Thursday, 26 April 2018

आदरणीय विनोद मिश्र जी


आदरणीय विनोद मिश्र जी
पिछले दो दिन पूर्व एक समारोह मे मुलाकात के दौरान आपने मुझसे पूँछा था कि मै क्या वामपंथी हो गया हूँ? मैने उस दिन मुसकराकर इस प्रश्न का कोई सीधा उत्तर नही दिया । इसी तरह की बात आज फिर एक मित्र ने कही इसलिये मुझे लगा कि इसका उत्तर देना ही चाहिए। विनोद भाई आप मेरे बालसखा है और हम दोनो ने विद्यार्थी परिषद के बैनर तले संगठन मंत्री श्री राजेन्द्र सिंह पुणडीर के नेतृत्व मे भारतीय विद्यालय इंटर कॉलेज आचार्य नगर कानपुर मे 1974 -1975 मेछात्र संघ का चुनाव लड़कर सामाजिक जीवन की शुरूआत की थी ।आपात काल के दौरान सत्याग्रह करके मै जेल गया और आप , गंगा प्रसाद जी , दिलीप शुक्ला आदि सभी लोगो ने तरह तरह के जोखिम लेकर जनता समाचार पत्र बांटे और आम लोगों मे इन्दिरा गाँधी के खिलाफ़ माहौल बनाये रखा ।हम लोग तबसे आज तक एक ही विचारधारा से जुड़े हुये है । हम लोगों ने उस समय भी कांग्रेस को वोट नही दिया जब शहाबुद्दीन को हराने के नाम पर भाजपा प्रत्याशी सोमनाथ शुक्ल की जगह कांग्रेस के नरेश चन्द्र चतुर्वेदी को वोट देने की मुहिम चल रही थी । हम लोग मूलतः दर्शन पुरवा निवासी हैं।मिले बन्द हो जाने के कारण हम लोगों ने सामूहिक गरीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी का श्राप झेला है । सरकारी नीतियों का लाभ अपने आसपास के लोगों को नही मिला ।याद करो अपना साथी राधेश्याम ठिलिया लगाकर जीवन यापन करता है । दर्शन पुरवा के कई ऐसे साथी है जो प्रतिभाशाली होने के बावजूद केवल पिता की बेरोजगारी के कारण पढ नहीं सके और आज फुटपाथ पर छोटा मोटा सामान बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे है।मै आज भी एक मजदूर बस्ती मे रहता हूँ इसलिये गरीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी से मेरा प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता रहता है । मैने मिल बन्दी के दर्द भोगने है इसलिये आरडनेनस फैक्ट्रियों की बन्दी के समाचार मुझे परेशान करते हैं, प्राथमिक विद्यालय ( जहाँ हम दोनो पढे है ) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दुर्दशा देखकर किसी भी सत्ता धारी दल की आलोचना मै अपनी जिम्मेदारी मानता हूँ। विद्यार्थी परिषद का कार्य कर्ता होने के नाते अपने अनुभव के कारण 67 शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त किये जाने के निर्णय को मै गरीब विरोधी मानता हूँ। आसाराम जैसे कथावाचकों को मै संत महात्मा नही मानता । याद करो अपने घर के पास बाजपेयी के मकान मे बालयोगेशवर का आश्रम हुआ करता था । उनके हाई फाई रहन सहन की स्मृतियाँ मेरे मन मस्तिष्क मे आज भी ताजा है और उसी कारण मै इन कथावाचकों को धर्म गुरू नही मानता । अब वो राम रहीम हो , आसाराम या बाबा रामदेव , मेरे लिए सबके सब व्यापारी है जो हम भोले भाले भारतीयों की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर रहे है । विनोद भाई आप बचपन से अभी तक की मेरी यात्रा के साक्षी हो , आप मेरी मानसिकता से परिचित हो , आप लाल इमली के गेट पर मजदूर साथियों के बीच मेरी उपस्थिति का औचित्य समझ सकते हो । " भूखे भजन न होय गोपाल " का भाव हम सबने भोगा है इसलिये किसी भी धार्मिक क्रियाकलाप की तुलना मे " रोज़ी रोटी " की लड़ाई को मै प्राथमिकता देता हूँ और मेरे इस आचरण के कारण यदि आप मुझे " वामपंथी " मानने लगे है तो मुझे कोई आपत्ति नही है। मुझे अपने इस आचरण पर गर्व है । मैने कूछ गलत भी कहा हो तो मै जानता हूँ कि आप बुरा नहीं मानेंगे कयोंकि मित्रों के बीच " नो शारी, नो थैंक्स " की भावना सदा जिन्दा रहती है ।
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23 टिप्पणियाँ
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Devpriya Awasthi सच कहने के लिए वामपंथी होना जरूरी नहीं है। और अगर ऐसा है भी तो बुद्ध व कबीर से बड़ा वामपंथी कोई हुआ ही नहीं है।
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Adv Shree Prakash Tiwari बिना लागलपेट के अपनी बात रखना ही उत्तम है
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दिनेश दुबे सिद्धांत की मान्यता,विचारों और आपको को तिरंगा सलाम ।
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Rewant Mishra रोजी रोटी की ऐसी हर लड़ाई में और हर विचारों में हम आपके साथ है पर समरसता के नाम पर रोटी बेटी के संबंध जैसी भावना को आप कैसे जायज ठहरा सकते है ?????
