Friday, 12 January 2018

तमिलनाडु के सफेद कपड़ों ने भी हमें लुभाया


तमिलनाडु के सफेद कपडों ने भी हमे लुभाया
चेन्नई, मदुरई, रामेश्वरम् मे लगभग सभी लोगों को सफेद वस्त्र पहने देखकर बरबस मेरा ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान ज्ञात हुआ , सफेद वस्त्र यहाॅ की भौगोलिक जरूरत है इसलिये सफेद कपडों की माॅग के ज्यादा है और अपने प्रदेश की तुलना मे बेहतर क्वालिटी की सफेद कमीज( शर्ट ) यहाँ सस्ती भी है । 2009 - 2010 मे पूरे तमिलनाडु के अन्दर केवल 1958 मिलें थीं जो 2015 तक 3707 हो गईं । इस प्रकार की अभूतपूर्व बृद्धि प्रदेश सरकार की रूचि के बिना सम्भव नहीं है । 1980 - 1990 के दशक मे अपने उत्तर प्रदेश मे भी कपडा उद्योग को बढावा देने के लिए लगभग सभी जनपदों मे सार्वजनिक क्षेत्र मे कताई मिले लगाई गई थी जो सबकी सब बन्द हो चुकी है जबकि इनमे से कई मिलों ने आइ एस ओ प्रमाण पत्र प्राप्त करके नये कीर्तिमान स्थापित किये थे । इन मिलों के उत्पादों की माॅग कभी कम नहीं हुई। आधुनिक तकनीक की मशीनें लगाई गई थी । देश के अन्य भागों की तुलना मे लागत भी ज्यादा नहीं थी फिर भी मिलें बन्द हो गई और इसके लिए श्रमिक संगठनों विशेषकर वामपंथियों को दोषी बताकर वास्तविक कारणों पर पर्दा डाल दिया गया ।भारत मे अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित होने के सदियों पहले सम्पूर्ण विश्व को भारत ही कपडा पहनाता था । इंगलैंड के लोग कपडा नही बुन पाते थे और सोना देकर हमसे कपड़ा खरीदते थे परन्तु हम श्रेष्ठता ग्रंथि का शिकार हो गये और हमने अपने तकनीकी कौशल को बढाये रखने के लिए शोध करना बन्द कर दिया। अपने कानपुर की भी सभी कपड़ा मिले तकनीकी कौशल मे पिछड़ जाने के कारण बन्द हुई है । कानपुर मे निजी क्षेत्र के उद्योग पतियों और सरकारी अधिकारियों ने अपने ही कपडा उद्योग के इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा। लक्ष्मी रतन काटन मिल मे कैनवास और मयोर मिल मे तिरपाल बनता था ।तकनीक मे साधारण किस्म का परिवर्तन करके इन दोनों उत्पादों को जीन्स के कपडे मे तब्दील किया जा सकता था । लाल इमली को बन्द करके इस प्रकार की गलती हम फिर दोहराने जा रहे है । पिछले 27 वर्षों मे उत्तर प्रदेश उद्योगों का कब्रगाह बन गया है । किस जनपद मे कौन सा उद्योग पनप सकता है ? इसको लेकर तकनीकी शोध सरकारों की प्राथमिकता मे नहीं है। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार को कोसे बिना अपने स्तर पर अपने प्रदेश के लोगों को सस्ता कपड़ा उपलब्ध कराने के लिए स्वयं रूचि ली इसीलिए पिछले पाँच वर्षो मे दुगुनी गति से कपड़ा उद्योग का विकास हुआ है ।अपने प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री मुम्बई और गोवा मे वहाँ के उद्योग पतियों से मीटिंग करके प्रदेश के औद्योगिक विकास का खाका तैयार करने मे मशगूल है परन्तु अपने कानपुर और अन्य जनपदों मे कपड़ा उद्योग की बढ़ोत्तरी की सम्भावनाओं को टटोलने का वक्त उनके पास नहीं है जबकि अपने प्रदेश के कई जनपदों मे स्थानीय उद्यमियों के निजी प्रयासों से कपड़े का उत्पादन किया जा रहा है।उसे और बेहतर बनाने की जरूरत है और उसके लिये जयललिता की तरह एक ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो अपने प्रदेश को अपना बेटा बेटी मानकर उसके सर्वांगीण विकास की चिन्ता करे।
