तमिलनाडु के सफेद कपडों ने भी हमे लुभाया
चेन्नई, मदुरई, रामेश्वरम् मे लगभग सभी लोगों को सफेद वस्त्र पहने देखकर बरबस मेरा ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान ज्ञात हुआ , सफेद वस्त्र यहाॅ की भौगोलिक जरूरत है इसलिये सफेद कपडों की माॅग के ज्यादा है और अपने प्रदेश की तुलना मे बेहतर क्वालिटी की सफेद कमीज( शर्ट ) यहाँ सस्ती भी है । 2009 - 2010 मे पूरे तमिलनाडु के अन्दर केवल 1958 मिलें थीं जो 2015 तक 3707 हो गईं । इस प्रकार की अभूतपूर्व बृद्धि प्रदेश सरकार की रूचि के बिना सम्भव नहीं है । 1980 - 1990 के दशक मे अपने उत्तर प्रदेश मे भी कपडा उद्योग को बढावा देने के लिए लगभग सभी जनपदों मे सार्वजनिक क्षेत्र मे कताई मिले लगाई गई थी जो सबकी सब बन्द हो चुकी है जबकि इनमे से कई मिलों ने आइ एस ओ प्रमाण पत्र प्राप्त करके नये कीर्तिमान स्थापित किये थे । इन मिलों के उत्पादों की माॅग कभी कम नहीं हुई। आधुनिक तकनीक की मशीनें लगाई गई थी । देश के अन्य भागों की तुलना मे लागत भी ज्यादा नहीं थी फिर भी मिलें बन्द हो गई और इसके लिए श्रमिक संगठनों विशेषकर वामपंथियों को दोषी बताकर वास्तविक कारणों पर पर्दा डाल दिया गया ।भारत मे अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित होने के सदियों पहले सम्पूर्ण विश्व को भारत ही कपडा पहनाता था । इंगलैंड के लोग कपडा नही बुन पाते थे और सोना देकर हमसे कपड़ा खरीदते थे परन्तु हम श्रेष्ठता ग्रंथि का शिकार हो गये और हमने अपने तकनीकी कौशल को बढाये रखने के लिए शोध करना बन्द कर दिया। अपने कानपुर की भी सभी कपड़ा मिले तकनीकी कौशल मे पिछड़ जाने के कारण बन्द हुई है । कानपुर मे निजी क्षेत्र के उद्योग पतियों और सरकारी अधिकारियों ने अपने ही कपडा उद्योग के इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा। लक्ष्मी रतन काटन मिल मे कैनवास और मयोर मिल मे तिरपाल बनता था ।तकनीक मे साधारण किस्म का परिवर्तन करके इन दोनों उत्पादों को जीन्स के कपडे मे तब्दील किया जा सकता था । लाल इमली को बन्द करके इस प्रकार की गलती हम फिर दोहराने जा रहे है । पिछले 27 वर्षों मे उत्तर प्रदेश उद्योगों का कब्रगाह बन गया है । किस जनपद मे कौन सा उद्योग पनप सकता है ? इसको लेकर तकनीकी शोध सरकारों की प्राथमिकता मे नहीं है। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार को कोसे बिना अपने स्तर पर अपने प्रदेश के लोगों को सस्ता कपड़ा उपलब्ध कराने के लिए स्वयं रूचि ली इसीलिए पिछले पाँच वर्षो मे दुगुनी गति से कपड़ा उद्योग का विकास हुआ है ।अपने प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री मुम्बई और गोवा मे वहाँ के उद्योग पतियों से मीटिंग करके प्रदेश के औद्योगिक विकास का खाका तैयार करने मे मशगूल है परन्तु अपने कानपुर और अन्य जनपदों मे कपड़ा उद्योग की बढ़ोत्तरी की सम्भावनाओं को टटोलने का वक्त उनके पास नहीं है जबकि अपने प्रदेश के कई जनपदों मे स्थानीय उद्यमियों के निजी प्रयासों से कपड़े का उत्पादन किया जा रहा है।उसे और बेहतर बनाने की जरूरत है और उसके लिये जयललिता की तरह एक ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो अपने प्रदेश को अपना बेटा बेटी मानकर उसके सर्वांगीण विकास की चिन्ता करे।
