Tuesday, 14 August 2018

एस सी एस टी एक्ट में बदलाव पर आक्रोश क्यों ?


एस सी एस टी एक्ट के बदलाव पर आक्रोश क्यो?
सर्वोच्चन्यायालय के निर्णय के प्रतिकूल एस सी एस टी एक्ट मे किये गये बदलावों से मेरे अधिकांश मित्र( जिनमे भाजपायी ज्यादा है ) आक्रोश मे है । वे सबके सब मानते है कि केन्द्रसरकार ने इन बदलावों के द्वारा अपने सवर्ण नागरिकों के मान सम्मान को ठेस पहुँचाई है । मै अपने मित्रों के आक्रोश से सहमत नही हूँ। यह सच है कि मोदी सरकार ने यह निर्णय जमीनी हकीकत या सामाजिक जरुरत को दृष्टिगतरखकर नही लिया है । विशुद्ध राजनैतिक लाभ हानि को ध्यान मे रखकर लिये गये इस निर्णय से दलित नागरिकों की सामाजिक स्थिति मे कोई परिवर्तन नही होगा । एस सी एस टी एक्टके दुरूपयोग से कोई इन्कार नही कर सकता परन्तु उतना ही सच यह भी है कि आज भी अपने समाज मे दलितों केसाथ समानता काब्यवहार नही जाता । उनको नम्बर दो का नागरिक मानने की प्रवृत्ति आज भी जिंदा है । इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाना आज की जरूरत है जो कानून के भय से पूरी नही हो सकती । 1955- 1956 के दशक मे इस जातीय श्रेष्ठता की प्रवृत्ति के कारण हमारे कानपुर के डी ए वी कालेज छात्रावास मे सवर्ण छात्रों की मेस मे दलित छात्रों को प्रवेश की इजाजत नही थी । उनहें अपने भोजन के लिए अलग से ब्यवस्था करनी पडती थी । कालेज प्रबन्ध तंत्र प्रगतिशील होने के बावजूद इस ब्यवस्था मे परिवर्तन का साहस नही जुटा पा रहा था । छात्रावास के एक दक्षिणभारतीय ब्राह्मण छात्र श्री एन के नायर ने दलित छात्रों को सवर्ण छात्रोंकी मेस मे बराबरी के साथ बैठकर भोजन करने का अधिकार दिलाने का बीड़ा उठाया । सवर्ण छात्रों ने जबरदस्त विरोध किया । एन के नायर पर जानलेवा हमला किया । वे दबे नही , अनतत: भेदभाव खत्म हुआ , सवर्ण छात्रों ने अपनी मेस मे दलित छात्रों का प्रवेश स्वीकार किया और सामाजिक समरसता का मार्ग प्रशस्त हुआ परन्तु अपने शहर प्रदेश या देश के नेताओं ने इस घटना से कुछ नही सीखा जबकि इस प्रकार के सकारात्मक प्रयासो से दलितों की सामाजिकस्थिति मे परिवर्तन लाया जा सकता है ।दलितो के घर मे एक दिन खाना खाने या कठोर कानून बना देने से उन्हे समाज मे बराबरी का दर्जा नही मिलेगा । सभी राजनैतिक दलो को अपने कार्यकर्ताओ से कहना चाहिए कि वे ग्रामीणक्षेत्रों में दलित परिवारों के सामाजिक पारिवारिक समारोहों मे बढ चढ़ कर हिस्सा ले और यदि कोई दबंग दलित दूलहो को घोड़ो पर न चढने दे , ढोल नगाड़े के साथ बारात न निकालने दे , तो उसका विरोध करे । किसी भी दल का सवर्ण कार्यकर्ता यह सब नही करना चाहता । मौका पाते ही जातीय श्रेष्ठता से वशीभूत होकर दलितों को अपमानित करने मे देर नही लगाता । मेरे आक्रोशित मित्रो जातीय श्रेष्ठता का अहं त्याग कर जमीनी हकीकत को समझो । दलितो को आरक्षण आपकी कॄपा पर नही मिला , उनहोंने देश विभाजन की एक और साजिश को नाकाम करने के लिए अपने अधिकारों के साथ समझौता करके पूना पैक्ट किया था । आप जैसे बहुत से लोग उस समय भी उन्हे बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं थे । अपने देश मे सी बी आई से लेकर वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण अधिनियम तक सभी के दुरूपयोग की शिकायतें आम हो गई है , इसका यह अर्थनहीं है कि सभी एक्ट समाप्त करके मनमानी करनेकी छूट दे दी जाये । हम सवर्णो की जिम्मेदारी है कि हम सब समाज मे अपने गांव घर के सामाजिक जीवन मे दलितों को बराबरी का दर्जा दिलाने का अभियान चलाये । आक्रोशित मित्रो अपना मन बदलिये , सोच बदलिये , एस सी एस टी एक्ट के दुरूपयोग की आशंकायें स्वत: समाप्त हो जायेगी ।
टिप्पणियाँ
Dinesh Yadav बहादुरीसे औऱ दिलसे हकीकत बयान कियाहै बड़ेभाई जी आपकी हिम्मतकी दाददेनीपड़तीहै,वैसे आप बीजेपीके औऱ संगठनके साथमें होनेकेबादभी ऐसी पोस्ट करतेहैं तभीतो हमसब आपकेसाथमेंही रहतेहैं,भैया जी,राधेराधे
