Friday, 28 July 2017

मैं डी.ए.वी. कालेज कानपुर


मैं ड़ी ए वी कालेज कानपुर
आज बहुत खुश हूँ । हमारे आँगन के एक फूल ने देश के महामहिम राष्ट्रपति पद की शपथ लेकर सम्पूर्ण विश्व मे अपनी खूशबू बिखेर दी है । इसके पहले हमारे एक और फूल अटल बिहारी बाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद को शुशोभित करके हमे गौरवान्वित किया है । आज हमे प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का भाषण याद आ रहा है जब उनहोंने हमारे छात्र संघ के उदघाटन सत्र को सम्बोधित करते हुये कहा था कि आज मै भारत के भविष्य से बात करने रहा हूँ और भारत के लिए इससे बड़ा कोई दूसरा काम नहीं हो सकता । नेहरू जी ने भावी पीढी के निर्माण मे हमारी भूमिका को पहचान लिया था ।पहचानते भी क्यो नहीं ? हमने अपने एक विद्यार्थी एन के नायर के नेतृत्व मे छात्रावास मे हरिजन और सवर्णो की अलग-अलग मेस को बन्द कराके हरिजन छात्रों को सवर्णो के साथ बैठकर उनकी मेस मे खाना खाने का अधिकार दिलाया था । 1955 - 56 के दशक मे छुआ-छूत के खिलाफ हमने सम्पूर्ण देश को एक नई दिशा दी थी ।हम अपने विद्यार्थियो को सिखाते थे कि तुम कल के नहीं आज के नागरिक हो और समाज की हर गतिविधि मे तुम्हारी भूमिका है इसलिए हमारे विद्यार्थी सामाजिक मुद्दों पर संघर्ष करने से पीछे नहीं हटे । हमारा स्वर्णिम इतिहास है ।वर्तमान अब कुछ दुखी करता है लेकिन मै निराश नही हूँ । अपने बीच के एक सामान्य परिवार मे जन्मे श्री रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति के रूप मे देखकर हमारे विद्यार्थियो को अब एक नई उर्जा, नई प्रेरणा मिलेगी और वे सबके सब आपस मे मिलकर हमारा गौरव हमे वापस दिलायेंगे ।
टिप्पणियाँ
Dayakrishna Kandpal महर्षि दयानन्द की जै दयानन्द एग्लो बैदिक बिद्यालय की कीर्तिं र्फैलती रहे आर्य समाज केबिचारक व इस प्रकार के बिद्यालय केनिर्माण केलियेतन मन व धन देने वालो की जय।
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Ankit Tiwari Par sath hi Chatra sangh ki rajniti ke gundon ki rajniti ho Jane pe bhi vichar chodana nahi chahiye! Thik waise hi jaise adhiwaktayon ki rajniti asali adhiwakatyon ke hath Se nikal Jane ke bare bhi sochana chahiye!
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Somdutt Bajpai आप से पुरानी जानकरी बहुत मिलती है जो समय समय पर ऊर्जा का काम करती है
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Prabhat K. Tiwari इस संदर्भ में हमें एक और पुष्प महान क्रान्तिकारी चन्द्रशेखर आजाद जी को भी नही भूलना चाहिये जो DAV college के छात्र थे और छात्रावास में रहते थे।
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Kaushal Sharma चन्द्र शेषर आजाद ड़ी ए वी छात्रावास मे रहा करते थे , लेकिन वहाँ छात्र कभी नहीं रहे । सालिग राम शुक्ल पढते थे और उनकी प्रतिमा वहाँ लगी है ।
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Suresh Yadav बहुत खूबसूरत विचार। काश हमारे देश का हर विद्यालय डीएवी के इतिहास और मूल्यों से सबक लेता जो आज के परिवेश में भी उतना ही सामयिक है।
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पतियों पर फर्जी मुकदमें? इनकी कोई सीमा है क्या?


पतियों पर फर्जी मुकदमें? इनकी कोई सीमा है क्या? 
