महात्मा गाँधी के संदेश________5
मेरे लिए मुक्ति का मार्ग अपने देश की और उसके द्वारा समस्त मानवता की अनवरत् सेवा ही है । मै सृष्टि के समस्त प्राणियों से एकाकार हो जाना चाहता हूँ । " गीता " के शब्दो मे कहूँ तो मै अपने मित्र और शत्रु दोनो के साथ शान्ति से रहना चाहता हूँ इसलिये भले ही कोई मुसलमान या ईसाई अथवा हिन्दू मुझसे घृणा करें, मै उसे उसी तरह प्यार करना और उसकी सेवा करना चाहता हूँ जिस तरह अपने पुत्र या पत्नी की । मेरी देशभक्ति चिर स्वतंत्रता और शान्ति के साम्राज्य की ओर मेरी यात्रा की एक मंजिल भर है । इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि मेरे लिए धर्म के बिना राजनीति का कोई मतलब ही नहीं है । राजनीति धर्म की चेरी है , धर्म से रहित राजनीति मृत्युपाश के समान है कयोंकि ऐसी राजनीति आत्मा का हनन करती है । मेरी सत्य निष्ठा मुझे राजनीति मे खींच लायी है और मै सर्वथा नि: संकोच भाव से , किन्तु साथ ही पूर्ण विनम्रता के साथ कह सकता हूँ कि जो लोग यह कहते है कि धर्म का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है , वे धर्म के मर्म को बिलकुल नही जानते
मेरे जीवन दर्शन मे साधन और साध्य एक दूसरे के पर्याय हैं । लोग कहते है " साधन तो आखिर साधन ही है " मै कहूँगा " आखिरकार साधन ही तो सब कुछ है " जैसा साधन होगा , वैसा ही साध्य होगा । साधन और साध्य के बीच के भेद की कोई दीवार नही है । सच तो यह है कि हमारे सृष्टा ने हमे साधन पर ही अधिकार दिया है , और वह भी बहुत सीमित । साध्य पर तो हमारा कोई वश है ही नहीं। हम अपने साध्य को वहीं तक साध सकते है , जहाँ तक साधन को साधेंगे । इस नियम मे अपवाद की कोई गुंजाइश नहीं है । साधन को हम बीज और साध्य को वृक्ष कह सकते है । इन दोनो मे वही समबन्ध है जो वृक्ष और बीज के बीच है । मै शुद्ध अहिंसा और खुले साधनों का समर्थक हूँ छिपावट से मुझे घृणा है । अशुद्ध साधन से प्राप्त साध्य भी अशुद्ध होता है । सत्य को असत्य से नही प्राप्त किया जा सकता। सत्याचरण से ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है । सफलता विफलता हमारे हाथ मे नही है । यदि हम अपना कर्तव्य ठीक से करें तो इतना ही काफी है। हमारे वश मे तो केवल कर्म करना ही है , फल तो ईश्वर के हाथ मे है ।भविष्य को मै नही जानता, मुझे वर्तमान की चिंता है । आने वाले क्षण पर ईश्वर ने मुझे कोई अधिकार नहीं दिया है । यह अभेद्य अंधकार जो हमे घेरे हुए है , वह अभिशाप न होकर वरदान है। उसने हमे बस इतनी ही शक्ति दी है कि हम अगला कदम देख सकें । यह अभेद्य अंधकार उतना अभेद्य नही है जितना हम उसे समझते है लेकिन जब हम अपने उतावलेपन मे उस अगले कदम से आगे देखना चाहते है तो हमे वह अंधकार अभेद्य लगने लगता है । मेरा भरोसा केवल ईश्वर पर है । मेरे लिए एक कदम ही काफी है । उससे अगला कदम समय आने पर ईश्वर मुझे दिखा देगा ।
मेरे लिए मुक्ति का मार्ग अपने देश की और उसके द्वारा समस्त मानवता की अनवरत् सेवा ही है । मै सृष्टि के समस्त प्राणियों से एकाकार हो जाना चाहता हूँ । " गीता " के शब्दो मे कहूँ तो मै अपने मित्र और शत्रु दोनो के साथ शान्ति से रहना चाहता हूँ इसलिये भले ही कोई मुसलमान या ईसाई अथवा हिन्दू मुझसे घृणा करें, मै उसे उसी तरह प्यार करना और उसकी सेवा करना चाहता हूँ जिस तरह अपने पुत्र या पत्नी की । मेरी देशभक्ति चिर स्वतंत्रता और शान्ति के साम्राज्य की ओर मेरी यात्रा की एक मंजिल भर है । इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि मेरे लिए धर्म के बिना राजनीति का कोई मतलब ही नहीं है । राजनीति धर्म की चेरी है , धर्म से रहित राजनीति मृत्युपाश के समान है कयोंकि ऐसी राजनीति आत्मा का हनन करती है । मेरी सत्य निष्ठा मुझे राजनीति मे खींच लायी है और मै सर्वथा नि: संकोच भाव से , किन्तु साथ ही पूर्ण विनम्रता के साथ कह सकता हूँ कि जो लोग यह कहते है कि धर्म का राजनीति से कोई सरोकार नहीं है , वे धर्म के मर्म को बिलकुल नही जानते
मेरे जीवन दर्शन मे साधन और साध्य एक दूसरे के पर्याय हैं । लोग कहते है " साधन तो आखिर साधन ही है " मै कहूँगा " आखिरकार साधन ही तो सब कुछ है " जैसा साधन होगा , वैसा ही साध्य होगा । साधन और साध्य के बीच के भेद की कोई दीवार नही है । सच तो यह है कि हमारे सृष्टा ने हमे साधन पर ही अधिकार दिया है , और वह भी बहुत सीमित । साध्य पर तो हमारा कोई वश है ही नहीं। हम अपने साध्य को वहीं तक साध सकते है , जहाँ तक साधन को साधेंगे । इस नियम मे अपवाद की कोई गुंजाइश नहीं है । साधन को हम बीज और साध्य को वृक्ष कह सकते है । इन दोनो मे वही समबन्ध है जो वृक्ष और बीज के बीच है । मै शुद्ध अहिंसा और खुले साधनों का समर्थक हूँ छिपावट से मुझे घृणा है । अशुद्ध साधन से प्राप्त साध्य भी अशुद्ध होता है । सत्य को असत्य से नही प्राप्त किया जा सकता। सत्याचरण से ही सत्य को प्राप्त किया जा सकता है । सफलता विफलता हमारे हाथ मे नही है । यदि हम अपना कर्तव्य ठीक से करें तो इतना ही काफी है। हमारे वश मे तो केवल कर्म करना ही है , फल तो ईश्वर के हाथ मे है ।भविष्य को मै नही जानता, मुझे वर्तमान की चिंता है । आने वाले क्षण पर ईश्वर ने मुझे कोई अधिकार नहीं दिया है । यह अभेद्य अंधकार जो हमे घेरे हुए है , वह अभिशाप न होकर वरदान है। उसने हमे बस इतनी ही शक्ति दी है कि हम अगला कदम देख सकें । यह अभेद्य अंधकार उतना अभेद्य नही है जितना हम उसे समझते है लेकिन जब हम अपने उतावलेपन मे उस अगले कदम से आगे देखना चाहते है तो हमे वह अंधकार अभेद्य लगने लगता है । मेरा भरोसा केवल ईश्वर पर है । मेरे लिए एक कदम ही काफी है । उससे अगला कदम समय आने पर ईश्वर मुझे दिखा देगा ।
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