लाल इमली सब कुछ तो है फिर दिक्कत कहाँ?
लाल इमली श्रमिकों की हड़ताल के कारण बन्द नहीं हुई। इस मिल मे बी आई सी प्रबन्ध तन्त्र ने अपने खुद के निर्णय के तहत उत्पादन बन्द किया है । मिल का श्रमिक उत्पादन बन्द करने के निर्णय का शुरूआत से विरोध कर रहा है । किसी मिल को चलाने के लिए जो कुछ भी चाहिए होता है , वह सबका सब इस मिल मे उपलब्ध है ।केवल कच्चे माल के लिए कुछ करोड़ रुपये चाहिए, जो इस मिल के केवल पाँच बँगलो को बेचकर या बैक मे गिरवी रखकर जुटाये जा सकते हैं। केन्द्र सरकार ने इस मिल के मालिकों के कुप्रबनध से नाराज होकर श्रमिकों का रोजगार सुरक्षित रखने और आम जनता को सस्ते, गुणवत्तापूर्ण ऊलेन कपडे उपलब्ध कराने की अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए इस मिल का अधिग्रहण किया था । अधिग्रहण किये जाने के समय मिल मे पूरी क्षमता से उत्पादन हो रहा था और कोई श्रमिक अशान्ति नहीं थी । फिर दिक्कत कहाँ से पैदा हुई? मेरा अनुभव कहता है , मिल के प्रति सरकारी अधिकारियों मे प्रतिबद्धता का अभाव , लूटखसोट,और भ्रष्टाचार से प्रभावित फैसले इस मिल की दुर्दशा का कारण हैं । केन्द्र सरकार ने सरकारी अधिकारियों के कुप्रबनध पर अंकुश लगाने का कभी कोई प्रयास नहीं किया ।
मुम्बई की एक मिल " कमानी ट्यूबस " भी इन्हीं परिस्थितियों मे बन्द हुई थी और तत्कालीन केन्द्र सरकार उसका अधिग्रहण करने के लिए तैयार नही थी । इस मिल का श्रमिक खुद आगे आया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करके राॅ मेटेरियल के लिए बैंक से लोन दिलाया और श्रमिकों ने खुद अपने प्रबन्ध मे मिल चला ली ।इसी तरह कोलकता मे भी एक मिल कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर चलाई गई थी । लाल इमली के श्रमिकों को भी अवसर दिया जाना चाहिए। सरकार को मिल की बेशकीमती जमीन बेचने का लालच त्याग कर श्रमिकों की देखरेख मे मिल चलाने की सम्भावनायें तलाशनी चाहिये।इस मिल मे उत्पादन शुरू हो जाने से कम से कम पांच हजार परिवारो को रोजगार मिलेगा और कम से कम दस हजार लोग अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे।
लाल इमली श्रमिकों की हड़ताल के कारण बन्द नहीं हुई। इस मिल मे बी आई सी प्रबन्ध तन्त्र ने अपने खुद के निर्णय के तहत उत्पादन बन्द किया है । मिल का श्रमिक उत्पादन बन्द करने के निर्णय का शुरूआत से विरोध कर रहा है । किसी मिल को चलाने के लिए जो कुछ भी चाहिए होता है , वह सबका सब इस मिल मे उपलब्ध है ।केवल कच्चे माल के लिए कुछ करोड़ रुपये चाहिए, जो इस मिल के केवल पाँच बँगलो को बेचकर या बैक मे गिरवी रखकर जुटाये जा सकते हैं। केन्द्र सरकार ने इस मिल के मालिकों के कुप्रबनध से नाराज होकर श्रमिकों का रोजगार सुरक्षित रखने और आम जनता को सस्ते, गुणवत्तापूर्ण ऊलेन कपडे उपलब्ध कराने की अपनी सामाजिक ज़िम्मेदारी पूरी करने के लिए इस मिल का अधिग्रहण किया था । अधिग्रहण किये जाने के समय मिल मे पूरी क्षमता से उत्पादन हो रहा था और कोई श्रमिक अशान्ति नहीं थी । फिर दिक्कत कहाँ से पैदा हुई? मेरा अनुभव कहता है , मिल के प्रति सरकारी अधिकारियों मे प्रतिबद्धता का अभाव , लूटखसोट,और भ्रष्टाचार से प्रभावित फैसले इस मिल की दुर्दशा का कारण हैं । केन्द्र सरकार ने सरकारी अधिकारियों के कुप्रबनध पर अंकुश लगाने का कभी कोई प्रयास नहीं किया ।
मुम्बई की एक मिल " कमानी ट्यूबस " भी इन्हीं परिस्थितियों मे बन्द हुई थी और तत्कालीन केन्द्र सरकार उसका अधिग्रहण करने के लिए तैयार नही थी । इस मिल का श्रमिक खुद आगे आया और फिर सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप करके राॅ मेटेरियल के लिए बैंक से लोन दिलाया और श्रमिकों ने खुद अपने प्रबन्ध मे मिल चला ली ।इसी तरह कोलकता मे भी एक मिल कोआपरेटिव सोसाइटी बनाकर चलाई गई थी । लाल इमली के श्रमिकों को भी अवसर दिया जाना चाहिए। सरकार को मिल की बेशकीमती जमीन बेचने का लालच त्याग कर श्रमिकों की देखरेख मे मिल चलाने की सम्भावनायें तलाशनी चाहिये।इस मिल मे उत्पादन शुरू हो जाने से कम से कम पांच हजार परिवारो को रोजगार मिलेगा और कम से कम दस हजार लोग अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होंगे।
No comments:
Post a Comment