आम तौर पर पतियों के खिलाफ 498ए, 406 आई पी सी, 3/4 दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 125 दणड़ प्रक्रिया संहिता और घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत आपराधिक मुकदमें पंजीकृत कराये जाते है । विधि मे संशोधन हो जाने के कारण इन धाराओं मे पति और उसके माता-पिता , भाई बहनों की अब ततकाल गिरफ्तारी नहीं होती इसलिए प्रथम सूचना रिपोर्ट मे अब एक नई कहानी जोड़ने का प्रचलन तेजी से बढा है । लड़कियाँ अब अपने पति पर अप्राकृतिक यौन शोषण और जबरन गर्भ गिरवा देने का आरोप लगाने लगी है जिसके कारण विवेचक की परेशानी बढी है और भविष्य मे आपसी मेल मिलाप की सम्भावनाओं को भी गम्भीर धक्का लगा है ।
पिछले दिनो एक बहुत पढी लिखी लड़की ने अपने पति पर अन्य आरोपों के साथ अप्राकृतिक यौन समबन्ध का भी आरोप लगाया और उसके पिता खुद पुलिस अधिकारियों से समपर्क करके अपने दामाद की गिरफ्तारी के लिए प्रयासरत है जबकि सुहाग रात के पहले ही लड़का ( पति ) हैदराबाद चला गया था । उनके बीच कोई रिश्ता बना ही नहीं । पिछ्ले तीन वर्षो मे लड़का कानपुर नहीं आया और लड़की हैदराबाद नही गई । इस बीच लड़के के माता-पिता ने अपने बेटे की नाराजगी के बावजूद खुद पहल करके लड़की ( बहू ) को अपने घर पर रखा । लड़की कानपुर मे नौकरी करती थी और किसी भी दशा मे हैदराबाद जाने को तैयार नही थी । लड़की के पिता अपने समधी पर दबाव बना रहे थे कि वे अपना मकान उनकी बेटी के नाम करा दे । लड़के वाले कमोबेश राजी थे लेकिन वे मकान के बदले तलाक चाहते थे और लड़की के पिता तलाक की बात सुनते ही भड़क जाते थे । लड़की यदि पति के साथ न रहना चाहे , या पति अपनी पत्नी के साथ न रहना चाहे तो उस स्थिति मे तलाक के अलावा कोई दूसरा विकल्प भी हो सकता है क्या? गुदा मैथुन या गर्भपात
का आरोप तो शर्तिया इसका विकल्प नहीं है । दाम्पत्य विवादो मे विधि की अपनी सीमायें है । दहेज़ उतपीड़न कानून को काफी सख्त करने और उसके दुरूपयोग से आजिज़ आकर अब उसे शिथिल करने से कोई राहत नहीं मिली है । परिवार टूट रहे है , कटुता बढ रही है , पारिवारिक न्यायालय मे मुकदमों की संख्या बढती जा रही है । इस सबको रोकने का कोई कारगर तंत्र विकसित किया जाना समय।की माँग है और इसकी शुरूआत हम अधिवक्ताओ को करनी होगी । हमे चाहिए कि अपने पास विधिक राय के लिए आने वाले दमपतियो को फर्जी कथनों पर मुक़दमा करने के लिए हर हाल मे हतोत्साहित करें । निश्चित मानिये अपना छोटा सा यह प्रयास आपस मे झगड़ रहे दमपतियो को अपने मतभेद आपस मे ही सुलझा लेने का वातावरण उपलबध करायेगा और समाज की सुख शान्तिके लिए उत्प्रेरक का काम करेगा ।
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Rajesh Chaturvedi इसको विवेचक और मजिस्ट्रेट को भी ध्यान रखना चाहिए कि cognijence लेते समय चार्जशीट का सम्यक अवलोकन करें।
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Ajai Bhadauria स्त्रियां निर्लज्जता की सारी सीमाय तोड़ रही हैं। इसे वे प्रगतिवादी सोंच और वर्जनाओं से मुक्ति बताती है। इसकेलिए बहुत हद तक मीडिया और विवाह से इतर सम्बब्ध जिम्मेदार है
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Dig Vijay Singh Rathour कानून और आज के माहौल ने ऐसा बातावरण पैदा कर दिया है कि ... अब लडकियाँ कोई बधन वर्दास्त करने को तैयार नहीं है ।और शादी रूपी बंधन सिर्फ अपने आप को समर्पित कर हीं निभाया जा सकता है ...बहुत मुश्किल है
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Sanjay Kumar Singh पीड़ित लड़कियों की ओर से 498 ए, 506 आई पी सी व 3/4 डी पी एक्ट में ज्यादातर मुकदमें पंजीकृत होते हैं ....

