टेफको कालोनी के परिप्रेक्ष्य मे
अखिलेश सरकार ने अपने कार्य काल मे औद्योगिक श्रमिकों को उनके लिए बनाये गये घरों से बेदखल करने की तैयारी कर ली थी परन्तु समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओ के दबाव मे वे दुससाहस नही कर सके परन्तु योगी सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के बहाने सरकारी श्रमिक बस्तियों से उसके बासिनदो की जबरन बेदखल की शुरूआत कर दी है । वर्ष 2010 से श्रम विभाग ने सम्पूर्ण उ0प्र0 में घरों का किराया लेना स्वयं बन्द कर दिया है और अब उसके लिए श्रमिकों को दोषी बताकर बड़े पैमाने पर श्रमिकों की बेदखली के लिए कार्यवाही शुरू कर दी है। कानपुर की जूहीकलाँ श्रमिक बस्ती के मूल आवंटी महादेव के विरूद्ध विहित प्राधिकारी पी.पी.एक्ट 1972 एवं उप श्रमायुक्त उ0प्र0 श्री यू.पी.सिंह ने दिनांक 11.02.2013 को नोटिस की तामीली बताकर उनकी बेदखली का आदेश पारित कर दिया है जबकि उनकी मृत्यु दिनांक 10.11.1998 को हो गई थी। लगता है श्रम विभाग के अधिकारी श्रमिक महादेव पर नोटिस तामीली के लिए भगवान के यहाँ गये थे। इस प्रकार की कई मनमानियाँ प्रकाश में आई है परन्तु उ0प्र0 का श्रम विभाग श्रमिकों की कुछ भी सुनने को तैयार नही है और विधिक प्रक्रिया का अनुपालन किये बिना जबरन बेदखली आदेश पारित करने पर आमादा है। जबकि इन श्रमिक बस्तियों का निर्माण औद्योगिक श्रमिकों और समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गो के लिए एकीकृत सहायता प्राप्त आवास योजना (Inteegrated subsidized Housing Scheme for Industrial Workers and Weaker Section of the Community) के तहत भारत सरकार के सहयोग में निर्मित किया गया है और उस समय इसके निर्माण के लिए सब्जिडाइज्ड (SUBSIDISED) दर पर सरकार द्वारा भूमि उपलब्ध कराई गई थी और निर्माण में मुबलिग 2,500/-की लागत आई थी और सुनिश्चित किया गया था औघोगिक श्रमिको से प्रतिमाह तेरह रूपयें पचास पैसें किराया लिया जायेगा और प्रतिमाह अदा की जाने वाली किरायें की इस राशि से जब सम्पूर्ण लागत वसूल हो जायेगी तब हायर पर्चेज सिस्टम के तहत सम्बन्धित आवास (टेनामेन्ट) का स्वामित्व सम्बन्धित औद्योगिक श्रमिक के पक्ष में हस्तान्तरित कर दिया जायेगा।इस आशय का एक नया शासनादेश 1978 मे जनता पार्टी की मोरारजी भाई सरकार ने जारी किया था और उसके अनुपालन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वर्ष 1995 मे कालोनी हस्तांतरण की एक समेकित नीति बनाई परन्तु आदरणीय बाललचंद्र जी ने अपने श्रम मंत्रितव काल मे इस नीति का क्रियान्वयन रोक दिया और तबसे मामला उलझा हुआ है ।
श्रमिक बस्तियाँ नेहरू युग की समाजवादी नीतियों का प्रतिफल है । नरसिंह राव के प्रधानमंत्रितव काल मे कांग्रेस ने खुद समाजवाद को तिलांजलि देकर बाजार आधारित अर्थ ब्यवस्था को अंगीकार कर लिया । भाजपा ने कागजों पर गाँधी वादी समाजवाद को अपना लक्ष्य बताया है परन्तु बाजार की अर्थ व्यवस्था उसका भी आदर्श है इसलिये इनके द्वारा प्रस्तावित स्मार्ट शहरो मे हमारे आप जैसे सामान्य आय वाले लोगों के लिए सस्ती दरो पर घर उपलब्ध कराने का कोई प्रावधान नही है । हमारे कई मित्र, जिनकी खुद की हैसियत प्रस्तावित स्मार्ट शहरो मे पचास लाख से एक करोड कीमत वाला फ्लेट खरीदने की नही है , वे भी टेफको कालोनी खाली कराना जायज बता रहे है । हिन्दू मुस्लिम नजरिये को त्याग कर एक बार खुद सोचो कि क्या आप एक घर बनाने के लिए पचास लाख की पूँजी जुटा पाये है । कोई भी नौकरीपेशा आदमी इतनी रकम नही जुटा सकता । मँहगाई के कारण रोजमर्रा की आवश्यक जरूरते, बच्चो की पढाई, बीमारी अजारी मे महीने का वेतन खत्म हो जाता है । याद करो हर महीने दस तारीख के बाद पहली तारीख का इन्तजार होने लगता है इसलिये जरूरत है कि सरकार सस्ती दरों पर घर उपलब्ध कराये । बिलडर सपा का हो या भाजपा या बसपा का , उसको केवल अपने फायदे से मतलब होता है इसलिये मेरे दोस्तो श्रमिक बस्तियों को किसी बिलडर या बाजार की ऑख से नही , अपने और अपने परिवार के लिए एक " घर" की ज़रूरत की ऑख से देखो , तब आपको श्रमिक बस्तियों का औचित्य समझ में आयेगा और फिर महसूस होगा कि इन बस्तियों को खाली कराने से मजदूर परिवार बेघर तो हो जायेगा लेकिन इसकी जमीन बेचने से देश का खजाना नही भरेगा, खजाना बिलडर का भरेगा ।