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Nareshhs Sharma आपकी बात से सहमत नहीं ,आज दलितों की स्थिति अधिकाँश सवर्णों से बहुत बेहतर है ,और इतने कठोर कानून को बना कर इन्होने सवर्णों को तो अजाब में डाल ही दिया ,दलितों का भी बड़ा नुक्सान किया I अब उन्हें नौकरी पर रखने या काम कराने से पहले सवर्ण को हजार बार विचार करना पड़ेगा I
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Kaushal Sharma आपका अपना आकलन है । आपको मुझसे असहमत होने का अधिकारहै और मै आपके इस अधिकार का सम्मान करता हूँ।
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Ankit Tiwari
Ankit Tiwari आप आज भी 1956 में जी रहे है ये 2018 है अब जाती वाद ख़त्म हो गया था पर ये लोगो को दूर करेगा आप के जाने वाले पर कभी sc/st लगी है नहीं लगी होगी अबकी लगी तो 6 माह जेल होगी ओर बेग़ुना तो जमानत उसके 6 माह वापस आयेगे ना समझी पोस्ट ना करा करे लोगो को सब पता है
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2 दिन
Santosh Dwivedi कौशल भाई जमीनी हकीकत भिन्न है और फिर सुप्रीम कोर्ट ने कानून समाप्त नहीं किया था सिर्फ बिना राजपत्रित अधिकारी के जांच किये गिरफ्तारी पर रोक लगायी थी। इस एक्ट का 95%दुरुपयोग होता है।
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Kaushal Sharma आदरणीय संतोष जी 
सभी कानूनों का दुरूपयोग होता है लेकिन जमीन पर आज भी दलितों को सामाजिक अपमान झेलना पडता है और उन्हे इस अपमान से बचाने के लिए देश मे कोई सामाजिक तंत्र विकसित नही हो सका है इसलिये कठोर कानून एक मात्र विकल्प रह गया है ।
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Santosh Dwivedi दूसरा पक्ष नजरअंदाज मत करिए। वह भी दर्द है। ऐसा करने वालो को निश्चित रूप से कठोर सजा होनी चाहिए पर जहां 95%अपवाद हो निर्दोष फसाये जाते हो उनके निराकरण का कोई तरीका होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ही केवल विचार किया था
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Rewant Mishra अब तो देश के राष्ट्रपति भी दलित समाज से है , क्या अब भी भेदभाव लगता है ??
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Dinesh Yadav लेकिन क्या बाकी दलितोंकाभी उद्धार होगयाहैकि नहीं?भाईराधेराधे
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Rewant Mishra Dinesh Yadav निश्चित ही जब राष्ट्रपति जी इस पद पर पहुंचे है तो समाज के अंतिम व्यक्ति तक के उत्थान के लिए योजना बनाएंगे
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Dinesh Yadav Rewant Mishra बनाई जाएगीतो फिर हालातको महसूसकरतेहुए वर्तमानस्थितिका मूल्यांकनकियाहै बड़ेभाईने देखरहेहैंकि कितनेलोग पेले डार रहेहैं,राधेराधे
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जवाब दें2 दिन
Kaushal Sharma देश मे सिख राष्ट्रपति के कार्यकाल मे सिखों का नरसंहार हुआ था । किसी एक बयकति के उच्च पद पर पहुँच जाने से उसके समाज की आर्थिक सामाजिक स्थिति मे कोई परिवर्तननहीं आता।
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Suresh Sharma कभी कभी भाई साहब आपकी भी मथुरा गोकुल से न्यारी हो जाती हैं 😊😊
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Aditya Dwivedi 1955 और 56 का उदाहरण दे कर आज कुछ भी साबित नही कर सकते। हमारे बाबा का समय था तब और आज हमारे बेटे का। युग परिवर्तन हो चुका है।
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Kaushal Sharma युग परिवर्तन ने हमारी जातीय श्रेष्ठता के सोच को नही बदला । सोच बदलिये , दलितों को बराबरी का सम्मान देने की आदत डालियेगा , सब अपने आप ठीक हो जायेगा।
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Aditya Dwivedi शर्मा जी बाबा साहब की आत्मा को क्यो दुःखी कर रहे हैं। संबिधान का मूल है कि हज़ार दोषी छूट जाए पर एक निर्दोष को सज़ा ना मिले। sc nd st एक्ट में तो उल्टा है। 70 % निर्दोष जेल जाते है। इस पर भी कुछ ज्ञान दे डालिये।
