घर एक मन्दिर है
एलन गंज स्थित टेफको कालोनी के592 श्रमिक परिवारों को उनके " घरों " से जबरन बेदखल करने का निर्णय श्रमिक कालोनियों के सभी निवासियों के लिए खतरे की घंटी है । सबको आवास देने का वायदा करने वाले हुकमरान अपना वायदा भूल गये है । सबको पता है का एलन गंज कालोनी टेफको के श्रमिकों को आवास उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी । वर्षो से श्रमिक परिवार उसमे निवास कर रहे है । आम लोगों के लिए उनका " घर " खुद मे एक मन्दिर होता है लेकिन सरकार इसे मानने के लिए तैयार नही है । सरकार को हाईकोर्ट के समक्ष खुद पैरवी करके श्रमिकों के हितों का बचाव करना चाहिए था।
सरकार की जबर्दस्ती देखकर लगता है कि इन कालोनियों की जमीन को वे प्रॉपर्टी डीलर की आँख से देखने लगे है । इन कालोनियों को किसी प्रॉपर्टी डीलर के हाथों बेचने से अच्छा है कि तर्क संगत कीमत तय करके उसके निवासियों को ही उसे बेच दिया जाये ।एक बार सोचिये कहाँ जायेंगे 592 परिवार ? इन कालोनियों मे आज भी गरीब परिवार रहते है ।वे अपना सब कुछ बेचकर भी किसी बिलडर के अपार्टमेंट मे एक घर नही खरीद सकते ।उन्हे कभी इतना वेतन नही मिला जो उनके दिन प्रतिदिन के एकदम जरूरी खर्चो से ज्यादा हो ।दस तारीख के बाद पहली तारीख का इन्तजार करते उनकी जिंदगी बीत गई । कहाँ से फ्लेट खरीदेगे ?
भाई नेहरूजी को देशद्रोही बताते आप सब थकते नही लेकिन अपने कानपुर के जूही मुहल्ले मे श्रमिकों की आवासीय दुर्दशा देखकर उनहोंने ही वहीं मौके पर खडे खडे श्रमिकों के लिए सस्ते और आरामदेह " घर " की योजना बनाई और आवश्यक धन का प्रबन्ध किया था । उस समय कहा गया था कि प्रतिमाह किराये से जब पूरी लागत वसूल हो जायेगी, तब इनका स्वामित्व उसके अधयासी को ट्रांसफर कर दिया जायेगा। 1978 मे जनता पार्टी की सरकार ने इस आशय का एक नया शासनादेश भी जारी किया है । इस शासनादेश को आधार बनाकर सरकार एलन गंज कालोनी के निवासियों को राहत दी जा सकती है
यह कहना एकदम गलत है कि हाई कोर्ट का आदेश होने के कारण सरकार मजबूर है । अपनी संवैधानिक व्यवस्था मे सरकार मजबूर नही होती , सरकार हम सबके आराध्य ब्रह्मा विष्णु महेश का संयुक्त अवतार होती है , सुस्थापित विधि है कि सरकार के नीतिगत निर्णय पर न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकते । सरकार ने अभी कुछ ही दिन पहले नेगोशियेबल इनसट्रूमेनट एक्ट के एक मामले मे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को विधि बनाकर बदल दिया है । श्रमिकों की कालोनियों के मामले मे नेहरू युग का निर्णय अभी जिन्दा है , जनता पार्टी की मोरारजी भाई सरकार ने इस निर्णय को नये सिरे से पुनर्जीवन दिया है । उसके अनुपालन मे उड़ीसा, बिहार और दिल्ली की सरकारों ने श्रमिक बस्तियों का स्वामित्व एक भी पैसा लिए बिना उसके बाशिन्दों को दे दिया है । अपनी वर्तमान सरकारों को भी उड़ीसा बिहार और दिल्ली की सरकारों का अनुकरण करके एलन गंज स्थित टेफको कालोनी के बाशिंदों को बेघर होने से बचाना ही चाहिए ।यह सच है कि श्रमिक बस्तियाँ नेहरू युग की स्मृतियाँ है परन्तु इन बस्तियों मे सभी जाति धर्म और सभी दलो के समर्थकों को एक "घर " मिला हुआ है । नेहरू युग की स्मृतियों को नष्ट करने के लिए गरीब परिवारों को बेघर मत करो ।
