आदरणीय विनोद मिश्र जी
पिछले दो दिन पूर्व एक समारोह मे मुलाकात के दौरान आपने मुझसे पूँछा था कि मै क्या वामपंथी हो गया हूँ? मैने उस दिन मुसकराकर इस प्रश्न का कोई सीधा उत्तर नही दिया । इसी तरह की बात आज फिर एक मित्र ने कही इसलिये मुझे लगा कि इसका उत्तर देना ही चाहिए। विनोद भाई आप मेरे बालसखा है और हम दोनो ने विद्यार्थी परिषद के बैनर तले संगठन मंत्री श्री राजेन्द्र सिंह पुणडीर के नेतृत्व मे भारतीय विद्यालय इंटर कॉलेज आचार्य नगर कानपुर मे 1974 -1975 मेछात्र संघ का चुनाव लड़कर सामाजिक जीवन की शुरूआत की थी ।आपात काल के दौरान सत्याग्रह करके मै जेल गया और आप , गंगा प्रसाद जी , दिलीप शुक्ला आदि सभी लोगो ने तरह तरह के जोखिम लेकर जनता समाचार पत्र बांटे और आम लोगों मे इन्दिरा गाँधी के खिलाफ़ माहौल बनाये रखा ।हम लोग तबसे आज तक एक ही विचारधारा से जुड़े हुये है । हम लोगों ने उस समय भी कांग्रेस को वोट नही दिया जब शहाबुद्दीन को हराने के नाम पर भाजपा प्रत्याशी सोमनाथ शुक्ल की जगह कांग्रेस के नरेश चन्द्र चतुर्वेदी को वोट देने की मुहिम चल रही थी । हम लोग मूलतः दर्शन पुरवा निवासी हैं।मिले बन्द हो जाने के कारण हम लोगों ने सामूहिक गरीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी का श्राप झेला है । सरकारी नीतियों का लाभ अपने आसपास के लोगों को नही मिला ।याद करो अपना साथी राधेश्याम ठिलिया लगाकर जीवन यापन करता है । दर्शन पुरवा के कई ऐसे साथी है जो प्रतिभाशाली होने के बावजूद केवल पिता की बेरोजगारी के कारण पढ नहीं सके और आज फुटपाथ पर छोटा मोटा सामान बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे है।मै आज भी एक मजदूर बस्ती मे रहता हूँ इसलिये गरीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी से मेरा प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता रहता है । मैने मिल बन्दी के दर्द भोगने है इसलिये आरडनेनस फैक्ट्रियों की बन्दी के समाचार मुझे परेशान करते हैं, प्राथमिक विद्यालय ( जहाँ हम दोनो पढे है ) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दुर्दशा देखकर किसी भी सत्ता धारी दल की आलोचना मै अपनी जिम्मेदारी मानता हूँ। विद्यार्थी परिषद का कार्य कर्ता होने के नाते अपने अनुभव के कारण 67 शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त किये जाने के निर्णय को मै गरीब विरोधी मानता हूँ। आसाराम जैसे कथावाचकों को मै संत महात्मा नही मानता । याद करो अपने घर के पास बाजपेयी के मकान मे बालयोगेशवर का आश्रम हुआ करता था । उनके हाई फाई रहन सहन की स्मृतियाँ मेरे मन मस्तिष्क मे आज भी ताजा है और उसी कारण मै इन कथावाचकों को धर्म गुरू नही मानता । अब वो राम रहीम हो , आसाराम या बाबा रामदेव , मेरे लिए सबके सब व्यापारी है जो हम भोले भाले भारतीयों की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर रहे है । विनोद भाई आप बचपन से अभी तक की मेरी यात्रा के साक्षी हो , आप मेरी मानसिकता से परिचित हो , आप लाल इमली के गेट पर मजदूर साथियों के बीच मेरी उपस्थिति का औचित्य समझ सकते हो । " भूखे भजन न होय गोपाल " का भाव हम सबने भोगा है इसलिये किसी भी धार्मिक क्रियाकलाप की तुलना मे " रोज़ी रोटी " की लड़ाई को मै प्राथमिकता देता हूँ और मेरे इस आचरण के कारण यदि आप मुझे " वामपंथी " मानने लगे है तो मुझे कोई आपत्ति नही है। मुझे अपने इस आचरण पर गर्व है । मैने कूछ गलत भी कहा हो तो मै जानता हूँ कि आप बुरा नहीं मानेंगे कयोंकि मित्रों के बीच " नो शारी, नो थैंक्स " की भावना सदा जिन्दा रहती है ।
