न्यायपालिका मे सब कुछ कभी अच्छा नहीं रहा
सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों ने अपने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के कथित दुराचरण की सार्वजनिक चर्चा करके एक अभूतपूर्व कदम उठाया है लेकिन इस गम्भीर विषय को कांग्रेस बनाम भाजपा की चर्चा बनाकर इसके दूरगामी प्रभाव को सीमित रखने का अभियान शुरू हो गया है । न्यायपालिका मे सब कुछ कभी सामान्य नही रहा । राजनैतिक कारणों से उसकी पारदर्शिता सदैव कुप्रभावित होती रही है लेकिन अपने अपने निहित स्वार्थो या कहलें अवमानना के भय के कारण कभी किसी ने इस सबको सार्वजनिक नहीं किया और इसका लाभ उठाकर इन्दिरा गाँधी ने प्रतिबद्ध नौकरशाही की तरह प्रतिबद्ध न्यायपालिका की अवधारणा प्रस्तुत करके तीन वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों को दरकिनार करके अपने चहेते न्यायमूर्ति को मुख्य न्यायाधीश बना दिया था ।उनहोंने उस समय के वरिष्ठतम जनरल श्री एस के सिन्हा की वरिष्ठता को दरकिनार करके अपने चहेते को आर्मी चीफ बना दिया था । अभी पिछले दिनों कोलोजियम की सिफारिश के बावजूद वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट का जज न बनाकर न्यायपालिका की नियुक्तियों मे राजनैतिक हस्तक्षेप का एक नया उदाहरण सार्वजनिक हुआ है ।
1994 मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय मे मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति श्री एस एस सोढ़ी ने अपनी किताब " अदर साइड आफ जस्टिस " मे सुप्रीम कोर्ट के चारों न्यायाधीशों द्वारा उठाये गये सवालों से ज्यादा गम्भीर और चिंताजनक सवाल उठाये थे । अगर हमने उस समय उनके द्वारा उठाये गये सवालों पर सार्वजनिक चर्चा कर ली होती , उन्हे सुलझा लिया होता तो आज हमे यह दिन नहीं देखने पडते । न्यायमूर्ति सोढ़ी ने किताब मे बताया है कि तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट जज न्यायमूर्ति श्री एम एम पुंछी और श्री आर एम सहाय की निजी दुर्भावना के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट मे जज नही बनने दिया गया। न्यायमूर्ति सहाय के बेटे का नामइलाहाबाद उच्च न्यायालय मे जज के लिये रिकमंड न किये जाने और उनके कहने के बावजूद उनके समधी न्यायमूर्ति एस एन सहाय का ट्रांसफर लखनऊ से इलाहाबाद कर दिये जाने से वे न्यायमूर्ति सोढ़ी से नाराज थे और उनहोंने बखूबी उसका बदला लिया ।
आज के समाचार पत्रों मे पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस वर्मा का बयान छपा है जिसमे उनहोंने बताया है कि अपने कार्य काल के दौरान वे खुद तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री एम एम पुंछी ( जो बाद मे मुख्य न्यायाधीश बने) के विरूद्ध लगे आरोपों पर जाॅच की अनुमति देना चाहते थे लेकिन राजनैतिक कार्यपालिका ने ऐसा नही होने दिया ।यदि न्यायमूर्ति सोढ़ी के सवालो की अनदेखी नही की गई होती तो श्री एम एम पुंछी देश के मुख्य न्यायाधीश नही हो पाते ।
याद करें न्यायमूर्ति सी एम प्रसाद और न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के समय विवाद हुआ था । श्रीमती मिश्रा पटना हाई कोर्ट मे श्री प्रसाद से वरिष्ठ थी परन्तु सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के समय राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण श्री प्रसाद की नियुक्ति उनसे पहले कर दी गई । उनहोंने महामहिम राष्ट्रपति से शिकायत की और उसके बाद विवाद सुलझाया गया।
भारत का आम आदमी न्यायपालिका पर अटूट विश्वास करता है , उसे अन्तिम आशा के रूप मे देखता है इसलिये न्यायाधीशों से हर हाल मे निष्पक्ष और पारदर्शी बने रहने की अपेक्षा की जाती है लेकिन दुख की बात है कि अब अपने न्यायाधीश बेईमान होने लगे है । उनमे से कई अब निर्णय नही, फैसले करते हैं, जो विधि पर नही उनकी पसन्द नापसंद पर आधारित होते है । इन अप्रिय स्थितियों को नेस्तनाबूत करने के लिए सघन अभियान चलाना होगा इसलिये तात्कालिक राजनैतिक नफा नुकसान से ऊपर उठकर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों द्वारा उठाये गये सवालों के उत्तर तलाशे जाये ताकि न्यायपालिका के प्रति आम जनता का विश्वास सुदृढ़ बना रहे ।
सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों ने अपने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के कथित दुराचरण की सार्वजनिक चर्चा करके एक अभूतपूर्व कदम उठाया है लेकिन इस गम्भीर विषय को कांग्रेस बनाम भाजपा की चर्चा बनाकर इसके दूरगामी प्रभाव को सीमित रखने का अभियान शुरू हो गया है । न्यायपालिका मे सब कुछ कभी सामान्य नही रहा । राजनैतिक कारणों से उसकी पारदर्शिता सदैव कुप्रभावित होती रही है लेकिन अपने अपने निहित स्वार्थो या कहलें अवमानना के भय के कारण कभी किसी ने इस सबको सार्वजनिक नहीं किया और इसका लाभ उठाकर इन्दिरा गाँधी ने प्रतिबद्ध नौकरशाही की तरह प्रतिबद्ध न्यायपालिका की अवधारणा प्रस्तुत करके तीन वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों को दरकिनार करके अपने चहेते न्यायमूर्ति को मुख्य न्यायाधीश बना दिया था ।उनहोंने उस समय के वरिष्ठतम जनरल श्री एस के सिन्हा की वरिष्ठता को दरकिनार करके अपने चहेते को आर्मी चीफ बना दिया था । अभी पिछले दिनों कोलोजियम की सिफारिश के बावजूद वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट का जज न बनाकर न्यायपालिका की नियुक्तियों मे राजनैतिक हस्तक्षेप का एक नया उदाहरण सार्वजनिक हुआ है ।
1994 मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय मे मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति श्री एस एस सोढ़ी ने अपनी किताब " अदर साइड आफ जस्टिस " मे सुप्रीम कोर्ट के चारों न्यायाधीशों द्वारा उठाये गये सवालों से ज्यादा गम्भीर और चिंताजनक सवाल उठाये थे । अगर हमने उस समय उनके द्वारा उठाये गये सवालों पर सार्वजनिक चर्चा कर ली होती , उन्हे सुलझा लिया होता तो आज हमे यह दिन नहीं देखने पडते । न्यायमूर्ति सोढ़ी ने किताब मे बताया है कि तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट जज न्यायमूर्ति श्री एम एम पुंछी और श्री आर एम सहाय की निजी दुर्भावना के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट मे जज नही बनने दिया गया। न्यायमूर्ति सहाय के बेटे का नामइलाहाबाद उच्च न्यायालय मे जज के लिये रिकमंड न किये जाने और उनके कहने के बावजूद उनके समधी न्यायमूर्ति एस एन सहाय का ट्रांसफर लखनऊ से इलाहाबाद कर दिये जाने से वे न्यायमूर्ति सोढ़ी से नाराज थे और उनहोंने बखूबी उसका बदला लिया ।
आज के समाचार पत्रों मे पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस वर्मा का बयान छपा है जिसमे उनहोंने बताया है कि अपने कार्य काल के दौरान वे खुद तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री एम एम पुंछी ( जो बाद मे मुख्य न्यायाधीश बने) के विरूद्ध लगे आरोपों पर जाॅच की अनुमति देना चाहते थे लेकिन राजनैतिक कार्यपालिका ने ऐसा नही होने दिया ।यदि न्यायमूर्ति सोढ़ी के सवालो की अनदेखी नही की गई होती तो श्री एम एम पुंछी देश के मुख्य न्यायाधीश नही हो पाते ।
याद करें न्यायमूर्ति सी एम प्रसाद और न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के समय विवाद हुआ था । श्रीमती मिश्रा पटना हाई कोर्ट मे श्री प्रसाद से वरिष्ठ थी परन्तु सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के समय राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण श्री प्रसाद की नियुक्ति उनसे पहले कर दी गई । उनहोंने महामहिम राष्ट्रपति से शिकायत की और उसके बाद विवाद सुलझाया गया।
भारत का आम आदमी न्यायपालिका पर अटूट विश्वास करता है , उसे अन्तिम आशा के रूप मे देखता है इसलिये न्यायाधीशों से हर हाल मे निष्पक्ष और पारदर्शी बने रहने की अपेक्षा की जाती है लेकिन दुख की बात है कि अब अपने न्यायाधीश बेईमान होने लगे है । उनमे से कई अब निर्णय नही, फैसले करते हैं, जो विधि पर नही उनकी पसन्द नापसंद पर आधारित होते है । इन अप्रिय स्थितियों को नेस्तनाबूत करने के लिए सघन अभियान चलाना होगा इसलिये तात्कालिक राजनैतिक नफा नुकसान से ऊपर उठकर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों द्वारा उठाये गये सवालों के उत्तर तलाशे जाये ताकि न्यायपालिका के प्रति आम जनता का विश्वास सुदृढ़ बना रहे ।
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