सांसद जी कहाँ गया आपका जुझारूपन बी एच यू मे छात्राओं पर लाठीचार्ज, इसके पूर्व लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों की गिरफ्तारी, गोरखपुर मे बच्चो की दर्दनाक मौत जैसे ज्वलंत मुद्दों पर सांसद या विधायक के नाते आपका मौन हम सबके लिये दुखदायी है। सांसद या विधायक होने के पहले आप गली मुहल्ले के साधारण मुद्दों पर स्थानीय प्रशासन को नाको चने चबवा दिय़ा करते थे। अब आप किसी दुसरी दुनियां मे चले गये है क्या? या सत्ता के गलियारों ने आपके जुझारूपन को गुलामी मे बदल दिया है ।
भाई आप हम सबके आदर्श हो। आप सांसद सेठ गोविन्ददास, डाकटर राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीज, एस एम बनर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्र शेखर, जयोतिरमय बसु, सोमनाथ चटर्जी जैसी महान विभूतियों के वारिस हो। आप पर देश को आगे ले जाने का महान दायित्व है लेकिन आप तो आदरणीय मनमोहन सिंह जी की तरह मौनव्रत रखे हुये हो। संसद मे केवल हाँ का बटन दबाते हो, बोलते कुछ हो नहीं?
हम आपको याद दिलायें, सेठ गोविन्ददास ने हिन्दी के मुद्दे पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ मतदान किया था। रवि राय ने लोकसभा अध्यक्ष के नाते तत्कालीन मंत्री विद्या चरण शुक्ल को संसद के लिए अपरिचित घोषित करने का नोटिस दिया था। मधु लिमये ने लोकसभा का कार्य काल पाँच वर्ष से छ वर्ष किये जाने के विरोध मे लोकसभा से त्याग पत्र दे दिया था। चन्द्र शेखर जी ने अपनी ही पार्टी की प्रधान मंत्री को चेताया था, जयप्रकाश नारायण सन्त हैं, उनसे मत टकराओ।
भाई आप सब भी संसद सदस्य हो, कुछ बोलते क्यो नहीं? आम आदमी परेशान है, बेरोजगारी बढ रही है, छोटे मझोले उद्योग धन्धे नोट बन्दी खा गई, गाँव घर के कारोबारियों के लिए जी एस टी फाँसी बनके आई है। पेट्रोल और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे है फिर भी आप मौन है। किसी के गुलाम नहीं हो, भारी बहुमत से जीते हम सबके प्रतिनिधि हो। न सही संसद मे, कम से कम एक बार अपने संसदीय दल की बैठक मे ही अपने मतदाताओं की ब्यथा को अपना स्वर दे दो
भाई आप हम सबके आदर्श हो। आप सांसद सेठ गोविन्ददास, डाकटर राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीज, एस एम बनर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी, चन्द्र शेखर, जयोतिरमय बसु, सोमनाथ चटर्जी जैसी महान विभूतियों के वारिस हो। आप पर देश को आगे ले जाने का महान दायित्व है लेकिन आप तो आदरणीय मनमोहन सिंह जी की तरह मौनव्रत रखे हुये हो। संसद मे केवल हाँ का बटन दबाते हो, बोलते कुछ हो नहीं?
हम आपको याद दिलायें, सेठ गोविन्ददास ने हिन्दी के मुद्दे पर अपनी ही पार्टी के खिलाफ मतदान किया था। रवि राय ने लोकसभा अध्यक्ष के नाते तत्कालीन मंत्री विद्या चरण शुक्ल को संसद के लिए अपरिचित घोषित करने का नोटिस दिया था। मधु लिमये ने लोकसभा का कार्य काल पाँच वर्ष से छ वर्ष किये जाने के विरोध मे लोकसभा से त्याग पत्र दे दिया था। चन्द्र शेखर जी ने अपनी ही पार्टी की प्रधान मंत्री को चेताया था, जयप्रकाश नारायण सन्त हैं, उनसे मत टकराओ।
भाई आप सब भी संसद सदस्य हो, कुछ बोलते क्यो नहीं? आम आदमी परेशान है, बेरोजगारी बढ रही है, छोटे मझोले उद्योग धन्धे नोट बन्दी खा गई, गाँव घर के कारोबारियों के लिए जी एस टी फाँसी बनके आई है। पेट्रोल और अन्य खाद्य पदार्थों के दाम आसमान छू रहे है फिर भी आप मौन है। किसी के गुलाम नहीं हो, भारी बहुमत से जीते हम सबके प्रतिनिधि हो। न सही संसद मे, कम से कम एक बार अपने संसदीय दल की बैठक मे ही अपने मतदाताओं की ब्यथा को अपना स्वर दे दो
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