Thursday, 23 August 2018
बिजनेस टुडे ने मुझे गर्व करने का अवसर दिया
Wednesday, 22 August 2018
नेहरू जी को गाली देना आसान, सबक सीखना मुश्किल
नेहरू को गाली देना आसान , सबक सीखना मुश्किल
आजकल देश की प्रत्येक समस्या के लिए नेहरूकाल को कोसने का अभियान जारी है। भाई लोग भूल जाते है कि सैकड़ों वर्षों की गुलामी के विरुद्ध सदियों के अनवरत संघर्ष के बाद आजादी मिली और नेहरू को आम देशवासियों के सपनों का भारत बनाने का अवसर मिला। उन्होंने अपनी नाकामियों के लिए कभी विदेशी शासन का रोना नही गाया बल्कि जो साधन उपलब्ध थे, उन्हीं साधनों के बल पर आधुनिक भारत का निर्माण किया। नेहरू ने आजादी के तत्काल बाद 1948 में भाखड़ा नागल बाँध की परियोजना शुरु कर दी थी। उन्होंने सत्ता संभालने के 3 वर्षो के अन्दर सार्वजनिक क्षेत्र में हिन्दुस्तान एयरोनाॅटिक्स लिमिटेड, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, खड़गपुर में आई.आई.टी., अहमदाबाद में आई.आई.एम., चण्डीगढ़ जैसा बेहतरीन शहर, पंजाब में कृषि विश्वविद्यालय और ओ.एन.जी.सी. जैसे कई आधारभूत परियोजनाओं की शुरुआत कर दी थी। सार्वजनिक क्षेत्र के इन प्रतिष्ठानों के बारे में वे कहा करते थे कि इन्हें मन्दिर कहें, गुरुद्वारा कहें या फिर मस्जिद, यह सब हमारी शासन व्यवस्था और आत्मसम्मान को हौसला देते है और आप सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को विनिवेश के नाम पर बन्द करने का अभियान चला रहे है। आर्डनेन्स फैक्ट्रियाँ और इण्डियन एयरलाइन्स उसका ताजा उदाहरण है। नेहरू ने निजी क्षेत्र के टाटा बिड़ला जैसे उद्योगपतियों की हौसला आफजाई करके कई उद्योगधन्धें लगवायेेें जिससे रोजगार के अवसर बढ़े और देश का आर्थिक विकास भी हुआ है। भइया आप लोगों के कार्यकाल का 4 वर्ष व्यतीत हो चुका हैऔर अब केवल 9 माह अवशेष है परन्तु आप आज भी गाय, गोबर, लव जिहाद, शमसान कब्रिस्तान, मन्दिर मस्जिद और पिछले शासन को कोसने में उलझे हो। भाई आपकी भी आत्मा जानती है कि इन सबसे ”सबका साथ सबका विकास“ नही होगा। नेहरू की तरह देश के पिछड़े हिस्सों में नई नई रोजगारपरक परियोजनाओं की शुरुआत करने और जमीनी स्तर पर प्राथमिक स्कूलों और सरकारी अस्पतालों की दशा सुधारने से गरीबी, बेकारी, अशिक्षा, बीमारी को देश से भगाया जा सकेगा।9 माह बचे है अब चुनावी मोड़ से बाहर आकर कुछ सार्थक शुरुआत करो अन्यथा आपके शासन और यू.पी.ए. के शासन में अन्तर ही क्या रह जायेगा ?
माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश
माननीय सर्वोच्च न्यायालय का यह आदेश कानपुर जेल मे अर्थहीन हो चुका है । विचाराधीन बन्दी अमित गुप्ता के पैर के नाखून जेल मे उखाड़ लिये गये परन्तु कोई कार्यवाही नही हुई , जाॅच के नाम पर शोषक अधीक्षक से आख्या मांगी गई है और उधर जेल के अन्दर अमित गुप्ता पर अमानवीय यातनाओं का कहर बढ गया है ।
Tuesday, 14 August 2018
एस सी एस टी एक्ट में बदलाव पर आक्रोश क्यों ?
एस सी एस टी एक्ट के बदलाव पर आक्रोश क्यो?
