आरक्षण से सम्बन्धित मेरी एक पोस्ट पर मित्रो और कुछ बहनों ने गम्भीर आपत्ति की है । सवर्ण मित्रों को लगता है कि आरक्षण के कारण वे सुयोग्य होने के बावजूद रोजगार के अवसरों से वंचित किये जा रहे है जबकि जमीनी हकीकत सर्वथा इसके प्रतिकूल है । यह सच है कि आरक्षण की ब्यवस्था अनन्त काल तक बनाये रखने के लिए नही की गई थी । सबके मन मे था कि एक निश्चित अवधि के बाद यह ब्यवस्था खुद ब खुद निषप्रभावी हो जायेगी परन्तु ऐसा नही हो सका , इसके पीछे के कारणों को समझने की जरूरत है।
आजादी के बाद अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों मे आशातीत विका श हुआ है लेकिन अपना देश " हर हाथ को काम , हर खेत को पानी " देने मे सक्षम नही हो सका । रोजगार के अवसर जरूरत के अनुरूप नहीं बढ सके और दूसरी ओर उदारीकरण के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को बन्द करने का सिलसिला शुरू हो गया। केन्द्र सरकार ने खुद सेवानिवृत्त कर्मचारियों के खाली पदों पर नियुक्तियाॅ बन्द कर दीं और प्रति वर्ष सेवानिवृत्त के कारण खाली हो रहीजगहों मे एक प्रतिशत पद एबालिश करने का अभियान जारी कर रखा है । खाली पदों को एबालिश करने का अभियान चिदम्बरम साहब ने अपने पहले वित्त मंत्रितव काल मे शुरू किया था जिसे यशवंत सिन्हा, प्रणव दा और आज के अरूण जेटली ने बन्द नहीं किया इसलिये वर्ष प्रतिवर्ष सरकारी नौकरियां कम होती जा रही है ।
किसने सोचा था कि बडे पदों पर छोटे मन के लोग काबिज हो जायेंगे और वे अगली पीढी के लिए नही , केवल अगले चुनाव के बारे मे सोचेगे। 1974 से 1980 के दौरान अपने विद्यार्थी जीवन मे हम सुना करते थे कि सरकार का काम व्यापार करना नही है, मतलब व्यापार निजी क्षेत्र की बपौती है । एक माहौल बनाया गया कि सरकारी क्षेत्र का हर काम घटिया है । उसके उत्पाद निजी क्षेत्र की तुलना मे कमतर है । रक्षा मंत्रालय के विभिन्न विभागों के साथ अपने समपर्क के दौरान मैने अनुभव किया कि भारतीय सेनाओं के लिए कपडों की आपूर्ति मे भी निजी क्षेत्र के उद्योग पति घटिया क्वालिटी की आपूर्ति करने से नही चूकते । सभी दलो के समर्थक उद्योगपति रक्षा मंत्रालय के सप्लायर है और सबके सब बेईमानी कर रहे है । वास्तव मे निजी क्षेत्र की तुलना मे सार्वजनिक क्षेत्र को वरीयता देने की जरूरत है ।थोडा पीछे जायें और याद करें कि अपने कानपुर मे राष्ट्रीय वस्त्र निगम की पाॅच , बी आई सी की तीन , हिन्दुस्तान वेजीटेबल आयल की एक अर्थात नौ सरकारी कारखाने थे । एक कारखाने से पाॅच हजार लोगो को प्रत्यक्ष और कम से कम दस हजार लोगो को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ था। निजी क्षेत्र को बढावा देने की सरकारी नीति के कारण कारखाने बन्द कर दिये गये और बडे पैमाने पर आम लोग बेरोजगार हो गये । कमोबेश यही स्थिति सारे देश मे है ।
आरक्षण के कारण सवर्णो के लिए रोजगार के अवसर कम नही हो रहे है। बुनियादी समस्या रोजगार के अवसरों मे बढ़ती कटौती है । इसको समझने की जरूरत है । आज हम आप सब नकली मुददों की निरर्थक चर्चा मे उलझे है । बुनियादी मुद्दे चर्चा से बाहर हो गये है । निजी क्षेत्र मे अघोषित तौर पर काम के घण्टे आठ से बढाकर दस कर दिये गये है , सवेतन अवकाश नही दिये जाते , मेटरनिटी लीव का अवसर आते ही नौकरी से निकाल दिया जाता है । मित्रों सुनियोजित रणनीति के तहत सरकारी नौकरियों मे कटौती का अभियान जारी है इसलिये नौकरियों को बचाने के लिए एक सशक्त आन्दोलन की जरूरत है, आओ श्रमिक कृषक नागरिकों इनकलाब का नारा दो ______________ नौकरियां रहेगी, तभी तो मिलेंगी।