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जवाब दें2 दिनसंपादित
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Kaushal Sharma मै ज्ञान नही दे रहा हूँ, अपना अनुभव शेयर किया है ।
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Aditya Dwivedi मतलब आपका कहना है कि sc nd st एक्ट में 100% दोषी ही जेल जाते है। एक भी फर्जी मुकदमा नही लगता है। तो फिर क्या प्रॉब्लम है कि जांच के बाद जेल भेजो।
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Kaushal Sharma मै तो एक्ट के दुरूपयोग की बात स्वीकार करता हूँ परन्तु उतना ही यह भी सच है कि अपने समाज मे दलितों को जातीयश्रेष्ठता के दम्भ मे आज भी अपमानित किया जाता है ।
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जवाब दें2 दिन
Aditya Dwivedi तो घुन के साथ गेंहू क्यो पीस रहे है। 
गेंहू के साथ घुन पिस जाए उतना ही बर्दास्त है।
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Surendra Pal Sharma अतीत का दलित वर्तमान का दबंग और फिर करेला नीम चढ़ा हो हिम्मत तो समता ममता समरसता से आंख मिलाकर देखो BJP का निर्णय सर समाज के लिए क्रूरतापूर्ण
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जवाब दें2 दिन
Dayakrishna Kandpal असहमत अब इतना भेदभाव नही है
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Kaushal Sharma कुछ है ना , उसको कैसे समाप्त किया जाये , इस पर विचार विमर्श की जरूरत आप भी महसूस करते है ।
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Dayakrishna Kandpal Kaushal Sharma मानसिकता बदलनी होगी सर वे कहते है हम हजारो साल गुलाम रहेअब हजारो साल आरक्षण चाहिये कानूनी संरक्षण चाहिये क्या इससे जातिवाद मिटेगा
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Kaushal Sharma आप कोई रास्ता सुझाये और फिर हम सब मिलकर उसे साकार करे ।
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Dayakrishna Kandpal Kaushal Sharma मानसिकता बदलने के लिये हीन भावना का त्याग जरूरी है यह मानसिककमजोरी है
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Nikhil Gupta द्वेष बढ़ेगा।
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Geetesh Agnihotri कौशल जी आपकी विद्वता को नमन। कोई कानून खराब नही है। क्यो की इसे हमारे वोटों से चुने प्रतिनिधि लागू करते हैं। बशर्ते दुरुपयोग हो तो पीड़ित को न्याय व मुवावजे का हक भी मिले। और दुरूपयोग करने वाले को दंड। अन्य समाज मे भी कुछ गरीब हैं। तो उनके साथ भी इंसाफ हो।
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Kaushal Sharma मै आपकी इस बात से सहमत हूँ।
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Geetesh Agnihotri धन्यवाद बड़े भाई
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Satyendra Shukla Ranu आप से सेहमत, यह भी देखे सर कैबिन या सीट पर बैठा ब्यक्ति के पास पहुंचते ही उसकी कास्ट और हमारे गाँव शहर पहले दिखता... और पहला शब्द निकलता... आप तो बिरादरी के हो..
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Anoop Gautam बहुत क्रंतिकारी लेख
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Pradeep Shukla प्रसंसनीय संस्मरण श्री एन.के.नायर एड.का बताने के लिये,जागरुकता जरूरी...
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Dinesh Yadav आजका वास्तविकस्वरूप लिखनेकी हिम्मत करनेवालेलोग बहुतज्यादा कमहोगएहैं,इन्हें सम्भाल के रखिए,आईना हैं भाई,राधेराधे
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जवाब दें2 दिन
Arvind Raj Swarup Cpi मैं श्री कौशल शर्मा की पोस्ट से सहमत हूँ।