एलन गंज स्थित टेफको कालोनी के592 श्रमिक परिवारों को उनके " घरों " से जबरन बेदखल करने का निर्णय श्रमिक कालोनियों के सभी निवासियों के लिए खतरे की घंटी है । सबको आवास देने का वायदा करने वाले हुकमरान अपना वायदा भूल गये है । सबको पता है का एलन गंज कालोनी टेफको के श्रमिकों को आवास उपलब्ध कराने के लिए बनाई गई थी । वर्षो से श्रमिक परिवार उसमे निवास कर रहे है । आम लोगों के लिए उनका " घर " खुद मे एक मन्दिर होता है लेकिन सरकार इसे मानने के लिए तैयार नही है । सरकार को हाईकोर्ट के समक्ष खुद पैरवी करके श्रमिकों के हितों का बचाव करना चाहिए था।
सरकार की जबर्दस्ती देखकर लगता है कि इन कालोनियों की जमीन को वे प्रॉपर्टी डीलर की आँख से देखने लगे है । इन कालोनियों को किसी प्रॉपर्टी डीलर के हाथों बेचने से अच्छा है कि तर्क संगत कीमत तय करके उसके निवासियों को ही उसे बेच दिया जाये ।एक बार सोचिये कहाँ जायेंगे 592 परिवार ? इन कालोनियों मे आज भी गरीब परिवार रहते है ।वे अपना सब कुछ बेचकर भी किसी बिलडर के अपार्टमेंट मे एक घर नही खरीद सकते ।उन्हे कभी इतना वेतन नही मिला जो उनके दिन प्रतिदिन के एकदम जरूरी खर्चो से ज्यादा हो ।दस तारीख के बाद पहली तारीख का इन्तजार करते उनकी जिंदगी बीत गई । कहाँ से फ्लेट खरीदेगे ?
भाई नेहरूजी को देशद्रोही बताते आप सब थकते नही लेकिन अपने कानपुर के जूही मुहल्ले मे श्रमिकों की आवासीय दुर्दशा देखकर उनहोंने ही वहीं मौके पर खडे खडे श्रमिकों के लिए सस्ते और आरामदेह " घर " की योजना बनाई और आवश्यक धन का प्रबन्ध किया था । उस समय कहा गया था कि प्रतिमाह किराये से जब पूरी लागत वसूल हो जायेगी, तब इनका स्वामित्व उसके अधयासी को ट्रांसफर कर दिया जायेगा। 1978 मे जनता पार्टी की सरकार ने इस आशय का एक नया शासनादेश भी जारी किया है । इस शासनादेश को आधार बनाकर सरकार एलन गंज कालोनी के निवासियों को राहत दी जा सकती है
यह कहना एकदम गलत है कि हाई कोर्ट का आदेश होने के कारण सरकार मजबूर है । अपनी संवैधानिक व्यवस्था मे सरकार मजबूर नही होती , सरकार हम सबके आराध्य ब्रह्मा विष्णु महेश का संयुक्त अवतार होती है , सुस्थापित विधि है कि सरकार के नीतिगत निर्णय पर न्यायालय हस्तक्षेप नहीं कर सकते । सरकार ने अभी कुछ ही दिन पहले नेगोशियेबल इनसट्रूमेनट एक्ट के एक मामले मे सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को विधि बनाकर बदल दिया है । श्रमिकों की कालोनियों के मामले मे नेहरू युग का निर्णय अभी जिन्दा है , जनता पार्टी की मोरारजी भाई सरकार ने इस निर्णय को नये सिरे से पुनर्जीवन दिया है । उसके अनुपालन मे उड़ीसा, बिहार और दिल्ली की सरकारों ने श्रमिक बस्तियों का स्वामित्व एक भी पैसा लिए बिना उसके बाशिन्दों को दे दिया है । अपनी वर्तमान सरकारों को भी उड़ीसा बिहार और दिल्ली की सरकारों का अनुकरण करके एलन गंज स्थित टेफको कालोनी के बाशिंदों को बेघर होने से बचाना ही चाहिए ।यह सच है कि श्रमिक बस्तियाँ नेहरू युग की स्मृतियाँ है परन्तु इन बस्तियों मे सभी जाति धर्म और सभी दलो के समर्थकों को एक "घर " मिला हुआ है । नेहरू युग की स्मृतियों को नष्ट करने के लिए गरीब परिवारों को बेघर मत करो ।
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