Saturday, 13 January 2018

न्यायपालिका में सब कुछ कभी अच्छा नही रहा


न्यायपालिका मे सब कुछ कभी अच्छा नहीं रहा
सर्वोच्च न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों ने अपने मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा के कथित दुराचरण की सार्वजनिक चर्चा करके एक अभूतपूर्व कदम उठाया है लेकिन इस गम्भीर विषय को कांग्रेस बनाम भाजपा की चर्चा बनाकर इसके दूरगामी प्रभाव को सीमित रखने का अभियान शुरू हो गया है । न्यायपालिका मे सब कुछ कभी सामान्य नही रहा । राजनैतिक कारणों से उसकी पारदर्शिता सदैव कुप्रभावित होती रही है लेकिन अपने अपने निहित स्वार्थो या कहलें अवमानना के भय के कारण कभी किसी ने इस सबको सार्वजनिक नहीं किया और इसका लाभ उठाकर इन्दिरा गाँधी ने प्रतिबद्ध नौकरशाही की तरह प्रतिबद्ध न्यायपालिका की अवधारणा प्रस्तुत करके तीन वरिष्ठतम न्यायमूर्तियों को दरकिनार करके अपने चहेते न्यायमूर्ति को मुख्य न्यायाधीश बना दिया था ।उनहोंने उस समय के वरिष्ठतम जनरल श्री एस के सिन्हा की वरिष्ठता को दरकिनार करके अपने चहेते को आर्मी चीफ बना दिया था । अभी पिछले दिनों कोलोजियम की सिफारिश के बावजूद वरिष्ठ अधिवक्ता श्री गोपाल सुब्रमण्यम को सुप्रीम कोर्ट का जज न बनाकर न्यायपालिका की नियुक्तियों मे राजनैतिक हस्तक्षेप का एक नया उदाहरण सार्वजनिक हुआ है ।
1994 मे इलाहाबाद उच्च न्यायालय मे मुख्य न्यायाधीश रहे न्यायमूर्ति श्री एस एस सोढ़ी ने अपनी किताब " अदर साइड आफ जस्टिस " मे सुप्रीम कोर्ट के चारों न्यायाधीशों द्वारा उठाये गये सवालों से ज्यादा गम्भीर और चिंताजनक सवाल उठाये थे । अगर हमने उस समय उनके द्वारा उठाये गये सवालों पर सार्वजनिक चर्चा कर ली होती , उन्हे सुलझा लिया होता तो आज हमे यह दिन नहीं देखने पडते । न्यायमूर्ति सोढ़ी ने किताब मे बताया है कि तत्कालीन सुप्रीम कोर्ट जज न्यायमूर्ति श्री एम एम पुंछी और श्री आर एम सहाय की निजी दुर्भावना के कारण उन्हें सुप्रीम कोर्ट मे जज नही बनने दिया गया। न्यायमूर्ति सहाय के बेटे का नामइलाहाबाद उच्च न्यायालय मे जज के लिये रिकमंड न किये जाने और उनके कहने के बावजूद उनके समधी न्यायमूर्ति एस एन सहाय का ट्रांसफर लखनऊ से इलाहाबाद कर दिये जाने से वे न्यायमूर्ति सोढ़ी से नाराज थे और उनहोंने बखूबी उसका बदला लिया ।
आज के समाचार पत्रों मे पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जे एस वर्मा का बयान छपा है जिसमे उनहोंने बताया है कि अपने कार्य काल के दौरान वे खुद तत्कालीन न्यायमूर्ति श्री एम एम पुंछी ( जो बाद मे मुख्य न्यायाधीश बने) के विरूद्ध लगे आरोपों पर जाॅच की अनुमति देना चाहते थे लेकिन राजनैतिक कार्यपालिका ने ऐसा नही होने दिया ।यदि न्यायमूर्ति सोढ़ी के सवालो की अनदेखी नही की गई होती तो श्री एम एम पुंछी देश के मुख्य न्यायाधीश नही हो पाते ।
याद करें न्यायमूर्ति सी एम प्रसाद और न्यायमूर्ति श्रीमती ज्ञान सुधा मिश्रा की सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के समय विवाद हुआ था । श्रीमती मिश्रा पटना हाई कोर्ट मे श्री प्रसाद से वरिष्ठ थी परन्तु सुप्रीम कोर्ट मे नियुक्ति के समय राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण श्री प्रसाद की नियुक्ति उनसे पहले कर दी गई । उनहोंने महामहिम राष्ट्रपति से शिकायत की और उसके बाद विवाद सुलझाया गया।