अखिलेश सरकार ने अपने कार्य काल मे औद्योगिक श्रमिकों को उनके लिए बनाये गये घरों से बेदखल करने की तैयारी कर ली थी परन्तु समाजवादी पृष्ठभूमि के नेताओ के दबाव मे वे दुससाहस नही कर सके परन्तु योगी सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के बहाने सरकारी श्रमिक बस्तियों से उसके बासिनदो की जबरन बेदखल की शुरूआत कर दी है । वर्ष 2010 से श्रम विभाग ने सम्पूर्ण उ0प्र0 में घरों का किराया लेना स्वयं बन्द कर दिया है और अब उसके लिए श्रमिकों को दोषी बताकर बड़े पैमाने पर श्रमिकों की बेदखली के लिए कार्यवाही शुरू कर दी है। कानपुर की जूहीकलाँ श्रमिक बस्ती के मूल आवंटी महादेव के विरूद्ध विहित प्राधिकारी पी.पी.एक्ट 1972 एवं उप श्रमायुक्त उ0प्र0 श्री यू.पी.सिंह ने दिनांक 11.02.2013 को नोटिस की तामीली बताकर उनकी बेदखली का आदेश पारित कर दिया है जबकि उनकी मृत्यु दिनांक 10.11.1998 को हो गई थी। लगता है श्रम विभाग के अधिकारी श्रमिक महादेव पर नोटिस तामीली के लिए भगवान के यहाँ गये थे। इस प्रकार की कई मनमानियाँ प्रकाश में आई है परन्तु उ0प्र0 का श्रम विभाग श्रमिकों की कुछ भी सुनने को तैयार नही है और विधिक प्रक्रिया का अनुपालन किये बिना जबरन बेदखली आदेश पारित करने पर आमादा है। जबकि इन श्रमिक बस्तियों का निर्माण औद्योगिक श्रमिकों और समाज के आर्थिक दृष्टि से कमजोर वर्गो के लिए एकीकृत सहायता प्राप्त आवास योजना (Inteegrated subsidized Housing Scheme for Industrial Workers and Weaker Section of the Community) के तहत भारत सरकार के सहयोग में निर्मित किया गया है और उस समय इसके निर्माण के लिए सब्जिडाइज्ड (SUBSIDISED) दर पर सरकार द्वारा भूमि उपलब्ध कराई गई थी और निर्माण में मुबलिग 2,500/-की लागत आई थी और सुनिश्चित किया गया था औघोगिक श्रमिको से प्रतिमाह तेरह रूपयें पचास पैसें किराया लिया जायेगा और प्रतिमाह अदा की जाने वाली किरायें की इस राशि से जब सम्पूर्ण लागत वसूल हो जायेगी तब हायर पर्चेज सिस्टम के तहत सम्बन्धित आवास (टेनामेन्ट) का स्वामित्व सम्बन्धित औद्योगिक श्रमिक के पक्ष में हस्तान्तरित कर दिया जायेगा।इस आशय का एक नया शासनादेश 1978 मे जनता पार्टी की मोरारजी भाई सरकार ने जारी किया था और उसके अनुपालन के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने भी वर्ष 1995 मे कालोनी हस्तांतरण की एक समेकित नीति बनाई परन्तु आदरणीय बाललचंद्र जी ने अपने श्रम मंत्रितव काल मे इस नीति का क्रियान्वयन रोक दिया और तबसे मामला उलझा हुआ है ।
श्रमिक बस्तियाँ नेहरू युग की समाजवादी नीतियों का प्रतिफल है । नरसिंह राव के प्रधानमंत्रितव काल मे कांग्रेस ने खुद समाजवाद को तिलांजलि देकर बाजार आधारित अर्थ ब्यवस्था को अंगीकार कर लिया । भाजपा ने कागजों पर गाँधी वादी समाजवाद को अपना लक्ष्य बताया है परन्तु बाजार की अर्थ व्यवस्था उसका भी आदर्श है इसलिये इनके द्वारा प्रस्तावित स्मार्ट शहरो मे हमारे आप जैसे सामान्य आय वाले लोगों के लिए सस्ती दरो पर घर उपलब्ध कराने का कोई प्रावधान नही है । हमारे कई मित्र, जिनकी खुद की हैसियत प्रस्तावित स्मार्ट शहरो मे पचास लाख से एक करोड कीमत वाला फ्लेट खरीदने की नही है , वे भी टेफको कालोनी खाली कराना जायज बता रहे है । हिन्दू मुस्लिम नजरिये को त्याग कर एक बार खुद सोचो कि क्या आप एक घर बनाने के लिए पचास लाख की पूँजी जुटा पाये है । कोई भी नौकरीपेशा आदमी इतनी रकम नही जुटा सकता । मँहगाई के कारण रोजमर्रा की आवश्यक जरूरते, बच्चो की पढाई, बीमारी अजारी मे महीने का वेतन खत्म हो जाता है । याद करो हर महीने दस तारीख के बाद पहली तारीख का इन्तजार होने लगता है इसलिये जरूरत है कि सरकार सस्ती दरों पर घर उपलब्ध कराये । बिलडर सपा का हो या भाजपा या बसपा का , उसको केवल अपने फायदे से मतलब होता है इसलिये मेरे दोस्तो श्रमिक बस्तियों को किसी बिलडर या बाजार की ऑख से नही , अपने और अपने परिवार के लिए एक " घर" की ज़रूरत की ऑख से देखो , तब आपको श्रमिक बस्तियों का औचित्य समझ में आयेगा और फिर महसूस होगा कि इन बस्तियों को खाली कराने से मजदूर परिवार बेघर तो हो जायेगा लेकिन इसकी जमीन बेचने से देश का खजाना नही भरेगा, खजाना बिलडर का भरेगा ।
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