Tuesday, 17 October 2017

युवा पीढ़ी को दोष मत दो..........


युवा पीढ़ी को दोष मत दो...........
आदरणीय शम्भूनाथ जी ने आज की युवा पीढ़ी के चाल चरित्र और चेहरे पर अप्रिय टिप्पणी की है। मेरी हैसियत उन्हें जवाब देने की नहीं है परन्तु मैं उनसे निवेदन करता हूँ कि आज का युवक हमारी आपकी युवावस्था के दौर से ज्यादा जोरदार संवेदनशील जुझारू और र्इमानदार है, अपनी मेहनत के बल पर सबकुछ पाना चाहता है। तिकड़मो मे नही अपने टेलेन्ट पर विश्वास करता है। हमने उसे सुविधा, स्वार्थ और लालच का माहौल दिया है। उसके आस पास राजा भर्इया, ए राजा, सुरेश कडमानी, श्रीनिवासन जैसे लोग रहते है। इसलिए अब विश्वविधालयों में रामबहादुर राय, अतुल अन्जान, अरूण जेटली, रवि शंकर प्रसाद, रंजना प्रकाश, मार्कन्डे सिंह, चंचल, अनुग्रह नारायण सिंह, ब्रजेश कुमार, भरत सिंह जैसे हर जोर जुल्म के टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है, का उदघोष करने वाले छात्रनेता पैदा नही हो रहे है, पैदा हो रहे है पी.डब्ल्यू.डी. के इनिजनियरों के यहाँ हाजरी लगाकर ठेका पाने और फिर उसकी कमार्इ से चुनाव लड़ने वाले ठेकेदार। भार्इ साहब आपने मुझसे एक बार कहा था कि 45 वर्ष की आयु से ज्यादा वाले लोग दिनमान, सारिका और इलेस्टे्रटेड वीकली की बात करते है। मैं आज पुन: दोहराना चाहता हूँ कि यदि दिनमान, सारिका या वीकली मे छपने वाली सामग्री आज किसी मैग्जीन मे छपेगी तो निशिचत रूप से 18 से 25 वर्ष आयु वर्ग का युवक उसे पढ़ेगा। हमने अपने से बाद वाली पीढ़ी को कोर्इ आदर्श नही दिया, विश्वविधालयों से कोर्इ आदर्श नेतृत्व पैदा ही नही होने दिया। अब तो संसद में भी डा. लोहिया, ज्योर्तिमय बसु, मधुलिमये, ए.के. गोपालन चुनकर नही आते। अपनी पीढ़ी ने बच्चों को केवल समझौता करके आगे बढ़ने का माहौल दिया है इसलिए उसे दोषी न बताये। उसका चाल, चरित्र और चेहरा अपनी पीढ़ी से ज्यादा देदीप्यमान है। दोषी हम और आप है, अपनी पीढ़ी है, वास्तव में हमें अपना चाल चरित्र और चेहरा बदलने की जरूरत है।
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Sanjay Kumar Singh आपका ये दिल का आवाज ही नहीं ,उनके लिये सन्देश भी है ..
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12 घंटे
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बार एसोसियेशन में भी चुनावी खर्चो पर अंकुश जरूरी


बार एसोसिएशन मे भी चुनावी खर्चों पर अंकुश जरूरी इस वर्ष के चुनाव बेलगाम खर्च के लिए भी याद किये जाँयेगे। अध्यक्ष और महामंत्री पद के प्रत्याशियों को अपने समर्थकों का सदस्यता शुल्क जमा करने से लेकर मतदान वाले दिन लंच पैकेट बँटवाने तक बीस से पच्चीस लाख रूपये का ब्यय करना पडा है ।कोई प्रत्याशी स्वेच्छा से हँसी खुशी 12 महीने के कार्य काल के लिए इतना रूपया खर्च नहीं करना चाहता परन्तु प्रतिद्वन्दिता मे उसे उचित अनुचित सब करना पडता है।खुशी की बात ह कि  इस बार चुनाव खर्चो मे बेतहाशा वृद्धि की सभी ने निन्दा की और पूरे शहर मे होर्डिंग बैनर लगाने या रोज रोज के भणड़ारो को अनावश्यक ब्यय बताया है इसलिये इन चिंताओं को संसथात्मक रूप देना और संस्था के स्तर पर अंकुश लगाना समय की जरूरत है ।
इस चुनाव मे महत्वपूर्ण पदों पर अदालत के सामने मुकदमे लड़कर जीवन यापन करने वाले लोग जीते है , उन्हें पता है कि बीस पच्चीस लाख रूपया खर्च करना कितना मुश्किल है इसलिये पूर्व अध्यक्ष और महामंत्रियो की एक समिति बनाई जाये जो विभिन्न पहलुओं पर विचार करके चुनाव खर्च की एक सीमा निर्धारित करे और ऐसा कोई निगरानी तंत्र विकसित करने का भी सुझाव दें ताकि निर्धारित सीमा से ज्यादा खर्च करने वालों पर प्रभावी अंकुश लगाया जा सके ।हम सब लोगों को अपने-अपने स्तर पर बधाई संदेशों के पोस्टर चिपका कर कचहरी की दीवारों को गन्दा न करने की शपथ भी लेनी चाहिए।
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Pooja Gupta Absolutely right sirji
एकदम सही है सरजी
अपने आप अनुवाद किया गया
