Wednesday, 24 January 2018

सुनील हत्याकाण्ड हड़ताल का नही शोक का दिन है


सुनील हत्या कांड हड़ताल का नही शोक का दिन है
आज अपने एक भाई की फिर हत्या हो गई और दूसरा भाई पत्नी सहित उसकी हत्या का दोषी बन गया इसलिये आज का दिन हम सबके लिए शोक का दिन है , चिन्तन मनन का दिन है ।घोर असहमति के बावजूद सामने वाले के विचारों के प्रति आदर भाव और हर स्तर पर सहिष्णुता बनाये रखना अधिवक्ताओं का गुण है और यही अपने पेशे की विशेषता है । यह सच है, हम सब अपने ज्ञान और , अपनी कुशलता को बढाने के लिए हर क्षण प्रयत्नशील रहते है परन्तु हमारे बीच श्रेष्ठता का कोई मतलब नहीं, वरचसव का कोई मुद्दा नहीं। फिर इन प्राणघातक हमलों का कारण क्या है ?मैने कई घोषित अपराधियों को सजा कराई, कइयों को केस डायरी की फोटो कापी नही दी, पक्षद्रोही साक्षी से तीखी जिरह की , भारत सरकार के लिए कई बडे डिफेन्स सप्लायर के खेल बिगाड़ दिये लेकिन किसी ने मुझे अपना दुश्मन नहीं माना। सबके सब मेरा आदर करते है इसलिये अदालत मे एक दूसरे के विरोध मे खड़े होने या अन्य किसी अदालती कार्य के कारण प्राणघातक हमलों की बात समझ मे नहीं आती। अपने अधिवक्ता भाईयों के बीच प्राणघातक हमलों की प्रतिद्वन्दिता अब अपनी एसोसिएशन के लिए चिन्ता का विषय बन जाना चाहिए। हत्या के कारणों पर सोच विचार करना एसोसिएशन का संस्थागत दायित्व है। हड़ताल करने से केवल विरोध प्रदर्शित होता है , कारण चिन्हित नहीं हो पाते इसलिये उनको नष्ट करने के लिए कोई काम नही हो पाता। सोचने मे भी डर लगता है , कहीं अपने भाइयों के बीच न्याय को खरीदने की ताकत बटोरने के लिए वरचसव का कोई जंग तो शुरू नही हो गया है ? या इसके पीछे विवादास्पद मकानों दुकानो को खरीदने के व्यवसाय मे अपनी दबंगई बनाये रखने की लड़ाई तो नहीं है । हो सकता है मै जो सोच रहा हूँ, एकदम गलत हो लेकिन अधिवक्ताओं के बीच प्राणघातक हमलों के सिलसिले हमारी सार्वजनिक क्षवि के लिए हितकर नहीं है । कानपुर की छात्र राजनीति इसी प्रकार के झगड़ो के कारण मृतप्राय हो गई है । अपने चुनावों मे अनाप शनाप बढते खर्चे पहले से चिन्ता का विषय हैं और अब बढती प्राणघातक दुश्मनियाॅ हमे कहाँ ले जायेंगी ?
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Devpriya Awasthi आपकी चिंता वाजिब है. किसी भी प्रतिद्वंदिता में हत्या जैसे अपराध को औचित्यपूर्ण नहीं माना जा सकता है.
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जवाब दें2 दिन
Raju Sharma आपका कथन व सोच बिल्कुल जायज है परंतु अधिवक्ता होकर वकालत न करके अन्य जायज व् नजायक कार्य करने वालो के बीच ही ये युद्ध हो रहा है आम अधिवक्ता आज भी झगड़े फसाद से दूर है।
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जवाब दें2 दिन
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2 दिन
Surendra Pratap Singh मजे की बात बन्दूक उसकी बीबी लेकर आई |
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Surendra Pratap Singh बन्दूक का जो काम है उसी लिए लाई गई और उसने अपना काम किया भी |
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Surendra Pratap Singh आज के अखबारों का आधार रहा कमेंट का |
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Rakesh Bajpai हिंसा की साेच ही खराबहै।जब आपके द्वार पर हिंसा दस्तक दें तब आप मानेगे कि हिंसा हो रहीहै ।इस विषय पर सामाजिक चिन्तन मनन की आवश्यकताहै ।
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2 दिन
Jitendra Kumar Pandey आदरणीय कौशल जी आज अधिवक्ता वकालत में कम ध्यान दे रहा है अधिवक्ता अधिवक्ता के बीच संघर्ष चिंतनीय बिषय है।
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2 दिन
Arvind Raj Tripathi आपने वास्तविकता से अधिवक्ताओ को परिचित कराये चिंतनीय विषय है ।
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Kuldeep Saxena आपका दृष्टिकोण सही है।मगर सच या यथार्थ के साथ आज कौन और कितने खड़े होने की हिम्मत रखते हैं।गंदगी सफाई मांगती है हर स्तर पर।चाहें देश ही क्यों न हो।....यथा राजा तथा प्रजा।
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जवाब दें2 दिन
Rajkishore Singh मार्गदर्शन आवश्यक मार्ग प्रशस्त करें
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जवाब दें2 दिन
Jai Shankar Bajpai यह क्रत्य निंदनीय है । आपने जो चिंता की है वाजिब गम्भीर विचार विमर्श कर निर्णय करने की, आवश्यकता है।कारण कुछ भी हो हत्या को उचित नहीं ठहराया जा सकता है ।
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जवाब दें2 दिन
Anil Chauhan Very serious for whole advocate communityपूरे अधिवक्ता समुदाय के लिए बहुत गंभीर
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2 दिन
Rakesh Bajpai Agreed100% with you.आप के साथ agreed100%.
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1 दिन
Narendra Kumar Yadav कल