सर्वोच्चन्यायालय के निर्णय के प्रतिकूल एस सी एस टी एक्ट मे किये गये बदलावों से मेरे अधिकांश मित्र( जिनमे भाजपायी ज्यादा है ) आक्रोश मे है । वे सबके सब मानते है कि केन्द्रसरकार ने इन बदलावों के द्वारा अपने सवर्ण नागरिकों के मान सम्मान को ठेस पहुँचाई है । मै अपने मित्रों के आक्रोश से सहमत नही हूँ। यह सच है कि मोदी सरकार ने यह निर्णय जमीनी हकीकत या सामाजिक जरुरत को दृष्टिगतरखकर नही लिया है । विशुद्ध राजनैतिक लाभ हानि को ध्यान मे रखकर लिये गये इस निर्णय से दलित नागरिकों की सामाजिक स्थिति मे कोई परिवर्तन नही होगा । एस सी एस टी एक्टके दुरूपयोग से कोई इन्कार नही कर सकता परन्तु उतना ही सच यह भी है कि आज भी अपने समाज मे दलितों केसाथ समानता काब्यवहार नही जाता । उनको नम्बर दो का नागरिक मानने की प्रवृत्ति आज भी जिंदा है । इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आज की जरूरत है जो कानून के भय से पूरी नही हो सकती । 1955- 1956 के दशक मे इस जातीय श्रेष्ठता की प्रवृत्ति के कारण हमारे कानपुर के डी ए वी कालेज छात्रावास मे सवर्ण छात्रों की मेस मे दलित छात्रों को प्रवेश की इजाजत नही थी । उनहें अपने भोजन के लिए अलग से ब्यवस्था करनी पडती थी । कालेज प्रबन्ध तंत्र प्रगतिशील होने के बावजूद इस ब्यवस्था मे परिवर्तन का साहस नही जुटा पा रहा था । छात्रावास के एक दक्षिणभारतीय ब्राह्मण छात्र श्री एन के नायर ने दलित छात्रों को सवर्ण छात्रोंकी मेस मे बराबरी के साथ बैठकर भोजन करने का अधिकार दिलाने का बीड़ा उठाया । सवर्ण छात्रों ने जबरदस्त विरोध किया । एन के नायर पर जानलेवा हमला किया । वे दबे नही , अनतत: भेदभाव खत्म हुआ , सवर्ण छात्रों ने अपनी मेस मे दलित छात्रों का प्रवेश स्वीकार किया और सामाजिक समरसता का मार्ग प्रशस्त हुआ परन्तु अपने शहर प्रदेश या देश के नेताओं ने इस घटना से कुछ नही सीखा जबकि इस प्रकार के सकारात्मक प्रयासो से दलितों की सामाजिकस्थिति मे परिवर्तन लाया जा सकता है ।दलितो के घर मे एक दिन खाना खाने या कठोर कानून बना देने से उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नही मिलेगा । सभी राजनैतिक दलो को अपने कार्यकर्ताओ से कहना चाहिए कि वे ग्रामीणक्षेत्रों में दलित परिवारों के सामाजिक पारिवारिक समारोहों मे बढ चढ़ कर हिस्सा ले और यदि कोई दबंग दलित दूलहो को घोड़ो पर न चढने दे , ढोल नगाड़े के साथ बारात न निकालने दे , तो उसका विरोध करे । किसी भी दल का सवर्ण कार्यकर्ता यह सब नही करना चाहता । मौका पाते ही जातीय श्रेष्ठता से वशीभूत होकर दलितों को अपमानित करने मे देर नही लगाता । मेरे आक्रोशित मित्रो जातीय श्रेष्ठता का अहं त्याग कर जमीनी हकीकत को समझो । दलितो को आरक्षण आपकी कॄपा पर नही मिला , उनहोंने देश विभाजन की एक और साजिश को नाकाम करने के लिए अपने अधिकारों के साथ समझौता करके पूना पैक्ट किया था । आप जैसे बहुत से लोग उस समय भी उन्हे बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं थे । अपने देश मे सी बी आई से लेकर वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण अधिनियम तक सभी के दुरूपयोग की शिकायतें आम हो गई है , इसका यह अर्थनहीं है कि सभी एक्ट समाप्त करके मनमानी करनेकी छूट दे दी जाये । हम सवर्णो की जिम्मेदारी है कि हम सब समाज मे अपने गांव घर के सामाजिक जीवन मे दलितों को बराबरी का दर्जा दिलाने का अभियान चलाये । आक्रोशित मित्रो अपना मन बदलिये , सोच बदलिये , एस सी एस टी एक्ट के दुरूपयोग की आशंकायें स्वत: समाप्त हो जायेगी ।