सवर्णों को आसमान गिरनें का भय नहीं होना चाहिए।


इस 2018 में एक दलित अपनी बारात ठाकुर बाहुल्य गाँव से पुलिस के सहारे ही निकाल सका।
क्यों?
मेरठ में दो दिन पहले एक दलित लड़का खेत रहा।
क्योँ?

फिर किस कानून का दुरुपयोग नहीं हो सकता?
धारा 302 या 307.

जब जातिगत श्रेष्ठता की सोच समाप्त होगी तभी ऐसे कानूनों की ज़रूरत नहीं होगी।

नहीं तो मोदी जी के गुजरात की तरह दलितों को मार मार लठ सुजा दिया जायेगा।

जस्टिस गोयल का फैसला गलत था।
उनको कानून को शिथिल नहीं करना चाहिए था।

संशोधन करना बीजेपी की तो 2019 तक की मजबूरी है।चुनाव यदि 24 में होते तो कानून मंत्री ही कहते अब सुप्रीम कोर्ट नें ये कर दिया वो कर दिया।
बैठे रहते।
श्री रामबिलास , प्रलाप का ड्रामा करते रहते।
सबसे अधिक -ब्राह्मण नहीं- ब्राह्मणवादी इस समय बीजेपी और आरएसएस में ही तो हैं।
इसलिए वो बेहद नाराज हैं।विभिन्न बेतुके पुराने तर्क दे रहे हैं।
उनमें से एक भी राजा राम
मोहन रॉय या ईश्वर चंद्र विद्या सागर नहीं हैं।
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जवाब दें2 दिनसंपादित
Kaushal Sharma भाई साहब मनोबल बढाने के लिए आभार ।
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Abhishek Tripathi दादा आपकी पोस्ट से सहमत नहीं हूं
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Dayakrishna Kandpal हमारे वामपन्थी सामाजिक कार्यकर्ता पी सी तिवरी जी को जिन्दल ने लअपनेसमजदूर कै द्वारा आरोप लगवाकरइसी एक्ट मे जेल डाल दिया बामपन्थी कुछ नहीकरसपाये यहजिन्दल की कम्पनी केसखिलाफ आन्दोलन था
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जवाब दें2 दिनसंपादित
Vijay Gupta आपके विचारों से सहमत हूँ
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Robby Sharma सहमत किंतु अगर SCST Act की झूटी रिपोर्ट मे आजीवन कारावास की न्यूनतम सजा का प्रावधान हो तभी झूटी रिपोर्ट रुकेंगी। आप तो वकील हैं IPC की 181 मे कुल 6 माह सजा बिलकुल बेकार है। IPC की धारा 211 का लाभ पीड़ित उठा नहीं सकता क्योंकि Cr PC मे उचित प्रावधान नहीं है जिससे 211 का मुकदमा लगाया जा सके। सुप्रीम कोर्ट ने 80 % सामान्य जनता के जीवन के अधिकार की रक्षा की थी क्या गलत किया था। आप वकील हैं आप लोगों की भीड़ कभी वकील की गिरफ्तारी नहीं होने देती इसलिए उपदेश।
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Jitendra Kumar Pandey कानून कोई खराब नहीं होता हैं जब उसका दुरुपयोग होता है तब स्थित खराब होती मुझे लगता हैं कि F I R दर्ज होने के बाद अभियुक्त की गिरफ्तारी तुरंत हैं लेकिन विवेचना या कोर्ट केस के बाद यदि अभियुक्त निर्दोष होगा तो उसकी गरिमा कौन वापस करेगा क्या अभियोजन धारा १८२ जा० फौ० में कार्य वाही करेगा आदरणीय आज भी सोनकर पासी कोरी काछी धानुक आपस में एक दुसरे से विवाह नहीं करते हैं।
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Kaushal Sharma क्या ब्राह्मणो मे कान्यकुबज और सरयू पारी का भेद नही है ?
