Sunday, 27 August 2017

आदरणीय प्रकाश जी क्षमा करें


आदरणीय प्रकाश जी
जिला अदालतों मे दस बीस रूपये देकर अगली तारीख लेने की प्रथा से केवल हम और आप ही नहीं, पूरा भारत पीड़ित है लेकिन अदालतों के पीठासीन अधिकारी जानबूझकर इसकी अनदेखी करते है और इसको रोकना उनकी प्राथमिकता मे नहीं है । अब सवाल उठता है , इसको रोका कैसे जायें? कौन इसकी पहल करेगा ? भाई अपने सिस्टम मे हर स्तर पर चेक एणड़ बैलेनस की ब्यवस्था है लेकिन सुविधा शुल्क ( रिश्वत) लेना और देना एक आम बात हो गईं है इसलिए जमीनी स्तर के इस भ्रष्टाचार की अब चर्चा भी नहीं होती लेकिन इसको रोकना जरूरी तो है ही इसलिए मुझे लगता है कि सरकार को खुद पहल करनी चाहिए । सरकार की इच्छा शक्ति सब पर भारी पड़ती है । प्रदेश की सरकार को कुछ ही दिनों के अन्दर प्रत्येक जिले मे औसतन दस वकीलों को सरकारी वकील नियुक्त करना है । इन वकीलों को हत्या, दहेज हत्या, ड़कैती, बालातकार जैसे गम्भीर अपराधों मे अपराधियों को सजा करानी होती है । आप जानते है कि इन गमभीर अपराधों मे जमानत प्रार्थना पत्रों की सुनवाई के समय केस ड़ायरी के पन्ने अभियुक्तों के पास आ जाते है परन्तु कभी कोई नहीं पूँछता, केस ड़ायरी के पन्ने उन्हें कौन उपलब्ध कराता है ? केस ड़ायरी विवेचक या सरकारी वकील के अलावा और किसी के पास रह ही नहीं सकती इसका सीधा अर्थ है कि इन्हीं दोनों मे से ही कोई इसे बेचता है ।जो सौ दो सौ रूपये की रिश्वत लेकर केस ड़ायरी बेच सकता है , उससे किसी को सजा कराने की अपेक्षा करना अपने साथ अन्याय करना है । इसी प्रकार साक्षियों की पक्षद्रोहिता से भी सरकार और कानून ब्यवस्था को नुकसान पहुँचाया जाता है।इसमे लम्बी बारगेनिंग होती है। आज आप प्रभावी स्थिति मे है , जिम्मेदार लोगों तक आपकी सहज पहुँच है , आप उन्हे जमीनी हकीकत से अवगत करायें और हर जिले मे दस दस लोग खोज कर दें जिनमें अपनी ज्ञात आय पर गुजारा करने का जजबा हो । इतना बड़ा संघटन है , हर जिले मे ऐसे वकील खोजना कोई मुश्किल काम नहीं है । अदालत की कोई एक शाखा अपराधियों के साथ तालमेल बन्द कर दे तो निश्चित मानिये कि पीठासीन अधिकारी सहित सभी शाखाओं पर उसका सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा । देखिए अब आपको अवसर मिला है , कम से कम अपने कार्य कर्ताओ को अपराधियों के साथ तालमेल करने से रोकिये । याद कीजिए पिछ्ली सरकार के दौरान बजरंग दल के कार्य कर्ता राजेश से भी सरकारी वकील ने पैसे लिए थे जबकि उसक़ा मुक़दमा कल्याण सिंह की सरकार ने वापस ले रखा था ।भाई इस मुद्दे पर आगे बढकर कुछ पहल कीजिए तभी " भ्रष्टाचार न गुंडाराज अबकी बार मोदी सरकार " का नारा जुमला बनने से बच सकेगा ।
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Jai Shankar Bajpai मैं आपसे पूर्णतः सहमत हूं। आपको ज्ञात है कि न्यायालयों में जजों की कमी, कर्मचारियों की कमी , कारीगरों की पहुंच में न्यायलयीन कार्यवाही का होना । वकील व मुअक्लि द्वारा तारीख का लेना न्यायालयों का रिक्त रहना आदि भी अनेक कारण हैं।