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Suresh Yadav धार्मिक क्रिया कलापों की तुलना मे रोज़ी रोटी की लड़ाई को प्राथमिकता मिलनी ही चाहिए। जान है तो जहान है। 
यह आचरण मानवतावादी आचरण पहले है और वामपंथ बाद में। हर व्यक्ति जो मानवतावादी है और मानवता को प्रथमिकता देता है, आदरणीय है और उसे अपने इस आचरण पर गर्व होना ही चाहिए।
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Chandel Anshuman Singh सराहनीय प्रतिक्रिया 😊🙏🏻
आजकल पता नहीं क्यों लोग हर बात को राजनीति से जोड़कर देखते हैं ।
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Ajay Sinha मानवीय सिद्धांतों के लिए अडिग रहना ही प्रर्याप्त परिचय है ।
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Sanjay Tewari आप के जीवन का एक हिस्सा जान कर आप के प्रति मेरी सहानुभूति है आप ने अपने जीवन में जो समय जिस विचारधारा को बढ़ाने में लगया आज सरकारों को अपनी सही राय दे जिससे समाज को लाभ हो
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अपने आप अनुवाद किया गया
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Satyendra Shukla Ranu Yatharth chitran kiya ap ne...ap ki nidar shabdawali ka me fen hu.....is liye me bhi prerna se satya aur kathinaiyon ka samna ....
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Suresh Gupta आप जैसे मित्रों को इतना लम्बा लिखने की अवश्यकता 
नहीं है अब भी लिखना पड़े तो लोग आप को नहीं समझे
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Suresh Sachan Great sir ji
महान सर जी
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अपने आप अनुवाद किया गया
4 घंटे
Rakesh Bajpai इश्वर समदर्शी है इस बात पर शंका हो सकती है, पर भूख समदर्शी है इसपर कोई संदेह नही है ।
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Satyavan Singh · 2 आपसी मित्र
Such kahna agar vagavat hai to samjho hum baghi hai
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Prakash Sharma कितनी खूबसूरती से आपने आसाराम बापू और राम रहीम के साथ बाबा रामदेव जी को घसीटा, मुझे पता नही आपने उन्हें कितना देखा कितना जाना,विदेशी औपनिवेशिक व्यापार के विरुद्ध विद्यार्थी परिषद तो सम्भवतः जनजागरण और विरोध प्रदर्शन तक ही सीमित रहे लेकिन स्वदेशी को जिया कैसे जाता है ये स्वामी रामदेव ने दिखाया जनजागरण भी किया लेकिन बाजार में बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को धूल भी चटाई, आज जितनी बड़ी ओपीडी पतंजलि ने हरिद्वार में बनाई है कई कई सरकारे भी मिल कर नही बना सकती, आज लाखो बेरोजगार युवा योग प्रशिक्षक या औषधि वितरक बन कर करोड़ो का लालन पालन कर रहा है आप उन्हें सन्त माने या ना माने, वो भारतीय सन्त सन्यासी परम्परा के प्रतिनिधि हस्ताक्षर है, वे विधिवत सन्यस्त परम्परा स्वीकार कर चुके हैं,वैसे आप अगर ये लिखे की सरकारी व्यवस्था का लाभ आप नही उठा सके तो अचंभा होता है,मुझे ये तो नही मालूम कि आपका कौनसा पंथ है,लेकिन आपकी पोस्ट पढ़ कर ये अवश्य लगता है की भले ही आप पर लाल रंग न चढ़ा हो लेकिन आपको भगवा से नफरत जरूर है, मैने भी अपनी बात सहज रूप में लिखी है अपेक्षा है आप क्रुद्ध नही होंगे
