Monday, 29 January 2018

आपराधिक विधि में सुधार, सावधानी भी जरूरी


आपराधिक विधि मे सुधार , सावधानी भी जरूरी
न्यायमूर्ति वी एस मलिमाथ कमेटी ने वर्ष 2003 मे क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम मे सुधार के लिए 158 अनुशंसायें की थीं ।कमेटी ने साक्ष्य विधि और क्रिमिनल प्रोसीजर सहित अदालतो मे विचारण के समय पैदा होने वाली सभी कठिनाइयों का समाधान सुझाया है ।
मलिमाथ कमेटी के सुझावों को स्वीकार करके सरकार ने आतंकवादी मामलो मे पुलिस अभिरक्षा की अवधि 15दिन से बढाकर 30 दिन कर दी है और साक्ष्य विधि मे संशोधन करके वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के समक्ष की गई संस्वीकृति को सुसंगत साक्ष्य के रूप मे एडमिशिबल बना दिया है ।
केन्द्र सरकार मलिमाथ कमेटी के इन सुझावों को सामान्य अपराधो मे भी एडमिशिबल बनाने और स्टैण्डर्ड आफ प्रूफ( दोष सिद्ध के सुस्थापित मानक ) को डायलूट करने पर विचार कर रही है अर्थात सन्देह का लाभ देने की सुस्थापित परम्परा बन्द की जायेगी और हर मामले मे आरोप सिद्ध करने का भार शिकायत कर्ता ( अभियोजन)पर नही बल्कि अभियुक्त पर अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने का भार होगा । यह सच है कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम और धारा 304 बी मे इस आशय का प्रावधान पहले से है और इसका दुरूपयोग भी चरम पर है । पुलिस अधिकारियों से न्याय संगत पारदर्शी ब्यवहार की अपेक्षा नही की जा सकती। सभी जानते है कि वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी भी विवेक का इस्तेमाल नहीं करते ।एन डी पी एस एक्ट की धारा 50 मे राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी के विकल्प का दुरूपयोग आम बात है । एक भी मामला मेरे संज्ञान मे नहीं है , जिसमे अरेसटिंग पुलिस अधिकारी किसी को भी तलाशी के लिए राजपत्रित अधिकारी के समक्ष ले गया हो ।सभी गिरफ्तारी मेमो मे लिखा रहता है कि राजपत्रित अधिकारी के समक्ष तलाशी का विकल्प दिया गया और उसने इंकार कर दिया ।हमी से तलाशी ले लेने के लिए कहा । मंत्री से लेकर एक सिपाही तक सभी को इस दूषित प्रक्रिया की जानकारी है परन्तु इसे रोकना किसी की प्राथमिकता मे नहीं है और अदालतों मे इस दूषित बरामदगी के आधार पर सजायें भी खूब हो रहीं है ।
सामान्य अपराधो मे पुलिस अधिकारियों के समक्ष की गई संस्वीकृति को साक्ष्य मे ग्राह नही माना जाता । उसके बावजूद इस प्रकार की संस्वीकृतियों को आधार बनाकर आरोप पत्र दाखिल किये जाते है। अदालतें इस आधार पर सजायें नहीं करतीं परन्तु यदि विधि बनाकर इस प्रकार की संस्वीकृतियों को साक्ष्य मे एडमिशिबल बना दिया जायेगा तो निश्चित मानिये कि पुलिस अधिकारियों की मनमानी बढेगी और आम लोगों के नागरिक अधिकारों का बडे पैमाने पर हनन होगा ।
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7 टिप्पणियाँ
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Sanjay Kumar Singh कटु सत्य 
निःसन्देह पुलिस अधिकारी अपनी कृत्रिम साक्ष्य को प्रस्तुत करने के आदि हैं जैसा की हमारे साक्ष्य विधि में भी पूर्ववत उल्लेखित है बरामदगी से लेकर अधिकाधिक विवेचना पूर्वाग्रह से ग्रसित सोच पर आधारित होती है जो हम कानूनविद के नजर में जग जाहिर है और यही कारण है कि विवेचना अधिकारी जो न्यायालय के बाहर शेर प्रतीत होता है पर अधिवक्ता के सामने न्यायालय में ढेर हो जाता है...
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जवाब दें1 दिनसंपादित
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Narendra Kumar Yadav पुलिस अधिकारी हमेशा फर्जी साक्ष्यों केसहारे मुकदमो को गढने का काम करते हैं और कोर्टे उन पर जरूरत से ज्यादा विशवास भी करती है। रिमांड के मामलो मे रिकवरी सौप्रतिशत फर्जी और बनावटी होती है।इस तरह से यदिप्रावधानित किया जायगा तो आम जनमानस का विशवास खतम हो जायगा और कोई भी निद्रोश बिना सजा खाये नही बचेगा।
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Rajendra Somvanshi ध्रुव सत्य.... एकदम सही बात.
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Randhir Sishodiya कमेटी अध्यक्ष रिटारमेंट के बाद अवसादग्रस्त रहे होगे
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