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Ambuj Agarwal जिस भी विभाग में सबसे कम रिशवत चलती है वह से आप काभि त्वरित सही इलाज नही पाते जिस प्रकार सस्ती दवाई से मरीज भी ठीक नही होता उचित इलाज उचित दावल उचित न्याय व्यवस्था कार्यवाही ही आम आदमी को राहत प्रदान करती है
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Saturday, 26 August 2017

गणेश: संघर्ष मे प्रेरक


गणेश : संघर्ष में प्रेरक
जब एडोल्फ हिटलर ने अपनी नेशनल सोशलिस्ट (नाजी) पार्टी का निशान (1930) स्वस्तिक बनाया था तो प्राच्य के मनीषियों का व्यग्र होना सहज था। ओमकार स्वरूप गणेश के इस सौर प्रतीकवाले शुभ संकेत को उसने वीभत्स बना डाला था। हिटलर ने अपने अमांगलिक और अमानुशिक कार्ययोजना में इस वैदिक प्रतीक का जुगुप्सित प्रयोग किया था। स्वस्तिक को गणेश पुराण के अनुसार गजानन का स्वरूप तथा हर कार्यों में मांगलिक स्थापना हेतु शुरूआत को मानते हैं। श्रीगणेशाय नमः के उच्चारण के पूर्व स्वस्तिक चिन्ह बनाकर ”स्वस्ति न इन्द्रो बुद्धश्रवाः“ स्वस्तिवचन करने का विधान है। अपने स्वराष्ट्रवासी प्राच्यशास्त्री मेक्सम्यूलर को पढ़कर इस जर्मन नाजी तानाशाह ने अपने पैशाचिक अभीष्ट को हासिल करने हेतु स्वस्तिक को अपनाया था।
लेकिन हिटलर का वही हश्र हुआ जो सूर्यपुत्र अहंतासुर का हुआ जिसका भगवान गजानन ने धूम्रवर्ण के अवतार में जगद् कल्याणार्थ वध किया। ब्रह्मा द्वारा कर्माध्यक्ष पद पाकर सूर्य को अहंकार हो गया था और तभी उनके नथुनों के वायु से अहंतासुर का जन्म हुआ था। वह भी अभिमानी होकर समस्त ब्रह्माण्ड का शासक, अमर तथा अजेय होना चाहता था। दैत्यगुरू शुक्राचार्य से गणेश मंत्र की दीक्षा प्राप्त कर इस अहन्तासुर राक्षस ने पार्वतीपुत्र की घोर उपासना की। भोले बाबा के आत्मज ने इस दैत्य को तथास्तु कहकर वर दे डाला। फिर वही हुआ जो हर दैत्य करता आया है। वही जो हिटलर ने गत सदी में किया था। पापाचार, नरसंहार, तबाही आदि। लाचार, निरीह देवताओं तथा मानवों ने गणेश की उपासना की। अपने भक्तों की रक्षा में गजानन ने उग्रपाश फेंक कर सभी असुरों का वध कर दिया। घमण्ड तजकर अहंतासुर गणेश का शरणागत हो गया। उसे आदेश मिला कि जहां गणेश की आराधना न होती हो वहीं जा कर वास करे।
राजनीतिक रूप में गणेश का राष्ट्रवादी तथा जनकल्याणकारी उपयोग स्वाधीनता सेनानी, महाराष्ट्र केसरी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने पुणे में सर्वप्रथम किया था। हिटलर के आविर्भाव के पैंतीस वर्ष पूर्व यह हुआ था। अंग्रेजी साम्राज्यवादियों ने अपने भारतीय उपनिवेश में हर प्रकार की सार्वजनिक क्रियाशीलता पर प्रतिबंध लगा दिया था। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (1857) कुचल दिया गया था। शासकों ने भारतीयों को जाति तथा मजहब के आधार पर विभाजित कर दिया था। महाराष्ट्र के पेशवा शासक 1893 के पूर्व तक गणेश चतुर्थी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाते थे। लोकमान्य तिलक ने इस धार्मिक उत्सव के जनवादी पहलू को पहचाना। उसे जनान्दोलन बनाया। तब तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना मुम्बई में हुये आठ वर्ष हो चुके थे। मगर इसके सार्वजनिक आयोजन पर रोक बरकरार थी। हिन्दू चेतना को तिलक ने जगाया और जनपदीय स्तर से उठाकर गणेश चतुुर्थी को राष्ट्रीय रूप