भारत का आम आदमी न्यायपालिका पर अटूट विश्वास करता है , उसे अन्तिम आशा के रूप मे देखता है इसलिये न्यायाधीशों से हर हाल मे निष्पक्ष और पारदर्शी बने रहने की अपेक्षा की जाती है लेकिन दुख की बात है कि अब अपने न्यायाधीश बेईमान होने लगे है । उनमे से कई अब निर्णय नही, फैसले करते हैं, जो विधि पर नही उनकी पसन्द नापसंद पर आधारित होते है । इन अप्रिय स्थितियों को नेस्तनाबूत करने के लिए सघन अभियान चलाना होगा इसलिये तात्कालिक राजनैतिक नफा नुकसान से ऊपर उठकर सर्वोच्च न्यायालय के न्यायमूर्तियों द्वारा उठाये गये सवालों के उत्तर तलाशे जाये ताकि न्यायपालिका के प्रति आम जनता का विश्वास सुदृढ़ बना रहे ।
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
टिप्पणी करें
15 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Chandra Shekhar Singh इन सब के लिए विदेशी एजेंसी भी सामिल नहीं है इनकार नहीं किया जा सकता है
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें8h
Sanjay Kumar Singh आज कुछ लोगों का ये कहना कि वे दबाव में हैं हमारे समझ से ये कतई उचित नही है।
इंसान दबाव तले ही माँ की कोख से जन्म लेता है ,दबाव तले ही लालन पालन,शिक्षा दीक्षा व अपने मुक्कमिल मुकाम को हासिल कर दबाव तले ही मिट्टी में मिल जाता है। ईमानदारी से अवलोकन करें 
दबाव कहाँ नही है यदि अपनी गरिमा को भूलकर मीडिया में आना दबाव कम करने का बेहतर तरीका है तो 7 मई 1997 को सुप्रीम कोर्ट ने फूल कोर्ट में न्यायाधीशों के लिये नैतिक मूल्य (रिइंस्टीटमेंट ऑफ वैल्यू ऑफ ज्यूडिशियल लाइफ) स्वीकार किये थे और इसे 1999 में चीफ जस्टिस कॉफ्रेंस में मंजूरी देकर पूरी न्यायपालिका के लिए स्वीकार किया था। सोलह बिंदुओं के इन नैतिक मूल्यों का नवां बिंदु कहता है कि जजों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपने फैसले के जरिये बोलेंगे वे मीडिया में साक्षात्कार नहीं देंगे। इस तरह मीडिया में आकर बयान बाजी आज आम जन व उन खास महानुभावों में कोई अंतर नही रह जाता ये परिपार्टी आगे बरकरार रही तो फिर जिला न्यायालय में भी देखने को मिलेगा ये दुःखद ही नही दुर्भाग्य पूर्ण भी है
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें8h
Kaushal Sharma मेरा मानना है कि माननीय न्यायमूर्तिगणों द्वारा उठाये गये सवालों का संस्थागत समाधान खोजा जाना आज की सबसे बडी जरूरत है ।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें8h
Sanjay Kumar Singh पर उचित पटल के माध्यम से नकि मीडिया में मसाला बनाकर फिर हमारे सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा को ये ही मीडिया वाले धूल धूसरित कर बैगन का भर्ता बनाकर रख देंगे भैया
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें8h
Rakesh Bajpai Public domain me tabhi mamle le janye padte hain jab pani naak ke upar chala jata hai.
