मजदूरों की वजह से कोई कारखाना बन्द नहीं हुआ
कानपुर मे निजी क्षेत्र के सभी कारखाने खुद उनके मालिकों ने अपने कारणों से बन्द किये हैं और एन टी सी के सभी कारखाने सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण बन्द हुये है । इसमे मजदूरों , मजदूर नेताओं विशेषकर वामपंथी मजदूर यूनियनो का कोई दोष नहीं है ।
मयोर मिल , विकटोरिया मिल , लक्ष्मी रतन, अथरटन मिल और फिर स्वदेशी काटन मिल को उनके मालिकों के कुप्रबनध के कारण सरकार ने अपने नियंत्रण मे ले लिया था । इन मिलो मे सैन्य जरूरतों के लिए कैनवास और आम जनता के लिए सस्ते दर के कपड़े का उत्पादन होता था इसलिए लाभ कमाने का उददेश्य कहीं नहीं था परन्तु बाद मे नरसिंह राव जी के प्रधानमंत्रितव काल मे निजी क्षेत्र को बढावा देने की अपनाई गई आर्थिक नीतियों के कारण इन मिलों मे उत्पादन बन्द करा दिया गया था । बाद मे अटल जी की सरकार ने भी नरसिंह राव जी की आर्थिक नीतियों को हूबहू लागू किया और उनकी सरकार ने मजदूरों को वी आर एस का झुनझुना पकड़ाकर मिलो को बन्द कर दिया और सारी जमीन निजी क्षेत्र के बिल्ड़रो को बेच दी । इस बन्दी को असहायता मे मजदूरों ने स्वीकार किया था । श्रमिकों ने तो इन मिलों को चलाने के लिए एक दिन के लिए पूरा शहर बन्द कराया था । मिल बन्दी के लिए मजदूरों को दोषी बताना सरासर अन्याय है
लाल इमली अपने इस शहर की शान है ।इसे भी सरकारी नीतियों के तहत निजी क्षेत्र के लिए बलिदान किया जा रहा है । मिल में मजदूरों की कोई हड़ताल नहीं है । उत्पादन खुद सरकार ने बन्द करा रखा है । कपड़ा मंत्री के नाते श्री संतोष गैंगवार जी ने खुद मिल का निरीक्षण किया था । उनके हटते ही सब कुछ फिर से यथावत् हो गया । इसमें मजदूर कर ही क्या सकता है ? वर्तमान सरकार की आर्थिक नीतियों और नरसिंह राव जी की आर्थिक नीतियों मे कोई अन्तर नही है इसलिए मजदूरों को अब टाटा बिड़ला, अड़ानी, अंबानी की कृपा पर जिन्दा रहना होगा ।
कानपुर मे निजी क्षेत्र के सभी कारखाने खुद उनके मालिकों ने अपने कारणों से बन्द किये हैं और एन टी सी के सभी कारखाने सरकार की आर्थिक नीतियों के कारण बन्द हुये है । इसमे मजदूरों , मजदूर नेताओं विशेषकर वामपंथी मजदूर यूनियनो का कोई दोष नहीं है ।
मयोर मिल , विकटोरिया मिल , लक्ष्मी रतन, अथरटन मिल और फिर स्वदेशी काटन मिल को उनके मालिकों के कुप्रबनध के कारण सरकार ने अपने नियंत्रण मे ले लिया था । इन मिलो मे सैन्य जरूरतों के लिए कैनवास और आम जनता के लिए सस्ते दर के कपड़े का उत्पादन होता था इसलिए लाभ कमाने का उददेश्य कहीं नहीं था परन्तु बाद मे नरसिंह राव जी के प्रधानमंत्रितव काल मे निजी क्षेत्र को बढावा देने की अपनाई गई आर्थिक नीतियों के कारण इन मिलों मे उत्पादन बन्द करा दिया गया था । बाद मे अटल जी की सरकार ने भी नरसिंह राव जी की आर्थिक नीतियों को हूबहू लागू किया और उनकी सरकार ने मजदूरों को वी आर एस का झुनझुना पकड़ाकर मिलो को बन्द कर दिया और सारी जमीन निजी क्षेत्र के बिल्ड़रो को बेच दी । इस बन्दी को असहायता मे मजदूरों ने स्वीकार किया था । श्रमिकों ने तो इन मिलों को चलाने के लिए एक दिन के लिए पूरा शहर बन्द कराया था । मिल बन्दी के लिए मजदूरों को दोषी बताना सरासर अन्याय है
लाल इमली अपने इस शहर की शान है ।इसे भी सरकारी नीतियों के तहत निजी क्षेत्र के लिए बलिदान किया जा रहा है । मिल में मजदूरों की कोई हड़ताल नहीं है । उत्पादन खुद सरकार ने बन्द करा रखा है । कपड़ा मंत्री के नाते श्री संतोष गैंगवार जी ने खुद मिल का निरीक्षण किया था । उनके हटते ही सब कुछ फिर से यथावत् हो गया । इसमें मजदूर कर ही क्या सकता है ? वर्तमान सरकार की आर्थिक नीतियों और नरसिंह राव जी की आर्थिक नीतियों मे कोई अन्तर नही है इसलिए मजदूरों को अब टाटा बिड़ला, अड़ानी, अंबानी की कृपा पर जिन्दा रहना होगा ।
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