दिया। चूंकि अन्य ईश्वरों की तुलना में गणेश किसी जाति या वर्ग विशेष के नहीं थे, अतः सर्वजन के इष्ट बन गये। गणेशोत्सव में सभी हिन्दू शरीक हो गये। उन्हीं दिनों तिलक के उग्र संपादकीय (समाचारपत्र द्वय मराठा तथा केसरी में) छपते थे जिनसे साम्राज्यवाद-विरोधी भावना को बल मिलता था। उनका सिंहनाद कि ”स्वतंत्रता मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है, मैं इसे लेकर रहूंगा“ काफी ख्यात हुआ। गणेश चतुर्थी को तिलक ने जनविरोध का माध्यम बनाया। बौद्धिक चर्चायें, नुक्कड़ नाटक, कविता पाठ, संगीत आदि माध्यम अपना कर गणेश चतुर्थी को मात्र लोकरंजन ही नहीं लोकराज के संघर्ष का मंच भी बनाया गया। स्वतंत्रता के बाद तो गणेश चतुर्थी को राष्ट्रीय पर्व की मान्यता मिल गई।
जब गणेश से जुड़े विविध प्रतीकों का जिक्र होता है तो दो और अनूठे निशान हैं जिनका संबंध आज की विश्वराजनीति से अत्यन्त दिलचस्प है। पिता शंकर महादेव की जटा पर शोभित बालेन्दु (अर्धचन्द्र) को गणेश ने भी संवारा है। आज यह अर्धचन्द्र इस्लामी राष्ट्रों में हिलाल के रूप में दिखता है। गणेश के भ्राता कार्तिकेय के चिन्ह है षडभुजीय सितारे को यहूदी मतावलम्बियों ने अपने स्टार आॅफ डेविड के रूप में इस्राइल का राष्ट्र प्रतीक बनाया है। हालांकि अर्धचन्द्र के उपासक इस्लामीजन और षडभुज के आराधक यहूदी आपस में कट्टर शत्रु हैं। अतः गणेश परिवार इस समन्वय का द्योतक है।
यूं शिव ने देवताओं के शुभकार्य हेतु गणेश की सृष्टि की मगर अन्य गमनीय विभूतियां और विलक्षणतायें भी गणेश में हैं। शिव के रौद्ररूप की धार कम करना हो तो गणेशोपासना कीजिए। निर्विघ्नता, कर्मनाश और धर्मप्रवर्तन के अलावा गणेश ललित कलाओं और संस्कृति के संरक्षक हैं। एक बार वे बड़ा मृदंग बजा रहे थे कुपित शिव ने उसे त्रिशूल से तोड़ दिया। छोटे रूप में तबले की उत्पत्ति तभी से हुई। जटिलता को सुगम बनाने में उन्हें महारत है जैसे भारीभरकम हाथीवाला शरीर नन्हे चूहे पर टिके, यह भौतिक संतुलन गणेश ने मुमकिन कर दिखाया।
चूहे का ही प्रसंग है। एक बार सांप दिख गया था तो चूहा भागा और गड़बडा कर गणेश जी घराशायी हो गये। इस नजारे पर चन्द्रमा हंस पड़े। गणेश ने शाप दे दिया कि उसका आकार घटता बढ़ता रहेगा। तभी से चन्द्रमा के लिए बालेन्दु से पूर्णचन्द्र और फिर प्रतिपदा से अमावस तक का दौर चलता है।
इस पूरी गणेशकथा में हम श्रमजीवी पत्रकारों के लिये रूचिकर वाकया यह है कि गणेश सृष्टि के सर्वप्रथम लेखक और उपसम्पादक हैं। यूं तो देवर्षि नारद को प्रथम घुमन्तू संवाददाता और संजय को सर्वप्रथम टीवी एंकर कहा जा सकता है, मगर गणेश का रिपोर्ताज में अवदान अनूठा है। मध्येशियाई इतिहासकार, गणितज्ञ, चिन्तक और लेखक अल बरूनी ने एक हजार वर्ष पूर्व लिखा था कि वेद व्यास ने ब्रह्मा से आग्रह किया था कि किसी को तलाशे जो उनसे महाभारत का इमला ले सके। ब्रह्मा ने हाथीमुखवाले गणेश को नियुक्त किया। वेद व्यास की शर्त यह थी कि गणेश लिखते वक्त रूकेंगे नहीं और वही लिखेंगे जो वे समझ पायेंगे। इससे गणेश सोचते हुए, समझते हुये लिखते रहे और व्यास भी बीच-बीच में विश्राम करते रहे। (एडवार्ड सी.सचान, अलबरूनीज इंडिया, मुद्रक एस. चान्द, दिल्ली, 1964, भाग एक, पृष्ट 134)। तो उस महान सम्पादक व लेखक, वक्रतुण्ड, एकदन्त, गजवक्त्र, लम्बोदर, विकट, विघ्नराज, धूम्रवर्ण, भालचन्द्र, विनायक, गणपति, गजानन को उनके जन्मोत्सव पर हमारा सादर नमन।