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Jitendra Kumar Pandey आपने धारा १८२ पर कोई टिप्पणी नहीं किया और हमने यह प्रश्न इसीलिए उठाया है।
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Arvind Raj Swarup Cpi मैं एक पत्रकार की 10 महीनें पुरानी रिपोर्ट डाल रहा हूँ।
देखें।


RAI SENGUPTA | 29 NOVEMBER, 2017

2017 Timeline of Atrocities Against Dalits: UP, Rajasthan Top The List

A Crime Against Dalits every 15 minutes in India

NEW DELHI: A crime is committed against Dalits every 15 minutes in India. And six Dalit women are raped every day, according to official statistics that register a 66% hike in atrocities in the past ten years 2007-2017. The situation has worsened, with a further spike in anti-Dalit violence, over the past four years.

The timeline for 2017 till date is a matter of shame for democratic India that has still not come to terms with its repressive caste system:

May 5- Mass attack on Dalits in Shabbipur village, Saharanpur. 1 person killed and 15 people injured in clashes between Dalits and upper caste Thakurs.

May 7- Dalit groom allegedly beaten up for "daring" to take a decorated car to his wedding venue, in Chhatarpur District, Madhya Pradesh. The groom and 6 others of the wedding party were thrashed.

May 2017- People belonging to Scheduled Castes in Uttar Pradesh's Kushinagar District given soap and shampoo by the local administration to clean themselves ahead of a visit by CM Yogi Adityanath.

July 3 2017- 31 Dalit activists who had called a press conference in Lucknow to talk about past atrocities against Dalits arrested- as they had planned to march later towards Uttar Pradesh Chief Minister Yogi Adityanath's house - which then did not have permission for.

July- Maharashtra's Marathwada district- Dalits denied dignity even in death - no place given for cremation and burial grounds- on account of failure of the state government.

July 2 – A report by National Commision for Scheduled Castes reported that atrocities against Dalits have been on the rise in Kerala. 883 cases of atrocities between June 2016 and April 2017

September 25 - Piyush Parmar, 25 years old, allegedly thrashed by the members of the Rajput community - Gujarat

September 29- Krunal Magheria, 30 years old, thrashed for sporting a moustache in a Gujarat village.

September 30- 5 Dalits assaulted in a Vijaya Dashami procession in Belur Taluk, Karnataka

October 1- 21 year old Dalit man allegedly beaten to death by a group of men belonging to the upper caste Patel community for attending a garba event

October 3- 17 year old Dighant Magheria attacked by two bike borne men in a Gujarat village who slashed his back with a blade.

