महिलाओं के बाल काटने की अफवाह तेजी पर है। उसे सख्ती से दबाने का उपक्रम होता नहीं दिखता जबकि अफवाहें फैलाना देशद्रोह की परिधि मे आता है । इन अफवाहों के पीछे कोई तो है जो आनन्द ले रहा है । इसे चिन्हित करना और फिर दणड़ित कराना सरकार की जिम्मेदारी है । आपातकाल के दौरान जुलाई 1976 मे दिन मे 9 - 10 बजे के करीब कानपुर लखनऊ इलाहाबाद आगरा मे एक साथ अफवाह फैल गई कि स्कूलों मे बच्चो को नसबन्दी के टीके लगाये जा रहे हैं । इस अफवाह का असर हुआ, सभी शहरों मे अफरातफरी मच गई , जो जहाँ था , वहीं से अपने बच्चो के स्कूल की तरफ भागा । रात को पुलिस ने मुझे और मेरे कुछ कांग्रेस विरोधी साथियों को इस अफवाह को फैलाने के आरोप मे गिरफ्तार कर लिया जबकि उस दिन मैने अपने सभी परिचितो से इस पर विश्वास न करने के लिए कहा था । अपने इस भुक्त भोगी अनुभव को मै केवल इस आशय से शेयर कर रहा हूँ कि स्थानीय प्रशासन गमभीरता पूर्वक असली कारीगरों को चिन्हित करे , । अफवाहें सुनियोजित होती है और इसे सामानय लोग नहीं फैलाते , न वे फैला सकते है । इन अफवाहों के पीछे शातिर दिमाग होता है , उस तक पहुँचने की इच्छा शक्ति मुझे कहीं नहीं दिखती । आपातकाल मे मुझे दोषी बताकर तत्कालीन प्रशासन ने अपने कर्तव्य की इतिश्री कर ली थी और अब वर्तमान प्रशासन भी ऐसा ही कुछ करके किसी न किसी को दोषी बता देगा लेकिन असली दोषी को चिन्हित करने का सार्थक प्रयास नहीं करेगा ।
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