चेन्नई से नई दिल्ली के बीच जेट एयरवेज के प्लेन पर
दिनांक 10 जनवरी 2018
13 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Jrj Hirendra बेहद महत्वपूर्ण तार्किक विषय पर विश्लेषण भरी जानकारी
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Ambuj Agarwal बिल्कुल सत्य लिखा आप ने सिर्फ प्रदेश सरकार को जरूरत है कुछ करने की मैं खुद कानपुर में तिरपाल में लगने वाले कपड़े के निर्माण के लिये अनेक बुनकरों से सूत में अपनी लागत लगाकर बनाने के लिये समझाया मगर तकनीकी उन्नति के अभाव में नही होता
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Pradeep Shukla अपनी सरकार ऐसे विचार लाकर अपना समय बर्बाद नहीं करना चाहती, विकास विरोधी विचारधारा है....सरकार की....
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Suresh Sharma कताई मिलें बन्द हो चुकी हैं और बिक भी चुकी हैं। किसी भी दल ने कानपुर के पुराने औद्योगिक स्वरूप को वापस लाने की पहल नहीं की और bjp के पास तो विज़न ही नहीं हैं ये बना कुछ नहीं सकते बने हुए को बेच सकते हैं ।
आपकी इस बात से सहमत नहीं हूं कि तकनीक में पिछड़ने से उद्योग बन्द हुए जब कि असलियत यह है कि लाल सर्पों ने उद्योगों को डस लिया ।
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Kaushal Sharma आदरणीय सुरेश भाई 
कानपुर की एक भी मिल श्रमिकों की हड़ताल के कारण बन्द नहीं हुई है। एन टी सी , बी आई सी की मिलों मे खुद सरकार ने उत्पादन बन्द करा दिया था और जे के काटन , जे के प्लास्टिक, जे के मैनयूफैकचरस, आयरन एण्ड स्टील, सिंह इंजीनियरिंग खुद उनके माल
िकों ने अपने कारणों से बन्द की है । आपको याद हो तो आप बतायें , कौन सी मिल मे लाल झण्डे वालो द्वारा कराई गई हड़ताल के कारण बन्द हुई है। आप बतायें जरूर, हमे अपनी जानकारी अपडेट करनी है ।
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Suresh Sharma भाई जी उत्पादन जो बन्द कराना पड़ा वो इन्ही लाल बाबुओं की अराजकता के कारण था । स्वदेशी के अनरेस्ट की याद कीजिये । सेठ मंगतू राम जयपुरिया के समय धकाधक चल रही थी । लाल बाबुओं के कारण एनटीसी में गई और फिर बन्द हो गई । सभी मिलों का ऐसा ही इतिहास है । आज भी अगर कानपुर का श्रमिक चाह ले तो शायद मिले फिर से चल सके।
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Kaushal Sharma भइया 
स्वदेशी काटन मिल मे कई महीनों से वेतन न दिये जाने के कारण अशान्ति हुई थी । जार्ज फर्नांडीज के प्रयास से मिल का अधिग्रहण किया गया । उत्पादन श्रमिक अशान्ति के कारण नही , उत्पादित माल की बाजार मे माँग कम हो जाने के कारण बन्द हुआ था और बाजार की ज़रूरत के अनुरूप उत्पाद की गुणवत्ता बेहतर करना प्रबन्धकों की जिम्मेदारी थी जो उनहोंने पूरी नहीं की ।इस सबमें श्रमिक की कोई भूमिका ही नहीं थी तो दोषी कैसे हुआ?