सर्वोच्चन्यायालय के निर्णय के प्रतिकूल एस सी एस टी एक्ट मे किये गये बदलावों से मेरे अधिकांश मित्र( जिनमे भाजपायी ज्यादा है ) आक्रोश मे है । वे सबके सब मानते है कि केन्द्रसरकार ने इन बदलावों के द्वारा अपने सवर्ण नागरिकों के मान सम्मान को ठेस पहुँचाई है । मै अपने मित्रों के आक्रोश से सहमत नही हूँ। यह सच है कि मोदी सरकार ने यह निर्णय जमीनी हकीकत या सामाजिक जरुरत को दृष्टिगतरखकर नही लिया है । विशुद्ध राजनैतिक लाभ हानि को ध्यान मे रखकर लिये गये इस निर्णय से दलित नागरिकों की सामाजिक स्थिति मे कोई परिवर्तन नही होगा । एस सी एस टी एक्टके दुरूपयोग से कोई इन्कार नही कर सकता परन्तु उतना ही सच यह भी है कि आज भी अपने समाज मे दलितों केसाथ समानता काब्यवहार नही जाता । उनको नम्बर दो का नागरिक मानने की प्रवृत्ति आज भी जिंदा है । इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आज की जरूरत है जो कानून के भय से पूरी नही हो सकती । 1955- 1956 के दशक मे इस जातीय श्रेष्ठता की प्रवृत्ति के कारण हमारे कानपुर के डी ए वी कालेज छात्रावास मे सवर्ण छात्रों की मेस मे दलित छात्रों को प्रवेश की इजाजत नही थी । उनहें अपने भोजन के लिए अलग से ब्यवस्था करनी पडती थी । कालेज प्रबन्ध तंत्र प्रगतिशील होने के बावजूद इस ब्यवस्था मे परिवर्तन का साहस नही जुटा पा रहा था । छात्रावास के एक दक्षिणभारतीय ब्राह्मण छात्र श्री एन के नायर ने दलित छात्रों को सवर्ण छात्रोंकी मेस मे बराबरी के साथ बैठकर भोजन करने का अधिकार दिलाने का बीड़ा उठाया । सवर्ण छात्रों ने जबरदस्त विरोध किया । एन के नायर पर जानलेवा हमला किया । वे दबे नही , अनतत: भेदभाव खत्म हुआ , सवर्ण छात्रों ने अपनी मेस मे दलित छात्रों का प्रवेश स्वीकार किया और सामाजिक समरसता का मार्ग प्रशस्त हुआ परन्तु अपने शहर प्रदेश या देश के नेताओं ने इस घटना से कुछ नही सीखा जबकि इस प्रकार के सकारात्मक प्रयासो से दलितों की सामाजिकस्थिति मे परिवर्तन लाया जा सकता है ।दलितो के घर मे एक दिन खाना खाने या कठोर कानून बना देने से उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नही मिलेगा । सभी राजनैतिक दलो को अपने कार्यकर्ताओ से कहना चाहिए कि वे ग्रामीणक्षेत्रों में दलित परिवारों के सामाजिक पारिवारिक समारोहों मे बढ चढ़ कर हिस्सा ले और यदि कोई दबंग दलित दूलहो को घोड़ो पर न चढने दे , ढोल नगाड़े के साथ बारात न निकालने दे , तो उसका विरोध करे । किसी भी दल का सवर्ण कार्यकर्ता यह सब नही करना चाहता । मौका पाते ही जातीय श्रेष्ठता से वशीभूत होकर दलितों को अपमानित करने मे देर नही लगाता । मेरे आक्रोशित मित्रो जातीय श्रेष्ठता का अहं त्याग कर जमीनी हकीकत को समझो । दलितो को आरक्षण आपकी कॄपा पर नही मिला , उनहोंने देश विभाजन की एक और साजिश को नाकाम करने के लिए अपने अधिकारों के साथ समझौता करके पूना पैक्ट किया था । आप जैसे बहुत से लोग उस समय भी उन्हे बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं थे । अपने देश मे सी बी आई से लेकर वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण अधिनियम तक सभी के दुरूपयोग की शिकायतें आम हो गई है , इसका यह अर्थनहीं है कि सभी एक्ट समाप्त करके मनमानी करनेकी छूट दे दी जाये । हम सवर्णो की जिम्मेदारी है कि हम सब समाज मे अपने गांव घर के सामाजिक जीवन मे दलितों को बराबरी का दर्जा दिलाने का अभियान चलाये । आक्रोशित मित्रो अपना मन बदलिये , सोच बदलिये , एस सी एस टी एक्ट के दुरूपयोग की आशंकायें स्वत: समाप्त हो जायेगी ।
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