अब आई ए एस भी सत्तारूढ़ दल के
मोदी सरकार की नई पहल , सरकारी वकीलों की तरह अब आई ए एस भी बनाये जाँयेगे । मतलब पढो लिखो नहीं, केवल स्थानीय विधायक या सांसद की चरण वन्दना करते रहो , जिलाधिकारी न सही, यस ड़ी एम बनने का अवसर तो मिल ही जायेगा । इस प्रकार की पहल प्रतिभा और प्रतियोगिता को नष्ट करने का मार्ग प्रशस्त करेगी । सम्पूर्ण देश मे सरकारी वकीलों की नियुक्ति का अधिकार सरकारों को प्राप्त है और उसमे मेरिट की अनदेखी आम बात है ।किसी भी दल की सरकार हो , सबने निरलजजता पूर्वक मनमानी की है और उससे लोकहित कुप्रभावित हुआ है । अपने उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और मायावती ने पूरे प्रदेश में एक साथ सभी सरकारी वकीलों को हटाकर अपनी पार्टी के वफादारो की नियुक्ति करके नये कीर्तिमान स्थापित किये है । इस मनमानी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और विधि आयोग ने भी अपने सुझाव दिये है परन्तु किसी सरकार ने उनका अनुपालन नही किया । योगी सरकार ने भी पिछ्ले दिनों उच्च न्यायालय में 311 सरकारी वकीलों की नियुक्ति की है और उनमें से कई ऐसे है जिन्होने हाई कोर्ट का कभी मुँह नहीं देखा । ऐसे महानुभावों से लोकहित की रक्षा करने की अपेक्षा करना कितना न्याय संगत होगा? केवल भगवान ही जानते है ।जनपद न्यायालय के समक्ष जमानत प्रार्थना पत्रों के निस्तारण के समय अभियुक्त का वकील विवेचनाधिकारी या सरकारी वकील के पास रहने वाली केस डायरी को देखकर बहस करता है । इसके आर्थिक लेन देन की जानकारी सबको है परन्तु चहेतो का भ्रष्टाचार किसी को नहीं दिखता । अब सोचिए सरकारी वकीलों की नियुक्ति मे सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद मेरिट की अनदेखी जारी है तो आई ए एस की नियुक्ति का क्या हाल होगा ? राजनेताओं की नकारा सन्तानें फिर संसद या विधान सभा में नहीं, जिलाधिकारी कार्यालय मे बैठकर हम पर शाशन करेंगी ।
मोदी सरकार की नई पहल , सरकारी वकीलों की तरह अब आई ए एस भी बनाये जाँयेगे । मतलब पढो लिखो नहीं, केवल स्थानीय विधायक या सांसद की चरण वन्दना करते रहो , जिलाधिकारी न सही, यस ड़ी एम बनने का अवसर तो मिल ही जायेगा । इस प्रकार की पहल प्रतिभा और प्रतियोगिता को नष्ट करने का मार्ग प्रशस्त करेगी । सम्पूर्ण देश मे सरकारी वकीलों की नियुक्ति का अधिकार सरकारों को प्राप्त है और उसमे मेरिट की अनदेखी आम बात है ।किसी भी दल की सरकार हो , सबने निरलजजता पूर्वक मनमानी की है और उससे लोकहित कुप्रभावित हुआ है । अपने उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह और मायावती ने पूरे प्रदेश में एक साथ सभी सरकारी वकीलों को हटाकर अपनी पार्टी के वफादारो की नियुक्ति करके नये कीर्तिमान स्थापित किये है । इस मनमानी को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा और विधि आयोग ने भी अपने सुझाव दिये है परन्तु किसी सरकार ने उनका अनुपालन नही किया । योगी सरकार ने भी पिछ्ले दिनों उच्च न्यायालय में 311 सरकारी वकीलों की नियुक्ति की है और उनमें से कई ऐसे है जिन्होने हाई कोर्ट का कभी मुँह नहीं देखा । ऐसे महानुभावों से लोकहित की रक्षा करने की अपेक्षा करना कितना न्याय संगत होगा? केवल भगवान ही जानते है ।जनपद न्यायालय के समक्ष जमानत प्रार्थना पत्रों के निस्तारण के समय अभियुक्त का वकील विवेचनाधिकारी या सरकारी वकील के पास रहने वाली केस डायरी को देखकर बहस करता है । इसके आर्थिक लेन देन की जानकारी सबको है परन्तु चहेतो का भ्रष्टाचार किसी को नहीं दिखता । अब सोचिए सरकारी वकीलों की नियुक्ति मे सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद मेरिट की अनदेखी जारी है तो आई ए एस की नियुक्ति का क्या हाल होगा ? राजनेताओं की नकारा सन्तानें फिर संसद या विधान सभा में नहीं, जिलाधिकारी कार्यालय मे बैठकर हम पर शाशन करेंगी ।
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