Friday, 4 October 2019

महात्मा गाँधी के सन्देश ...........1

महात्मा गाँधी के संदेश ___1
अहिंसा बुराई के विरूद्ध लडाई से भागना नहीं है। इसके विपरीत मेरी अहिंसा बुराई के विरूद्ध हिंसा के तरीके से कहीं अधिक सक्रिय और सच्ची लडाई है , हिंसा तो सहज ही बुराई को और भी बढाती है । मै पाप और अन्याय के मानसिक और इसलिए नैतिक प्रतिशोध की बात सोचता हूँ । मै अत्याचारी की तलवार की धार को बिलकुल कुंठित कर देना चाहता हूँ, उसके विरुद्ध और भी तेज धार वाले शस्त्रों का प्रयोग करके नही , बल्कि उसकी इस आशा को झुठला कर कि मै मै भौतिक शक्ति से उसका प्रतिरोध करूँगा। मै जिस आत्म शक्ति से उसका प्रतिरोध करूँगा , वह उसे चक्कर मे डाल देगी । इसे देखकर पहले तो वह चकित रह जायेगा और अंत मे उसे इसकी श्रेष्ठता स्वीकार करनी पड़ेगी, मगर यह स्वीकृति उसमे अपमान और पराजय का भाव नही जगायेगी ।
अहिंसा एक उच्च कोटि की सक्रिय शक्ति है । यह आत्मबल या हमारे भीतर बैठे ईश्वर का बल है । अपने अंदर ईश्वर की जीवंत उपस्थिति का बोध निःसंदेह इसकी पहली शर्त है । जिस वयकति मे अहंकार और अभिमान है , उसमे अहिंसा नहीं हो सकती। नम्रता के बिना अहिंसा असम्भव है । अहिंसा के लिए किसी प्रकार के बाहरी प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती ।इसके लिए बदले मे भी किसी की हत्या न करने की इच्छा और मन मे प्रतिशोध की भावना को स्थान दिये बिना मृत्यु को वरण करने का साहस भर पर्याप्त है। यदि इस सिद्धांत मे हमारी अगाध श्रद्धा हो तो हमारे लिए कोई भी उत्तेजना इतनी बडी नही होगी कि हम उसे बर्दाश्त न कर सकें। इसे मैने वीरों की अहिंसा कहा है

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