Broad trends:

Over the last ten years (2007-2017), there has been a 66% growth in crimes against Dalits. Further, data from the National Crime Record Bureau (NCRB) shows that the rape of Dalit women has doubled in the last 10 years.



(Source: India Exclusion Report 2013-14)

In 2006 the total number of crimes against dalits was 27,070, which became 33,719 in 2011. While in the period 2008 to 2012, the figures were mostly static -in the last five years (2013-2017) nearly 33,659 average number of cases of crime against dalits were registered.

Among last 10 years, this number is highest in 2014, which is nearly 47,064 followed by 2015 and 2013. According to the data, in every 15 minutes one crime against dalit takes place in India. Clearly such a statistic indicates that the change in government has not contributed to a decline in Dalit atrocities. Furthermore, the figures are on the rise.



(Source: National Crime Records Bureau 2014)

Crimes against Dalits rise by 19% in 2014 on top of a 17% rise in 2013. To illustrate further, in 2014 - 744 Dalits murdered and in 2013- 676 Dalits were murdered. Rates of crimes against Dalits have surpassed the national average in as many as 10 states in 2013 and 2014.



Data from the National Crime Record Bureau (NCRB) shows that the rape of Dalit women has doubled in the last 10 years. According to the NCRB data from 2015, every day, six dalit women are raped in India. This is starkly different from 2006 when nearly three rapes of dalit women were registered a day. This shows that in last 10 years rape of dalit women doubled.

Further, it is important to remember that these figures should not be taken at face value. The number of cases registered is but a fraction of actual number of crimes that take place. In many instances, these crimes do not get reported due to non cooperative police and judicial machinery, shame and social stigma, and the fear of retaliation by the upper castes.



(Source: The Hindu)

In terms of atrocities against Dalits, Uttar Pradesh is in the lead, accounting for 17% of the crimes against the 20% of India’s Dalit population that it houses. In Rajasthan, more than half of the total crimes in the state have a Dalit victim. Bihar too has abysmal record, where 2 out of every 5 crimes committed are targeted towards Dalits.

The numbers reveal a mindset that is deeply entrenched in the caste system; a mindset revels in a sense of superiority arbitrarily granted at birth. They reveal an India that remains deeply regressive in is thinking and capable of unthinkable acts of barbarism and savagery. To these figures and to the countless other unreported stories of torture and oppression faced by the Dalits on a regular basis, it is difficult to reconcile the image of India as a progressive nation that sends satellites to space and engineers bullet trains. So much for unity in diversity.