सम्भवतः आपने भुलवश 506 के स्थान पर 406 IPC लिखा है जो स्त्रीधन/अमानत में ख्यानत के मामलो में ही लगता है 
...और देखें
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Rewant Mishra स्त्री धन ,अमानत में खयानत संजय भाई
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Sanjay Kumar Singh बिलकुल सही भाई 
पर मैंने क्या कहा वो देखिये ...मेरा अब भी वही मानना है कि हमारे समाज में जब भी कोई FIR होता है वहां 90% जो धारा लगाएं जाते है वो 498 A,506 IPC लगाये जाते हैं 406 IPC बमुश्किल 10 % ही मुकदमें होते हैं ...
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Sanjay Kumar Singh रेवन्त भाई आज fb पर मैं पहली बार असहज हुआ जहाँ या तो अजय भदौरिया जी हमें समझ नही पाये या मैं उन्हें समझा नही पाया ...
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Ashish Dixit बाबुजी प्रानाम.....
दहेज प्रथा का मुकदमा ......
घरेंलू हिंसा का मुकदमा.....

125 भरण पोशन का मुकदमा.....ये सारे मुकदमे एक लड़की अपने पति को एक गिफट के रूप में देती है.....अगर उसके साथ सासुराल में आत्याचार होता है तब.....इन सारे मुकदमो का परीनाम....ये है की.....
2 साल मुकदमा चलने के बाद 2000 या 3000 मासिक भात्ता न्ययालाय देने का आदेश कर देती है पति को वो भी 125 या घरेलू हिंसा में......ओर उसके बाद तारिख.....
अब आया दहेज प्रथा...पुलिस पहले माध्यास्ता केन्द्र भेजती है फिर उसी दिंन ज़मनात ओर फिर मध्यास्ता केन्द्र ओर फिर तारीख .....
ये सब होने के बाद लड़की को क्या मिला.....???? कुछ भी नहीं 
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कुछ लड़कियो ज़ितना न्ययायलाय आकर वाकील सहाब को जी हुजूरी करती है....ओर अगर उसका 25% अपने पति की इज्ज़त कर लेती तो कभी मुकदमेबाजी ना होती...ओर ना परेशसानी होती......
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ये तो बाबुजी आपने छोठी बात लिखी है.....लडकिया /पीडित पछ .....तो 13ब हिन्दू विवाह अधिनियम से तलाक होने के बाद लड़के के ऊपर 376ब 326 506 लगा दी.....ये सब क्या है.....
कानुन से ज्यादा अपने साथ मज्जाक......
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बाबुजी गीता में लिखा है..........
जब ब्रधी होती पाप की..कुल की बिगढ़ती नारिया.....
हे कृष्ण फलती फुलती तब वरन शंकर क्यारिया......
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Ajai Bhadauria Actually termination of pregnancy Act is something else. This is the misuse of said act.
वास्तव में गर्भावस्था के कार्य का समापन कुछ और है. यह अधिनियम का दुरुपयोग है ।
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Ajai Bhadauria Sanjay ji Kaushal bhaisaheb has written very section 406 IPC . That is for criminal breach of trust regarding stri dhan.OK Ladies are using this section at large.
संजय जी कौशल bhaisaheb ने बहुत धारा 406 ipc लिखी है । यह stri धन के संबंध में भरोसे का उल्लंघन करने के लिए है. ठीक है महिलाएं इस अनुभाग का उपयोग बड़े पैमाने पर कर रहे हैं.