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Ravindra Misra Chhama chahuga bade bhai is yachh prasan ka uttar ap seniors K pas hai apka jo bhi adesh hoga hm sabhi apke sath chal padege
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Ganga Prasad Yadav निश्चित रुप से अंकुश सख्ती के साथ लगाने की आवश्यकता है प्रतिस्पर्धी दौड़ मे अन्धे प्रत्याशी एक दूसरे की व्यक्तिगत आलोचना करने में सारी हदें पार कर जाया करते हैं स्व.गोपी श्याम जी एवं V.NKapor जी बात चली तो बता रहे थे कि बार मे अध्यक्ष/महामंत्री पदों के लिए हाथ उठाकर सहमति बना कर कई वर्षों तक एक ही अधिवक्ता को पद पर कार्य के लिए तैयार करते/मनाते थे मैंने उत्सुकता वश ABVP का उदाहरण दिया चूंकि उस समय मैं ABVP की पाठशाला से निकला था मुझे अच्छा लगा मैंने ऐसे ही स्वस्थ माहौल में अपनी जीवन की बहूमूल्य निधि को खपाया था विद्यार्थियों के साथ कई तरह के अनुकूल/प्रतिकूल वातावरण में कार्य करने का प्रर्याप्त सकारात्मक अनुभव प्राप्त कर चुका था
लेकिन बहुत ही निम्न स्तर से पारिवारिक माहौल Acadamic न होने के कारण तात्कालिक जीविकोपार्जन की समस्या के समाधान के
फलस्वरूप कलक्ट्रेट मे SDM के आधिनस्थ अस्तित्व बचाने के लिए अस्थायी नौकरी भी कि किंतु वहां भी समस्या से समझौता नहीं किया अपने साथ हमारी तरह कार्य कर रहे90लोगों का अनवरत साथ
विश्वास लेकर उनके सहयोगी केरूप मेंकार्य किया लेकिन हमारे आदर्श हमेशा गोपी श्याम जी व कपूर साहब रहे मैंने अस्थायी से स्थायी होने की ओर आकर्षित न होकर अधिवक्ता वृत्ति को ही श्रेष्ठ माना और !लेकिनआज जब स्वार्थ, सम्मान के खोखले पन को देखकर मन स्वाभाविक रूप से खिन्न जरुर होता है लेकिन फिर वह लोग,बाते याद आती हैं तो लगता हैं कि सब ठीक होगा धुन्ध छटेगी खोखली,घटिया मानसिकता वालों का निश्चित पर्दाफाश होता दिखने लगेगा!ईश्वर के घर देर जरूर है अन्घेर नहीं।
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Sudhakar Mishra बार एसोसिएशन चुनाव भी छात्र संघ चुनाव के अंदाज़ में हो रहे हैं जो इसकी गरिमा के प्रतिकूल व चिंताजनक है !
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Adv Manharan Gopal Awasthi शर्मा जी,आपने बहुत ही महत्वपूर्ण विषय की ओर ध्यान आकृष्ट कर समाज की चैतन्यता को झकझोरने का प्रयास किया है।समाज को दिशा देने वाले बौद्धिक समाज मे हंस पर आरूढ़ देवी सरस्वती की जगह पर जब उल्लू पर आरूढ़ होकर देवी लक्ष्मी का आगमन होता है,तो निश्चित हीबौद्धिकता प्रभावित हो प्रतिनिधि चयन को दूषित करती है,परन्तु मेरा अभिमत है कि किसी नियमावली से इसे पूर्णतया समाप्त नही किया जा सकता क्योंकि समाज की मोह ग्रस्तता के बिना यह प्रभावी नही हो सकताअतः आवश्यकता इस बात की है कि आप समान विचारधारा के लोगों को लेकर एक अभियान भी चलाएं की हमारी मोह ग्रस्तता से हम अयोग्यता का भी चयन कर लेते है जो समाज के लिए अहितकर है, हमारा द्र्ढ विश्वास है की समाज का बहुत बड़ा वर्ग आपसे सहमत होगा और आप चुनाव में धन के प्रयोग को रोकने में सफल होंगे।
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Adesh Srivastava · 8 आपसी मित्र
अध्यक्ष या महामंत्री या अन्य पदों हेतु चुनाव खर्च निश्चित हो प्रचार का माध्यम निश्चित हो, यदि कोई नियम अनदेखी करे तो उसको चुनाव से बाहर निकाल देने की प्रक्रिया हो, ता की आम प्रेक्टिस लॉयर भी चुनाव लड़ने की हिम्मत कर सके।पूर्व अध्यक्ष महामंत्री की समिति हो जो नियमों की निगरानी करे तथा अधिवक्ता हित मे निर्णय ले सके।
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Sandip Kumar Singh आप सही कह रहे है पहले प्रचार सिर्फ कोर्ट परिसर तक सीमित था आज पूरा शहर कम पड़ रहा है चिंतन एवम् मनन योग्य तथ्य है अधिवक्ता समाज के लिए।
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Sudhir Kumar Mishra शर्मा जी का बहुत अच्छी बात है 
