सुनील हत्या कांड हड़ताल का नही शोक का दिन है
आज अपने एक भाई की फिर हत्या हो गई और दूसरा भाई पत्नी सहित उसकी हत्या का दोषी बन गया इसलिये आज का दिन हम सबके लिए शोक का दिन है , चिन्तन मनन का दिन है ।घोर असहमति के बावजूद सामने वाले के विचारों के प्रति आदर भाव और हर स्तर पर सहिष्णुता बनाये रखना अधिवक्ताओं का गुण है और यही अपने पेशे की विशेषता है । यह सच है, हम सब अपने ज्ञान और , अपनी कुशलता को बढाने के लिए हर क्षण प्रयत्नशील रहते है परन्तु हमारे बीच श्रेष्ठता का कोई मतलब नहीं, वरचसव का कोई मुद्दा नहीं। फिर इन प्राणघातक हमलों का कारण क्या है ?मैने कई घोषित अपराधियों को सजा कराई, कइयों को केस डायरी की फोटो कापी नही दी, पक्षद्रोही साक्षी से तीखी जिरह की , भारत सरकार के लिए कई बडे डिफेन्स सप्लायर के खेल बिगाड़ दिये लेकिन किसी ने मुझे अपना दुश्मन नहीं माना। सबके सब मेरा आदर करते है इसलिये अदालत मे एक दूसरे के विरोध मे खड़े होने या अन्य किसी अदालती कार्य के कारण प्राणघातक हमलों की बात समझ मे नहीं आती। अपने अधिवक्ता भाईयों के बीच प्राणघातक हमलों की प्रतिद्वन्दिता अब अपनी एसोसिएशन के लिए चिन्ता का विषय बन जाना चाहिए। हत्या के कारणों पर सोच विचार करना एसोसिएशन का संस्थागत दायित्व है। हड़ताल करने से केवल विरोध प्रदर्शित होता है , कारण चिन्हित नहीं हो पाते इसलिये उनको नष्ट करने के लिए कोई काम नही हो पाता। सोचने मे भी डर लगता है , कहीं अपने भाइयों के बीच न्याय को खरीदने की ताकत बटोरने के लिए वरचसव का कोई जंग तो शुरू नही हो गया है ? या इसके पीछे विवादास्पद मकानों दुकानो को खरीदने के व्यवसाय मे अपनी दबंगई बनाये रखने की लड़ाई तो नहीं है । हो सकता है मै जो सोच रहा हूँ, एकदम गलत हो लेकिन अधिवक्ताओं के बीच प्राणघातक हमलों के सिलसिले हमारी सार्वजनिक क्षवि के लिए हितकर नहीं है । कानपुर की छात्र राजनीति इसी प्रकार के झगड़ो के कारण मृतप्राय हो गई है । अपने चुनावों मे अनाप शनाप बढते खर्चे पहले से चिन्ता का विषय हैं और अब बढती प्राणघातक दुश्मनियाॅ हमे कहाँ ले जायेंगी ?
आज अपने एक भाई की फिर हत्या हो गई और दूसरा भाई पत्नी सहित उसकी हत्या का दोषी बन गया इसलिये आज का दिन हम सबके लिए शोक का दिन है , चिन्तन मनन का दिन है ।घोर असहमति के बावजूद सामने वाले के विचारों के प्रति आदर भाव और हर स्तर पर सहिष्णुता बनाये रखना अधिवक्ताओं का गुण है और यही अपने पेशे की विशेषता है । यह सच है, हम सब अपने ज्ञान और , अपनी कुशलता को बढाने के लिए हर क्षण प्रयत्नशील रहते है परन्तु हमारे बीच श्रेष्ठता का कोई मतलब नहीं, वरचसव का कोई मुद्दा नहीं। फिर इन प्राणघातक हमलों का कारण क्या है ?मैने कई घोषित अपराधियों को सजा कराई, कइयों को केस डायरी की फोटो कापी नही दी, पक्षद्रोही साक्षी से तीखी जिरह की , भारत सरकार के लिए कई बडे डिफेन्स सप्लायर के खेल बिगाड़ दिये लेकिन किसी ने मुझे अपना दुश्मन नहीं माना। सबके सब मेरा आदर करते है इसलिये अदालत मे एक दूसरे के विरोध मे खड़े होने या अन्य किसी अदालती कार्य के कारण प्राणघातक हमलों की बात समझ मे नहीं आती। अपने अधिवक्ता भाईयों के बीच प्राणघातक हमलों की प्रतिद्वन्दिता अब अपनी एसोसिएशन के लिए चिन्ता का विषय बन जाना चाहिए। हत्या के कारणों पर सोच विचार करना एसोसिएशन का संस्थागत दायित्व है। हड़ताल करने से केवल विरोध प्रदर्शित होता है , कारण चिन्हित नहीं हो पाते इसलिये उनको नष्ट करने के लिए कोई काम नही हो पाता। सोचने मे भी डर लगता है , कहीं अपने भाइयों के बीच न्याय को खरीदने की ताकत बटोरने के लिए वरचसव का कोई जंग तो शुरू नही हो गया है ? या इसके पीछे विवादास्पद मकानों दुकानो को खरीदने के व्यवसाय मे अपनी दबंगई बनाये रखने की लड़ाई तो नहीं है । हो सकता है मै जो सोच रहा हूँ, एकदम गलत हो लेकिन अधिवक्ताओं के बीच प्राणघातक हमलों के सिलसिले हमारी सार्वजनिक क्षवि के लिए हितकर नहीं है । कानपुर की छात्र राजनीति इसी प्रकार के झगड़ो के कारण मृतप्राय हो गई है । अपने चुनावों मे अनाप शनाप बढते खर्चे पहले से चिन्ता का विषय हैं और अब बढती प्राणघातक दुश्मनियाॅ हमे कहाँ ले जायेंगी ?
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