तख्त बदल दो ताज बदल दो की बात तो बेमानी थी
विद्यार्थी जीवन में तख्त बदल दो ताज बदल दो, बेईमानों का राज बदल दो का उद्घोष सुनकर शरीर की स्फूर्ति बढ़ जाया करती थी। सोचा करता था कि सत्ता से काँग्रेस के अपदस्त हो जाने के बाद एक ऐसा युग आयेगा जिसमें मेहनत, मजूरी करने वाले हमारे जैसे परिवारों के लोग सम्मान से जीयेंगे और लूट खसोट करने वाले लोग जेल की हवा खायेंगे परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ। 1977 में काँग्रेस बुरी तरह पराजित हुई लेकिन व्यवस्था में कोई परिवर्तन नही आया। फिर राजा नहीं फकीर है, देश की तकदीर है, का नारा सुना गया। भ्रष्टाचार के विरुद्ध निर्णायक संघर्ष का एलान हुआ। इस दौर की मण्डल कमण्डल की राजनीति ने गरीब गुरबा की बात करने वाले पुरोधाओं देवी लाल, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, राम विलास पासवान, नितीश कुमार, सुबोध कान्त सहाय, शिवा कान्त तिवारी, रवि शंकर प्रसाद, अरुण जेटली, वेंकैया नायडू, विनय कटियार को सत्ता के शिखर पर पहुँचा दिया। सिद्धान्त और विचारधारा की बात करने वाले राम बहादुर राय जैसे लोग नेपथ्य में भेज दिये गये लेकिन पुरोधाओं ने एक बार फिर जनता को निराश किया और भ्रष्टाचार की सीमायें तोड़ने में काँग्रेसियों को भी मात दे दी। कहा जा सकता है कि काँग्रेस और उसके नेता भ्रष्टाचार की गंगोत्री है लेकिन काँग्रेस के भ्रष्टाचार का विरोध करके सत्ता सुख भोगने वाले लोगों ने भी इस गंगोत्री से अपने अपने हिस्से की नहरें निकालने में कोई कोताही नही की। सभी ने अकूत सम्पत्ति कमायी और अब इसको बचाने के लिए काँग्रेसियों में हलचल मची है, नितीश, नरेन्द्र मोदी के सामने नतमस्तक है, समाजवादी पार्टी के एम.एल.सी. बुक्कल नवाब राम मन्दिर बनाने के लिए अयोध्या कूच की तैयारी करने लगे है।
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