(Cover Photograph: Dalits being beaten for skinning cow carcass in Una, Gujarat last year)
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Adv Satish Chandra Srivastava Are you not understand future it say spoon
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Randhir Sishodiya प्रियवर मैं गाँव के परिवेश में पला बढा हूँ अमूल चूल परिवर्तन हुआ है कल का दलित आज गाँव का दबंग है क्योंकि शिक्षा में आरक्षण के साथ मोटी छात्रवृति ,शिक्षा के बाद नौकरी मे आरक्षण, नौकरी में पदोन्नति का आरक्षण । दलित एक्ट की झूठी रिपोर्ट लिखाने पर मुआवजा राशि ये सब सहूलियतें हम आम लोगों के टैक्स से आखिर इतना अन्याय संविधान को ताक पर रख कर सामाजिक क्रांति का वातावरण राजनेताओं की नासमझी से बनाया जा रहा है ।
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Amit Bajpai आर्थिक आधार पर आरक्षण सभी जातियों को देना चाहियें पर वोट बैंक के कारण नेता आरक्षण की समीक्षा तक नही कर सकते ।
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DrDhirendra Kumar Dohare आज के समय मे हम सबको पूर्वाग्रह से बचना चाहिए.. कि वह ब्राम्हण, ठाकुर बनिया,ओ बी सी,एस सी,एस टी ,मुसलमान..आदि है तो ऐसा ही होगा😊....काबुल में सब घोड़े नही होते ☺️☺️..भारत के संविधान में जाति,धर्म,भाषा,छेत्र,लिंग, रंग,ग़रीब, अमीर,शारीरिक बनावट के आधार पर भेदभाव पर प्रतिबंध है..क्रपया एस सी एक्ट के अध्ययन हेतु नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्योरो जो भारत सरकार की संस्था है इसके आकड़ो का ईमानदारी से आकलन करे.... तब पता चलेगा कि इस एक्ट में क्या होता है,कितने मुक़दमे लिखें जाते है ,कितने में फ़ाइनल रिपोर्ट जाती है,कितने में चार्जशीट होती है,कितने दबाव में समझौता कराया जाता है व सज़ा कितने में होती है..😢....भाई साहब लोगो आप सब लोग दलित समाज का दर्द महसूस कब करोगे..क्रपया घृणा न कर उनके प्रति संवेदनशील बनिये..
एक सत्य बताये इस एक्ट में जो मुकदमे लिखे जाते है वे हमारे सवर्ण भाइयो से दोस्ती के कारण लिखे जाते है क्योंकि वे अपने दुश्मनों को परेशान करने के लिए दलितों का दुरुपयोग करते है....वास्तविक मुकदमा तो दर्ज ही नही हो है...☺️आज श्रेदेय कौशल शर्मा जी ने जो विचार दिए है तार्किक है यदि यह विचार उनके मन, कर्म,वचन से है तो मैं उनको सादर जय भीम,जय भारत,जय संविधान, जय लोकतंत्र कहना चाहते हूँ और मुझे गर्व मैने उनको कई सामाजिक कार्यकर्मो में मंच देकर कोई उपकार नही किया है वे इकसे लिए उपयुक्त व्यक्ति है।।।....☺️डॉ धीरेंद्र कुमार दोहरे।।
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Paras Nath Pandey आज भी अब भी सन्देह है तो यमराज पर भरोसा करें। सब ठीक कर देगा।
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DrDhirendra Kumar Dohare दुनिया मे यदि "संदेह" न होता तो कोई आविष्कार नही होता😊...तर्क व वैज्ञानिक ज्ञान उत्तम ज्ञान है....अप्प दीपो भवः...अर्थात अपना दीपक स्वयं बने.।।।
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Sanjay Kumar Singh आप न केवल उम्र,ख्याति व अनुभव में बड़े हैं बल्कि आपका अतीत भी वर्तमान व भविष्य रुपी भवन को अपेक्षाकृत हमारी, मजबूती प्रदान करता है। हम आप से 90% सहमत होते हैं बावजूद इसके आपसे आग्रह है कि 10% अपने पूर्वाग्रह से बचते हुए वर्तमान में स्वयं का अवलोकन कर संदेश देते रहें। हम नवयुवा को एक संजीवनी बुटी की तरह ये काम करेगा किन्तू जिस दिन इंसानी फितरत ये घर कर जाये की जो हम देख रहे हैं, सोच रहे हैं, बोल रहे हैं सिर्फ वही सत्य है फ़िर सामने वाले की प्रगति व आपकी ख्याति अवरोधक बन जायेगी। 