चेन्नई से नई दिल्ली के बीच जेट एयरवेज के प्लेन पर
दिनांक 10 जनवरी 2018
चेन्नई, मदुरई, रामेश्वरम् मे लगभग सभी लोगों को सफेद वस्त्र पहने देखकर बरबस मेरा ध्यान इस ओर आकृष्ट हुआ। स्थानीय लोगों से बातचीत के दौरान ज्ञात हुआ , सफेद वस्त्र यहाॅ की भौगोलिक जरूरत है इसलिये सफेद कपडों की माॅग के ज्यादा है और अपने प्रदेश की तुलना मे बेहतर क्वालिटी की सफेद कमीज( शर्ट ) यहाँ सस्ती भी है । 2009 - 2010 मे पूरे तमिलनाडु के अन्दर केवल 1958 मिलें थीं जो 2015 तक 3707 हो गईं । इस प्रकार की अभूतपूर्व बृद्धि प्रदेश सरकार की रूचि के बिना सम्भव नहीं है । 1980 - 1990 के दशक मे अपने उत्तर प्रदेश मे भी कपडा उद्योग को बढावा देने के लिए लगभग सभी जनपदों मे सार्वजनिक क्षेत्र मे कताई मिले लगाई गई थी जो सबकी सब बन्द हो चुकी है जबकि इनमे से कई मिलों ने आइ एस ओ प्रमाण पत्र प्राप्त करके नये कीर्तिमान स्थापित किये थे । इन मिलों के उत्पादों की माॅग कभी कम नहीं हुई। आधुनिक तकनीक की मशीनें लगाई गई थी । देश के अन्य भागों की तुलना मे लागत भी ज्यादा नहीं थी फिर भी मिलें बन्द हो गई और इसके लिए श्रमिक संगठनों विशेषकर वामपंथियों को दोषी बताकर वास्तविक कारणों पर पर्दा डाल दिया गया ।भारत मे अंग्रेजों का प्रभुत्व स्थापित होने के सदियों पहले सम्पूर्ण विश्व को भारत ही कपडा पहनाता था । इंगलैंड के लोग कपडा नही बुन पाते थे और सोना देकर हमसे कपड़ा खरीदते थे परन्तु हम श्रेष्ठता ग्रंथि का शिकार हो गये और हमने अपने तकनीकी कौशल को बढाये रखने के लिए शोध करना बन्द कर दिया। अपने कानपुर की भी सभी कपड़ा मिले तकनीकी कौशल मे पिछड़ जाने के कारण बन्द हुई है । कानपुर मे निजी क्षेत्र के उद्योग पतियों और सरकारी अधिकारियों ने अपने ही कपडा उद्योग के इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा। लक्ष्मी रतन काटन मिल मे कैनवास और मयोर मिल मे तिरपाल बनता था ।तकनीक मे साधारण किस्म का परिवर्तन करके इन दोनों उत्पादों को जीन्स के कपडे मे तब्दील किया जा सकता था । लाल इमली को बन्द करके इस प्रकार की गलती हम फिर दोहराने जा रहे है । पिछले 27 वर्षों मे उत्तर प्रदेश उद्योगों का कब्रगाह बन गया है । किस जनपद मे कौन सा उद्योग पनप सकता है ? इसको लेकर तकनीकी शोध सरकारों की प्राथमिकता मे नहीं है। तमिलनाडु सरकार ने केंद्र सरकार को कोसे बिना अपने स्तर पर अपने प्रदेश के लोगों को सस्ता कपड़ा उपलब्ध कराने के लिए स्वयं रूचि ली इसीलिए पिछले पाँच वर्षो मे दुगुनी गति से कपड़ा उद्योग का विकास हुआ है ।अपने प्रदेश के औद्योगिक विकास मंत्री मुम्बई और गोवा मे वहाँ के उद्योग पतियों से मीटिंग करके प्रदेश के औद्योगिक विकास का खाका तैयार करने मे मशगूल है परन्तु अपने कानपुर और अन्य जनपदों मे कपड़ा उद्योग की बढ़ोत्तरी की सम्भावनाओं को टटोलने का वक्त उनके पास नहीं है जबकि अपने प्रदेश के कई जनपदों मे स्थानीय उद्यमियों के निजी प्रयासों से कपड़े का उत्पादन किया जा रहा है।उसे और बेहतर बनाने की जरूरत है और उसके लिये जयललिता की तरह एक ऐसा मुख्यमंत्री चाहिए जो अपने प्रदेश को अपना बेटा बेटी मानकर उसके सर्वांगीण विकास की चिन्ता करे।
चेन्नई से नई दिल्ली के बीच जेट एयरवेज के प्लेन पर
दिनांक 10 जनवरी 2018
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