सरकारी वकीलों की नियुक्ति मे मेरिट की अनदेखी
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए पी साही एवम न्यायमूर्ति ड़ी एस त्रिपाठी की खंडपीठ ने एक बार फिर सरकारी वकीलों की नियुक्ति मे मेरिट की अनदेखी पर चिन्ता जताई है । बताया जाता है कि कई ऐसे लोगों की भी नियुक्ति हो गईं है जिन्होने एक भी दिन हाई कोर्ट मे वकालत नहीं की है । इसके पूर्व मुलायम सिंह और मायावती की सरकारों द्वारा की गईं मनमानी नियुक्तियो को सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त किया है और विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किये है परन्तु पूर्व सरकारों की तरह योगी सरकार ने भी मेरिट की अनदेखी करके मनमानी नियुक्तियाँ करने मे कोई कोताही नहीं की है ।
सरकारी वकीलों की नियुक्ति आदि न्यायालय से जुड़े मामलों मे सरकार को सलाह देने के लिए विधि परामर्शी विभाग बनाया गया है जिसमे न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है परन्तु इन न्यायिक अधिकारियों का आचरण सचिवालय मे आते ही बदल जाता है और सबके सब सरकार की मनमानी के सहयोगी बन जाते है । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपने अधिकारियों के इस प्रकार के आचरण पर नाराजगी जताई और विधि परामर्शी पर एक लाख रूपये की पेनाल्टी अधिरोपित की थी परन्तु हालिया नियुक्तियों को देखकर लगता है कि सचिवालय मे तैनात न्यायिक अधिकारियों के आचरण मे कोई सुधार नही हुआ और वे आज भी सरकारी मनमानी के सहयोगी बने हुये है ।
सरकारी वकीलों की पदीय प्रतिबद्धताये लोकहित से जुड़ी होती है इसलिए इनकी नियुक्तियों मे मेरिट की अनदेखी से सुशाशन कुप्रभावित होता है । अभी कुछ ही दिन मे जनपद न्यायालयों मे भी सरकारी वकीलों की नियुक्ति होनी है जिसमे नियुक्ति के लियेसमबन्धित अधिवक्ता के दो वर्षो के कार्य ब्यवहार एवम आचरण का आकलन किया जाता है परन्तु दो वर्षो के पेशेवर आचरण की सभी सरकारों ने अनदेखी की है और अपने विधायक या सांसद की अनुशंसा को वरीयता दी है । विधि परामर्शी विभाग मे तैनात न्यायिक अधिकारियों पर विधि के तहत इस प्रकार की अनियमितताओ को रोकने का दायित्व है । अब देखना होगा कि हाई कोर्ट के हालिया हस्तक्षेप के बाद पेशेवर गुणवत्ता पर विधायक जी की अनुशंसा भारी पड़ेगी या नहीं?
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति ए पी साही एवम न्यायमूर्ति ड़ी एस त्रिपाठी की खंडपीठ ने एक बार फिर सरकारी वकीलों की नियुक्ति मे मेरिट की अनदेखी पर चिन्ता जताई है । बताया जाता है कि कई ऐसे लोगों की भी नियुक्ति हो गईं है जिन्होने एक भी दिन हाई कोर्ट मे वकालत नहीं की है । इसके पूर्व मुलायम सिंह और मायावती की सरकारों द्वारा की गईं मनमानी नियुक्तियो को सर्वोच्च न्यायालय ने निरस्त किया है और विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किये है परन्तु पूर्व सरकारों की तरह योगी सरकार ने भी मेरिट की अनदेखी करके मनमानी नियुक्तियाँ करने मे कोई कोताही नहीं की है ।
सरकारी वकीलों की नियुक्ति आदि न्यायालय से जुड़े मामलों मे सरकार को सलाह देने के लिए विधि परामर्शी विभाग बनाया गया है जिसमे न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति की जाती है परन्तु इन न्यायिक अधिकारियों का आचरण सचिवालय मे आते ही बदल जाता है और सबके सब सरकार की मनमानी के सहयोगी बन जाते है । इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने अपने अधिकारियों के इस प्रकार के आचरण पर नाराजगी जताई और विधि परामर्शी पर एक लाख रूपये की पेनाल्टी अधिरोपित की थी परन्तु हालिया नियुक्तियों को देखकर लगता है कि सचिवालय मे तैनात न्यायिक अधिकारियों के आचरण मे कोई सुधार नही हुआ और वे आज भी सरकारी मनमानी के सहयोगी बने हुये है ।
सरकारी वकीलों की पदीय प्रतिबद्धताये लोकहित से जुड़ी होती है इसलिए इनकी नियुक्तियों मे मेरिट की अनदेखी से सुशाशन कुप्रभावित होता है । अभी कुछ ही दिन मे जनपद न्यायालयों मे भी सरकारी वकीलों की नियुक्ति होनी है जिसमे नियुक्ति के लियेसमबन्धित अधिवक्ता के दो वर्षो के कार्य ब्यवहार एवम आचरण का आकलन किया जाता है परन्तु दो वर्षो के पेशेवर आचरण की सभी सरकारों ने अनदेखी की है और अपने विधायक या सांसद की अनुशंसा को वरीयता दी है । विधि परामर्शी विभाग मे तैनात न्यायिक अधिकारियों पर विधि के तहत इस प्रकार की अनियमितताओ को रोकने का दायित्व है । अब देखना होगा कि हाई कोर्ट के हालिया हस्तक्षेप के बाद पेशेवर गुणवत्ता पर विधायक जी की अनुशंसा भारी पड़ेगी या नहीं?
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