कौशल भाई आप ने हकीकत बयां की है इकतीस वर्ष वकालत के हो गये आज तक किसी भी अधिवक्ता साथी से कोई विवाद तक नहीं हुआ न्यायालय में खूब नोक झोंक हुई लेकिन बाहर निकलते ही स्नेह पूर्ण व्यवहार रहा क्योंकि कठिन परिश्रम के साथ वकालत की किसी भी विवादित मकान दुक
ान को न खरीदा न बोर्ड लगाये न किसी गैंग को चलाया न मेंमबर रहा आज शायद बाहरी बयार का शिकार. हमारा पवित्र व्यवसाय हो गया है ।
हत्या जैसे जघन्य अपराध वकील के आस पास से नहीं गुजरना चाहिए।
जब सामान्य जन यह पूछते हैं वकीलों में वर्चस्व की लड़ाई क्या हो सकती है तो सर लज्जा से झुक जाता है।
इस पर उन सभी अधिवक्ता साथीयों को विचार करना पड़ेगा कि हमारा धर्म अगर वकालत है तो हमें गंदगी को भी समाप्त करने के लिए कमर कस के लडना पडेगा।
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जवाब दें1 दिन
Dinesh Yadav Ye kahan aa gaye hum yyu hi sath saath chalte Bhai think Radhey Radhey
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जवाब दें1 दिन
Shashikant Pandey बड़े भाई कौशल जी आपके बिचार वास्तविक अधिवक्ताओ को तो समझ में आ सकते हैं किन्तु उन लोगों की समझ से परे है जो हमारी संगठनात्मक शक्ति को कवच के रूप मे इस्तेमाल करते हैं
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जवाब दें1 दिन
Narendra Kumar Yadav पांडेय जी आपने बिल्कुल सही कहा है लेकिन कोई ठोस कदम भी हम सब प्रेकटिशनर लोगो को अपनी अस्मिता बचाने और पवित्र व्यवसाय की रक्षा के लिएउठानाा पड़ेगा।
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जवाब दें1 दिनसंपादित
Virendra Prajapati · 253 आपसी मित्र
हमें इस घटना को गम्भीरता से लेने की ज़रूरत है क्यूँकि दिन प्रति दिन अधिवक्ता समाज की जो गरिमा गिर रही है उसका यही सब कारण है और इस पर विचार करने का वक़्त है नहीं तो यूँ ही घटनाये होती रहेंगी और हम हड़ताल के बाद बिना किसी निर्णय के फिर काम करते रहेंगे
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जवाब दें1 दिन
Narendra Kumar Yadav हड़ताल से क्या निर्णय।चाहते हैं चुनावी अराजकता पर लगाम लगाने की जरूरत है।
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जवाब दें22 घंटे
Ashok Pandey 100% agree with you sirआपके साथ 100 % सहमत हैं सर
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22 घंटे
Dinesh Yadav वेरी नाईस् भाई
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जवाब दें22 घंटे
Adv Ramakant Awasthi चिंता के अलावा हम आप और अधिक कुछ कर भी नहीं सकते क्योंकि और अधिक कुछ करने की क्षमता भी हमारे आपके पास नहीं है आज का अधिवक्ता किसी वर्ग विशेष से अनुलग्न होने का का प्रतिनिधित्व नहीं करता है आज प्रवेश लेने वाले अधिवक्ता समाज के आम रंग में रंगे है तभी आमसमाज के लोगों जैसी उनकी भी प्रतिक्रियाएं हैं आज हम एक अनुशासन विहीन संस्था के सदस्य हैं अनुशासनहीन समाज अराजक कहलाता है अराजकता भी एक प्रणाली है जिसे अराजकतावाद कहते हैं इस वाद की विशेषता यह है की लोग आपस में एक दूसरे को चोट पहुंचाकर हर प्रकार का नुकसान फायदा उठाकर फिर कुदरती तौर पर संभलते हैं यद्यपि तब तक काफी देर हो चुकी होती है
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जवाब दें12 घंटे
Anil Awasthi आपका द्रष्टिकोण बिल्कुल सही है |
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जवाब दें11 घंटे

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