Tuesday, 22 May 2018

गुस्सा आरक्षण पर, कारण रोजगार के अवसरों में कमी


गुस्सा आरक्षण पर, कारण रोजगार के अवसरों मे कमी
आरक्षण से सम्बन्धित मेरी एक पोस्ट पर मित्रो और कुछ बहनों ने गम्भीर आपत्ति की है । सवर्ण मित्रों को लगता है कि आरक्षण के कारण वे सुयोग्य होने के बावजूद रोजगार के अवसरों से वंचित किये जा रहे है जबकि जमीनी हकीकत सर्वथा इसके प्रतिकूल है । यह सच है कि आरक्षण की ब्यवस्था अनन्त काल तक बनाये रखने के लिए नही की गई थी । सबके मन मे था कि एक निश्चित अवधि के बाद यह ब्यवस्था खुद ब खुद निषप्रभावी हो जायेगी परन्तु ऐसा नही हो सका , इसके पीछे के कारणों को समझने की जरूरत है
आजादी के बाद अपने देश के विभिन्न क्षेत्रों मे आशातीत विका श हुआ है लेकिन अपना देश " हर हाथ को काम , हर खेत को पानी " देने मे सक्षम नही हो सका । रोजगार के अवसर जरूरत के अनुरूप नहीं बढ सके और दूसरी ओर उदारीकरण के नाम पर सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठानों को बन्द करने का सिलसिला शुरू हो गया। केन्द्र सरकार ने खुद सेवानिवृत्त कर्मचारियों के खाली पदों पर नियुक्तियाॅ बन्द कर दीं और प्रति वर्ष सेवानिवृत्त के कारण खाली हो रहीजगहों मे एक प्रतिशत पद एबालिश करने का अभियान जारी कर रखा है । खाली पदों को एबालिश करने का अभियान चिदम्बरम साहब ने अपने पहले वित्त मंत्रितव काल मे शुरू किया था जिसे यशवंत सिन्हा, प्रणव दा और आज के अरूण जेटली ने बन्द नहीं किया इसलिये वर्ष प्रतिवर्ष सरकारी नौकरियां कम होती जा रही है ।
किसने सोचा था कि बडे पदों पर छोटे मन के लोग काबिज हो जायेंगे और वे अगली पीढी के लिए नही , केवल अगले चुनाव के बारे मे सोचेगे। 1974 से 1980 के दौरान अपने विद्यार्थी जीवन मे हम सुना करते थे कि सरकार का काम व्यापार करना नही है, मतलब व्यापार निजी क्षेत्र की बपौती है । एक माहौल बनाया गया कि सरकारी क्षेत्र का हर काम घटिया है । उसके उत्पाद निजी क्षेत्र की तुलना मे कमतर है । रक्षा मंत्रालय के विभिन्न विभागों के साथ अपने समपर्क के दौरान मैने अनुभव किया कि भारतीय सेनाओं के लिए कपडों की आपूर्ति मे भी निजी क्षेत्र के उद्योग पति घटिया क्वालिटी की आपूर्ति करने से नही चूकते । सभी दलो के समर्थक उद्योगपति रक्षा मंत्रालय के सप्लायर है और सबके सब बेईमानी कर रहे है । वास्तव मे निजी क्षेत्र की तुलना मे सार्वजनिक क्षेत्र को वरीयता देने की जरूरत है ।थोडा पीछे जायें और याद करें कि अपने कानपुर मे राष्ट्रीय वस्त्र निगम की पाॅच , बी आई सी की तीन , हिन्दुस्तान वेजीटेबल आयल की एक अर्थात नौ सरकारी कारखाने थे । एक कारखाने से पाॅच हजार लोगो को प्रत्यक्ष और कम से कम दस हजार लोगो को अप्रत्यक्ष रोजगार मिला हुआ था। निजी क्षेत्र को बढावा देने की सरकारी नीति के कारण कारखाने बन्द कर दिये गये और बडे पैमाने पर आम लोग बेरोजगार हो गये । कमोबेश यही स्थिति सारे देश मे है ।
आरक्षण के कारण सवर्णो के लिए रोजगार के अवसर कम नही हो रहे है। बुनियादी समस्या रोजगार के अवसरों मे बढ़ती कटौती है । इसको समझने की जरूरत है । आज हम आप सब नकली मुददों की निरर्थक चर्चा मे उलझे है । बुनियादी मुद्दे चर्चा से बाहर हो गये है । निजी क्षेत्र मे अघोषित तौर पर काम के घण्टे आठ से बढाकर दस कर दिये गये है , सवेतन अवकाश नही दिये जाते , मेटरनिटी लीव का अवसर आते ही नौकरी से निकाल दिया जाता है । मित्रों सुनियोजित रणनीति के तहत सरकारी नौकरियों मे कटौती का अभियान जारी है इसलिये नौकरियों को बचाने के लिए एक सशक्त आन्दोलन की जरूरत है, आओ श्रमिक कृषक नागरिकों इनकलाब का नारा दो ______________ नौकरियां रहेगी, तभी तो मिलेंगी।
टिप्पणियाँ
Dayakrishna Kandpal अभी आइ ए एस परिक्षा के दो टोपर रिजर्ब क्लास से है अब यह वर्ग टोप निकल रहा है ।जिससे सवर्ण समाज के अवसर कम हो रहे है ।फिर भी योजगार की जरूरत सब को है
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Anoop Gautam 2 करोड़ रोजगार देने का वादा किया था दिया 1 जीबी डेटा रोज ताकि रोजगार की बात कोई न करे और बिजी रहे नेट पर
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Anand Gautam Rojgaar ha nhi bharti pr ROK H. Private sector me reservation h nhi.. Arachhan se kya fayda ho raha h??? Kewal politics ho rahi h.. Pronnati me bhi arachan samapt ho gya h...
