महात्मा गाँधी के संदेश______2
सचमुच हमारे सब कार्य धर्म से प्रेरित होने चाहिए। यहाँ धर्म का अभिप्राय मत मतांतर से नही है । इसका अर्थ है विश्व की नियामक एक नैतिक ब्यवस्था मे विश्वास। यह धर्म हिन्दू , इस्लाम या ईसाइयत आदि से परे है । यह इन सभी धर्मो को अपने अपने स्थान से नही हटाता बल्कि उनमे सामंजस्य लाता है और उनको यथार्थता प्रदान करता है ।समस्त धर्म एक ही बिन्दु पर आकर मिलने वाले विभिन्न मार्ग है । मै संसार के सभी महान धर्मो की मूलभूत सच्चाई मे विश्वास करता हूँ। मेरा विश्वास है कि वे सभी ईश्वर प्रदत्त है । यदि हम भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के धर्म शास्त्रों को उनके अनुयायियों के दृष्टिकोण से पढें तो हम देखेंगे कि मूलतः वे सब एक है और एक दूसरे के सहायक है ।
मुझे प्रत्येक धर्म उतना ही प्रिय है , जितना हिन्दू धर्म। धर्म परिवर्तन का विचार मेरे मन मे नही आ सकता । हिन्दू धर्म प्रत्येक मनुष्य से कहता है कि वह अपने विश्वास और धर्म के अनुसार ईश्वर की आराधना करे इसलिये वह प्रत्येक धर्म के साथ शांतिपूर्वक रहता है । हमे हिन्दूको और अच्छा हिन्दू, मुस्लमान को और अच्छा मुसलमान और ईसाई को और अच्छा ईसाई बनने मे मदद करनी चाहिए। हमे अपने अंदर से यह दंभ मिटा देना चाहिए कि हमारा धर्म अधिक सच्चा है और दूसरो का कम सच्चा है ।दूसरे सभी धर्मो के प्रति हमारा दृष्टिकोण साफ और ईमानदारी का होना चाहिए। दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना यह होनी चाहिए कि " हे ईश्वर, जो प्रकाश तूने मुझे दिया है , वह उसे भी दे , उसे वह प्रकाश दिखा , उसे उस सत्य के दर्शन करा जो उसके अधिक से अधिक विकास के लिए आवश्यक है "
सचमुच हमारे सब कार्य धर्म से प्रेरित होने चाहिए। यहाँ धर्म का अभिप्राय मत मतांतर से नही है । इसका अर्थ है विश्व की नियामक एक नैतिक ब्यवस्था मे विश्वास। यह धर्म हिन्दू , इस्लाम या ईसाइयत आदि से परे है । यह इन सभी धर्मो को अपने अपने स्थान से नही हटाता बल्कि उनमे सामंजस्य लाता है और उनको यथार्थता प्रदान करता है ।समस्त धर्म एक ही बिन्दु पर आकर मिलने वाले विभिन्न मार्ग है । मै संसार के सभी महान धर्मो की मूलभूत सच्चाई मे विश्वास करता हूँ। मेरा विश्वास है कि वे सभी ईश्वर प्रदत्त है । यदि हम भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के धर्म शास्त्रों को उनके अनुयायियों के दृष्टिकोण से पढें तो हम देखेंगे कि मूलतः वे सब एक है और एक दूसरे के सहायक है ।
मुझे प्रत्येक धर्म उतना ही प्रिय है , जितना हिन्दू धर्म। धर्म परिवर्तन का विचार मेरे मन मे नही आ सकता । हिन्दू धर्म प्रत्येक मनुष्य से कहता है कि वह अपने विश्वास और धर्म के अनुसार ईश्वर की आराधना करे इसलिये वह प्रत्येक धर्म के साथ शांतिपूर्वक रहता है । हमे हिन्दूको और अच्छा हिन्दू, मुस्लमान को और अच्छा मुसलमान और ईसाई को और अच्छा ईसाई बनने मे मदद करनी चाहिए। हमे अपने अंदर से यह दंभ मिटा देना चाहिए कि हमारा धर्म अधिक सच्चा है और दूसरो का कम सच्चा है ।दूसरे सभी धर्मो के प्रति हमारा दृष्टिकोण साफ और ईमानदारी का होना चाहिए। दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना यह होनी चाहिए कि " हे ईश्वर, जो प्रकाश तूने मुझे दिया है , वह उसे भी दे , उसे वह प्रकाश दिखा , उसे उस सत्य के दर्शन करा जो उसके अधिक से अधिक विकास के लिए आवश्यक है "
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