आदरणीय सम्पादक जी
आपने सम्पादक के नाते हम सबके अखबार " दैनिक जागरण " मे " कड़ुवा मे बलात्कार नहीं " समाचार को प्रमुखता से छापकर अपने बाबा पूर्ण चन्द्र गुप्त सहित अपने सभी पाठकों के विश्वास के साथ बेईमानी की है । संदीप जी आप अखबार के मालिक सम्पादक है , किसी दल विशेष या बयकति विशेष की प्रशंसा मे समाचार के रूप मे विज्ञापन प्रकाशित करना आपके अधिकार क्षेत्र मे आता है लेकिन विज्ञापन और समाचार का अंतर आपका पाठक जानता है इसलिये अब किसी को खुश करने के लिए विज्ञापन को समाचार के रूप मे छापना बन्द कर दीजिये। अच्छी तरह समझ लीजिये, " जागरण " पढना हम पाठकों की मजबूरी नहीं है ।
हम पाठकों को प्रतीत हो रहा है कि आपको शायद अब याद नही है कि आपके बाबा और पिता ने जेल जाने का खतरा मोल लेकर सर्व शक्तिमान इन्दिरा गाँधी द्वारा थोपी गई इमरजेन्सी के विरोध मे अपना सम्पादकीय पृष्ठ खाली छोड़ कर आम जनमानस की भावनाओं की अभिव्यक्ति की थी । मै नही समझ पा रहा हूँ, ऐसी कौन सी मजबूरी है जो आप " जागरण " की दशकों पुरानी परम्परा का परित्याग करके " जागरण " को किसी दल विशेष का मुखपत्र बना देने के लिए अमादा है ।सम्पादक जी अभी समय है , सुधर जाओ, अन्यथा इसी शहर मे " जागरण " से ज्यादा लोकप्रिय " विश्वामित्र " जैसे हश्र के लिए तैयार हो जाओ।
आपने सम्पादक के नाते हम सबके अखबार " दैनिक जागरण " मे " कड़ुवा मे बलात्कार नहीं " समाचार को प्रमुखता से छापकर अपने बाबा पूर्ण चन्द्र गुप्त सहित अपने सभी पाठकों के विश्वास के साथ बेईमानी की है । संदीप जी आप अखबार के मालिक सम्पादक है , किसी दल विशेष या बयकति विशेष की प्रशंसा मे समाचार के रूप मे विज्ञापन प्रकाशित करना आपके अधिकार क्षेत्र मे आता है लेकिन विज्ञापन और समाचार का अंतर आपका पाठक जानता है इसलिये अब किसी को खुश करने के लिए विज्ञापन को समाचार के रूप मे छापना बन्द कर दीजिये। अच्छी तरह समझ लीजिये, " जागरण " पढना हम पाठकों की मजबूरी नहीं है ।
हम पाठकों को प्रतीत हो रहा है कि आपको शायद अब याद नही है कि आपके बाबा और पिता ने जेल जाने का खतरा मोल लेकर सर्व शक्तिमान इन्दिरा गाँधी द्वारा थोपी गई इमरजेन्सी के विरोध मे अपना सम्पादकीय पृष्ठ खाली छोड़ कर आम जनमानस की भावनाओं की अभिव्यक्ति की थी । मै नही समझ पा रहा हूँ, ऐसी कौन सी मजबूरी है जो आप " जागरण " की दशकों पुरानी परम्परा का परित्याग करके " जागरण " को किसी दल विशेष का मुखपत्र बना देने के लिए अमादा है ।सम्पादक जी अभी समय है , सुधर जाओ, अन्यथा इसी शहर मे " जागरण " से ज्यादा लोकप्रिय " विश्वामित्र " जैसे हश्र के लिए तैयार हो जाओ।
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