K Vikram Rao
मो. 0-94150-00909
Email: k.vikramrao@gmail.com
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Jitendra Kumar Pandey बहुत बधाई हो इस सुंदर ज्ञान वर्धक जानकारी के लिए
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Ramesh Trivedi Great write up
महान लिखो
अपने आप अनुवाद किया गया
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गनीमत है, न्यायपालिका धर्म से प्रभावित नही होती


गनीमत है,न्यायपालिका धर्म से प्रभावित नहीं होती
कहा जाता है, धर्म और राजनीति एक सिक्के के दो पहलू है । धर्म दीर्घ कालीन राजनीति है और राजनीति अल्प कालीन धर्म । हम भारतीय इस अवधारणा को सच्चे मन से स्वीकार करते है परन्तु कथावाचकों के रूप मे पेशेवर साधु सन्त हमारी संस्कृति और आस्था का मजाक बना रहे हैं ।हिंसा, अराजकता, हत्या, बालातकार जैसे अपराधों को इन कथावाचकों ने अपनी संस्कृति बना लिया है । धार्मिक भावनायें भड़काकर वोट बटोरने वाले राजनेता नतमस्तक होकर इन पेशेवर साधु सन्तों का महिमामंडन करते है । भाजपा सांसद फर्जी साधु साक्षी महाराज ने दोष सिद्ध अपराधी को निर्दोष बताकर न्याय पालिका का अपमान किया है और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी निन्दा न करके अपरोक्ष रूप से उनकी अशोभनीय टिप्पणी का समर्थन किया है ।
गनीमत है अजादी की लड़ाई से उपजा नेतृत्व समझदार था , दूरदर्शी था , उसने संविधान को सर्वोपरि माना और उसके कारण हमारी न्याय पालिका किसी धर्म के मानक से नही, संविधान के मानकों से प्रभावित होती है । आजकल संविधान बदलने की बातें भी सुनाई जाने लगी है । साक्षी महाराज जैसे साधु सन्त संसद मे अपने बहुमत के बल पर आशा राम बापू, रामपाल और राम रहीम को कानून से बाहर रखने का कानून बना सकते थे लेकिन लगता है कि हमारे संविधान निर्माताओ को इस तरह के घटिया नेताओं के प्रभावी होने का अहसास था , इसलिए उन्होंने संसद द्वारा बनाये गये कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार न्याय पालिका को दे रखा है ।
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Nadeem Rauf Khan Hindustan bachao abhiyan chalao
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कल 09:26 पूर्वाह्न बजे
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Prakash Sharma क्या इस विषय मे न्याय पालिका के अड़ियल विषय पर भी कुछ मार्गदर्शन करेंगे मान्यवर माना सरकार वोट के लालच में अंधी हो गयी थी लेकिन क्षण क्षण पर तिथियां बढ़ाने वाली न्यायपालिका क्या ये देख कर की स्थिति बिगड़ गयी है निर्णय की तिथि को बढ़ा कर हालात सामान्य करने स्थिति में सहायक नही हो सकता था लेकिन वो तो लगा था dgp को बर्खास्त और सरकार को धूलधूसरित करने में। मैं ऐसी परिस्थिति में तिथियों को आगे बढाने के कई उदाहरण दे सकताहु
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कल 09:28 पूर्वाह्न बजे
