Wednesday, 2 August 2017

विपक्षी दलों में सेंधमारी पुरानी बिमारी है


विपक्षी दलों मे सेंधमारी पुरानी बीमारी है
आधुनिक राजनीति के युग प्रवर्तक भजन लाल जी ने वर्ष 1980 मे जनता पार्टी की पूरी सरकार को इन्दिरा गाँधी के चरणों मे समर्पित कर दिया था, ठीक उसी तरह सुशाशन बाबू नीतीश भाई ने बिहारियो के मोदी विरोधी जनादेश को नरेन्द्र मोदी के चरणों मे समर्पित करके बिना चुनाव लड़े भारतीय जनता पार्टी को बिहार मे सरकार बनाने का अवसर दिया है । संसदीय लोकतंत्र कानून से ज्यादा शुचिता, पारदर्शिता, और नैतिकता से फलता-फूलता है। याद करे कशमीर मे फारूक अब्दुल्ला और आंध्र प्रदेश में रामाराव की सरकार को निरलजजता पूर्वक कांग्रेस ने अपदस्थ किया था । रामाराव ने तब के राष्ट्रपति के सामने अपने विधायकों की परेड़ कराई और विधानसभा की जगह राष्ट्रपति भवन मे अपना बहुमत सिद्ध किया । नरसिंह राव के जमाने मे भी कल्याण सिंह की सरकार को अपदस्थ करके जगदमबिका पाल को मुख्य मंत्री बना दिया गया था ।
कांग्रेस संसद मे अपने बहुमत के बल पर राज्यो मे विपक्षी दलों की सरकारों को अस्थिर करके अपने आपको देश के लिए अपरिहार्य बताती रही है । आज उनकी पार्टी अपनी ही बुराइयों या कहें बेशर्म परम्पराओ को झेलने के लिए अभिशप्त है इसलिए भारतीय जनता पार्टी को समझना चाहिए कि सेंधमारी से विपक्षी दलों पर तात्कालिक बढत तो बनाई जा सकती है लेकिन सेंधमारी से संसदीय लोकतंत्र के प्रति आम जनता का विश्वास कम होता है , बढता नही।आपके पास अपार बहुमत है । आप कुछ ऐसी परमपरायें ड़ालिये जिन पर आने वाली पीढी गर्व कर सके। सेंधमारी से योगी महाराज और उनके मंत्री विधानमंडल के सदस्य तो बन जाँयेगे लेकिन यदि वे चुनाव जीतकर सदन के सदस्य बनते , तो श्रेयसकर होता । चुनाव न लड़ने से लगता है कि उन्हे हार जाने का खतरा महसूस हो रहा है । विपक्षी दलो को येन केन प्रकारेण अपमानित करना , कमजोर करना कांग्रेस की परम्परा है और इससे लोकतंत्र कमजोर होता है ।
अहमद पटेल को हराने के लिए जारी अभियान को देखकर याद आता है , कि 70 के दशक मे विधायकों मे तोड़ फोड़ कराके राजनारायण को राज्य सभा का चुनाव हरवा दिया गया था लेकिन चुनाव हारने से राजनारायण की राजनैतिक हैसियत कम नहीं हुई बल्कि वे ही कांग्रेसी साम्राज्य के पतन का कारण बने । अहमद हार जाँयेगे तो कहेंगे, उन्हे मोदी ने हराया , और यदि वे जीत गये तो कहेंगे कि उनहोंने मोदी को हराया है ।
टिप्पणियाँ
Suresh Yadav पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों के सत्कर्मों की बराबरी करने में तो काफी समय लगेगा और उसके लिए प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से इस सरकार को शायद कुछ नीतिगत परिवर्तन भी करनी पड़े लेकिन कांग्रेस के कुकर्मों की बराबरी करने में यह सरकार काफी तेजी से आगे बढ़ी है और बहुत कम समय में ही इस दिशा में काफी कुछ हासिल कर लिया।
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Pramod Tewari Gitkaar नियत में देश नही सत्ता है। वैचारिक कुंठा है और बदले को भावना।
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Suresh Yadav फिलहाल तो कार्यशैली में दशकों से दबी हुई वैचारिक कुण्ठा और बदले की भावना ही अधिकतर दिखाई दे रहा है।
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Suresh Sharma बढिया लिखा भाई जी इससे यह साबित हुआ कि इतिहास अपने को दोहराता जरूर है।संसदीय लोकतंत्र के प्रति जनता का विश्वास बनाये रखने में न उनकी दिलचस्पी थी न इनकी दिलचस्पी है।सत्ता की ताक़त का इस्तेमाल सत्ता विस्तार के लिये ही सदैव होता रहा है
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Sudhir Tiwari · Pramod Shukla और 4 अन्य लोगों के मित्र
कृपया संशोधन करें कौशल शर्मा जी, कल्याण सिंह की सरकार मार्च 1998 में बर्खास्त की गयी थी। तब केन्द्र में कांग्रेस समर्थित संयुक्त मोर्चा सरकार थी और प्रधान मंत्री इंद्र कुमार गुजराल थे, पीवी नरसिंहराव नहीं। यूपी के राज्यपाल भी रोमेश भंडारी नामक कांग्रेसी थे और ये सारा उपक्रम मुलायम सिंह यादव को निर्विघ्न जिताने के लिए हुआ था जो राज्य में लोकसभा की संभल सीट से प्रत्याशी थे। चूंकि गुजराल ने इस घटनाक्रम पर तब के नेता प्रतिपक्ष अटल बिहारी वाजपेयी से मिलने का समय नहीं दिया तो मजबूरन वाजपेयी को आमरण अनशन पर बैठना पड़ा था।
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