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Dhani Ram Gupta Her hath ko kam va her khet ko pani kyo nahi mila is per kabhi manan kiya ya likha sab se pahle batware ke bad jansankhya kis tarah barai gai va swantrata ke bad bare bare netao ne apna apna ghar bharana shuru kiya usase prabhavit ho ker karmachari va adhikari bhrast va baiman hote gaye dusari bat desh ke liye natikatata va samarpan ki Bhawana 99 pratisat hai hi nahi jisase kaise Prateik hath ko kam va Prateik khet ko pani kaise milega.
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Prem Kumar Tripathi शर्मा जी आपने सही फरमाया नौकरियों में 10% खाली पदों पर प्रतिवर्ष कटौती हो रही है परंतु IAS PCS के पदों पर समय से नियुक्तियां हो रही है इसमें कोई कटौती शासन द्वारा मेरे संज्ञान में नहीं है। उदारीकरण की जो नीति वित्त मंत्री चिदंबरम के समय में शुरू की गई थी मनमोहन सिंह के काल से अभी तक निरंतर वही नीति जारी है। हर हाथ को रोजगार हर खेत को पानी का नारा केवल नारा ही रह गया। उद्योगपतियों द्वारा तैयार किए गए माल का दाम बाजार में क्या होगा इस पर सरकारों का कोई नियंत्रण नहीं रहा। यही कारण है कि आज करोड़ों युवा बेरोजगार है तथा गरीबी अमीरी की सीमा निरंतर बढ़ती गई सरकारों का इस पर कोई अंकुश नहीं रहा। स्थितियां आज बहुत विकराल है कोई भी सरकार इस दिशा में कोई क्रांतिकारी कदम उठाना नहीं चाहती। केवल सत्ता में बने रहने व सत्ता में पहुंचने का खेल राजनीतिक दलों द्वारा खेला जा रहा है जन समस्याओं के स्थाई निदान का कोई उपाय किसी भी दल के पास नहीं है। सरकारे लोगों का ध्यान इधर उधर भटका कर लोगों को भ्रमित करना चाहती हैं मूल समस्या खत्म करने की तरफ किसी का दिमाग नहीं है। जनता भी इन समस्याओं की तरफ से आंख बंद किए हुए हैं केवल सरकारों को बदलने वह उनको बनाए रखने में ही केंद्रित है कौन उनकी समस्याओं को खत्म कर रहा है कौन समस्याएं बढ़ा रहा है इस तरफ मूल चिंतन किसी का नहीं है अब तो किसी बड़े जन आंदोलन का इंतजार है कौन करेगा कैसे होगा यह सोचने का विषय है।
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Mk Sharma · Akhilesh Kumar Sharma के मित्र
सत्य है 😀ईमानदारी दिया लेके भी ढूँढने पर नहीं मिल पारही है😂
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Suresh Sachan Absolutely right
बिल्कुल सही
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अपने आप अनुवाद किया गया
2 सप्ताह
Ishwar Chandra Srivastava Dhani ram ji i support you bt kuchh log.. Jbarjasti ka lekhn kr rahey h
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Kaushal Sharma कुछ लोग क्यो, मै खुद भी अपने मन का लिखता हूँ।
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2 सप्ताह
Rk Gupta Hamare jaise developing desho me aisa samay aata hai; jab avsar kam aur ichhchuk jyada honge par yeh keval chadhai ka ek padav hai; Hume Ise par karna hi hoga. 
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Anil Kumar Rastogi बहुत सही लेख है काश इस सच्चाई को सभी लोग समझ सकें। जाति और धर्म की राजनीति ने आम लोगों का जीवन नर्क कर दिया है।
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