय राज होगा जो किसी एक धार्मिक संप्रदाय के बहुमत पर नही बल्कि बिना किसी धार्मिक भेद-भाव के समस्त जनता के प्रतिनिधिओ पर आधारित होगा । धर्म एक बयकतिगत मामला है जिसका राजनीति मे कोई स्थान नही होना चाहिए । दूसरे देशों के लोग हमे गुजराती, मराठी , तमिल आदि के रूप मे नही बल्कि केवल भारतीयों के रूप मे जानते है इसलिये हमे समस्त विघटनकारी प्रवृत्तिओं को दृढ़तापूर्वक दबाने चाहिए और अपने को भारतीय समझना चाहिए और उसी के अनुरूप आचरण करना चाहिए।

महात्मा गाँधी के सन्देश ...........2

महात्मा गाँधी के संदेश______2
सचमुच हमारे सब कार्य धर्म से प्रेरित होने चाहिए। यहाँ धर्म का अभिप्राय मत मतांतर से नही है । इसका अर्थ है विश्व की नियामक एक नैतिक ब्यवस्था मे विश्वास। यह धर्म हिन्दू , इस्लाम या ईसाइयत आदि से परे है । यह इन सभी धर्मो को अपने अपने स्थान से नही हटाता बल्कि उनमे सामंजस्य लाता है और उनको यथार्थता प्रदान करता है ।समस्त धर्म एक ही बिन्दु पर आकर मिलने वाले विभिन्न मार्ग है । मै संसार के सभी महान धर्मो की मूलभूत सच्चाई मे विश्वास करता हूँ। मेरा विश्वास है कि वे सभी ईश्वर प्रदत्त है । यदि हम भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के धर्म शास्त्रों को उनके अनुयायियों के दृष्टिकोण से पढें तो हम देखेंगे कि मूलतः वे सब एक है और एक दूसरे के सहायक है ।
मुझे प्रत्येक धर्म उतना ही प्रिय है , जितना हिन्दू धर्म। धर्म परिवर्तन का विचार मेरे मन मे नही आ सकता । हिन्दू धर्म प्रत्येक मनुष्य से कहता है कि वह अपने विश्वास और धर्म के अनुसार ईश्वर की आराधना करे इसलिये वह प्रत्येक धर्म के साथ शांतिपूर्वक रहता है । हमे हिन्दूको और अच्छा हिन्दू, मुस्लमान को और अच्छा मुसलमान और ईसाई को और अच्छा ईसाई बनने मे मदद करनी चाहिए। हमे अपने अंदर से यह दंभ मिटा देना चाहिए कि हमारा धर्म अधिक सच्चा है और दूसरो का कम सच्चा है ।दूसरे सभी धर्मो के प्रति हमारा दृष्टिकोण साफ और ईमानदारी का होना चाहिए। दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना यह होनी चाहिए कि " हे ईश्वर, जो प्रकाश तूने मुझे दिया है , वह उसे भी दे , उसे वह प्रकाश दिखा , उसे उस सत्य के दर्शन करा जो उसके अधिक से अधिक विकास के लिए आवश्यक है "

महात्मा गाँधी के सन्देश ...........1

महात्मा गाँधी के संदेश ___1
अहिंसा बुराई के विरूद्ध लडाई से भागना नहीं है। इसके विपरीत मेरी अहिंसा बुराई के विरूद्ध हिंसा के तरीके से कहीं अधिक सक्रिय और सच्ची लडाई है , हिंसा तो सहज ही बुराई को और भी बढाती है । मै पाप और अन्याय के मानसिक और इसलिए नैतिक प्रतिशोध की बात सोचता हूँ । मै अत्याचारी की तलवार की धार को बिलकुल कुंठित कर देना चाहता हूँ, उसके विरुद्ध और भी तेज धार वाले शस्त्रों का प्रयोग करके नही , बल्कि उसकी इस आशा को झुठला कर कि मै मै भौतिक शक्ति से उसका प्रतिरोध करूँगा। मै जिस आत्म शक्ति से उसका प्रतिरोध करूँगा , वह उसे चक्कर मे डाल देगी । इसे देखकर पहले तो वह चकित रह जायेगा और अंत मे उसे इसकी श्रेष्ठता स्वीकार करनी पड़ेगी, मगर यह स्वीकृति उसमे अपमान और पराजय का भाव नही जगायेगी ।
अहिंसा एक उच्च कोटि की सक्रिय शक्ति है । यह आत्मबल या हमारे भीतर बैठे ईश्वर का बल है । अपने अंदर ईश्वर की जीवंत उपस्थिति का बोध निःसंदेह इसकी पहली शर्त है । जिस वयकति मे अहंकार और अभिमान है , उसमे अहिंसा नहीं हो सकती। नम्रता के बिना अहिंसा असम्भव है । अहिंसा के लिए किसी प्रकार के बाहरी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती ।इसके लिए बदले मे भी किसी की हत्या न करने की इच्छा और मन मे प्रतिशोध की भावना को स्थान दिये बिना मृत्यु को वरण करने का साहस भर पर्याप्त है। यदि इस सिद्धांत मे हमारी अगाध श्रद्धा हो तो हमारे लिए कोई भी उत्तेजना इतनी बडी नही होगी कि हम उसे बर्दाश्त न कर सकें। इसे मैने वीरों की अहिंसा कहा है