आजादी के बाद अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों मे आशातीत विका श हुआ है लेकिन अपना देश " हर हाथ को काम , हर खेत को पानी " देने मे सक्षम नही हो सका । रोजगार के अवसर जरूरत के अनुरूप नहीं बढ सके और दूसरी ओर उदारीकरण के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को बन्द करने का सिलसिला शुरू हो गया। केन्द्र सरकार ने खुद सेवानिवृत्त कर्मचारियों के खाली पदों पर नियुक्तियाॅ बन्द कर दीं और प्रति वर्ष सेवानिवृत्त के कारण खाली हो रहीजगहों मे एक प्रतिशत पद एबालिश करने का अभियान जारी कर रखा है । खाली पदों को एबालिश करने का अभियान चिदम्बरम साहब ने अपने पहले वित्त मंत्रितव काल मे शुरू किया था जिसे यशवंत सिन्हा, प्रणव दा और आज के अरूण जेटली ने बन्द नहीं किया इसलिये वर्ष प्रतिवर्ष सरकारी नौकरियां कम होती जा रही है ।
किसने सोचा था कि बडे पदों पर छोटे मन के लोग काबिज हो जायेंगे और वे अगली पीढी के लिए नही , केवल अगले चुनाव के बारे मे सोचेगे। 1974 से 1980 के दौरान अपने विद्यार्थी जीवन मे हम सुना करते थे कि सरकार का काम व्यापार करना नही है, मतलब व्यापार निजी क्षेत्र की बपौती है । एक माहौल बनाया गया कि सरकारी क्षेत्र का हर काम घटिया है । उसके उत्पाद निजी क्षेत्र की तुलना मे कमतर है । रक्षा मंत्रालय के विभिन्न विभागों के साथ अपने समपर्क के दौरान मैने अनुभव किया कि भारतीय सेनाओं के लिए कपडों की आपूर्ति मे भी निजी क्षेत्र के उद्योग पति घटिया क्वालिटी की आपूर्ति करने से नही चूकते । सभी दलो के समर्थक उद्योगपति रक्षा मंत्रालय के सप्लायर है और सबके सब बेईमानी कर रहे है । वास्तव मे निजी क्षेत्र की तुलना मे सार्वजनिक क्षेत्र को वरीयता देने की जरूरत है ।थोडा पीछे जायें और याद करें कि अपने कानपुर मे राष्ट्रीय वस्त्र निगम की पाॅच , बी आई सी की तीन , हिन्दुस्तान वेजीटेबल आयल की एक अर्थात नौ सरकारी कारखाने थे । एक कारखाने से पाॅच हजार लोगो को प्रत्यक्ष और कम से कम दस हजार लोगो को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ था। निजी क्षेत्र को बढावा देने की सरकारी नीति के कारण कारखाने बन्द कर दिये गये और बडे पैमाने पर आम लोग बेरोजगार हो गये । कमोबेश यही स्थिति सारे देश मे है ।
आरक्षण के कारण सवर्णो के लिए रोजगार के अवसर कम नही हो रहे है। बुनियादी समस्या रोजगार के अवसरों मे बढ़ती कटौती है । इसको समझने की जरूरत है । आज हम आप सब नकली मुददों की निरर्थक चर्चा मे उलझे है । बुनियादी मुद्दे चर्चा से बाहर हो गये है । निजी क्षेत्र मे अघोषित तौर पर काम के घण्टे आठ से बढाकर दस कर दिये गये है , सवेतन अवकाश नही दिये जाते , मेटरनिटी लीव का अवसर आते ही नौकरी से निकाल दिया जाता है । मित्रों सुनियोजित रणनीति के तहत सरकारी नौकरियों मे कटौती का अभियान जारी है इसलिये नौकरियों को बचाने के लिए एक सशक्त आन्दोलन की जरूरत है, आओ श्रमिक कृषक नागरिकों इनकलाब का नारा दो ______________ नौकरियां रहेगी, तभी तो मिलेंगी।
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