सीवर सफाई करते मजदूर की फोटो के साथ अंकित टिप्पणी से आप सबकी जातिगत श्रेष्ठता कहीं न कहीं आहत हो गयी है। मैं पहले ही स्पष्ट कर दूँ कि इस टिप्पणी को पोस्ट करते समय मेरा इरादा किसी की भी भावनाओं को आहत करने का नही था और न है। मैं केवल इतना कहना चाहता था कि आजाद भारत में मैनहोल में घुसकर सीवर सफाई के लिए किसी एक जाति को आरक्षित मान लेना न्यायसंगत नही है। अच्छी तरह समझ लीजिये इस दुनिया में केवल अमीर, गरीब दो जातियाँ है। हर धर्म और जाति का अमीर हर स्तर पर आम लोगों का शोषण करना अपना अधिकार मानता है और इसीलिए आज तक सीवर सफाई करने वाले मजदूरों की सुरक्षा के प्रबन्ध नही किये गये है और उन्हें अपने जीवन को जोखिम में डालकर सीवर सफाई के लिए मैनहोल के अन्दर प्रवेश करना पड़ता है। अभी कल ही कानपुर में चकेरी के कृष्णापुरम में बिना सुरक्षा संसाधन के मैनहोल की सफाई कर रहे तीन तीन मजदूरों की जान पर बन आयी थी। इसके पहले अलग अलग जगहों पर मैनहोल की सफाई करते समय सात मजदूरों की मौत हो चुकी है और उन्हें न्यायसंगत मुआवजा भी नही दिया गया। आपको क्यों लगता है कि दलित परिवार में पैदा हुआ बच्चा मैनहोल की सफाई करते हुए मरने के लिए ही पैदा हुआ है ? आदरणीय रश्मि जी आप तो विदुषी महिला है, प्राध्यापक है, आपसेे अपेक्षा थी कि आप मेरी टिप्पणी पर कोई तर्कसंगत टिप्पणी करके मुझे निरुत्तर करेंगी परन्तु आपने तो शालीनता की सीमायें लाँघकर मेरे विरुद्ध अपमानजनक टिप्पणी की है। मैं ब्रम्हाण हूँ या चमार इससे क्या फर्क पड़ता है ? मैंने जो कहा उसका तर्कसंगत प्रतिवाद आपका अधिकार है और मैं उसका सम्मान करता हूँ। अच्छी तरह समझ लीजिये कि दलितों को आरक्षण देकर देश ने उन पर कोई एहसान नही किया बल्कि उन्होेंने आरक्षण लेकर एहसान किया है। आरक्षण आर्थिक समानता से ज्यादा सामाजिक समानता और समरसता स्थापित करने के लिए दिया गया था। अगर मुझसे पहचानने में कोई गलती नही हो रही है तो आदरणीया रश्मि जी आप तो अभी कुछ दिन पहले तक ”बाभन, ठाकुर, लाला चोर.........“ का उद्घोष किया करती थी और अब दलितों द्वारा किये जा रहे कामों को किसी और जाति से कराने की बात सुनते ही चिढ़ने लगी है। मेरा निवेदन है कि आप आदरणीय अमृतलाल नागर के उपन्यास ”नाच्यो बहुत गोपाल“ जरूर पढे़ं, फिर मैं आरक्षण की अनिवार्यता पर आपके साथ, आपके घर पर खुद उपस्थित होकर आपको अपने तर्कों के प्रति सन्तुष्ट करने का प्रयास करूँगा। आदरणीय रेखा जी, आपने और अन्य कई मित्रों ने लगता है कि अभी नया नया राजनैतिक जीवन शुरु किया है और वोट बैंक के लालच में आप सबको दलितों का आरक्षण अखरने लगा है। आप सबने भी कई अभद्र टिप्पणियाँ की है। मैं आप सबको केवल इतना बताना चाहता हँू कि वी.पी. सिंह के प्रधानमन्त्रित्व काल में समाज के अन्दर एक दूसरे के प्रति पैदा हुए जातिगत आक्रोश के विरुद्ध अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ता के नाते संघर्ष किया है और हमें सन्तोष है कि हम लोग के प्रयास सफल हुए और अपना देश एक बड़े जाति संघर्ष से बच गया। एक बात और समझ लो कि अब गरीबों, किसानों, मेहनतकशों को बहुत दिन तक गुलाम बनाये रखना सम्भव नही है। अब वे लड़ रहे है, पढ़ने के लिए और पढ़ रहे है, समाज बदलने के लिए। इसलिए उन्हें मजबूर मत करो कि वे कहें कि ”हम मेहनतकश इस दुनिया से जब अपना हिस्सा माँगेंगे, एक खेत नही, खलिहान नहीं, हम सारी दुनिया माँगेंगे“
No comments:
Post a Comment