गनीमत है,न्यायपालिका धर्म से प्रभावित नहीं होती
कहा जाता है, धर्म और राजनीति एक सिक्के के दो पहलू है । धर्म दीर्घ कालीन राजनीति है और राजनीति अल्प कालीन धर्म । हम भारतीय इस अवधारणा को सच्चे मन से स्वीकार करते है परन्तु कथावाचकों के रूप मे पेशेवर साधु सन्त हमारी संस्कृति और आस्था का मजाक बना रहे हैं ।हिंसा, अराजकता, हत्या, बालातकार जैसे अपराधों को इन कथावाचकों ने अपनी संस्कृति बना लिया है । धार्मिक भावनायें भड़काकर वोट बटोरने वाले राजनेता नतमस्तक होकर इन पेशेवर साधु सन्तों का महिमामंडन करते है । भाजपा सांसद फर्जी साधु साक्षी महाराज ने दोष सिद्ध अपराधी को निर्दोष बताकर न्याय पालिका का अपमान किया है और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी निन्दा न करके अपरोक्ष रूप से उनकी अशोभनीय टिप्पणी का समर्थन किया है ।
गनीमत है अजादी की लड़ाई से उपजा नेतृत्व समझदार था , दूरदर्शी था , उसने संविधान को सर्वोपरि माना और उसके कारण हमारी न्याय पालिका किसी धर्म के मानक से नही, संविधान के मानकों से प्रभावित होती है । आजकल संविधान बदलने की बातें भी सुनाई जाने लगी है । साक्षी महाराज जैसे साधु सन्त संसद मे अपने बहुमत के बल पर आशा राम बापू, रामपाल और राम रहीम को कानून से बाहर रखने का कानून बना सकते थे लेकिन लगता है कि हमारे संविधान निर्माताओ को इस तरह के घटिया नेताओं के प्रभावी होने का अहसास था , इसलिए उन्होंने संसद द्वारा बनाये गये कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार न्याय पालिका को दे रखा है ।
कहा जाता है, धर्म और राजनीति एक सिक्के के दो पहलू है । धर्म दीर्घ कालीन राजनीति है और राजनीति अल्प कालीन धर्म । हम भारतीय इस अवधारणा को सच्चे मन से स्वीकार करते है परन्तु कथावाचकों के रूप मे पेशेवर साधु सन्त हमारी संस्कृति और आस्था का मजाक बना रहे हैं ।हिंसा, अराजकता, हत्या, बालातकार जैसे अपराधों को इन कथावाचकों ने अपनी संस्कृति बना लिया है । धार्मिक भावनायें भड़काकर वोट बटोरने वाले राजनेता नतमस्तक होकर इन पेशेवर साधु सन्तों का महिमामंडन करते है । भाजपा सांसद फर्जी साधु साक्षी महाराज ने दोष सिद्ध अपराधी को निर्दोष बताकर न्याय पालिका का अपमान किया है और भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने उनकी निन्दा न करके अपरोक्ष रूप से उनकी अशोभनीय टिप्पणी का समर्थन किया है ।
गनीमत है अजादी की लड़ाई से उपजा नेतृत्व समझदार था , दूरदर्शी था , उसने संविधान को सर्वोपरि माना और उसके कारण हमारी न्याय पालिका किसी धर्म के मानक से नही, संविधान के मानकों से प्रभावित होती है । आजकल संविधान बदलने की बातें भी सुनाई जाने लगी है । साक्षी महाराज जैसे साधु सन्त संसद मे अपने बहुमत के बल पर आशा राम बापू, रामपाल और राम रहीम को कानून से बाहर रखने का कानून बना सकते थे लेकिन लगता है कि हमारे संविधान निर्माताओ को इस तरह के घटिया नेताओं के प्रभावी होने का अहसास था , इसलिए उन्होंने संसद द्वारा बनाये गये कानूनों को असंवैधानिक घोषित करने का अधिकार न्याय पालिका को दे रखा है ।
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