कर्नाटक का सम्पूर्ण घटनाक्रम राजीव गाँधी के प्रधानमंत्रितव काल मे आन्ध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामाराव को बहुमत होते हुये भी अपदस्थ करने के धतकरम से एकदम मिलता जुलता है ।रामाराव ने अपने समर्थक विधायकों की परेड महामहिम राष्ट्रपति के समक्ष कराई थी तब कहीं उन्हे शपथ दिलाई गई। राजीव गाँधी को इस प्रकार का धतकरम करने की सलाह उनके खासमखास अरूण नेहरू और अरूण सिंह ( अब भाजपा नेता ) ने दी थी । इसी प्रकार का ब्यवहार फारूक़ अब्दुल्ला के साथ भी किया गया था और उसके विरोध मे अटल बिहारी वाजपेयी सहित उस समय के सभी विपक्षी नेताओ ने कश्मीर मे रैली की थी । अपनी मेनका जी फारूक़ के घर मे जाकर ठहरी थी ।मेनका जी क्यों नही कहती कि जो आचरण उस समय गलत था , आज सही कैसे हो सकता है ?
कर्नाटक घटनाक्रम पर भाजपा नेताओं के बयान सुनकर शर्म आती है । पार्टी विद डिफरेंस या " सबको देखा बार बार हमको देखो एक बार " के उद्घोष पर विश्वास करके लोकसभा मे दो सदस्यों वाली पार्टी को आम जनता ने बहुमत से चुना है । सब लोग मानते थे कि यह पार्टी देश को बुलंदियों की ओर ले जायेगी लेकिन इस पार्टी ने तो पिछले चार वर्षों में धतकरमो के मामलों मे कांग्रेस के साथ शर्मनाक प्रतिद्वंदिता शुरू कर रखी है । हमारे जैसे लोग मानते थे कि यह पार्टी अगले चुनाव के लिए नही , अगली पीढ़ी के लिए काम करती है लेकिन कर्नाटक मे साफ साफ संख्या बल कम होने के बावजूद सरकार बनाने के दुराग्रह ने आम भाजपा कार्य कर्ताओं को भी शरमिंदगी का शिकार बनाया है । कई वर्षो के अनवरत् प्रयास और असंख्य कार्य कर्ता ओं के त्याग और समर्पण के बाद कांग्रेसी संस्कृति का विनाश सन्निकट दिखने लगा था परन्तु कर्नाटक जैसी घटनाओं से उसके पुनर्जनम को बल मिला है । समझना होगा कि भाजपा, कांग्रेस या अन्य कोई दल देश नही है । यह दल रहें या न रहें, देश रहेगा और देश के आम लोगों के लिए संसदीय लोकतंत्र का जिन्दा रहना आवश्यक है इसलिये देश और लोकतंत्र से प्यार करने वाले लोगों को अपने अपने स्तर पर संसदीय मर्यादाओं को रक्षा के लिए " उठो जवानों तुम्हे जगाने _________" का उद्घोष करने के लिए तैयार होना होगा । हमारी चुप्पी ने लोकतंत्र के लिए खतरा बढाया है, आगे क्या होगा ? कहना मुश्किल है लेकिन आज के घटनाक्रम ने आम जनमानस को शर्मिंदा किया है ।आज जीता कोई हो , लेकिन सच यही है कि देश हारा है , लोकतंत्र हारा है ।
कर्नाटक घटनाक्रम पर भाजपा नेताओं के बयान सुनकर शर्म आती है । पार्टी विद डिफरेंस या " सबको देखा बार बार हमको देखो एक बार " के उद्घोष पर विश्वास करके लोकसभा मे दो सदस्यों वाली पार्टी को आम जनता ने बहुमत से चुना है । सब लोग मानते थे कि यह पार्टी देश को बुलंदियों की ओर ले जायेगी लेकिन इस पार्टी ने तो पिछले चार वर्षों में धतकरमो के मामलों मे कांग्रेस के साथ शर्मनाक प्रतिद्वंदिता शुरू कर रखी है । हमारे जैसे लोग मानते थे कि यह पार्टी अगले चुनाव के लिए नही , अगली पीढ़ी के लिए काम करती है लेकिन कर्नाटक मे साफ साफ संख्या बल कम होने के बावजूद सरकार बनाने के दुराग्रह ने आम भाजपा कार्य कर्ताओं को भी शरमिंदगी का शिकार बनाया है । कई वर्षो के अनवरत् प्रयास और असंख्य कार्य कर्ता ओं के त्याग और समर्पण के बाद कांग्रेसी संस्कृति का विनाश सन्निकट दिखने लगा था परन्तु कर्नाटक जैसी घटनाओं से उसके पुनर्जनम को बल मिला है । समझना होगा कि भाजपा, कांग्रेस या अन्य कोई दल देश नही है । यह दल रहें या न रहें, देश रहेगा और देश के आम लोगों के लिए संसदीय लोकतंत्र का जिन्दा रहना आवश्यक है इसलिये देश और लोकतंत्र से प्यार करने वाले लोगों को अपने अपने स्तर पर संसदीय मर्यादाओं को रक्षा के लिए " उठो जवानों तुम्हे जगाने _________" का उद्घोष करने के लिए तैयार होना होगा । हमारी चुप्पी ने लोकतंत्र के लिए खतरा बढाया है, आगे क्या होगा ? कहना मुश्किल है लेकिन आज के घटनाक्रम ने आम जनमानस को शर्मिंदा किया है ।आज जीता कोई हो , लेकिन सच यही है कि देश हारा है , लोकतंत्र हारा है ।
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