चुनाव पर नियंत्रण अति आवश्यक है, चुनाव खर्च का तरीका अत्यधिक गलत है जिसके कारण अन्य प्रत्याशियों पर एवं मतदाताओं पर एक अप्रत्यक्ष दबाव रहता है जो कि चुनाव परिणाम को प्रभावित करता है.... निष्पक्ष एवं पारदर्शितापूर्ण चुनाव के लिए अति आवश्यक है कि संस्था के चुनाव का खर्च व तरीका नियंत्रित करना आवश्यक है... 🙏🙏
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Adv Rajeev Nigam Sir पूरे चुनाव को कुछ पूंजीपतियों ने हाइजेक कर लिया है जीतने के बाद पूरे शहर में दलाली का प्रचार किया जाता है यही से भरस्टाचार शुरू होता है
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Sarvesh Kushwaha आप ने सही कहा सर जी ,हर वर्ष बढ़ता जा रहा है।compition हो रहा है। गंभीर चिंतन की आवश्यकता है।
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Sudhir Kumar Mishra Kripya elder Committe dhyan de.. Kya chunao ki Ye tasweer sahi hai jaisa ki chal raha hai... 
Kuch sakkht kadam uthane ki aawasyakta hai.....
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Narendra Kumar Yadav कौशल जी जब तक आम अधिवक्ता अपनी अंतरात्मा को जागृत नही करेगा तब तक ये महंगे चुनाव नहीं रुकेगे।
अधिवक्ता अपना चंदे का पैसा स्वयं जमा करे। प्रत्याशीयों के भनडारा मंहगी दावत गिफ्ट आदि का बहिष्कार करें।
साफ सुथरी छवि के ईमानदार प्रतयाशी का चुनाव करे।
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12 अक्टूबर को 09:06 अपराह्न बजे
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Kaushal Sharma एकदम सही बात कही है आपने , अपना सदस्यता शुल्क खुद अदा न करने वाले भाइयों से निवेदन है कि अब अगले चुनाव के लिए अपना सदस्यता शुल्क खुद अदा करें । इसके बाद खुद ब खुद सुधार आ जायेगा और खुद को भी अच्छा लगेगा।
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Sanjay Kumar Singh भैया,
बिल्ली के गर्दन में घंटी बांधना कोई आसान काम नही है फिर भी मैंने कानपुर बार एसो.में चुनावी खर्च को आम सहमति के माध्यम से नियंत्रित करने की प्रार्थना पत्र दिनांक 29/07/2017 को दी थी पर हुआ क्या 'ढाक के तीन पात....'
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Ashwani Anand बाते लिखना chunav समाप्त होने के बाद ,फेसबुक पर लिखना बहुत aasan है lekin जब baste पर bebhaav poster चिपकाये जाते है लान party ,एवं hotel party ,तब किसी ने भी नही लिखा क्या, मोडल बालाज ,में इसका उल्लेख है जो यह सब करे उसका bycot करो अपने आप सुधार हो जाएगा
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Sanjay Kumar Singh भैया,
बिल्ली के गर्दन में घंटी बांधना कोई आसान काम नही है फिर भी मैंने कानपुर बार एसो.में चुनावी खर्च को आम सहमति के माध्यम से नियंत्रित करने की प्रार्थना पत्र दिनांक 29/07/2017 को दी थी पर हुआ क्या 'ढाक के तीन पात....'
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Sudhir Kumar Mishra आपने प्रार्थनापत्र देकर सलाह दी है कि चुनाव खर्च का निर्धारण किया जाये साथ ही यह भी लिखा है कि आप एल्डर कमेटी की कार्यप्रणाली से संतुष्ट हैं जब सब कुछ सुचारू रूप से ठीक चल रहा है तो एल्डर कमेटी क्यों विचार करेगी भाई...
जबकि अनावश्यक पूरे शहर में चुनाव 
का प्रचार प्रसार किया जाता है तथा प्रभावशाली लोगों को शामिल कर अपनी अनावश्यक ताकत का प्रदर्शन किया जाता है तथा खर्च इस प्रकार किया जाता है जिससे विपक्षी प्रत्याशी को दीन हीन साबित कर चुनाव प्रभावित किया जा सके... ऐसी प्रथाओं पर रोक लगनी चाहिए धनराशि एवं प्रचार प्रसार का दायरा तय होना चाहिए पालन न करने वाले को चुनाव से कम से कम तीन वर्ष के लिए प्रतिबन्धित होना चाहिए.....
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Sanjay Kumar Singh अपने से बड़ो से आप कोई शिकायत नही सिर्फ आग्रह ही कर सकते हैं यही हमारे संस्कार में है भाई
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