Saturday, 2 September 2017

आओ श्रमिक कृषक नागरिकों इन्कलाब का नारा दो


आओ श्रमिक कृषक नागरिकों इंकलाब का नारा दो
केन्द्र सरकार श्रम कानूनों में मजदूर विरोधी बदलाव करने पर आमादा है। नया श्रम कानून तीन पुराने श्रम कानूनों, इंडस्टिरियल एक्ट 1947, ट्रेड यूनियन एक्ट 1926 और इंडिस्टियल एक्ट 1946 की जगह लेगा. अब सवाल है कि यदि ये नया श्रम कानून बन गया तो क्या होगा???
(1) कर्मचारियों को नौकरी से निकालना आसान हो जाएगा. (2) यूनियन बनाना मुश्किल हो जाएगा, न्यूनतम 10 फीसदी या 100 कर्मचारी की जरुरत होगी. जहाँ पहले 7 कर्मचारी मिलकर यूनियन बना लेते थे वहां अब 30 कर्मचारियों की जरुरत होगी. (3) एक माह में ओवर टाइम की सीमा 50 से बढ़ाकर 100 घंटे करना गलत है क्योकि इसका भुगतान डबल रेट में ना होकर अब सिंगल रेट में होगा. जब कानून में ही 100 घंटे का प्रवधान हो जाएगा तो मजदूरों को 8 घंटे के जगह 12 घंटे की नियमित ड्यूटी हो जाएगी. (4) फेक्टरी के मालिकों को अब ज्यादा अधिकार मिल जाएंगे कोर्ट जाने का अधिकार खत्म हो जाएगा. (5) मौजूदा 44 श्रम कानूनों को ख़त्म करके 4 कर दिया जाएगा. (6) यूनियन में बाहरी लोगो पर रोक लगा दी जाएगी. (7) अप्रेंटिश् एक्ट में एक तरफ़ा बदलाव कर 2 साल से बढ़ाकर 10 साल कर दिया जाएगा.
5 टिप्पणियाँ
टिप्पणियाँ
Chandra Shekhar Singh अब सरकार मजदूर की मजबूरी को बढ़ा दिया है
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Surendra Pratap Singh शपथ खा कर अहमदाबाद से दिल्ली आए हैं 
सारे देश को बदल डालूंगा
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Jai Shankar Bajpai श्रमिकों के नाम पर यहां सांसद, विधायक बन कर नेता बने राजनीतिज्ञों ने श्रमिकों के हित में कोई उल्लेखनीय काम नही किया । परिणाम स्वरूप एन.टी.सी.बी.आई.सी.के सभी कारखाने बंद हो गये । लाल इमली भी बन्दी की कगार पर है। नेतृत्व के अभाव में मजदूर रोजी रोटी की तलाश में पलायन करने को विवश हैं।सच तो तो यह है कि मजदूर ने नेताओं व सरकारों के आश्वासन पर भरोसा करना छोड़ दिया है।
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Chandra Shekhar Singh नेता तो नेता सरकार भी वही ढ़ोंग करती है
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Chandra Shekhar Singh मिल की जमीन के लालच में, ऐसा हो न सका।, अब सरकार कुछ करें।
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Prakash Mishra Kahan so rahe hai Labour leader Kanoon me change bina unke ki Raye k galat or Tanashahi kadam
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Suresh Sachan वामपंथी आंदोलन के कमजोर पड़ने के साथ ही मजदूरों के खिलाफ होने वाले अन्याय के विरुद्ध आवाज भी कमजोर पड़ गई है। दावा है कि यह गरीबों की सरकार है लेकिन वास्तव में यह पूंजीपतियों की सरकार है और देश का गरीब मजदूर, किसान अपने को ठगा महसूस कर रहा है।
मजदुर अलग अलग राजनीतिक दलों का पिछलग्गू बनकर अपनी ताकत खो चुका है।
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Chandra Shekhar Singh छोटे छोटे नेता मौजूद है उन्होंने एक बार भी अपनी एक जुटता का ख्याल नहीं आया है
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