शर्म खुद मे शर्मा गई , आॅसू सूख गये
जिला प्रशासन ने जबरन टेफको कालोनी खाली कराके मजदूरों के इस शहर मे एक और वातानुकूलित व्यवसायिक काम्पलैक्स बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । अब इस शहर को कारखाने , और उसमे काम करने वाले कामगार नहीं, व्यवसायिक काम्पलैक्स चाहिए और इसीलिए आज सैकड़ो श्रमिक परिवार बेघर कर दिये गये
परन्तु किसी सांसद या विधायक ने मौके पर खडे होकर जिला प्रशासन पर कोई लोकतांत्रिक दबाव नही बनाया । हाई कोर्ट के आदेश के बहाने चुप्पी ओढकर अपने बिल मे घुसे रहे । अपने सांसद विधायकों का आचरण देखकर अपने कानपुर मे आज शर्म खुद मे शर्मा गई और ऑखों मे ऑंसू सूख गये । मै आज खुद परेशान हूँ, शर्मिदा हूँ, मेरे कई मित्र जो टेफको कालोनी मे रहने वाले श्रमिक परिवारों की तरह के मजदूर परिवारों मे पैदा हुये है , आवासीय समस्या से जूझते रहे है , वे भी टेफको कालोनी को खाली कराने को जायज बता रहे है । इस कालोनी के लोग वर्ष 2001 से सामूहिक गरीबी और बेकारी से पीडित थे लेकिन रात मे भूखे पेट ही सही, सोने के लिए एक घर तो था , एक बार भी सोचा है , कल रात उन सबने कहाँ बैठकर खाना बनाया होगा ? , कहाँ सोये होंगे ? आज चिलचिलाती धूप मे उनके बच्चे कहाँ सिर छुपा रहे होंगे ?आम लोगों को घर मुहैया कराना संवैधानिक दायित्व है , घर से बेघर करना नही ।
काश आज कानपुर मे हरिहर नाथ शास्त्री जैसा कोई सांसद होता , जो अपने प्रभाव का प्रयोग करके प्रधानमंत्री से मिलता और उनहें जबरन बेघर किये जा रहे श्रमिक परिवारों की ब्यथा से अवगत कराता और उनहें याद दिलाता कि कानपुर मे श्रमिकों को आरामदेह घर दिलाने के लिए कालोनियाॅ बनाने की शुरूआत करके संविधान के नीति निदेशक तत्वो को लागू करने की दिशा मे देश एक कदम आगे बढा था इसलिए कालोनियों से श्रमिकों से बेदखल करने की शुरूआत कानपुर से ही करके नीति निदेशक तत्व के बढे हुये पहिये को पीछे लाने का धतकरम मत करिये । मुझे लगता है कि आज के किसी जनप्रतिनिधि ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट ही नही किया है । उन सबने इसकी अनदेखी करने मे ही अपनी भलाई समझी जबकि इस समस्या को प्रधानमंत्री के संज्ञान मे लाना उनका संसदीय दायित्व है।आप सबको पता ही होगा कि हरिहर नाथ शास्त्री प्रधानमंत्री नेहरू को जूही खलवा की एक मजदूर बस्ती मे ले गये थे , वहाँ की दशा देखकर नेहरू जी नाराज हुये और फिर वही खडे खडे श्रमिकों के लिए सस्ते और आरामदेह घर बनाने का नीतिगत निर्णय लिया गया और उस निर्णय के तहत देश मे सबसे पहले शास्त्री नगर कालोनी बनाई गई। अपने क्षेत्र की समस्याओं से सरकार को अवगत कराना ही सांसद विधायक का महत्वपूर्ण कार्य होता है परन्तु वर्तमान सांसद विधायक मंत्रियों के साथ फोटो खिंचाकर फ़ेसबुक मे पोस्ट करके अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेते है ।
एक बात और स्पष्ट करना आवश्यक है । कालोनी खाली कराने मे हाई कोर्ट का आदेश महत्वपूर्ण कारक नही है। महत्वपूर्ण कारक है , हमारी व्यवसायिक संवेदनाएं जो मानवीय संवेदनाओं पर हावी है ।नेहरू युग मे कालोनियों का निर्माण मानवीय संवेदनाओं के प्रभावी रहने के कारण कराया गया था , अब व्यवसायिक हितों को ध्यान मे रखकर कालोनियाॅ खाली कराई जा रही है । याद करे , सरोजनी नगर मे मरियमपुर अस्पताल के पीछे चैन फैक्ट्री हुआ करती थी , आज वहाँ कई अपार्टमेन्ट बने हुये है । हम सबको समझना होगा शहर के महत्वपूर्ण स्थानो पर स्थित फैक्ट्रियाॅ बिलडरों को अखर रही है , उनकी कुदृष्टि इन पर पड गई है । इस खेल मे सभी दल के राजनेता सहभागी है इसलिये सबके सब मौन है । टेफको कालोनी खाली हो या ओ ई एफ बन्द कर दी जाये , उनहें कोई मतलब नही , उनहें तो कमाई के लिए महत्वपूर्ण स्थानो पर जमीन चाहिए और उसके लिये हमारे राजनेता कुछ भी करने को तैयार है ।