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Ajai Bhadauria Pl read very right
कृपया बहुत सही पढ़ें
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Sanjay Kumar Singh Yes dear but I have used the word " Generally " ...I know well....
हाँ प्रिय लेकिन मैंने "सामान्य रूप से" शब्द का इस्तेमाल किया है... मैं अच्छी तरह से जानता हूँ....
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Vibhav Shukla Kvl 125 cr.pc. shaadi hone se 5 saal tk gujara bhatta ka case nhi chalega amndmnt ho jaye to 70 % mukadme khatam ho jaye.
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Sanjay Kumar Singh अजय जी ये कहना कितना सार्थक होगा" स्त्रियां "...
समाज के हर नारी को एक समान व एक रूप में दोषी मानना कतई उनके प्रति न्याययोचित नही होगा...
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Ajai Bhadauria No u wrote by mistake.stand on ur version
कोई तुम्हे गलती से नहीं लिखा । अपने संस्करण पर खड़े हों
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Ajai Bhadauria We r talking about a particular issue n related Ladies not whole .OK
हम किसी विशेष समस्या और संबंधित महिलाओं के बारे में बात कर रहे हैं. ठीक है
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Sanjay Kumar Singh I am fully determined on my views because till today I have generally seen a lot of cases where 498 a along with 506 ipc in the comparison of 498a with 406 ipc
मैं अपने विचारों पर पूरी तरह निर्धारित कर रहा हूँ क्योंकि आज तक मैंने सामान्य तौर पर बहुत कुछ देखा है जहां 498 की तुलना में 506 की तुलना में 498 ipc 498 की तुलना में 406 ipc के साथ 498 ipc के
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Sanjay Kumar Singh I am also serious on my views all ladies are not guilty so do not use the word "Ladies"
मैं भी मेरे विचारों पर गंभीर हूँ, सभी महिलाएं दोषी नहीं हैं इसलिए शब्द का इस्तेमाल न करें "महिलाओं"
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Ajai Bhadauria It differs case to case . Sharmaji has written very right. How can u say he quoted wrong section .Question is this. He wrote section 406 IPC with full awareness.
यह मामले के मामले में अलग है. Sharmaji ने बहुत सही लिखा है । आप कैसे कह सकते हैं कि वह गलत अनुभाग से उद्धृत कर सकता है । प्रश्न यह है । उन्होंने अपनी पूरी जागरूकता के साथ धारा 406 ipc लिखी.
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Sanjay Kumar Singh I haven't created the questions what u mean here .. please read again my dear the word "generally "
मैंने प्रश्न नहीं बनाया है कि आप यहाँ क्या मतलब है.. कृपया फिर से पढ़ें मेरे प्रिय शब्द "सामान्य रूप से"
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Sanjay Kumar Singh I am again saying here 10% may be ...in our society where FIR lodge in 498A with 406 ipc otherwise 90% cases always lodge in society which I say
मैं फिर से कह रहा हूँ यहाँ 10 % हो सकता है... हमारे समाज में जहां 498 में 406 ipc के साथ ही 406 में 90 % केस हमेशा ऐसे ही जगह है जो मैं कहता हूँ
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Nareshhs Sharma शर्मा जी यह बहुत शर्मनाक है ,आज कल लड़के वालों की बजाय लड़की वालों का लालच बढ़ता जा रहा है
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Suresh Sharma सच पूछिए तो लड़के का पिता अपनी बहू से जार जार तंग हो चुका होगा और मकान तक तलाक के बदले देने को तैयार हो गया I ऐसे कई किस्से सामने आते है जिनसे यह निष्कर्ष निकलता है कि कुछ बापों ने लड़कियों को कमाई का औज़ार बना लिया है I
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Rakesh Aman Bhatia · Rajiv Batia का मित्र
Kindly let Ms Sadhna Singh know this, too.