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Suresh Sharma भाई साहब आप कतई अन्यथा न लें । मुझे जो जानकारी है उसे आप तक पहुँचा रहा हूँ । स्वदेशी के माल की मांग कभी कम नहीं हुई । स्वदेशी की दो सूती, डेढ़ सूती का रूस सबसे बड़ा खरीददार था । एडवांस ऑर्डर रहते थे । लोकल में भी स्वदेशी के अन्य उत्पादों की मांग रहती थी । श्रमिक नेताओं ने कभी चाहा ही नहीं कि मिले चले । आज भी मिल बन्द हुए अरसा हो चुका है ये श्रमिक नेता सुप्रीम कोर्ट से मोटा दिलाने का झांसा देकर आज भी श्रमिकों से वसूली कर रहे हैं कि नहीं । आप ही सोचिये
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Kaushal Sharma बातचीत हो रही है , अन्यथा कहाँ से आ गया ? इस पूरी बातचीत मे हम सबका ज्ञान वर्धन हो रहा है।
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Surendra Pratap Singh बहुत महत्वपूर्ण विषय पर एक सटीक तंज |
दुर्भाग्य यह है कि हमारे यहां जो मुख्यमंत्री होता है उसके पास दो ही काम होते हैं अपना और अपने परिजनों का विकास करना और अगर समय मिला तो अपने जिले का विकास करना |
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Ambuj Agarwal सरकार के जो उद्योग प्रोत्साहन कार्यक्रम होते वो सब बड़े उद्योग जो कि सरकारी बैंकों का कर्ज लेकर वापिस भी नही करते मै बात कर रहा हु TUF TEXTILE UPGRADATION FUND जिसके तहत ब्याज ओर लूम आदि की खरीद पर सब्सिडी थी , कानपुर के छोटे छोटे बहुत बुनकरों ने विदेशी...और देखें
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Rekha Sharma बहुत ही महत्वपूर्ण पोस्ट है ये आपकी भाई साहब
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Devpriya Awasthi अपने देश के प्रायः सभी तटीय राज्यों में ज्यादातर पुरुष सफेद कपड़े ही पहनते आए हैं. इसकी सबसे बड़ी वजह इन राज्यों में पड़ने वाली उमस भरी गरमी है. तापमान उत्तरी राज्यों की तरह ४० डिग्री सेंटीग्रेड के ऊपर यदा कदा ही जाता है, लेकिन कर्नाटक को छोड़कर सभी तटीय प्रदेशों में वातावरण में नमी के कारण पसीना खूब आता है.
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Rajiv Batia BIFR gave Concessions from Bank Loans and State Government gave concessions on Land Sale to Rehabilitate the Sick Textile Industry & not to Convert Land into a Money Spinning and Money Laudering Business.बीआइएफाअर ने बैंक ऋण से रियायत दी और राज्य सरकार ने भूमि बिक्री पर छूट दी ताकि बीमार कपड़ा उद्योग का कर्ज न दे और जमीन को कताई और पैसा laudering व्यापार में न बदलें.
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अपने आप अनुवाद किया गया
1 दिन
Narendra Kumar Yadav श्रमिक बेचारा असहाय रह गया उधोगपतियो ने सरकार और प्रशासन से घाल मेल करके मिलो को शिक करार दे दिया मजदूर कहां दोषी रहा है।लाल झंडा बदनाम जरूर हुआ लेकिन खेल तिरंगा वालो का ही था।
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Kaushal Sharma एकदम ही विश्लेषण है । मजदूर कतई दोषी नहीं है लेकिन आदरणीय सुरेश शर्मा जी नही मानते ।
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Narendra Kumar Yadav कौशल भाई श्री अरवूदा मिल विख्यात काटन मिल था वहां तो लाल झंडा नहीं था फिर वो क्यों बंद हो गयी।
सुरेश भाई से पूछो।
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Amit Bajpai मांग के अनुरूप ही उद्योंगों का विकास होता है । हम पश्चिम देशों के परिवेश पर लुब्ध हो गये जिसने भी विरोध किया उसका मुंह बंद कर दिया गया उसको विकास विरोधी घोषित कर दिया गया । टीवी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।
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