मदुरई कानपुर या चेननई सब कुछ एक जैसा तो है
दक्षिण भारत के इन महत्वपूर्ण शहरों और अपने कानपुर के आम लोगों के बीच खान-पान और भाषा के अतिरिक्त सब कुछ एक जैसा तो है । वास्तव मे हम भारतवासियों के रहन सहन जीवन दर्शन मे कोई मौलिक अन्तर नहीं है ।जो विभिन्नता दिखती है , वही हमारी विशेषता है ।सार्वजनिक स्थलों पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम , भोले शंकर और अपने बजरंगबली की मूर्तियाँ हमे बताती है कि भारतीय संस्कृति और परम्पराओ के प्रति दक्षिण भारत के भाइयों की प्रतिबद्धता हम उत्तर भारतीयों से कहीं ज्यादा है । माथे पर चन्दन का टीका लगाकर घर से निकलना यहाँ युवतियों के लिए भी आम बात है ।अपने कानपुर की गली मुहल्लो की तरह यहाँ भी सडक किनारे दुकानदार अतिक्रमण करके रोज़ी रोटी कमा रहे है ।सडक पर उसी तरह की भाग दौड़ है । रामेश्वरम् और मदुरई के बीच नारियल , खजूर ,ताड़ और केले के सिवा कुछ नहीं दिखा।स्थानीय स्तर पर ताड़ से बनी मिश्री और गुड का स्वाद अद्वितीय है। यहाँ की मिश्री मीठी होती है लेकिन उसमे शुगर बिलकुल नहीं होती ।गुड का स्वाद भी अपने यहाँ के गुड से अलग है ।रामेश्वरम् मे कुछ भी नहीं उगता।मछली उनका मुख्य भोजन है । हर जगह मछली सुखाई जाती दिखीं। रामेश्वरम् मे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का घर भी तीर्थ स्थल की दर्शनीय हो गया है।
यहाँ घूमते हुए स्कूल स्तर पर त्रिभाषा पढाई का पुराना फार्मूला उपयोगी दिखता है । हम सभी को भाषाई श्रेष्ठता भुला कर एक दूसरे की भाषा सीखनी चाहिये। मुगलों और अंग्रेजों के आने के सदियों पहले से दक्षिण भारत के लोग काशी विश्वनाथ मंदिर और हम उत्तर भारतीय रामेश्वरम् धाम और माँ मीनाक्षी सुनदरेशवर मंदिर आते जाते रहे है । एक दूसरे की भाषा न जानते हुये भी हम एक-दूसरे की भावनाओं को बखूबी समझ लेते थे , उनका हृदय से सम्मन करते थे ।हमारी साझा संस्कृति , सामाजिक आचार विचार, राष्ट्रीय सरोकार एक जैसे है ।इसको अक्षुण्ण बनाये रखना हम सबकी निजी और साझी जिममेदारी है ।हमारे पूर्वज हमे बहुत कुछ दे गये है और उसी कारण " कुछ है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी " का हम सगर्व उद्घोष कर पाते है ।हमको भी अपने पूर्वजों द्वारा सौंपी गई श्रेष्ठ विरासत से ज्यादा समृद्ध विरासत अपने बच्चों को सौंपने की तैयारी आज से ही शुरू कर देनी चाहिए।
दक्षिण भारत के इन महत्वपूर्ण शहरों और अपने कानपुर के आम लोगों के बीच खान-पान और भाषा के अतिरिक्त सब कुछ एक जैसा तो है । वास्तव मे हम भारतवासियों के रहन सहन जीवन दर्शन मे कोई मौलिक अन्तर नहीं है ।जो विभिन्नता दिखती है , वही हमारी विशेषता है ।सार्वजनिक स्थलों पर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान् राम , भोले शंकर और अपने बजरंगबली की मूर्तियाँ हमे बताती है कि भारतीय संस्कृति और परम्पराओ के प्रति दक्षिण भारत के भाइयों की प्रतिबद्धता हम उत्तर भारतीयों से कहीं ज्यादा है । माथे पर चन्दन का टीका लगाकर घर से निकलना यहाँ युवतियों के लिए भी आम बात है ।अपने कानपुर की गली मुहल्लो की तरह यहाँ भी सडक किनारे दुकानदार अतिक्रमण करके रोज़ी रोटी कमा रहे है ।सडक पर उसी तरह की भाग दौड़ है । रामेश्वरम् और मदुरई के बीच नारियल , खजूर ,ताड़ और केले के सिवा कुछ नहीं दिखा।स्थानीय स्तर पर ताड़ से बनी मिश्री और गुड का स्वाद अद्वितीय है। यहाँ की मिश्री मीठी होती है लेकिन उसमे शुगर बिलकुल नहीं होती ।गुड का स्वाद भी अपने यहाँ के गुड से अलग है ।रामेश्वरम् मे कुछ भी नहीं उगता।मछली उनका मुख्य भोजन है । हर जगह मछली सुखाई जाती दिखीं। रामेश्वरम् मे पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम का घर भी तीर्थ स्थल की दर्शनीय हो गया है।
यहाँ घूमते हुए स्कूल स्तर पर त्रिभाषा पढाई का पुराना फार्मूला उपयोगी दिखता है । हम सभी को भाषाई श्रेष्ठता भुला कर एक दूसरे की भाषा सीखनी चाहिये। मुगलों और अंग्रेजों के आने के सदियों पहले से दक्षिण भारत के लोग काशी विश्वनाथ मंदिर और हम उत्तर भारतीय रामेश्वरम् धाम और माँ मीनाक्षी सुनदरेशवर मंदिर आते जाते रहे है । एक दूसरे की भाषा न जानते हुये भी हम एक-दूसरे की भावनाओं को बखूबी समझ लेते थे , उनका हृदय से सम्मन करते थे ।हमारी साझा संस्कृति , सामाजिक आचार विचार, राष्ट्रीय सरोकार एक जैसे है ।इसको अक्षुण्ण बनाये रखना हम सबकी निजी और साझी जिममेदारी है ।हमारे पूर्वज हमे बहुत कुछ दे गये है और उसी कारण " कुछ है जो हस्ती मिटती नहीं हमारी " का हम सगर्व उद्घोष कर पाते है ।हमको भी अपने पूर्वजों द्वारा सौंपी गई श्रेष्ठ विरासत से ज्यादा समृद्ध विरासत अपने बच्चों को सौंपने की तैयारी आज से ही शुरू कर देनी चाहिए।
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