बच्चों को देखो, उनका ब्यवहार समझो
बच्चों के साथ यौन दुराचार की किसी घटना के बाद हफ्ते दस दिन तक हम सब अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहते हैं, फिर भूल जाते हैं और बच्चों को बस चालक, स्कूल के चपरासी, आया और कोठी के नौकरों के सहारे छोड देते हैं। हमें मानकर चलना चाहिए कि हमारे बच्चों को हर हाल में हमारी सतर्कता की जरूरत रहती है। बच्चों का अचानक चुप रहने लगना, चिड़चिड़ा हो जाना, स्कूल, बुआ, मौसी, चाची मामा या किसी अंकल आंटी के यहाँ जाने से कतराना, वहाँ से लौट कर उदास हो जाने जैसे आचरण को गंभीरता से देखने की जरूरत है। 13 साल की एक बच्ची को उसका अधेड़ पडोसी कई महीनों से सेक्सुअली उतपीडित कर रहा था। आयु का बडा अंतर होने के कारण माता पिता को शक नहीं हुआ। बच्ची ने
" मम्मी मारेंगी " के डर से घर में कुछ नहीं बताया। हमें अपने बच्चों केसाथ दोस्तो की तरह पेश आने की आदत डालनी चाहिए। हम उन्हें विश्वास दिलाये रखें कि कुछ भी हो, हम उन्हें गलत नहीं मानेंगे, उनके साथ हर हाल मे खडे होंगे। हमें लगता है कहने की जरूरत क्या है? जरूरत है, हम सब भी तो डर के कारण घर में सब कुछ कहाँ बताते थे?
बच्चों के साथ यौन दुराचार की किसी घटना के बाद हफ्ते दस दिन तक हम सब अपने बच्चों को लेकर चिंतित रहते हैं, फिर भूल जाते हैं और बच्चों को बस चालक, स्कूल के चपरासी, आया और कोठी के नौकरों के सहारे छोड देते हैं। हमें मानकर चलना चाहिए कि हमारे बच्चों को हर हाल में हमारी सतर्कता की जरूरत रहती है। बच्चों का अचानक चुप रहने लगना, चिड़चिड़ा हो जाना, स्कूल, बुआ, मौसी, चाची मामा या किसी अंकल आंटी के यहाँ जाने से कतराना, वहाँ से लौट कर उदास हो जाने जैसे आचरण को गंभीरता से देखने की जरूरत है। 13 साल की एक बच्ची को उसका अधेड़ पडोसी कई महीनों से सेक्सुअली उतपीडित कर रहा था। आयु का बडा अंतर होने के कारण माता पिता को शक नहीं हुआ। बच्ची ने
" मम्मी मारेंगी " के डर से घर में कुछ नहीं बताया। हमें अपने बच्चों केसाथ दोस्तो की तरह पेश आने की आदत डालनी चाहिए। हम उन्हें विश्वास दिलाये रखें कि कुछ भी हो, हम उन्हें गलत नहीं मानेंगे, उनके साथ हर हाल मे खडे होंगे। हमें लगता है कहने की जरूरत क्या है? जरूरत है, हम सब भी तो डर के कारण घर में सब कुछ कहाँ बताते थे?
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