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I quote a Police Officer Lady

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कम्पलेन्ट शरीफाँ दीयां जनानियां ही करदियां नें
बदमाशां दीयां ते कम्पलेन्ट करदियां वी डरदियां नें ।
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Chandra Shekhar Singh लालच इन्सान किसी भी स्तर पर ले जाती हैं खूनं खराबा को रोकने के लिये कानूनं बानाया जाता हैं नाकी बधावा देने के लिये
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Suresh Sachan शर्मा जी आपने अच्छी पहल की है, यदि अधिवक्ता गण इस पहल को अधिकाधिक समर्थन दे तो मुकदमों में कमी हो सकती है तथा पारिवारिक विखराव कम होने के साथ ही दम्पति के बीच समझौता की सम्भावना भी बढ़ सकती है। प्रयास के लिये साधुवाद।
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Anurag Mishra Good initiative
अच्छी पहल
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Narendra Kumar Yadav शर्मा जी वकीलों का दायित्व निश्चित रूप से बनता है लेकिन उससे कही अधिक दायित्व माननीय न्यायालयों काम भी है क्योंकि वो भी इसी समाज से ताल्लुक रखते हैं यदि वह सूक्ष्मता से अध्ययन करे तो कहानी सच है या झूठ मालुम पड़ने लगती है उन्हें ऐसे मामलों में उदारता बरतना चाहिए क्योंकि यह दो परिवारों से जुडा हुआ मामला होता है जमानत खारिज होने के बाद रास्ते बंद हो जाते हैं और सुलह की भविष्य मे संभावनाये नगण्य हो जाती है।
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Ashish Dixit बाबुजी प्रानाम.....
दहेज प्रथा का मुकदमा ......
घरेंलू हिंसा का मुकदमा.....

125 भरण पोशन का मुकदमा.....ये सारे मुकदमे एक लड़की अपने पति को एक गिफट के रूप में देती है.....अगर उसके साथ सासुराल में आत्याचार होता है तब.....इन सारे मुकदमो का परीनाम....ये है की.....
2 साल मुकदमा चलने के बाद 2000 या 3000 मासिक भात्ता न्ययालाय देने का आदेश कर देती है पति को वो भी 125 या घरेलू हिंसा में......ओर उसके बाद तारिख.....
अब आया दहेज प्रथा...पुलिस पहले माध्यास्ता केन्द्र भेजती है फिर उसी दिंन ज़मनात ओर फिर मध्यास्ता केन्द्र ओर फिर तारीख .....
ये सब होने के बाद लड़की को क्या मिला.....???? कुछ भी नहीं 
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कुछ लड़कियो ज़ितना न्ययायलाय आकर वाकील सहाब को जी हुजूरी करती है....ओर अगर उसका 25% अपने पति की इज्ज़त कर लेती तो कभी मुकदमेबाजी ना होती...ओर ना परेशसानी होती......
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ये तो बाबुजी आपने छोठी बात लिखी है.....लडकिया /पीडित पछ .....तो 13ब हिन्दू विवाह अधिनियम से तलाक होने के बाद लड़के के ऊपर 376ब 326 506 लगा दी.....ये सब क्या है.....
कानुन से ज्यादा अपने साथ मज्जाक......
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बाबुजी गीता में लिखा है..........
जब ब्रधी होती पाप की..कुल की बिगढ़ती नारिया.....
हे कृष्ण फलती फुलती तब वरन शंकर क्यारिया......
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Rakesh Chandra Bajpai शर्मा जी, बहुत अच्छा लेख और बहुत अच्छी पहल। अक्सर महिलाओं पर अपराध सम्बन्धी या और मामलो से तंग आकर फांसी की सजा की बात उठने लगती है। मुझे संन्देह होता है कि कड़े सजा से कितने वास्तविक पीड़ितों को न्याय मिलता होग और कितने निरापराधो का जीवन नर्क हो जाता होगा। न्याय के क्या व्यवहारिक तरीके हो सक्ते हैं। आप बहस के मुद्दे उठाते हैं तो अच्छा लगता है।
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