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जवाब दें2 घंटेसंपादित
Indrapal Singh Chauhan शर्मा जी कौशल भाई पर लाल रंग का असर तो रंच मात्र भर नही है। पर यह पूर्णतया बागी है।आपने भूखो को बहुत नजदीक से देखा है। कानपुर की मिलो के बन्दी के बाद एक बहुत बडी संख्या में मजदूरों के परिवारों को उजड़ते बिखरते देखा है।जो परिवार मिलो के चलने के कारण अपने परिवार के बच्चों की पढ़ाई लिखाई कर रहे थे उनकी पढ़ाई बन्द होते तथा एक एक पैसे के लिए मोहताज देखा।दवा इलाज न हो पाने घर गृहस्थी को बेचते हुए लोगो को देखा है।मजदूरों के बेटों को फुटपथपर बैठ कर ठेलिया लगा कर सब्जियां एवं इसी तरह से और कार्य करते देखा है।भाई जी हर सम्बेदन शील व्यक्ति इतना होते स्वं अपनी आंखों से घटित घटनायों को देख हो तो वह कैसे बागी न होजावे।
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Prakash Sharma Indrapal Singh Chauhan जी सब देखने के बाद भी नहीं, वही रंग असर डालता दिख रहा है जिसने मिलें बन्द कराई
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Nareshhs Sharma शर्मा जी ,हर बात पर किसी न किसी पंथ का लेबिल चिपका देना आज आम फैशन बन चूका है किन्तु इससे विचलित हुए बिना मानवीय संवेदना के साथ अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाते रहिये
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Kaushal Sharma कानपुर की कोई भी मिल श्रमिकों की हड़ताल के कारण बन्द नहीं हुई। सभी मिले कांग्रेस और भाजपा की एक समान उदारीकरण की नीतियों के कारण बन्द हुई है । मनमोहन सिंह ने अपने वित्त मंत्रितव काल मे इन मिलों मे उत्पादन बन्द करके श्रमिकों से बिना काम कराये वेतन देने का आत्मघाती निर्णय लिया और उनके बाद अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने इन मिलों मे श्रमिकों को वी आर एस का झुनझुना पकड़ाकर मिलों मे ताला डाल दिया और जमीन बिलडरों को बेच दी ।वी आर एस लेने वाले 90%मजदूर बहाली की ज़िन्दगी जीने को विवश है ।
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Narendra Kumar Singh सही निर्णय समय पर नहीं लिए गए और के के पांडेय अवार्ड लागू होता तो मिलो की हालत सुधरती लेकिन नेताओं ने हड़ताल करके लागू नहीं होने दिया
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जवाब दें44 मिनट
Kaushal Sharma नरेंद्र भाई 
के के पांडेय एवार्ड को रद्द कराने के लिए भारतीय मजदूर संघ के श्री द्वारिका प्रसाद मिश्र, इंटक नेता श्री जमुना प्रसाद और एच एम के पी नेता श्री गणेश दीक्षित की अगुवाई मे लखनऊ बंबई रेल मार्ग अवरुद्ध किया गया था । वामपंथी नेता रवि सिनहा और कांग्रेसी नेता विमल मेहरोत्रा के के पांडेय एवार्ड लागू कराना चाहते थे ।यह सच है कि यदि के के पांडेय एवार्ड लागू हो जाता तो शायद मिले बन्द होने से बच जातीं।
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Narendra Kumar Singh शर्मा जी श्रमिक बस्तियों श्रम कल्याण केंद्र वह TV क्लीनिक के बारे में भी कुछ लिखें
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Bhupendra Kumar Kya antarman me kirti ki adhik lalsa to nahi hai.Ye dotarata ball hai jitna unche uthati hai utnahi niche girati hai
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