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें8h
Ambarish Mishra Mitra aaj aap punah avlokan kare,, kya ab aap in char nyaymurtiyon ka samman nahi karoge ya unke faisale nahi manoge jara unke likhe patra ko bhi padh len sidhe 9 ve bindu par na jayen pahle 8 ka paalan bhi jaroori hai aur jab patra likha gaya to baithkar charcha bhi ki jani chahiye thi aur samadhan bhi yadi ye ho jata to 9 ve para ke ullanghan ki baat kahan thi,,fir to vohi kathan satya jo man me aaya karenge aur bhakt taali bajayenge
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Kamlesh Singh उठे सवालो मे निस्पक्छता पर सवाल है जिन्हे हल होना चाहिये क्योकि सर्वोच्च न्यायालय की सत्य निष्ठा संदिग्ध नही ही हो वरना लोकतंत्र को खतरा साफ दिखता है।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें6h
Vijay Gupta आम आदमी न्यायपालिका के पास मजबूरी में जाता है विश्वास तो मजबूरी में करना पड़ता है।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Jitendra Kumar Pandey यह घटना समाचारपत्र को पढ़ने के बाद लगता है कि इन चारों जजों ने माननीय सर्वोच्च न्यायालय की गरिमा गिराया है और इन स भी ने अपने कोर्ट की अवमानना की है दो दिन पहले क्लोजियम के माध्यम से दो जजो की नियुक्ति और फिर रोस्टर को लेकर विरोध यह व्यवस्था जिला स्तर पर भी देखने में आता है कि जिला जज जमानतो की सुनवाई कुछ ही जजो के पास भेजते हैं
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Chandra Shekhar Singh बहुत ही अच्छी बात है साफ साफ कर दिया है आपने
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Jitendra Kumar Pandey भाई साहब हर जिले में माननीय उच्च न्यायालय द्वारा प्रशासनिक जज नियुक्त होता है और हर जज जो जिले में तैनात हैं उनके कैरेक्टर रोल बनाते हैं। जबकि माननीय सर्वोच्च न्यायालय यह मानता हैं कि अदालत में भ्रष्टाचार हैं फिरभी बैड इंट्री नहीं करता हैं
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें3h
Chandra Shekhar Singh Bad entry kaise HOGA , interested ethicsबुरी प्रविष्टि कैसे होगा, इच्छुक नैतिकता
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें
अपने आप अनुवाद किया गया
3h
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Adv Ajay Singh Bhadauria Read for ur post .अपनी पोस्ट के लिए पढ़ें.
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें
अपने आप अनुवाद किया गया
7h
Randhir Sishodiya ऐसा लगता है पी.सी.एक प्रायोजित कार्यक्रम तभी तो जस्टिस से नेता मिलेप्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Sudhir Kumar Mishra परिवर्तन जरूरी है ....
कुछ ऐसा नियम होना चाहिए कि कोई किसी का शोषण न कर सके .....
किसी भी अधिकारी ,नेता या जज को नियुक्त होने वाले व्यक्ति की नियुक्ति पर हस्तक्षेप का अधिकार नहीं हो
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Ajay Sinha संतुलित, जवाबदेह टिप्पणी ।'निष्पक्ष और पारदर्शी' यह न्यायप्रणाली से बुनियादी अपेक्षा है । पर सबसे पहले, हम नागरिक इसे दुरुस्त करने को करता कर रहे हैं ?
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7h
Randhir Sishodiya जस्टिस स्वत:संज्ञान लेकर प्रकरण को याचिका मे पंजीकृत कर संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई को लाते तो विश्व मंच पर प्रजातंत्र के बेहद मजबूत और सक्षम भारतीय न्यायपालिका की आन्तरिक कलह उजागर होंने से बच थी सकती थी ।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें7hसंपादित
Ankit Tiwari दूरगामी परिणाम हम भले तय कर लें मगर बागी न्यायाधीशों की खुद कि मंशा भी ज्यादा दूर तक जाने कि नहीं दिखती | वो खुद सिर्फ अपने मतलब का राजा मिल जाने तक ही बागी है|
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें6h
Rakesh Bajpai न्याय पालिका की अपनी एक गरिमा है।जन मानस पर क्या प्रभाव पड़ताहै ।विचारणीय है।
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें6h
Reeta Tripathi Aaj satta se door rajnaitik dal kisi bhi had tak jaa sakte hain. Arajakta ke ek aur adhyay ka aarambh. In judges ne nyaypalika ki garima ko taar taar kiya hai
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें5h
Amit Bajpai समय के अनुसार सुधार आवश्यक हो जाते हैं स्वंत्रतता के नाम पर सुधारों से मुंह नहीं फेरा जा सकता है । बिना किसी नियुक्ति के कारीगर ब्यवस्था चल रही है आखिर यह कब तक चलेगा । कभी तो सुधार जरूरी होंगा
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें3h
Adv Shree Prakash Tiwari सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायमूर्तियों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस किसी उच्च स्तरीय षडयंत्र का हिस्सा तो नहीं?
प्रबंधित करें
पसंद करेंऔर प्रतिक्रियाएँ दिखाएँ
जवाब दें3h

No comments:

Post a Comment