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Narendra Kumar Yadav साक्षी पंर भी आरोप है।
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कल 10:24 पूर्वाह्न बजेसंपादित
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Kaushal Sharma आदरणीय प्रकाश जी 
आज आपने एक गम्भीर समस्या को रेखांकित किया है । वर्षो से लम्बित मुकदमों मे सुनवाई हुये बिना अगली तारीख मिल जाने से आम वादकारी पीड़ित है । कड़ुवा सच है कि पीठासीन अधिकारी केवल रूटीन काम निपटाता है । पुराने मुकदमों मे तारीख बढा देना उसकी आ
...और देखें
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कल 10:53 पूर्वाह्न बजेसंपादित
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Brajesh Nandan Pandey सत्य बचन
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16 घंटे
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Jai Shankar Bajpai कुछ तथाकथित ठेकेदार माननीय न्यायालय के फैसले पर टीका टिप्पणी कर संदिग्ध बनाने का कुत्सित प्रयास कर ऐसे बाबाओं का बचाव कर रहे हैं जिन पर अपराध साबित हो चुके हैं ।जनता को ऐसे लोगों से सजग रहना चाहिए।
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कल 11:09 पूर्वाह्न बजे
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Prakash Sharma शांति व्यवस्था कायम करने में सबका सामंजस्य नही होना चाहिए लोकतांत्रिक व्यवस्था में सब स्वतंत्र स्वावलम्बी होते हुए भी एक दूसरे से बंधे है अनेको उदाहरण है जब प्रशासन सरकार और न्यायालय मिल कर कदम तय करते है Jai Shankar Bajpai जी न्यायालय गलतियों की टिप्पणी से परे नही है मैंने बाबा का बचाव नही किया अपनी आंखों के सामने 20 रुपए तारीख,उस पैसे की चाय गटकने वाला न्यायालय क्या किसी कारण वश इस विषम परिस्थिति को टाल नही सकता था मैंने न्यायलय के निर्णय पर कोई प्रश्न नही उठाया आपमे साहस हो तो एक बार आवाज उठाइये की इमाम बुखारी के खिलाफ जारी वारंट को न्यायालय सेना लगा कर execute करे
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23 घंटे
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Kaushal Sharma भाई हर मुद्दे को हिन्दू मुस्लिम नजरिये से मत देखो ।कभी कभार विशुद्ध भारतीय या केवल मानव बनकर भी विचार किया करिये ।
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Jai Shankar Bajpai मान्यवर प्रकाश शर्मा जी मैंने टिप्पणी आपके कथन के परिपेक्ष में नही की थी पूर्वोक्त की गयी टिप्पणी स्वयं भू ठेकेदारों के प्रति की थी ऐसा प्रतीत होता है आप पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं।रही बात हिम्मत की तो दूसरों की हिम्मत देखने के बजाय खुद हिम्मत दिखाइए
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1
20 घंटे
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Prakash Sharma Jai Shankar Bajpaiji जिस सन्दर्भ में बात हो रही हैं मुझे न्यायालयी शक्ति दीजिये मैं जरूर prakat करुंगा बाकी अपने विषयक जहाँ जरूरी है प्रकट करता रहता हूं
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जवाब दें20 घंटे