जिला प्रशासन ने जबरन टेफको कालोनी खाली कराके मजदूरों के इस शहर मे एक और वातानुकूलित व्यवसायिक काम्पलैक्स बनाने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है । अब इस शहर को कारखाने , और उसमे काम करने वाले कामगार नहीं, व्यवसायिक काम्पलैक्स चाहिए और इसीलिए आज सैकड़ो श्रमिक परिवार बेघर कर दिये गये
परन्तु किसी सांसद या विधायक ने मौके पर खडे होकर जिला प्रशासन पर कोई लोकतांत्रिक दबाव नही बनाया । हाई कोर्ट के आदेश के बहाने चुप्पी ओढकर अपने बिल मे घुसे रहे । अपने सांसद विधायकों का आचरण देखकर अपने कानपुर मे आज शर्म खुद मे शर्मा गई और ऑखों मे ऑंसू सूख गये । मै आज खुद परेशान हूँ, शर्मिदा हूँ, मेरे कई मित्र जो टेफको कालोनी मे रहने वाले श्रमिक परिवारों की तरह के मजदूर परिवारों मे पैदा हुये है , आवासीय समस्या से जूझते रहे है , वे भी टेफको कालोनी को खाली कराने को जायज बता रहे है । इस कालोनी के लोग वर्ष 2001 से सामूहिक गरीबी और बेकारी से पीडित थे लेकिन रात मे भूखे पेट ही सही, सोने के लिए एक घर तो था , एक बार भी सोचा है , कल रात उन सबने कहाँ बैठकर खाना बनाया होगा ? , कहाँ सोये होंगे ? आज चिलचिलाती धूप मे उनके बच्चे कहाँ सिर छुपा रहे होंगे ?आम लोगों को घर मुहैया कराना संवैधानिक दायित्व है , घर से बेघर करना नही ।
काश आज कानपुर मे हरिहर नाथ शास्त्री जैसा कोई सांसद होता , जो अपने प्रभाव का प्रयोग करके प्रधानमंत्री से मिलता और उनहें जबरन बेघर किये जा रहे श्रमिक परिवारों की ब्यथा से अवगत कराता और उनहें याद दिलाता कि कानपुर मे श्रमिकों को आरामदेह घर दिलाने के लिए कालोनियाॅ बनाने की शुरूआत करके संविधान के नीति निदेशक तत्वो को लागू करने की दिशा मे देश एक कदम आगे बढा था इसलिए कालोनियों से श्रमिकों से बेदखल करने की शुरूआत कानपुर से ही करके नीति निदेशक तत्व के बढे हुये पहिये को पीछे लाने का धतकरम मत करिये । मुझे लगता है कि आज के किसी जनप्रतिनिधि ने प्रधानमंत्री का ध्यान इस ओर आकृष्ट ही नही किया है । उन सबने इसकी अनदेखी करने मे ही अपनी भलाई समझी जबकि इस समस्या को प्रधानमंत्री के संज्ञान मे लाना उनका संसदीय दायित्व है।आप सबको पता ही होगा कि हरिहर नाथ शास्त्री प्रधानमंत्री नेहरू को जूही खलवा की एक मजदूर बस्ती मे ले गये थे , वहाँ की दशा देखकर नेहरू जी नाराज हुये और फिर वही खडे खडे श्रमिकों के लिए सस्ते और आरामदेह घर बनाने का नीतिगत निर्णय लिया गया और उस निर्णय के तहत देश मे सबसे पहले शास्त्री नगर कालोनी बनाई गई। अपने क्षेत्र की समस्याओं से सरकार को अवगत कराना ही सांसद विधायक का महत्वपूर्ण कार्य होता है परन्तु वर्तमान सांसद विधायक मंत्रियों के साथ फोटो खिंचाकर फ़ेसबुक मे पोस्ट करके अपने दायित्वों की इतिश्री कर लेते है ।
एक बात और स्पष्ट करना आवश्यक है । कालोनी खाली कराने मे हाई कोर्ट का आदेश महत्वपूर्ण कारक नही है। महत्वपूर्ण कारक है , हमारी व्यवसायिक संवेदनाएं जो मानवीय संवेदनाओं पर हावी है ।नेहरू युग मे कालोनियों का निर्माण मानवीय संवेदनाओं के प्रभावी रहने के कारण कराया गया था , अब व्यवसायिक हितों को ध्यान मे रखकर कालोनियाॅ खाली कराई जा रही है । याद करे , सरोजनी नगर मे मरियमपुर अस्पताल के पीछे चैन फैक्ट्री हुआ करती थी , आज वहाँ कई अपार्टमेन्ट बने हुये है । हम सबको समझना होगा शहर के महत्वपूर्ण स्थानो पर स्थित फैक्ट्रियाॅ बिलडरों को अखर रही है , उनकी कुदृष्टि इन पर पड गई है । इस खेल मे सभी दल के राजनेता सहभागी है इसलिये सबके सब मौन है । टेफको कालोनी खाली हो या ओ ई एफ बन्द कर दी जाये , उनहें कोई मतलब नही , उनहें तो कमाई के लिए महत्वपूर्ण स्थानो पर जमीन चाहिए और उसके लिये हमारे राजनेता कुछ भी करने को तैयार है ।
No comments:
Post a Comment