पिछले दो दिन पूर्व एक समारोह मे मुलाकात के दौरान आपने मुझसे पूँछा था कि मै क्या वामपंथी हो गया हूँ? मैने उस दिन मुसकराकर इस प्रश्न का कोई सीधा उत्तर नही दिया । इसी तरह की बात आज फिर एक मित्र ने कही इसलिये मुझे लगा कि इसका उत्तर देना ही चाहिए। विनोद भाई आप मेरे बालसखा है और हम दोनो ने विद्यार्थी परिषद के बैनर तले संगठन मंत्री श्री राजेन्द्र सिंह पुणडीर के नेतृत्व मे भारतीय विद्यालय इंटर कॉलेज आचार्य नगर कानपुर मे 1974 -1975 मेछात्र संघ का चुनाव लड़कर सामाजिक जीवन की शुरूआत की थी ।आपात काल के दौरान सत्याग्रह करके मै जेल गया और आप , गंगा प्रसाद जी , दिलीप शुक्ला आदि सभी लोगो ने तरह तरह के जोखिम लेकर जनता समाचार पत्र बांटे और आम लोगों मे इन्दिरा गाँधी के खिलाफ़ माहौल बनाये रखा ।हम लोग तबसे आज तक एक ही विचारधारा से जुड़े हुये है । हम लोगों ने उस समय भी कांग्रेस को वोट नही दिया जब शहाबुद्दीन को हराने के नाम पर भाजपा प्रत्याशी सोमनाथ शुक्ल की जगह कांग्रेस के नरेश चन्द्र चतुर्वेदी को वोट देने की मुहिम चल रही थी । हम लोग मूलतः दर्शन पुरवा निवासी हैं।मिले बन्द हो जाने के कारण हम लोगों ने सामूहिक गरीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी का श्राप झेला है । सरकारी नीतियों का लाभ अपने आसपास के लोगों को नही मिला ।याद करो अपना साथी राधेश्याम ठिलिया लगाकर जीवन यापन करता है । दर्शन पुरवा के कई ऐसे साथी है जो प्रतिभाशाली होने के बावजूद केवल पिता की बेरोजगारी के कारण पढ नहीं सके और आज फुटपाथ पर छोटा मोटा सामान बेचकर अपने परिवार का भरण पोषण कर रहे है।मै आज भी एक मजदूर बस्ती मे रहता हूँ इसलिये गरीबी बेकारी अशिक्षा बीमारी से मेरा प्रत्यक्ष साक्षात्कार होता रहता है । मैने मिल बन्दी के दर्द भोगने है इसलिये आरडनेनस फैक्ट्रियों की बन्दी के समाचार मुझे परेशान करते हैं, प्राथमिक विद्यालय ( जहाँ हम दोनो पढे है ) और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र की दुर्दशा देखकर किसी भी सत्ता धारी दल की आलोचना मै अपनी जिम्मेदारी मानता हूँ। विद्यार्थी परिषद का कार्य कर्ता होने के नाते अपने अनुभव के कारण 67 शिक्षण संस्थानों को स्वायत्त किये जाने के निर्णय को मै गरीब विरोधी मानता हूँ। आसाराम जैसे कथावाचकों को मै संत महात्मा नही मानता । याद करो अपने घर के पास बाजपेयी के मकान मे बालयोगेशवर का आश्रम हुआ करता था । उनके हाई फाई रहन सहन की स्मृतियाँ मेरे मन मस्तिष्क मे आज भी ताजा है और उसी कारण मै इन कथावाचकों को धर्म गुरू नही मानता । अब वो राम रहीम हो , आसाराम या बाबा रामदेव , मेरे लिए सबके सब व्यापारी है जो हम भोले भाले भारतीयों की धार्मिक भावनाओं का शोषण कर रहे है । विनोद भाई आप बचपन से अभी तक की मेरी यात्रा के साक्षी हो , आप मेरी मानसिकता से परिचित हो , आप लाल इमली के गेट पर मजदूर साथियों के बीच मेरी उपस्थिति का औचित्य समझ सकते हो । " भूखे भजन न होय गोपाल " का भाव हम सबने भोगा है इसलिये किसी भी धार्मिक क्रियाकलाप की तुलना मे " रोज़ी रोटी " की लड़ाई को मै प्राथमिकता देता हूँ और मेरे इस आचरण के कारण यदि आप मुझे " वामपंथी " मानने लगे है तो मुझे कोई आपत्ति नही है। मुझे अपने इस आचरण पर गर्व है । मैने कूछ गलत भी कहा हो तो मै जानता हूँ कि आप बुरा नहीं मानेंगे कयोंकि मित्रों के बीच " नो शारी, नो थैंक्स " की भावना सदा जिन्दा रहती है ।
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