कभी कभी मुझे ऐसा एहसास होता है की आपकी लेख वर्तमान में लिखी गयी नही बल्कि 40 -50 वर्ष पुर्व का है। जो आपने देखा व शत प्रतिशत महसूस किया है। आज बदलाव काफी आ चुका है इसलिये नही की भूत व वर्तमान की सरकार नें उन्हें कुबेर की खान सौंप दिया हो बल्कि उनके स्वयं के बदलाव व हमारी सोच की बदलाव का नजरिया है किन्तु किसी भी नट बौल्ट की चूरी उतनी ही टाईट की जाती है ताकि वो स्लिप न हो जाये। काश! आप कभी गरीब, असहाय, पिछड़े व वंचित स्वर्ण की दुर्दशा को भी समझते।
मेरी भावना आप बखुबी समझते हैं। आशा करता हुँ आप समझ गये होंगें। विचार वर्तमान में ऐसे दीजिये जो आतित की सिर्फ आपकी पूंजी नहीं बल्कि वर्तमान की भी समावेश हो।
आपका दिन शुभ हो।
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Chandra Shekhar Singh अगर आरोप सिद्ध नही है तो हरिजन को गिरफ्तारी तुरन्त ही करना चाहिए
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DrDhirendra Kumar Dohare क्रपया विचारों के आदान प्रदान के समय उचित संवैधानिक शब्दों का प्रयोग करे..क्रोध,तैस,जातिय श्रेष्ठता के दम्भ में कही एस सी एसटी एक्ट के दायरे में न आ जाये..😊😊 सोशल मीडिया विश्व्यापी मीडिया है...
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Prakash Chandra Shukla Pankaj अभी आप पर कोई दलित झूठा अरोप लगा दे और आपको बिना जॉच के अन्दर कर दिया जाय तब आपको एहसास होगा. .
जब खुद पर बितती है तब पता चलता है यहॉ ग्यान देना असान है
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Subodh Chopra Nice post .
नाईस पोस्ट ।
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अपने आप अनुवाद किया गया
1 दिन
Prem Kumar Tripathi अगर कड़ा कानून बनाने की मंशा है तो बिना जांच के गिरफ्तारी के साथ बिना मुकदमा चलायें सजा का प्रावधान क्यो नही किया गया।
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जवाब दें1 दिनसंपादित
Kaushal Sharma भाई साहब
एस सी एस सी एक्ट के बदलावों पर लोगों के आक्रोश के कारण असली मुद्दे पर चर्चा शुरू ही नही हो सकी । मूल मुद्दा है , सामाजिक जीवन मे दलितों को हेय दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति? इसमे बदलाव कैसे आये ? हम किसी दलित का सम्मान करें या न करें लेकिन उसे उसे हेय दृष्टिसे देखने का अधिकार किसी को नही है । इस विषय पर चर्चा की जरूरत है और उस पर चर्चा से हम कतरा रहे है ।
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Prem Kumar Tripathi Kaushal Sharma कौशल जी यह सही है कि लोगों की मानसिकता बदलने की आवश्यकता है परंतु यदि लोगों को झूठे मुकदमों में फसाने की प्रवृत्ति जारी रही तो यह नफरत और भी बढ़ने की संभावना है मेरी दृष्टि में एक ही उपाय है कि शिक्षा का जोर शोर से प्रचार पढ़े लिखे लोगों के बीच में यह प्रवृत्ति कम होती जा रही है। आज की नौजवान पीढ़ी जो पढ़ लिखकर बाहर किसी जाम में लगी हुई है वह शादी ब्याह करने में भी परहेज नहीं कर रहे। इसके अनेकों उदाहरण मेरे सामने हैं आपको बता दूं कि छात्र जीवन में जब मैं कानपुर पढ़ाई लिखाई के लिए आया था तो मेरे गांव में भी इस तरह की प्रवृत्ति बहुत जोरों पर थी और मैंने इसका पुरजोर विरोध किया था आप तो जानते ही हैं कि मैं और हमारे कई साथी अनुसूचित जाति के लोगों को ही आगे बढ़ाने के कार्य में लगे रहे हैं।
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जवाब दें14 घंटेसंपादित
Paras Nath Pandey खेद है आप के विचारों पर जो दूसरे पक्ष की गरिमा का ध्यान न रखे ।
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Ajay Sinha आपकी 1955-56 की नस्लवाद कथा छू गई । यही पूरे देश में हुआ है । जगजीवनराम सम्पन्न किसान परिवार से थे पर BHU के मेस में उन्हें अपनी थाली खुद ही धोनी पड़ती थी ।
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Adv ShreePrakash Tiwari · 9 आपसी मित्र
उत्तम एवं सामयिक सलाह
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