राधा तुम सुन रही हो ना
आज मै बॅगलौर मे हूँ लेकिन तुम नहीं हो, केवल तुम्हारी यादें है और साथ मे तुमको लेकर अपनी असफलताओं का पश्चाताप। पहली बार मै जब आया था, तुम मुझको देखते ही चहक उठी थी , तुम्हारा प्रफुल्लित चेहरा हर क्षण मेरे मन मस्तिष्क मे घूमता रहता है ।तुम तीनों दिन बहुत खुश रहीं थीं। उन दिनों तुममें गजब का आत्म विश्वास आ गया था ।जिस दिन मै लौट रहा था , तुम उदास थी , रोने लगीं थीं। न मालुम क्यो मेरा मन भी किसी अनहोनी की आशंका से काॅप गया था ।मैने वापसी टालनी चाही लेकिन तुमने रूकने नहीं दिया, विश्वास दिलाया कि कल से आफिस जावोगी लेकिन तुम आफिस नहीं गईं और फोन पर मुझे बहलाती रही । मै तुम्हें विश्वास नहीं दिला पाया कि मै पिता की तरह हर परिस्थिति मे तुम्हारे साथ हूँ । यहीं मुझसे गलती हुई और फिर अपने आपको अवांछित और अप्रिय मानकर एक खुदगर्ज इन्सान और उसके निर्दयी माता पिता की खुशी के लिए तुमने अपनी इहलीला समाप्त कर ली और फिर मुझे अपने आपको सरे-आम ठगी का शिकार मानते हुए तुम्हारे दाह संस्कार के लिए दुबारा बँगलौर आना पडा। उस दिन तुम्हारा शान्त दैदीप्यमान चेहरा मुझे रोने नहीं दे रहा था और बार-बार एक दिन पहले फोन पर तुम्हारे कहे शब्द " अंकल आप परेशान न हो , हम सब ठीक कर लेंगे " याद आ रहे थे ।मै जानता हूँ तुम अब दुनिया मे नहीं हो फिर भी मन ही मन सोच रहा हूँ कि अभी तुम मिलोगी और एकदम चहक कर मुझसे चिपट जाओगी और पिछ्ली बार की तरह चिल्ला कर अपनी मकान मालिकिन आंटी से कहोगी, देखो आंटी अंकल आ गये। मेरा इस तरह सोचना बेवकूफी की पराकाष्ठा है लेकिन करूँ क्या ? मन तो मन है ।राधा तुमने मेरी कोई बात नहीं मानी , सब अपने मन का किया लेकिन बेटा, अगर सुन पा रही हो तो आज मेरी बात सुन लो । दुनिया में कोई एक घटना , कोई एक इनशान, कोई एक धोखा और कोई एक उपलब्धि जीवन का अन्तिम सत्य नहीं होता ।इस सबके आगे भी बहुत कुछ है जिसको पाने के लिए जीना होता है। राधा तुम दुखी मत हो , तुम जहाॅ कहीं भी हो , सुखी रहो अपने अंकल की स्मृतियों मे तुम जिन्दा हो और जिन्दा रहोगी ।
आज मै बॅगलौर मे हूँ लेकिन तुम नहीं हो, केवल तुम्हारी यादें है और साथ मे तुमको लेकर अपनी असफलताओं का पश्चाताप। पहली बार मै जब आया था, तुम मुझको देखते ही चहक उठी थी , तुम्हारा प्रफुल्लित चेहरा हर क्षण मेरे मन मस्तिष्क मे घूमता रहता है ।तुम तीनों दिन बहुत खुश रहीं थीं। उन दिनों तुममें गजब का आत्म विश्वास आ गया था ।जिस दिन मै लौट रहा था , तुम उदास थी , रोने लगीं थीं। न मालुम क्यो मेरा मन भी किसी अनहोनी की आशंका से काॅप गया था ।मैने वापसी टालनी चाही लेकिन तुमने रूकने नहीं दिया, विश्वास दिलाया कि कल से आफिस जावोगी लेकिन तुम आफिस नहीं गईं और फोन पर मुझे बहलाती रही । मै तुम्हें विश्वास नहीं दिला पाया कि मै पिता की तरह हर परिस्थिति मे तुम्हारे साथ हूँ । यहीं मुझसे गलती हुई और फिर अपने आपको अवांछित और अप्रिय मानकर एक खुदगर्ज इन्सान और उसके निर्दयी माता पिता की खुशी के लिए तुमने अपनी इहलीला समाप्त कर ली और फिर मुझे अपने आपको सरे-आम ठगी का शिकार मानते हुए तुम्हारे दाह संस्कार के लिए दुबारा बँगलौर आना पडा। उस दिन तुम्हारा शान्त दैदीप्यमान चेहरा मुझे रोने नहीं दे रहा था और बार-बार एक दिन पहले फोन पर तुम्हारे कहे शब्द " अंकल आप परेशान न हो , हम सब ठीक कर लेंगे " याद आ रहे थे ।मै जानता हूँ तुम अब दुनिया मे नहीं हो फिर भी मन ही मन सोच रहा हूँ कि अभी तुम मिलोगी और एकदम चहक कर मुझसे चिपट जाओगी और पिछ्ली बार की तरह चिल्ला कर अपनी मकान मालिकिन आंटी से कहोगी, देखो आंटी अंकल आ गये। मेरा इस तरह सोचना बेवकूफी की पराकाष्ठा है लेकिन करूँ क्या ? मन तो मन है ।राधा तुमने मेरी कोई बात नहीं मानी , सब अपने मन का किया लेकिन बेटा, अगर सुन पा रही हो तो आज मेरी बात सुन लो । दुनिया में कोई एक घटना , कोई एक इनशान, कोई एक धोखा और कोई एक उपलब्धि जीवन का अन्तिम सत्य नहीं होता ।इस सबके आगे भी बहुत कुछ है जिसको पाने के लिए जीना होता है। राधा तुम दुखी मत हो , तुम जहाॅ कहीं भी हो , सुखी रहो अपने अंकल की स्मृतियों मे तुम जिन्दा हो और जिन्दा रहोगी ।
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