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Jai Shankar Bajpai Prakash Sharma ji
आपको अवगत हो कि न्यायालय द्वारा चार दिन पहले ही सरकार को लां & आर्डर मेनटेन करने के निर्देश दिए गए थे। जिसमें सरकार प्रशासन व तंत्र नियंत्रण करने में बिफल रहा है।
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जवाब दें20 घंटे
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Jai Shankar Bajpai श्री prakash Sharma ji .
आवेश में आकर किसी पर टिप्पणी करना उचित नहीं है Shri koushal Dharmanji Ki टिप्पणी पर की गई मेरी टिप्पणी को पुनः पढ़ें मैंने आपकी किसी बात पर टिप्पणी नही की मेरी टिप्पणी का सन्दर्भ साक्षी महाराज जैसे बयानों से जनता को आगाह किया जाना था । आवेश में आपने पढ़ाहिम्मत दिखाने की बात कही क्या आपने मुझे न्यायलयीन शक्ति दी हैं ? आशा है कि आप अपनी बात प्रकट करते रहेंगे । व मुझसे सहमत होंगें।
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जवाब दें19 घंटे
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Prakash Sharma Kaushal Sharmaजी जब प्रशासनिक न्यायालयी विधायी व चतुर्थ स्तंभी निर्णयों निष्कर्षो में समानता नही होगी तो स्वाभाविक ये विचार विकसित होगा ही क्यों नही होगा हिन्दू मुसलमान मुस्लिम तुस्टीकरण अच्छा जातीय/पंथीय तुस्टीकरण खराब मुसलमान के नाम पर राजनीति अच्छी हिन्दू के नाम पर पाप
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Kaushal Sharma राजनीति हिन्दू के नाम पर हो या मुस्लिम के नाम पर , घातक होती है । हर समस्या को हिन्दू मुस्लिम नजरिये से देखना देशहित मे नहीं है । आप कुछ भी कहे, या मानें, मेरा दृष्टिकोण यही है ।
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जवाब दें16 घंटे
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Sanjay Shukla ऐसे जज साहब को सलाम करना जाहिये जिन्होने किसी भी दबाव और लालच के बिना एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया साथ ही उन पीडित बहनो और जाँच करने वाले सी बी आई कै उपाधीक्षक व उनकी टीम को भी सलाम है ।बाबा राम रहीम के प्रभाव मे हरियाणा की सरकार नत मम्तक बनी हुयी धी ।बलात्कारी बाबा को दोषी देने जैसे फैसलो से न्याय पालिका की इज्जत मे इजाफा हुआ है साथ ही यह भी संदेश गया है कि आम आदमी को भी देश मे न्याय मिल सकता है ।
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22 घंटे
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Nareshhs Sharma बिलकुल ठीक कहा है शुक्ल जी ,न्याय पालिका के सहारे ही देश अब तक टिका है अन्यथा नेता तो वोट के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं
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Prem Kumar Tripathi कौशल जी आपको देश हित मे राजनीति से ऊपर उठकर सही आकलन करने के लिये बधाई ।
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18 घंटे
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Prakash Mishra Kaliyug to yuhi hoga poora
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3 घंटे
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